हाल ही में एक 17 साल के अफगान रिफ्यूजी ने जर्मनी में एक लोकल ट्रेन में हमला किया और चार लोगों को गंभीर रूप से जख्मी किया. इसके बाद से सवाल उठ रहे हैं कि यह लड़का अकेला अफगानिस्तान से जर्मनी कैसे आया.
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इस्लामिक स्टेट ने इस नाबालिग लड़के का एक वीडियो जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है. लेकिन अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि लड़का कट्टरपंथियों के साथ कैसे जा मिला. हमले के बाद से जर्मनी में मौजूद रिफ्यूजियों के बारे में फिर से तरह तरह के सवाल उठने लगे हैं. हमने कुछ सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की.
जर्मनी में इस तरह के और कितने नाबालिग रिफ्यूजी मौजूद हैं?
सरकारी आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2016 तक अकेले जर्मनी पहुंचे नाबालिगों की संख्या 60 हजार से ज्यादा है. इनमें से अधिकतर की उम्र 16 या 17 बताई जाती है. शरणार्थियों के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग के अनुसार पिछले साल ही नाबालिगों की ओर से जर्मनी में असायलम लेने के लिए 14 हजार 500 आवेदन आ चुके हैं. 2014 की तुलना में यह संख्या तिगुनी से भी ज्यादा है.
कहां से आ रहे हैं नाबालिग शरणार्थी?
2015 के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो सबसे अधिक आवेदन आए हैं अफगानिस्तान, सीरिया, इरिट्रिया, इराक और सोमालिया से. हर तीसरा आवेदन अफगानिस्तान के नाबालिगों का है. सीरिया और इराक में छिड़ी जंग के बाद से जर्मनी में आ रहे शरणार्थियों की ओर पूरी दुनिया का ध्यान गया है. ऐसा नहीं है कि इन लोगों के आने के बाद से ही जर्मनी में शरणार्थियों पर चर्चा शुरू हुई. इसके विपरीत स्थिति को इस तरह से समझना जरूरी है कि इन लोगों ने जर्मनी की शरणार्थी नीति के चलते ही यहां का रुख किया. जर्मनी युद्धग्रस्त इलाके के लोगों को जान बचाने के लिए अपने यहां पनाह देता है.
एक सहमी बच्ची की स्केचबुक
सीरियाई गृहयुद्ध के चलते अपने घरों से भागने को मजबूर हुए कई लोगों का जीवन त्रासदी का पर्याय बन गया है. छोटे-छोटे बच्चों को भी इस सब से गुजरना पड़ा है. इस स्केचबुक में एक सीरियाई बच्ची ने इन्हीं अनुभवों को उकेरा है.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
घर की तबाही
इस चित्र में लाल शब्दों में लिखा है, ''यह सीरिया है. मौत का भूत. सीरिया से खून बह रहा है.'' चित्र में घरों पर बम बरसाते टैंक हैं, जेट और हेलिकॉप्टर हैं. बच्ची एक कब्र के सामने खड़ी हो शहर की तरफ इशारा कर रही है.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
मौत और निराशा
दूसरे चित्र में बच्ची ने लिखा, ''ये मेरे पिता, मां और मेरे परिवार की कब्र है. ये कब्र है सीरिया के सारे परिवारों की.'' हालांकि इस बच्ची के मां बाप इसके साथ कैंप में हैं लेकिन उसने कई दूसरे लोगों और बच्चों को परिवार से बिछड़ते देखा है.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
बच्चे मर रहे हैं
इस चित्र में एजियन समुद्र पार कर ग्रीस आने की कोशिश में मारे गए बच्चे आयलान कुर्दी को दर्शाया गया है. इस मौत ने दुनियाभर में संदेश दिया था कि शरणार्थी संकट कितना भयावह है.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
वास्तविक त्रासदी
हजारों लोग समुद्री लहरों में समा गए. हजारों बच्चों ने अपना परिवार खो दिया. ये एक खतरनाक यात्रा है. लेकिन युद्धग्रस्त सीरिया से लोग जिंदगी बचाने के लिए भागने को मजबूर हैं.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
उथल पुथल जिंदगी
बच्ची ने इस चित्र में लिखा, ''बच्चों की सारी उम्मीदें, सारे सपने कचरे के डब्बे में जा चुके हैं.'' इनमें से कई बच्चों को उम्मीद है कि वे अपने पिता से मिलेंगे जो उनसे पहले या बाद में सीमा पार कर पाए. उन्हें उम्मीद है फिर से परिवार पाने की.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
खो गए सपने
''बच्चों की यूरोप से उम्मीदें भी खो गई हैं.'' बच्ची अपने अगले चित्र में जोड़ती है. अस्थाई शिविरों में कई बच्चे यूरोप में एक सुकून की जिंदगी बिताने के सपने देख रहे हैं लेकिन अभी कुछ भी तय नहीं.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
बुरे हालात में
इस चित्र में बच्ची ने एक शरणार्थी शिविर में लोगों की एक बैठक दिखाई है. ग्रीक में मौजूद यह शिविर सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है मगर यह स्थायी नहीं है और ना ही आधिकारिक है. यहां का जीवन बहुत कठिन है. बच्ची ने इसे नाम दिया,, ''एक बैठक बुरे हालात में.''
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
कैंप एक कब्रगाह
जब से इस संकट की शुरूआत हुई है इससे जूझ रहे और इसे करीब से देख रहे लोगों का कहना है कि यूरोप इस संकट से गलत ढंग से निपट रहा है. और यह बात एक दिन इतिहास की किताबों में दर्ज की जाएगी.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
कैंप की भूख
अधिकतर शरणार्थियों ने सीमा पार करने के लिए वो सबकुछ बेच दिया. इस अस्थायी शिविर में होने का मतलब ही यह है कि उनके पास कुछ नहीं है. कोई विकल्प नहीं. इस चित्र में एक महिला अपनी बेचारगी पर रो रही है और एक पुरूष अपनी खाली जेब दिखा रहा है.
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
ये बच्चे, बच्चे होना चाहते हैं
यह 10 साल की बच्ची उन बच्चों में से एक है जिन्होंने छोटी सी उम्र में दहला देने वाले अनुभव झेले हैं. डॉक्टर्स विदाउट बोर्डर्स की मनोचिकित्सक एगेला बोलेत्सी कहती हैं ''ये बच्चे सामान्य जीवन की तलाश में हैं. वे महसूस करना चाहते हैं कि वे बच्चे हैं.''
तस्वीर: DW/M.Karakoulaki
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जर्मनी आने के बाद क्या होता है?
सबसे पहले इन नाबालिगों के लिए रहने की जगह का इंतजाम किया जाता है. अगर उनके कोई रिश्तेदार जर्मनी में रहते हैं, तो बच्चों को उनके पास भेज दिया जाता है. अगर उनका जर्मनी में कोई नहीं है, तो फिर उन्हें किसी ऐसे परिवार के साथ रहने भेज दिया जाता है, जो उनकी देखभाल करेगा. कुछ मामलों में उन्हें यूथ सेंटर में अन्य नाबालिग रिफ्यूजियों के साथ भी रखा जाता है. देश में आने के बाद 14 दिन के भीतर तय किया जाता है कि उन्हें कहां भेजना है. कोशिश होती है देश के सभी राज्यों में उन्हें बराबरी से बांटने की ताकि कोई एक राज्य किसी एक देश से आने वालों का गढ़ ना बन जाए. हालांकि एक तथ्य यह भी है कि कागजी काम में कई बार इतना वक्त लग जाता है कि इनमें अपने भविष्य को ले कर अनिश्चितता बनी रहती है.
क्या वाकई ये सब नाबालिग ही होते हैं?
जर्मन सरकार अपने देश में आने वाले लोगों के सभी कागजों की जांच करती है. लेकिन जिन देशों से ये आते हैं, वहां जाली कागज बनवाना भी कोई मुश्किल काम नहीं है. सरकार भी यह बात जानती है. इसलिए सिर्फ कहे पर भरोसा नहीं करती. जिन लोगों पर शक होता है उनके कई तरह के मेडिकल टेस्ट किए जाते हैं. कुछ मनोवैज्ञानिक परीक्षण किए जाते हैं, दांतों का एक्सरे निकाल कर उम्र का पता किया जाता है. हालांकि कोई भी मेडिकल टेस्ट सिर्फ एक अनुमान ही दे सकता है, सटीक उम्र नहीं बता सकता.
क्या ये नाबालिग कट्टरपंथियों के निशाने पर नहीं हैं?
डॉयचे वेले ने जब यही सवाल जर्मनी की खुफिया एजेंसी से किया, तो आधिकारिक जवाब मिला कि उनके पास ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जो इस ओर इशारा करते हों कि इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकी गुट इन नाबालिगों के साथ संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इसके विपरीत अपना नाम ना बताने की शर्त पर एक प्रवक्ता ने यह भी कहा कि उन्हें करीब 300 ऐसे मामलों की जानकारी है, जहां कट्टरपंथियों ने शरणार्थी शिविरों में रह रहे युवाओं से संपर्क साधने की कोशिश की है.
सबसे खूनी साल 2016
2016 आतंकवाद का साल साबित हुआ है. सात महीनों में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. इस साल अब तक के सबसे ज्यादा आतंकवादी हमले हुए हैं.
तस्वीर: Imago/Science Photo Library
4 जुलाई
एक के बाद एक तीन आतंकवादी हमले हुए. सऊदी अरब के जेद्दा, मदीना और कतीफ में तीन खुदकुश हमले.
तस्वीर: Reuters
3 जुलाई
बगदाद में इराक का सबसे भयानक आतंकवादी हमला हुआ जिसमें 215 जानें गईं और 2002 लोग घायल हो गए.
तस्वीर: Reuters/Khalid al Mousily
2 जुलाई
ढाका में बांग्लादेश का अब तक का सबसे घातक आतंकवादी हमला जिसमें 7 आतंकवादियों ने 20 मासूम जानें ले लीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
28 जून
तुर्की के इस्तांबुल में अतातुर्क एयरपोर्ट पर तीन आतंकियों ने आत्मघाती हमला किया. 45 लोगों की जान चली गई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Kose
27 मार्च
पाकिस्तान के लाहौर में बच्चों के खेल के मैदान के पास बम धमाका हुआ. 72 लोग मारे गए जिनमें ज्यादातर बच्चे थे.
तस्वीर: picture alliance/dpa/R. Dar
22 मार्च
बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में एयरपोर्ट पर आत्मघाती बम हमला हुआ. 34 जानें गईं और 300 लोग घायल हुए.
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
13 मार्च
तुर्की की राजधानी अंकारा में मुख्य चौराहे पर एक कार बम से धमाका किया गया. 37 जानें चली गईं.
तस्वीर: Reuters/U. Bektas
13 मार्च
आइवरी कोस्ट में कुछ अल कायदा आतंकवादी एक होटल में घुसे और गोलियां बरसाईं. 18 लोग मारे गए.
तस्वीर: Reuters/L. Gnago
26 फरवरी
सोमालिया की राजधानी मोगादिशू में एक होटल में अल शबाब ने कार बम से धमाका किया. 15 लोगों की जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/F. Omar
17 फरवरी
तुर्की की राजधानी अंकारा में कई बम धमाके हुए. कुर्दिस्तान फ्रीडम फाल्कन्स के इस हमले में 29 जानें गईं.
तस्वीर: Reuters/Ihlas News Agency
15 जनवरी
बुरकीना फासो के एक होटल में हुए आतंकवादी हमले में 18 देशों के 23 लोगों की जानें गईं. अल कायदा का काम था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Elsen
14 जनवरी
इंडोनेशिया के जकार्ता में बम धमाके और उसके बाद गोलियां बरसा कर आईएस ने 8 लोगों को मार डाला.
तस्वीर: Getty Images/AFP/B. Ismoyo
12 जनवरी
साल की शुरुआत में ही तुर्की के इस्तांबुल में धमाके सुनाई दिए. 13 लोगों की जानें गईं. दर्जनों घायल हुए.
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
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क्या इससे बचने के लिए कुछ किया जा रहा है?
शरणार्थियों और उत्पीड़न के शिकार लोगों की मदद के लिए एक सेंटर चलाने वाले युएर्गन सॉयर का कहना है कि पिछले एक साल में कम से कम 180 नाबालिग रिफ्यूजियों को मनोवैज्ञानिकों के पास भेज उनकी काउंसलिंग कराई गयी है. वे बताते हैं कि ये ऐसी उम्र में हैं जहां "मैं कहां हूं और क्यों हूं" जैसे सवाल ज्यादा परेशान करते हैं. साथ ही ये अपने देशों में ऐसे दृश्य देख कर आए हैं, जो इन्हें लगातार परेशान करते रहते हैं. ऐसे में अगर जर्मनी में नए जीवन की आस लिए इन युवाओं को यहां भी ठीक से अपनाया ना जाए, तो इसके परिणाम बुरे हो सकते हैं. जर्मन सरकार भी यह बात बखूबी जानती है और इसीलिए समाज में शरणार्थियों के समेकन पर खूब जोर दे रही है.