जापान के एक मानव-रहित अंतरिक्ष यान ने चांद के 10 पत्थरों का अध्ययन कर जानकारी भेजी है. जापान की अंतरिक्ष एजेंसी के अधिकारी इस बात से बेहद रोमांचित हैं क्योंकि इस जानकारी से चांद के बनने के बारे में सुराग मिल सकते हैं.
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स्मार्ट लैंडर फॉर इंवेस्टिगेटिंग मून (एसएलआईएम) पिछले महीने चांद की सतह पर उतरा था. तबसे उसने अपने मल्टी-बैंड स्पेक्ट्रल कैमरे का इस्तेमाल करके चांद के पत्थरों की संरचना का अध्ययन किया.
यह जापान का पहला चंद्र मिशन है. यह अंतरिक्ष यान 20 जनवरी को एकदम सही जगह पर लेकिन उल्टा उतरा था. शुरू में इसके सोलर पैनल सूरज को देख नहीं पा रहे थे. पृथ्वी से थोड़े से संचार के बाद इसे बंद भी कर दिया गया था.
क्या अवधारणा है चांद के बनने की
लेकिन इसने आठवें दिन फिर से काम करना शुरू कर दिया और धरती पर जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जाक्सा) के कमांड सेंटर से संपर्क स्थापित किया. फिर से एक्टिवेट होने के बाद उसने एक ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीर भेजी जिसमें छह पत्थरों समेत चांद की पथरीला सतह नजर आई. यान ने कुल मिलाकर 10 पत्थरों से डाटा हासिल किया.
हर पत्थर को कुत्तों की नस्लों का नाम भी दिया गया, जैसे "अकिताइनु", "बीगल", "शिबाइनु" आदि. जाक्सा के प्रोजेक्ट मैनेजर शिनिचिरो साकाई का कहना है, "हम उम्मीद कर रहे हैं कि इन पत्थरों की जांच से हमें चांद के बनने की प्रक्रिया का पता चल जाएगा."
उन्होंने बताया कि चांद के पत्थरों और धरती के पत्थरों की खनिज संरचना की तुलना कर वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि इनमें एक जैसे तत्व हैं या नहीं. "जायंट इंपैक्ट" अवधारणा के तहत, यह माना जाता है कि चांद धरती के एक और ग्रह से टकराने और उस टक्कर के बाद एक छोटे टुकड़े के निकलने की वजह से बना था.
जाक्सा की टीम को उम्मीद थी एसएलआईएम सिर्फ एक पत्थर का अध्ययन कर पाएगा. ऐसे में 10 पत्थरों का डाटा मिलने से टीम में जश्न का माहौल है और सदस्य खुद को चांद के बनने की प्रक्रिया के अध्ययन को जारी रखने के लिए प्रेरित महसूस कर रहे हैं.
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आगे भी हैं चुनौतियां
एसएलआईएम इस समय "हाइबरनेट" कर रहा है. यह चांद पर रात का समय है जो फरवरी के आखिरी दिनों तक चलेगा. इस बात का अभी पता नहीं चला है कि यान और उसका स्पेक्ट्रोस्कोप इस दौरान आने वाले भीषण ठंडे तापमान को बर्दाश्त कर पाएगा और सूरज की रोशनी के लौटने पर "उठ" पाएगा.
यान शीओली क्रेटर के पास स्थित ज्वालामुखीय पत्थरों से भरे एक इलाके में अपने लक्ष्य से करीब 55 मीटर दूर उतरा था. यह पिछले चंद्र मिशनों के मुकाबले सबसे सटीक लैंडिंग थी. पिछले मिशनों में कम से कम 10 किलोमीटर चौड़े समतल इलाकों में यानों को उतारा गया था.
इस यान के दो मुख्य इंजनों में से एक में आखिरी मिनट में एक खराबी आ गई थी जिसकी वजह से योजना से ज्यादा सख्त लैंडिंग हुई. जाक्सा के मुताबिक अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो लैंडिंग लक्ष्य के कुछ की मीटर पास होती.
यान में दो खोजी उपकरण हैं जिन्हें लैंडिंग से ठीक पहले छोड़ दिया गया था. उन उपकरणों ने लैंडिंग, आस पास के इलाके और दूसरे डाटा की रिकॉर्डिंग की. उन्होंने एसएलआईएएम के शुरुआती काम को रिकॉर्ड करने का अपना मिशन पूरा कर लिया था और उसके बाद से उन्होंने काम करना बंद कर दिया.
हमें चांद चाहिए: कहानी, इंसान और चांद की
इंसानी विकास का क्रम, चांद को देखने-समझने की क्रमवार यात्रा भी है. इसके पड़ावों में कौतुक भी है, भक्ति भी. वो कभी प्रेम-कामना का रूपक है, कभी भाग्य बांचने की कक्षा. देखिए इस यात्रा की कुछ झलकियां.
हजारों साल पहले जब हमारे पुरखे रात के आसमां को तकते होंगे, तो दूर ऊंचाई में दिखता होगा एक रोशन गोला. कभी उजली रोशनी में डूबा, कभी मलाई की परत सा पीला, तो कभी बुझा-बुझा, निस्तेज. घटता-बढ़ता. दिन में दिखने वाले उस भभकते गोल से बिल्कुल अलग, जिसकी रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं. तब चांद विस्मय और कौतुक का विषय रहा होगा.
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
पहला कैलेंडर
सुबह होती है. सूरज उगता है. दिन ढलता है. चांद उगता है. हमारे लिए इस क्रम में कुछ नया नहीं, कोई कौतुहल नहीं. लेकिन प्राचीन मानवों के लिए यह तयशुदा चक्र समय मापने का एक भरोसेमंद जरिया था. इंसानों का सबसे शुरुआती कैलेंडर. कैंब्रिज आर्कियोलॉजिकल जर्नल में छपे एक पेपर में शीत युग के कुछ गुफा चित्रों को चांद पर आधारित कैलेंडरों का सबसे शुरुआती साक्ष्य माना गया.
तस्वीर: BORJA SUAREZ/REUTERS
जब इंसान शिकारी था...
शीत युगीन कई गुफा चित्रों में खास तरह के डॉट और डैश मिलते हैं, जो जानवरों के चित्र के नजदीक बने हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये चिह्न अलग-अलग मौसमों में जानवरों के बर्ताव को दिखाते हैं. चूंकि तब मानव शिकार पर निर्भर थे, ऐसे में प्रजनन चक्र जैसी जानकारियां उनके लिए बेहद अहम थीं. अनुमान है कि इन जानकारियों के लिए लूनर कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: RAMI AL SAYED/AFP
चंद्र देवता
आगे चलकर जब मानव सभ्यताएं विकसित हुईं, तो कई जगहों पर चांद धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताओं का हिस्सा बना. मसलन प्राचीन मिस्र में खोंसू, चंद्रमा के देवता माने जाते थे. विश्वास था कि इंसान के मरने के बाद की यात्रा में खोंसू उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं. सुमेरियन सभ्यता में नाना/सेन को चंद्रमा का देवता माना जाता था. वो सबसे लोकप्रिय देवताओं में थे.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
आज भी होती है चंद्रमा की पूजा
कई संस्कृतियों में चांद को पूजे जाने का भी चलन रहा है. प्राचीन रोम में देवी लूना, चंद्रमा का ही दिव्य रूप थीं. रूस ने चंद्रमा पर जो मिशन भेजा, उसका नाम भी लूना ही था. भारत के कई हिस्सों में आज भी चंद्रमा की पूजा होती है. यहूदी परंपरा में "रोश होदेश" चांद का महीना माना जाता है. इसकी शुरुआत शुक्लपक्ष के चांद की पहली झलक से शुरू होती है. इस्लाम में भी रमजान और ईद का चांद के देखे जाने से नाता है.
तस्वीर: MARTIN BERNETTI/AFP
गीत, साहित्य, कविताएं...
लोक परंपरा और साहित्य में चांद के दर्जनों रूप हैं. बच्चों की लोरी में वो चंदा मामा है. बाल कृष्ण की कहानी में यशोदा चांद दिखाकर उन्हें बहलाती हैं. पुराने समय से लेकर आज तक, साहित्य और गीत-संगीत में चांद कई तरह के रूपकों में इस्तेमाल होता आ रहा है. हिंदी फिल्मी गानों को ही लीजिए, तो चांद की उपमा वाले दर्जनों गाने आपको मुंहजुबानी याद होंगे.
1960 के दशक में जब चांद पर जाने की होड़ शुरू हुई, तो यह वाकई मानव सभ्यता के लिए बड़ी छलांग थी. सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों दौड़ जीतना चाहते थे. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. इसके बाद कई "फर्स्ट" वाले पल आए. जैसे, पहली सॉफ्ट लैंडिंग. चांद की सतह की पहली तस्वीर. चांद के पास से पहली बार गुजरना.
तस्वीर: NASA/CNP/AdMedia/picture alliance
वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन...
फिर आई चांद के इतिहास की सबसे यादगार तारीख: 16 जुलाई, 1969. इसी दिन नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद की जमीन पर पैर धरा. बाद में अपना अनुभव बताते हुए नील ने ऐतिहासिक पंक्ति कही: वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड. तस्वीर में: चांद की जमीन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते का निशान.
तस्वीर: NASA/Heritage Images/picture alliance
इतना अविश्वसनीय कि बहुतों को अब भी संदेह
यह इतनी अद्भुत उपलब्धि थी, इतनी हैरतअंगेज कि कई लोग आज तक इसपर यकीन नहीं कर पाए हैं. कन्सपिरेसी थिअरीज के कई मुरीद आज भी कहते हैं कि वो लैंडिंग एक झूठ थी. उनके तर्कों की एक मिसाल: जब चांद पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो झंडा फहराया कैसे? 2019 का एक चर्चित वायरल वीडियो है, जिसमें बज आल्ड्रिन ऐसे ही एक "लैंडिंग डिनायर" से नाराज होकर उसे घूंसा मारते हैं.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
फिर से दौड़ लगी है...
अगस्त 2007 में एक रूसी झंडे की खूब चर्चा हुई. यह झंडा आर्कटिक की तलछटी में लगाया गया था. वहां के संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए यह रूस की सांकेतिक दावेदारी मानी गई. तब पश्चिमी देशों ने रूस को याद दिलाया कि ये 15वीं सदी नहीं है कि झंडा गाड़ो और कहो, आज से ये जमीन हमारी! हाल के दशकों में चंद्रमा के लिए फिर से एक दौड़ शुरू हुई है. तो क्या चंदा किसी दिन रूप और शीतलता के रूपकों से हटकर संसाधन बन जाएगा?
तस्वीर: ingimage/IMAGO
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इस लैंडिंग की वजह से जापान चांद पर पहुंचने वाला पांचवां देश बन गया. उससे पहले अमेरिका, पूर्ववर्ती सोवियत संघ, चीन और भारत चांद पर पहुंच चुके हैं.