उत्तर और दक्षिण कोरिया को अलग करने वाली भारी सुरक्षा वाली सीमा के पास निगरानी उपकरण 24 घंटे काम कर रहे हैं. ये मिसाइलों या सैन्य गतिविधियों पर नजर नहीं रख रहे, बल्कि सीमा पार कर आने वाले मलेरिया वाले मच्छरों को पकड़ रहे.
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अपनी बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा और दशकों की कोशिशों के बावजूद दक्षिण कोरिया के लिए "मलेरिया-मुक्त" स्टेटस हासिल करना अब तक एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिसका मुख्य कारण दुश्मन देश उत्तर कोरिया से इसकी नजदीकी है, जहां यह रोग अब भी आम है. दक्षिण कोरिया ने इस साल देश भर में मलेरिया की चेतावनी जारी की थी और वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन, विशेषकर गर्म वसंत और भारी बारिश कारण से मच्छर जनित बीमारियां बढ़ने का जोखिम बना रहता है.
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दुश्मन देश और मलेरिया का खतरा
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर उत्तर और दक्षिण कोरियाई, जो अभी भी तकनीकी रूप से युद्ध में हैं, एक साथ काम नहीं करते हैं, तो स्थिति और खराब हो सकती है. दोनों देशों के बीच असली मुद्दा डिमिलिटराइज्ड जोन या डीएमजेड का है. यह भूमि की चार किलोमीटर चौड़ी निर्जन पट्टी है, जो 250 किलोमीटर लंबी आम सीमा के साथ चलती है.
यह डीएमजेड क्षेत्र हरे-भरे जंगलों और आर्द्रभूमि से घिरा हुआ है और यहां इंसान नहीं जाता है, क्योंकि इसका निर्माण 1953 में कोरियाई युद्ध के बाद हुए युद्ध विराम के बाद हुआ था.
विशेषज्ञों का कहना है कि बारूदी सुरंगों से भरा यह सीमावर्ती क्षेत्र मच्छरों के प्रजनन के लिए सबसे अच्छा वातावरण प्रदान करता है. इनमें मलेरिया फैलाने वाले मच्छर भी शामिल हैं, जो 12 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकते हैं.
सोल के कोरिया रोग नियंत्रण और रोकथाम एजेंसी के वैज्ञानिक किम ह्युन-वू ने कहा कि डीएमजेड में पानी जमा रहता है और "बहुत सारे जंगली जानवर हैं, जो मच्छरों के लिए रक्त स्रोत का काम करते हैं, जिससे वे अंडे देते हैं."
मलेरिया का खात्मा नहीं कर पाया है दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया ने एक बार माना था कि उसने मलेरिया का खात्मा कर दिया है, लेकिन 1993 में डीएमजेड पर तैनात एक सैनिक को संक्रमित पाया गया था, और तब से यह बीमारी जारी है. 2023 में मामलों में लगभग 80 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 2022 में 420 से बढ़कर 747 हो गई.
सोल की साहम्युक यूनिवर्सिटी में पर्यावरण जीवविज्ञान के प्रोफेसर किम डोंग-गुन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "डीएमजेड ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां कीट नियंत्रण किया जा सके." उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे मच्छरों की आबादी बढ़ रही है, वहां तैनात सैनिकों में मलेरिया के मामले सामने आ रहे हैं.
मलेरिया मच्छरों के लिए ट्रैकिंग डिवाइस
अब दक्षिण कोरियाई स्वास्थ्य अधिकारियों ने डीएमजेड के पास प्रमुख क्षेत्रों समेत पूरे देश में 76 मच्छर-ट्रैकिंग डिवाइस लगाए हैं. सीमा के उत्तर में मलेरिया अधिक व्यापक है. दक्षिण कोरिया के मुकाबले उत्तर कोरिया में मलेरिया अधिक आम है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 2021 और 2022 में मलेरिया के लगभग 4,500 मामले सामने आए, जबकि देश में गंभीर गरीबी और खाद्य पदार्थों की कमी के कारण यह स्थिति और भी खराब हो सकती है.
2011 में उत्तर कोरिया से भागने के बाद अब दक्षिण कोरिया में डॉक्टर के तौर पर काम करने वाले चोई जंग-हुन का कहना है कि उत्तर कोरिया में संक्रामक रोगों की समस्या बहुत गंभीर है. चोई ने कहा कि वे देश के उत्तरी भाग में रहते थे, फिर भी उन्होंने मलेरिया के रोगियों का इलाज किया था, जिनमें एक उत्तर कोरियाई सैनिक भी शामिल था, जो दक्षिण की सीमा के पास तैनात था.
चोई ने कहा कि पुराने माइक्रोस्कोप जैसे पुराने उपकरण मलेरिया के जल्द और सटीक पहचान में बाधा डालते हैं, जबकि कुपोषण और गंदा पानी की सुविधाओं में कमी के कारण उत्तर कोरिया के लोग विशेष रूप से इस रोग के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दशक में दक्षिण कोरिया के लगभग 90 प्रतिशत मलेरिया रोगी डीएमजेड के पास वाले क्षेत्रों में संक्रमित हुए थे, हालांकि अन्य क्षेत्रों में दुर्लभ मामले सामने आए हैं.
एए/वीके (एएफपी)
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
तस्वीर: AP
शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Klett GmbH
मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.