गूगल अपनी सर्च में एसजीई टूल का इस्तेमाल कर रहा है, जिसने कई समाचार प्रकाशकों की नींदें उड़ा दी हैं. फिलहाल यह भारत, जापान और अमेरिका में जारी हुआ है.
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अगर गूगल की यह तकनीक कामयाब रही तो हो सकता है आपको कभी कोई खबर पढ़ने की जरूरत ना रहे. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित गूगल का यह टूल पूरे इंटरनेट पर किसी भी विषय पर मौजूद तमाम सामग्री को पढ़कर उसे कम शब्दों में परोस सकता है.
गूगल के इस नये टूल से बड़े-बड़े मीडिया घराने और समाचार स्रोत खतरा महसूस कर रहे हैं. जेनरेटिव एआई तकनीक पर गूगल और अन्य एआई कंपनियां फिलहाल प्रयोग कर रही हैं. यह तकनीक पुरानी सामग्री और आंकड़ों से नयी सामग्री तैयार कर सकता है.
मई महीने में गूगल ने जेनरेटिव एआई पर आधारित सर्च को बाजार में उतारा था. मीडिया विश्लेषक और प्रसारक इस तकनीक पर पहले ही चिंता जता चुके हैं क्योंकि यह ओपन एआई के चैटबॉट चैटजीपीटी से भी एक कदम आगे की बात होगी. चैटजीपीटी सवालों के जवाब देने वाली एआई एप्लीकेशन है.
सब कुछ होम पेज पर
नये टूल को गूगल ने सर्च जेनरेटिव एक्सपीरियंस (एसजीई) नाम दिया है. एसजीई सर्च किये गये सवालों के जवाब में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल कर संक्षिप्त लेखनुमा जवाब तैयार करता है. गूगल अभी यह परीक्षण कर रहा है कि टूल कितना कारगर साबित होगा.
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एसजीई द्वारा तैयार यह संक्षिप्त सामग्री गूगल सर्च के होम पेज पर नजर आती है. साथ ही ‘डिग डीपर' यानी गहराई से जानें का लिंक दिया होता है, जिस पर क्लिक करके उस विषय के बारे में और अधिक विस्तार से जाना जा सकता है.
अगर प्रकाशक अपनी सामग्री को एक्सक्लूसिव बनाना चाहें तो विकल्प का इस्तेमाल कर सकते हैं जिसके तहत उनकी सामग्री एसजीई द्वारा तैयार संक्षिप्त में नहीं दिखेगी. लेकिन इस विकल्प का इस्तेमाल करते ही उनकी सामग्री गूगल सर्च रिजल्ट से भी हट जाएगी. यानी वे इंटरनेट पर लगभग लापता हो जाएंगे.
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कैसे काम करता है एसजीई
उदाहरण के लिए अगर आप गूगल पर सर्च करें, ‘जॉन फोसे कौन हैं?' तो एसजीई इस साल साहित्य का नोबेल जीतने वाले लेखक जॉन फोसे के बारे में तीन पैराग्राफ का एक छोटा आर्टिकल दिखा देता है. उसके साथ ही विकीपीडिया, एनपीआर, न्यूयॉर्क टाइम्स और अन्य वेबसाइटों के लिंक नजर आते हैं, जहां फोसे के बारे में सामग्री प्रकाशित हुई है. लेकिन तीन पैराग्राफ पढ़ने के बाद इन लिंक्स पर क्लिक करने वालों की संख्या घट जाएगी.
गूगल का कहना है कि एसजीई द्वारा तैयार यह सामग्री बहुत सी वेबसाइटों से जमा करके बनायी जाती है और साथ ही उन वेबसाइटों के लिंक्स दे दिये जाते हैं. कंपनी के मुताबिक एसजीई पाठकों के लिए एक विकल्प पर प्रयोग मात्र है और समाचार प्रकाशकों व अन्य संबंधित पक्षों से इस नये टूल के बारे में फीडबैक ली जा रही है. एसजीई को फिलहाल अमेरिका, भारत और जापान में जारी किया गया है.
क्या इंसान की जगह ले लेंगे रोबोट?
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीक में विकास ने यह डर भी पैदा कर दिया है कि ये रोबोट या ह्यूमनोएड कहीं इंसान की ही जगह तो नहीं ले लेंगे. देखिए, क्या ऐसा हो सकता है?
तस्वीर: YouTube/CNET
आइंस्टाइन जैसा बुद्धिमान और मजाकिया
हांगकांग की कंपनी हैन्सन रोबोटिक्स इंसानों जैसे दिखने वाले रोबोट बनाती है. इसका एक रोबोट है प्रोफेसर आइंस्टाइन. कंपनी कोशिश कर रही है कि यह रोबोट महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन जितना बुद्धिमान हो जाए.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
कितना ज्यादा इंसानी
रोबोट दिखने में भी इंसान जैसे लगें, इसके लिए फ्रबर नाम के एक त्वचा जैसे पदार्थ का विकास किया जा रहा है. नैनोटेक्नोलॉजी पर आधारित इस त्वचा से बने रोबोट के हाव-भाव भी इंसानों जैसे होंगे.
तस्वीर: Stringer/AA/picture alliance
पहली नागरिक, सोफिया
सोफिया दुनिया की पहली ऐसी रोबोट है जिसके पास नागरिकता भी हासिल है. सऊदी अरब ने उसे अपनी नागरिकता दी है और वह संयुक्त राष्ट्र की इनोवेशन दूत के रूप में भी काम करती है.
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सारे कामों में सक्षम
रोबोट बियोमनी को अमेरिकी कंपनी बियॉन्ड इमैजिनेशन ने बनाया है. यह रोबोट बर्तन धोने से लेकर इंजेक्शन लगाने तक हर तरह का काम कर सकती है. इसे अंतरिक्ष में ले जाने की भी योजना है.
तस्वीर: YouTube/CNET
कलाकार रोबोट
आइ-डा एक रोबोट-आर्टिस्ट है जिसे 'इंजीनियर्ड आर्टिस्ट' कंपनी ने बनाया है. 2019 में बना यह रोबोट दुनिया का पहला रोबोटिक आर्ट सिस्टम है और एल्गोरिदम से ड्राइंग, पेंटिंग और मूर्तियां बना सकता है.
तस्वीर: Avalon/Photoshot/picture alliance
कौन है असली, कौन है नकली
जापानी रोबोटविज्ञानी हिरोशी इशीगुरो का बनाया यह रोबोट जेमिनोएड उनका हमशक्ल है. उन्होंने जापान के तकनीकी मंत्री तारो कोनो का रोबोटिक क्लोन भी बनाया है. जेमिनोएड अमेरिका में कई कार्यक्रम कर चुका है, बिना इशीगुरो की मदद के.
तस्वीर: Naoki Maeda/AP Photo/picture alliance
ऑफिस वर्कर लेना
जर्मनी में 2022 में बनी लेना को ‘लीप इन टाइम‘ लैब में विकसित किया गया. वह आठ हफ्ते तक एक दफ्तर में बाकी लोगों के साथ सहकर्मी के रूप में काम कर चुकी है. वहां वह प्रेजेंटेशंस भी दे रही थी.
तस्वीर: Boris Roessler/dpa/picture-alliance
एआई के खतरे
‘गॉडफादर ऑफ एआई’ कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन ने गूगल में अपनी नौकरी छोड़ दी. वह कहते हैं कि एआई इंसानियत के लिए बेहद खतरनाक है और इसका विकास जिस तेजी से हो रहा है, बहुत जल्द बड़े बदलाव दिख सकते हैं.
लेकिन प्रकाशकों के लिए यह नया टूल खतरे की घंटी जैसा है. वे पहले ही अपनी सामग्री के इस्तेमाल के अधिकार को लेकर दशकों से गूगल के साथ जूझ रहे हैं. ज्यादातर न्यूज वेबसाइट अपनी सामग्री के प्रसार के लिए गूगल सर्च पर निर्भर हैं.
चिंतित हैं प्रकाशक
कई प्रकाशकों ने एसजीई के बारे में चिंता जतायी है. इन चिंताओं में यह बात भी शामिल है कि एसजीई जो संक्षिप्त तैयार करेगा, उसमें प्रकाशकों को क्रेडिट के रूप में नाम दिया जाएगा या नहीं. इसके अलावा उस संक्षिप्त की सत्यता भी एक चिंता है.
प्रकाशक चाहते हैं कि जब भी उनकी तैयार सामग्री का इस्तेमाल हो तो गूगल इसके बदले उन्हें भुगतान करे. लेकिन चैटजीपीटी के रूप में पहले ही इन प्रकाशकों का सामना एक ऐसी चुनौती से हो रहा है.
गूगल के एक प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "जैसे जैसे हम जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल सर्च में ला रहे हैं, हमारी प्राथमिकता रहेगी कि पाठकों को अलग-अलग स्रोतों के पास भेजा जाए, जिनमें समाचार प्रकाशक भी शामिल हैं, क्योंकि हम एक स्वस्थ और सर्वउपलब्ध वेब के समर्थक हैं.”
AI के बारे में क्या कह रहे हैं दिग्गज
18वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति और फिर 20वीं शताब्दी की इंटरनेट क्रांति के बाद इंसानियत एक और बड़ी क्रांति के सामने खड़ी है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में क्या कह रहे हैं दिग्गज.
तस्वीर: Action Pictures/IMAGO
बिल गेट्स, संस्थापक, माइक्रोसॉफ्ट
इंसानों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के खतरों के बारे में चिंतित होना चाहिए.
तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance
सुंदर पिचाई, सीईओ, अल्फाबेट (गूगल)
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पूरे समाज पर बड़ा असर डालेगी. समाज को इसके मुताबिक ढलने की जरूरत है. एआई के तेज विकास से फेक न्यूज और फेक फोटो का चलन भी बढ़ेगा, इससे बड़ा नुकसान हो सकता है.
तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP
सत्या नडेला, सीईओ, माइक्रोसॉफ्ट
हम देख चुके हैं कि एआई का अच्छा इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है, लेकिन हमें इसके छिपे हुए नतीजों से बचाव के लिए भी तैयार रहना होगा. इसके लिए निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों को कदम उठाने होंगे.
फुल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास, इंसानी नस्ल के अंत की शुरुआत कर सकता है. जरूरत है कि हम एआई को बेहतर बनाने के साथ ही इसे इंसानियत को फायदा पहुंचाने वाला भी बनाएं
तस्वीर: Matt Dunham/AP/picture alliance
टिम कुक, सीईओ, एप्पल
हम सबको ये पक्का करने की जरूरत है कि एआई का इस्तेमाल इंसानियत के लिए फायदे के लिये हो, ना कि इंसानियत को नुकसान पहुंचाने के लिये.
तस्वीर: APPLE INC/REUTERS
जेफ बेजोस, संस्थापक, एमेजॉन
हम एआई के स्वर्णयुग की शुरुआत में है. हालिया विकास ने ऐसे दरवाजे खोल दिये हैं, जिनकी कल्पना सिर्फ साइंस फिक्शन में की जाती थी- और अभी तो हमने संभावनाओं की उपरी परत ही कुरेदी है.
तस्वीर: David Jones/Future Image/IMAGO
इलॉन मस्क, संस्थापक, टेस्ला
अगर आप एआई सेफ्टी के बारे में चिंतित नहीं हैं तो आपको होना चाहिए. ये उत्तर कोरिया से भी ज्यादा रिस्की है.
तस्वीर: Ludovic Marin/REUTERS
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फॉरेस्टर रिसर्च में सीनियर विश्लेषक निखिल लाई कहते हैं, "एसजीई निश्चित तौर पर प्रकाशकों की वेबसाइटों पर जाने वाले लोगों की संख्या कम करेगा और उन्हें अपनी सामग्री की कीमत आंकने के लिए क्लिक रेट के बजाय नये उपाय खोजने पड़ेंगे.”
हालांकि लाई मानते हैं कि एसजीई में लिंक दिये जाने से प्रकाशकों की साख बढ़ेगी.