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युवाओं को उम्मीद, महानगरों को पीछे छोड़ देगा अयोध्या

२१ जनवरी २०२४

कहा जा रहा है कि राम मंदिर की वजह से अयोध्या में बहुत विकास हुआ है और आने वाले सालों में शहर की सूरत ही बदल जाएगी. ऐसे में क्या सोचते हैं अयोध्या के युवा अपने शहर और शहर में अपने भविष्य के बारे में.

अयोध्या
क्या सोचते हैं अयोध्या के युवातस्वीर: Charu Kartikeya/DW

फैजाबाद का राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय इस इलाके का इकलौता बड़ा विश्वविद्यालय है जिसमें अयोध्या ही नहीं बल्कि आसपास के कई जिलों से लाखों युवा स्नातक और स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने आते हैं.

विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित विभागों में पढ़ने वाले छात्रों में से कुछ अयोध्या-फैजाबाद के स्थानीय निवासी हैं तो कुछ दूसरे शहरों और गांवों से आए हैं. ऐसे छात्र अपने परिवार से दूर फैजाबाद शहर में कमरे किराए पर लेकर रहते हैं.

खुल रहे हैं अवसर

परिवार से दूर रह कर पढ़ाई करना अपने आप में उच्च शिक्षा के प्रति इन लोगों की लगन को दिखाता है. इनसे बातचीत करने पर यह भी पता चलता है कि ये अयोध्या के बदलते परिदृश्य को लेकर भी अनजान नहीं हैं और उसके प्रति अपनी अलग राय भी रखते हैं.

सुमित सिंह का मानना है कि दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु आदि जैसे शहरों को पीछे छोड़ देगा अयोध्यातस्वीर: Charu Kartikeya/DW

22 साल के सुमित सिंह माइक्रोबायोलॉजी में बीएससी कर रहे हैं और इस समय कोर्स के अंतिम साल में हैं. उनसे जब पूछा गया कि अयोध्या-फैजाबाद में माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए किस तरह के अवसर हैं, तो उन्होंने बताया कि पहले तो कोई अवसर नहीं था, लेकिन अब कुछ अवसर खुल रहे हैं.

सुमित ने डीडब्ल्यू को बताया कि अमूल और पराग आदि जैसी खाने पीने की चीजें बनाने वाली कंपनियों की फैक्ट्रियां अब यहां खुल रही हैं, जिनमें रोजगार के मौके बन सकते हैं. इसी के साथ उन्होंने बताया कि शहर में नए अस्पताल और पैथोलॉजी लैब भी खुल रहे हैं और इनमें भी उन्हें नौकरी मिल सकती है.

उनका यह भी मानना है कि आने वाले समय में अयोध्या से बाहर जाने वाली मिठाइयों और खाने पीने की दूसरी चीजों की गुणवत्ता में कोई कमी ना हो, यह सुनिश्चित करने के लिए "फूड माइक्रोबायोलॉजिस्ट की डिमांड बढ़ने वाली है."

क्या दिल्ली, मुंबई को पीछे छोड़ देगा अयोध्या?

जब उनसे पूछा गया कि भविष्य में उन्हें अगर दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु आदि जैसे बड़े शहरों में काम करने का मौका मिला तो क्या वो वहां जाना पसंद करेंगे, तो उनके जवाब में अयोध्या के भविष्य को लेकर उनके आत्मविश्वास की एक झलक दिखी.

श्रेया सिंह मानती हैं कि सरकारी स्कूलों में नौकरियां बहुत कम निकलती हैंतस्वीर: Charu Kartikeya/DW

उन्होंने कहा, "वहां भी जा सकते हैं लेकिन हमें तो नहीं लगता कि अयोध्या से ज्यादा कोई हाई-फाई होगा. ये धीरे धीरे डेवेलप हो रहा है और पांच या 10 सालों में इससे ज्यादा हाई फाई कोई नहीं होने वाला."

21 साल की श्रेया सिंह फैजाबाद से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित अंबेडकर नगर की रहने वाली हैं. वह यहां जूलॉजी और बॉटनी में बीएससी कर रही हैं और कोर्स के अंतिम साल में पहुंच चुकी हैं.

इस कोर्स के बाद वो बीएड करना चाहती हैं और शिक्षक बनना चाहती हैं. श्रेया ने बताया कि इस यूनिवर्सिटी में बीएड की पढ़ाई नहीं होती है और इसके लिए उन्होंने बीएससी के बाद और कहीं जाना होगा. वो पिछले तीन सालों से शहर में एक कमरा किराए पर लेकर रह रही हैं.

उन्हें भी उम्मीद है कि आने वाले सालों में यहां कई मेडिकल कॉलेज खुलेंगे जिनमें शिक्षकों की मांग होगी. वो कहती हैं कि जब तक ये कॉलेज नहीं बन जाते तब तक वह सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का काम कर सकती हैं. लेकिन श्रेया मानती हैं कि सरकारी स्कूलों में नौकरियां बहुत कम निकलती हैं और आखिरी बार 2017 में प्राइमरी टीचर की नौकरियां निकली थीं.

अभी और विकास की जरूरत

वहीं 18 साल की तनु दुबे यहां बीए के पहले साल की छात्रा हैं. वह यहां से करीब 45 किलोमीटर दूर हैदरगंज की रहने वाली हैं. तनु यूपीएससी परीक्षा दे कर केंद्र सरकार की प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हैं.

'हमें मंदिर नहीं, रोजगार चाहिए'

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उन्होंने बताया कि फैजाबाद में यूपीएससी की तैयारी करवाने के लिए कई कोचिंग संस्थान हैं लेकिन काफी संस्थान हिंदी में पढ़ाते हैं.

तनु ने बताया कि इस वजह से यूपीएससी की परीक्षा देने की तैयारी करने वाले छात्रों को बाहर भी जाना पड़ता है. उनका इशारा यह परीक्षा देने वाले कई छात्रों के बीच प्रचलित उस मान्यता की तरफ था कि इसमें अंग्रेजी माध्यम से पढ़ कर आए बच्चों को बढ़त मिलती है.

तनु को उम्मीद है कि जिस तरह से अयोध्या का विकास हो रहा है, जब तक उनकी ग्रेजुएशन पूरी होगी तब तक यहां भी इंग्लिश में पढ़ाने वाले कोचिंग संस्थान खुल जाएंगे. वह इतना जरूर मानती हैं कि अगर ऐसा नहीं हुआ, तब उन्हें बाहर जाना होगा.

आने वाले समय में अयोध्या का विकास कैसा होगा, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन इन छात्रों की बातों से ऐसा लगता है कि वो भविष्य की तरफ बहुत उम्मीद से देख रहे हैं.

18 साल के हर्ष ठाकुर भी इसी विश्वविद्यालय में बीएससी के पहले साल के छात्र हैं. वह यह कोर्स करने के बाद कानून की पढ़ाई करना चाहते हैं और अधिवक्ता बनना चाहते हैं.

हर्ष ठाकुर कहते हैं कि अयोध्या में पहले से मंदिर था, "राम लल्ला जी थे, हमारे भगवान थे, तो वो तो गिराना ही था"तस्वीर: Charu Kartikeya/DW

उनका मानना है कि "अधिवक्ता का एक अलग ही रौब होता है." अयोध्या के बारे में वह कहते हैं कि शहर में अब काफी विकास हो रहा है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर "हर कोई अयोध्या का नाम जान रहा है."

राम मंदिर पर गर्व

अपने अपने भविष्य को लेकर इतनी उम्मीदों के अलावा छात्रों से बातचीत में यह भी पता चला कि वो सब अयोध्या में राम मंदिर के बनने से बेहद खुश हैं और गर्व महसूस कर रहे हैं.

सुमित मंदिर बनवाने का श्रेय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देते हैं और कहते हैं, "ये (मंदिर-मस्जिद का विवाद) जब योगी ने खत्म कर दिया तो (दूसरी पार्टियों के लिए) कोई मुद्दा ही नहीं बचा." उनका मानना है कि राम मंदिर "सनातन धर्म का सबसे बड़ा प्रतीक है" और अयोध्या-फैजाबाद में "एकता" का भी प्रतीक है.

श्रेया कहती हैं कि मंदिर की वजह से पूरे भारत में अयोध्या का नाम हो रहा है, शहर में सड़कें, एयरपोर्ट आदि बन रहे हैं और पर्यटन भी बढ़ रहा है. मंदिर के बारे में वह कहती हैं, "बहुत अच्छा है कि मंदिर बन रहा है. बाकी, अपनी अपनी आस्था के रूप से सब लोग देखते हैं."

हालांकि श्रेया ने मंदिर से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं की तरफ भी ध्यान दिलाया जिन्हें उन्होंने "नेगेटिव" बताया. उन्होंने कहा, "जैसे सड़कें बनने से, चौड़ीकरण होने की वजह से बहुत लोगों के घर भी टूट जा रहे हैं, जिनसे उनको रहने में, रोजगार में समस्याएं हो रही हैं."

मोहम्मद कैफ खान कहते हैं कि "वो राम को मानते हैं, हम अल्लाह को मानते हैं"तस्वीर: Charu Kartikeya/DW

उन्होंने यह भी कहा कि अभी मंदिर का निर्माण पूरा भी नहीं हुआ है और ऐसे में में बीजेपी का "स्थापना" कराना राजनीति है. तनु दुबे ने डीडब्ल्यू से कहा कि जब से मंदिर बनाने की अनुमति देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तब से हर जगह लोग अयोध्या और इसके लोगों को आदर से देखा जाने लगा.

"विरोध भी नहीं कर सकते"

वह कहती हैं कि अब "बहुत गर्व महसूस होता है कि हम अयोध्या से हैं...देश में नहीं विदेशों में भी लोग अयोध्या को इस मंदिर के नाम से जानते हैं." मंदिर-मस्जिद के ऐतिहासिक विवाद पर तनु मानती हैं कि पहले बीच उस स्थल पर एक मंदिर था जिस पर मस्जिद बनाई है थी और यह भी "कहीं न कहीं एक तरीके से गलत ही था."

हर्ष कहते हैं कि मंदिर के बनने से उन्हें एक "अलग तरीके की खुशी है" और इसे अयोध्या का और वहां रहने वालों का नाम होगा. विवाद को लेकर उनका भी मानना है कि वहां पहले से मंदिर था, "राम लल्ला जी थे, हमारे भगवान थे, तो वो तो गिराना ही था."

जिनके मकान, दुकानें आदि टूटीं उनके विरोध को नकारते हुए हर्ष ने बताया कि इस प्रक्रिया में उनके भी परिवार की जमीन का अधिग्रहण हुआ लेकिन उनके पापा ने कहा कि वो "खुशनसीब हैं कि उनकी जमीन राम लल्ला की सेवा में गई."

अयोध्या के बदलते परिदृश्य को लेकर बेखबर नहीं हैं अयोध्या के युवातस्वीर: Charu Kartikeya/DW

18 साल के मोहम्मद कैफ खान भी अयोध्या के रहने वाले हैं और इसी विश्वविद्यालय में बीएससी में पहले साल के छात्र हैं. उन्हें आगे जा कर डी फार्मा करने का मन है ताकि वो अपनी दवाओं की दुकान खोल सकें.

कैफ के पिता का अयोध्या में ही चप्पल बनाने का कारखाना है, जिसमें 10-15 लोग काम करते हैं. मंदिर के बारे में उनका कहना है, "अच्छी ही चीज है. जिसका हक था उसको मिला. उसके बारे में क्या कहा जाए. विरोध भी नहीं कर सकते."

उन्होंने आगे कहा, "अब उनके मानने की बात है. वो राम को मानते हैं, हम अल्लाह को मानते हैं. ना हम उनका विरोध कर सकते हैं, ना वो मेरा विरोध कर सकते हैं. उसके बारे में क्या ही कहें."

कैफ कहते हैं, "खुशी की बात है राम मंदिर बन गया है. 22 को उद्घाटन भी है शायद...अयोध्या का कोई मुस्लिम विरोध कर ही नहीं रहा है. यही कहा जा रहा है कि कोर्ट का आदेश है, उसका पालन करेंगे. गंगा-जमुनी तहजीब का पालन करेंगे. भाईचारा तो बना ही रहेगा, जैसे पहले बना हुआ था."

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