देश छोड़ रहे हैं न्यूजीलैंड के लोग, संकट में स्थानीय उद्योग
१३ जुलाई २०२२
न्यूजीलैंड ने कोविड-19 महामारी के कारण लगाई गईं पाबंदियों में ढील क्या दी, लोगों ने देश छोड़ना शुरू कर दिया. नए मौकों की तलाश में देश के लोग विदेशों का रुख कर रहे हैं.
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12 जुलाई को जारी किए गए सरकारी आंकड़ों के मुताबिक मई 2021 से इस साल मई के बीच 10,674 लोग देश छोड़ गए थे. इससे पिछले साल भी देश छोड़ने वाले लोगों की संख्या काफी अधिक रही थी. देश पहले ही काम करने वाले लोगों की कमी झेल रहा है और ऐसे में बड़ी संख्या में लोगों का देश से जाना मुश्किलों को और बढ़ा रहा है. देश में आमतौर पर आने वाले प्रवासियों की संख्या कोविड के कारण कम रही है और अब स्थिति यह है कि देश में जितने काम करने लायक लोग हैं वे लगभग सारे किसी ना किसी तरह के काम में लगे होंगे लिहाजा अर्थव्यवस्था अधिकतम रोजगार की स्थिति में होगी. यानी नए कामों के लिए लोग उपलब्ध नहीं होंगे.
यह मामला तब और पेचीदा व राजनीतिक हो गया जब ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने पिछले हफ्ते उस सवाल को टाल दिया जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या उनका देश अपने यहां नर्सों की कमी पूरी करने के लिए न्यूजीलैंड के लोगों को लुभा रहा है.
न्यूजीलैंड के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में रहने वाले मार्क बीले और उनका परिवार अब एक जीवन के एक नए पड़ाव के लिए तैयार हैं. इस साल की शुरुआत में जब उन्हें ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में रहने और काम करने की पेशकश की गई तो वह हां करने से पहले जरा भी नहीं झिझके. इसकी एक वजह लंबा लॉकडाउन भी रहा जिस दौरान उन्हें अपनी जिंदगी के बारे में सोचने का वक्त मिला.
49 साल के एक्सपोर्ट मैनेजर बीले कहते हैं कि उनके विचार-विमर्श का निष्कर्ष यह निकला कि अब अगर उन्होंने यात्राएं नहीं की तो फिर शायद कभी मौका ना मिले. वह बताते हैं, "क्वींसलैंड में जब अनिवार्य क्वारंटीन खत्म हो गया तो हम पहली ही उड़ान में निकल लिए."
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प्रतिबंधों का असर
कोविड महामारी के दौरान न्यूजीलैंड ने दुनिया के कुछ सबसे कड़े प्रतिबंध लगाए थे. इसका लाभ यह तो हुआ कि देश में कोरोना वायरस का प्रकोप कम रहा और मौतें भी अन्य देशों के मुकाबले कम हुईं. लेकिन इसका नतीजा यह हुआ कि आप्रवासियों का देश में आना रुक गया और काम-धंधों के लिए कर्मचारियों की कमी हो गई.
हालांकि पाबंदियों के दौरान देश छोड़ने पर रोक नहीं थी लेकिन चूंकि लौटने पर सख्त पाबंदी के कारण लोग देश नहीं छोड़ रहे थे. इस वजह से ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या हो गई थी जो 2019-20 में बाहर जाना चाहते थे लेकिन महामारी के कारण रुके रहे. बीले भी उन्हीं में से एक थे.
कहां होता है हफ्ते में चार दिन काम
आइसलैंड में चार दिन के हफ्ते का प्रयोग ऐसा सफल हुआ कि दुनिया भर में अब हफ्ते में चार दिन काम की चर्चा हो रही है. लेकिन आइसलैंड से पहले भी कई देश ऐसा प्रयोग कर चुके हैं. देखिए, कहां क्या हुआ...
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आइसलैंड की सफलता
इसी महीने आई एक रिपोर्ट में आइसलैंड के शोधकर्ताओं ने कहा है कि हफ्ते में चार दिन काम कराने का प्रयोग काफी सफल रहा है. 2015 से 2019 के बीच परीक्षण के तौर पर सरकारी कर्मचारियों को समान वेतन पर हफ्ते में चार दिन काम करने का विकल्प दिया गया था.
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कमतर नहीं हुआ प्रदर्शन
आइसलैंड का अनुभव कहता है कि कर्मचारियों का प्रदर्शन किसी सूरत पहले से घटा नहीं. राजधानी रेक्याविक की काउंसिल ने यह प्रयोग शुरू किया जिसमें बाद में देश के 86 प्रतिशत कर्मचारियों को शामिल कर लिया गया. 5 दिन में 40 घंटे के बजाय कर्मचारियो को 4 दिन में 35 से 36 घंटे काम करने का विकल्प दिया गया.
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स्पेन
मार्च में स्पेन की सरकार ने काम के दिन हफ्ते में चार करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था. सत्ताधारी गठबंधन की वामपंथी पार्टी मास पाइस ने कहा कि सरकार ने उनका काम के दिन को चार करने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है. पार्टी ने कहा कि इस विचार का वक्त अब आ चुका है.
तस्वीर: Corte Ingles Madrid-Callao
जापान
इसी साल जून में जापान की सरकार ने अपने सालाना आर्थिक दिशा निर्देश जारी करते हुए हफ्ते मे चार दिन काम करने की जरूरत पर जोर दिया था. सरकार की कोशिश है कि लोग काम और जिंदगी के बीच संतुलन को बेहतर बनाएं. इसी सिलसिले में सरकार ने कंपनियों से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों को हफ्ते में पांच दिन के बजाय चार ही दिन काम करने का विकल्प दें.
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फिनलैंड
पिछले साल फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मैरिन ने भी ऐसा ही सुझाव दिया था. मौजूदा दौर में दुनिया की सबसे युवा प्रधानमंत्री मैरिन ने कहा था कि देश में काम के घंटे कम किए जाने की जरूरत है, तो या हफ्ते में चार दिन कर दिए जाएं या फिर दिन में छह घंटे ही काम हो.
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न्यूजीलैंड
बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनिलीवर की न्यूजीलैंड शाखा भी हफ्ते में चार दिन काम के विकल्प का प्रयोग कर रही है. पिछले साल दिसंबर से कंपनी ने अपने कर्मचारियों को अपने काम के घंटों में 20 प्रतिशत की कमी का विकल्प दिया, जिसकी एवज में सैलरी में कोई कटौती नहीं होगी. यह ट्रायल इस साल दिसंबर तक चलेगा.
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गांबिया
गांबिया ने 2012 में ही यह क्रांतिकारी फैसला ले लिया था. तत्कालीन राष्ट्रपति याहया जामेह ने देश में चार दिन का हफ्ता लागू कर दिया था. शुक्रवार का दिन पूजा-पाठ और खेती करने के लिए दे दिया गया था. लेकिन उनके बाद राष्ट्रपति बने अदामा बैरो ने 2017 में यह योजना बंद कर दी और शुक्रवार को भी आधे दिन काम को जरूरी बना दिया.
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न्यूजीलैंड में विदेशों की यात्रा एक तरह की परंपरा रही है. आमतौर पर लोग 20 साल की उम्र हो जाने के बाद काम और घूमने के लिए विदेश जाते हैं. अक्सर वे यूरोप जाते रहे हैं लेकिन काम करने के लिए नए मौके तलाशने के वास्ते ऑस्ट्रेलिया भी ऐतिहासिक रूप से खूब लोकप्रिय रहा है. ऑस्ट्रेलिया में न्यूजीलैंड के मुकाबले मौसम गर्म होता है और वहां काम के मौके भी ज्यादा हैं.
न्यूजीलैंड की लगभग 15 प्रतिशत आबादी यानी करीब दस लाख लोग विदेशों में रहते हैं. इस कारण प्रतिभाओं के चले जाने जैसी बहसें भी अक्सर होती रहती हैं.
और बढ़ेगा प्रवासन
कीविबैंक में अर्थशास्त्री जैरड केर कहते हैं कि इस साल के आखिर तक सालाना प्रवासन 20 हजार को पार कर सकता है. यानी इतने लोग देश छोड़ कर चले जाएंगे जिसका असर तन्ख्वाहों से लेकर काम करने वालों की संख्या तक अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं पर पड़ सकता है. वह कहते हैं, "जो कीवी बीते ढाई साल में देश छोड़कर जाते, वे सब अब जा रहे हैं. और हमें लगता है कि यह जारी रहेगा. यही यहां का जीवन है."
ये हैं सबसे सुरक्षित देश
अगर धरती पर प्रलय आई तो ऑस्ट्रेलिया दूसरा सबसे सुरक्षित देश होगा. वैज्ञानिकों ने सबसे सुरक्षित देशों की सूची बनाई है. जानिए कौन कौन से देश इस सूची में हैं.
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प्रलय आई तो...
‘सस्टेनेबिलिटी’ जर्नल में छपे ब्रिटेन की एंगलिया रस्किन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में उन दस देशों की सूची बनाई गई, जिनमें प्रलय को झेलने की क्षमता सबसे अधिक होगी. यह प्रलय मौसमी, आर्थिक, सामाजिक या किसी भी रूप में हो सकती है.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
न्यूजीलैंड सबसे सुरक्षित
शोधकर्ता कहते हैं कि हर तरह के झटके झेलने की क्षमता न्यूजीलैंड में सबसे ज्यादा है. वह लिखते हैं कि कोई हैरत नहीं कि दुनिया के अरबपति न्यूजीलैंड में बंकर बनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं.
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ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया भी न्यूजीलैंड जैसा ही है. शोधकर्ताओं ने इसके इलाके तस्मानिया को खास तवज्जो दी है. शोधकर्ता कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया और खासकर तस्मानिया में नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदगी भी है और बड़ी संभावनाएं भी. इसकी परिस्थितियां भी न्यूजीलैंड जैसी ही हैं.
तस्वीर: Gerth Roland/Prisma/picture alliance
आयरलैंड
शोधकर्ता कहते हैं कि आयरलैंड के पास नवीकरणीय ऊर्जा की बड़ी संभावना है, कृषि संसाधन खूब हैं और आबादी कम है.
तस्वीर: Artur Widak/NurPhoto/picture alliance
आइसलैंड
कम आबादी और नॉर्थ अटलांटिक महासागर से सीधा संपर्क तो आइसलैंड को सुरक्षित बनाने वाले कारक हैं ही, उसके आसपास कोई दूसरी बड़ी आबादी वाला देश भी नहीं है. साथ ही उसके पास खनिज संसाधन भी प्रचुर हैं.
तस्वीर: Hans Lucas/picture alliance
ब्रिटेन
ब्रिटेन के हालत कमोबेश आयरलैंड जैसे ही हैं. इसकी उपजाऊ जमीन, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत और कुदरती आपदाओं से दूर रखने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अलावा मजबूत अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास भी जिम्मेदार हैं.
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कनाडा और अमेरिका
तीन करोड़ 80 लाख की आबादी वाले कनाडा में भी प्रलय के झटके झेलने की अच्छी क्षमता है. यहां जमीन खूब है, महासागरों तक सीधी पहुंच है, उत्तरी अमेरिका से सीधा जमीनी जुड़ाव है और तकनीकी विकास भी खूब हुआ है.
तस्वीर: Lokman Vural Elibol/AA/picture alliance / AA
नॉर्वे
कुल 55 लाख की आबादी, यूरेशिया से जमीनी जुड़ाव, नवीकरणीय ऊर्जा और तकनीकी विकास के अलावा निर्माण की ठीकठाक क्षमता नॉर्वे को झटके झेलने की ताकत देगी.
शोधकर्ताओं ने पांच देशों को नॉर्वे के ठीक नीचे रखा है. सभी के हालात कमोबेश नॉर्वे जैसे ही हैं और आर्थिक प्रलय हो या मौसमी, इन देशों के पास उसे झेलने के संसाधन हैं.
इस सूची में जापान को भी नॉर्वे के बराबर जगह मिली है. हालांकि उसकी आबादी ज्यादा है लेकिन तकनीकी विकास, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और निर्माण की विशाल क्षमता उसे ताकतवर बनाती है.
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समस्या यह है कि महामारी और अन्य कारणों से अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव झेल रही है. केर कहते हैं, "उद्योगों को काम करने वाले लोग नहीं मिल रहे हैं और ऐसे वक्त में हम अपने कर्मचारी खो रहे हैं." केर को उम्मीद है कि अगले साल स्थिति बेहतर होगी जब भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से नए आप्रवासी आ जाएंगे. 2019 में 72,588 आप्रवासी आकर यहां बसे थे.
उपभोक्ता मामलों पर शोध करने वाली ऑस्ट्रेलियाई कंपनी एमवाईओबी ने इसी महीने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक न्यूजीलैंड के चार फीसदी लोग विदेशों में रहना और काम करना चाहते हैं. उनकी वजहों में बेहतर सैलरी और जीवन स्तर शामिल है.
एमवाईओबी की एक अधिकारी फेलिसिटी ब्राउन कहती हैं, "स्थानीय जॉब सेक्टर में यह एक बड़ा संकट पैदा कर रहा है. स्थानीय स्तर पर कर्मचारियों की कमी से उद्योगों के लिए समस्या और बड़ी हो रही है."