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राजनीतिसंयुक्त राज्य अमेरिका

डॉनल्ड ट्रंप के आने से अफ्रीका में भी है चिंता

१५ नवम्बर २०२४

डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने और ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के प्रभावी होने से कई देशों में चिंता है. अफ्रीकी महाद्वीप को इस बात का डर है कि ट्रंप प्रशासन में उसे प्राथमिकता नहीं मिलेगी.

वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस
तस्वीर: Douliery Olivier/abaca/picture alliance

दक्षिण अफ्रीका के सिट्रस उत्पादक इस बात से चिंतित हैं कि अगले साल जब डॉनल्ड ट्रंप व्हाइट हाउस लौटेंगे, तो अमेरिका को होने वाला उनका ड्यूटी और कोटा-फ्री एक्सपोर्ट बंद हो सकता है.

ये फल उन 1,800 उत्पादों में शामिल हैं जिन्हें 32 अफ्रीकी देशों से अफ्रीकन ग्रोथ एंड अपॉर्चुनिटी एक्ट (एजीओए) के तहत अमेरिकी बाजार में प्राथमिकता मिलती है. दक्षिण अफ्रीका, केन्या, नाइजीरिया और घाना के व्यवसायों को इससे सबसे ज्यादा लाभ हो रहा है.

लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका में सभी आयातों पर कम से कम 10 फीसदी शुल्क लगाने का वादा किया है. इस बात से एशियाई व्यापारी ही चिंतित नहीं हैं. ट्रंप की नई नीतियों से एजीओए के नवीनीकरण की अनिश्चितता बढ़ गई है.

साल 2000 में पारित यह कानून अगले साल समाप्त हो रहा है. विश्लेषकों का कहना है कि या तो इसे संशोधित किया जा सकता है या वापस लिया जा सकता है, जिससे अफ्रीका में कंपनियों और नौकरियों पर बुरा असर पड़ सकता है.

दक्षिण अफ्रीका सिट्रस ग्रोअर्स एसोसिएशन (सीजीए) के सीईओ जस्टिन चाडविक ने एएफपी को बताया, "हमें इस प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त की जरूरत है. अगर दक्षिण अफ्रीका को एजीओए से हटा दिया गया, तो हजारों ग्रामीण नौकरियों पर असर पड़ेगा और एक अरब रैंड (5.5 करोड़ डॉलर) का निर्यात राजस्व खो सकता है."

एजीओए पर संकट

एक अन्य दक्षिण अफ्रीकी सिट्रस कंपनी ने नाम ना छापने की शर्त पर एएफपी को बताया कि यदि एजीओए का नवीनीकरण नहीं हुआ, तो उनका व्यवसाय "खत्म" हो जाएगा. यह कंपनी 3,000 से अधिक लोगों को रोजगार देती है और हर साल औसतन 350 कंटेनर फल अमेरिका को निर्यात करती है.

ऑटोमोटिव सेक्टर पर भी एजीओए खत्म होने का असर पड़ सकता है, हालांकि कुछ कंपनियों को लगता है कि अमेरिकी उपभोक्ता ज्यादा कीमतों पर भी सामान खरीद सकते हैं. एसपी मेटल फोर्जिंग्स ग्रुप के प्रबंध निदेशक केन मैनर्स कहते हैं, "मैं नहीं सोचता कि हमारे उत्पादों के लिए अमेरिकियों की खरीदारी की आदतों में कोई बड़ा बदलाव आएगा."

उन्होंने कहा कि भले ही शुल्क लगाया जाए, "यह हमारी प्रतिस्पर्धात्मक सप्लाई क्षमता पर बहुत बड़ा असर नहीं डालेगा."

विश्लेषकों का मानना है कि AGOA के नवीनीकरण का दक्षिण अफ्रीकी अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव नहीं पड़ेगा, फिर भी कंपनियों को बदलावों के लिए तैयार रहना चाहिए. जोहानिसबर्ग के अर्थशास्त्री डेवी रूट ने कहा, "पूरी अर्थव्यवस्था पर यह एक प्रतिशत से भी कम है."

लंदन स्थित कंसल्टेंसी सिग्नल रिस्क के रौनक गोपालदास ने कहा, "हालांकि ऐसा नहीं होगा कि काम पहले जैसा चलेगा. ट्रंप की आर्थिक नीतियां अप्रत्याशित और अस्थिर हैं." उन्होंने कहा, "एक प्रभावी रणनीति यह है कि सबसे बुरे के लिए तैयार रहें और सबसे अच्छे की उम्मीद रखें."

एजीओए से घाना, केन्या और लेसोथो की कंपनियों को भी विशेष रूप से कपड़ा उद्योग में काफी लाभ होता है. केन्याई राजनेता मुखीसा कितुयी ने कहा कि उन्हें लगता है कि अमेरिका का अगला प्रशासन एजीओए के नवीनीकरण की बजाय इस पर दोबारा बातचीत की मांग कर सकता है.

अमेरिका कड़े "तीसरे देश के मूल नियमों" को लागू करना चाहता है ताकि कंपनियां चीन या भारत से कपड़े लाकर अफ्रीका में सिलाई करके उन्हें अफ्रीकी कपड़े के रूप में न बेचें.

कितुयी ने कहा, "अगर वे मूल नियमों को सख्त करते हैं, विशेषकर कपड़े और गाड़ियों पर, तो हम आगे एक कमजोर एजीओए देख सकते हैं."

लेसोथो के व्यापार मंत्रालय के अधिकारी लिट्सेको फी कहते हैं कि उनके देश के लिए एजीओए का समाप्त होना "भारी झटका" होगा, जिससे कपड़ा उद्योग लगभग खत्म हो सकता है. यह देश में रोजगार देने वाला दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है. हालांकि, सरकार को उम्मीद है कि यह समझौता और ज्यादा बेहतर किया जाएगा.

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, जाम्बिया और अंगोला के महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर भी सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. रूट के अनुसार, ट्रंप अफ्रीका को "अनदेखा" करेंगे, जब तक अफ्रीकी देश किसी खास कारण से उनका ध्यान आकर्षित न करें.

विशेषज्ञों का कहना है कि इसका एक महत्वपूर्ण आधार यह होगा कि कौन से देश अमेरिका के साथ भू-राजनीतिक रूप से जुड़े हुए माने जाते हैं.

यह उन अफ्रीकी सरकारों के लिए मुद्दा हो सकता है जिन्होंने रूस और चीन का समर्थन किया है या इस्राएल की आलोचना की है. यूएन की शीर्ष अदालत में इस्राएल पर गाजा में "नरसंहार" का आरोप लगाने वाले दक्षिण अफ्रीका को विशेष रूप से सावधानी से कदम उठाने होंगे.

विकास संबंधी फंडिंग में कटौती का डर

अफ्रीकी नेताओं ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत पर तुरंत बधाई दी और बेहतर आपसी संबंधों की उम्मीद जताई. लेकिन ट्रंप की विदेश नीति में अफ्रीका को प्राथमिकता देने की संभावनाएं कम हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि 1.4 अरब लोगों के इस महाद्वीप को ट्रंप प्रशासन में ज्यादा महत्व नहीं मिलेगा और अमेरिका इसे केवल रूस और चीन के प्रभाव को रोकने के नजरिए से देख सकता है.

अफ्रीकी देशों को इस बात का भी डर है कि अमेरिका से मिलने वाले स्वास्थ्य और विकास कार्यक्रमों की फंडिंग में कटौती हो सकती है. इस तरह की कटौती का प्रभाव उन लाखों लोगों पर पड़ेगा जो गर्भनिरोधक सेवाओं जैसे कार्यक्रमों पर निर्भर हैं.

पूर्व यूएसएड अधिकारी, मैक्स प्रिमोराक ने अमेरिकी धन से चलने वाली योजनाओं जैसे कि गर्भपात और जलवायु परिवर्तन से जुड़े कार्यक्रमों की आलोचना की थी.

कंजरवेटिव हेरिटेज फाउंडेशन के "प्रोजेक्ट 2025" में इन योजनाओं में कटौती का सुझाव दिया गया है, जो ट्रंप की नीतियों से मेल खाता है. इस वजह से यह डर बढ़ गया है कि ट्रंप ऐसे कार्यक्रमों में कटौती कर सकते हैं.

अफ्रीका को अमेरिका और रूस ही नहीं, चीन भी लुभाना चाहता है. बाइडेन प्रशासन ने हाल ही में अफ्रीका में 22 अरब डॉलर का निवेश किया, जो सहायता, सुरक्षा और विकास परियोजनाओं के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दिखाता है.

लेकिन ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में विदेश मामलों की फंडिंग में 30 फीसदी तक की कटौती का प्रस्ताव दिया था, जिससे इस बार भी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में कटौती की संभावना है. विशेषज्ञों का मानना है कि "अमेरिका फर्स्ट" रणनीति अफ्रीका की सहायता में रुकावट डाल सकती है.

वैश्विक संबंधों में अफ्रीकी संघ की नई भूमिका

ट्रम्प की वापसी मोरक्को के लिए खास है, जो उम्मीद कर रहा है कि अमेरिका पश्चिमी सहारा पर उसके दावे का समर्थन करेगा.

ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में मोरक्को-इस्राएल समझौते के हिस्से के रूप में पश्चिमी सहारा पर मोरक्को के दावे को मान्यता दी थी. कुछ विश्लेषक यह भी मानते हैं कि ट्रंप पूर्वी अफ्रीका में सोमालिया की जगह सोमालीलैंड पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.

कारोबार के मामले में भारत के दोस्त नहीं हैं ट्रंप

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हाल ही में, अफ्रीकी संघ (एयू) को जी20 में स्थायी सदस्यता मिली, जो वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण कदम है. लेकिन एयू के सामने यह चुनौती है कि वह महाद्वीप के मुद्दों पर एकजुट आवाज उठाए, खासकर तब जब वैश्विक संबंध लेन-देन पर आधारित हो गए हैं.

अफ्रीका को अपने हित स्पष्ट करने की सलाह दी जा रही है ताकि उसकी आवाज सुनी जाए. ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति से ये संबंध जटिल हो सकते हैं, लेकिन अफ्रीकी नेताओं की एक स्पष्ट रणनीति अफ्रीका की भूमिका बनाए रख सकती है.

रिपोर्टः विवेक कुमार (एएफपी)

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