चीन में काम करने वाले विदेशी कूटनीतिज्ञों के मुताबिक शी जिनपिंग का जी20 सम्मेलन के लिए भारत ना जाना चिंता की बात है. उन्हें लगता है कि यह एक खतरनाक चलन का प्रतीक है.
विज्ञापन
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी20 सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं. भारत ने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दिया और कहा है कि उसके और चीन के संबंध पूरी तरह सामान्य हैं. लेकिन कई विशेषज्ञ इस बात के अलग मायने निकाल रहे हैं.
चीन में काम कर रहे विदेशी कूटनीतिज्ञों ने कहा है कि चीन की यह रणनीति पश्चिमी देशों और उनके सहयोगियों से दूरी बनाने का संकेत है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कम से कम दस विदेशी राजनयिकों ने कहा है कि चीन उन्हें संवाद का सीधा रास्ता नहीं दे रहा है और स्थानीय अधिकारियों से सूचनाएं हासिल करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है.
एक चलन का प्रतीक
नाम प्रकाशित ना करने की शर्त पर इन राजनयिकों का कहना है कि 2023 में यह चलन और ज्यादा बढ़कर सामने आया है, जब कोविड महामारी के दौरान लगा दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन खत्म करके चीन ने अपने बाजार और अर्थव्यवस्था को दूसरे देशों के लिए खोलने का ऐलान किया था. लॉकडाउन के दौरान चीन ने राजनयिक गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण बरता था.
हालांकि चीनी विदेश मंत्रालय ने इस बारे में टिप्पणी नहीं की लेकिन विदेश नीति विश्लेषक रायन नीलम कहते हैं कि शी के सख्त शासन के दौरान चीनी अधिकारी विदेशियों से संवाद और संपर्क करने को लेकर अत्यधिक सचेत हो गये हैं.
शी जिनपिंग ने चीन की सत्ता को अपनी मुट्ठी में कैसे किया
20वीं पार्टी कांग्रेस में शी जिनपिंग को तीसरी बार देश का राष्ट्रपति चुने जाने के पक्के आसार हैं. इसके साथ ही वो माओ त्से तुंग के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता होंगे. साम्यवादी देश में जिनपिंग ने यह सब कैसे संभव किया.
तस्वीर: Greg Baker/AFP/Getty Images
पार्टी के शीर्ष नेता और देश के राष्ट्रपति
शी जिनपिंग एक दशक पहले चीन के शीर्ष नेता बने जब कम्युनिस्ट पार्टी की 18वीं कांग्रेस में उन्हें पार्टी महासचिव और केंद्रीय सैन्य आयोग का चेयरमैन बनाया गया. कुछ ही महीनों बाद वो देश के राष्ट्रपति बने.
तस्वीर: Song Jianhao/HPIC/dpa//picture alliance
सामूहिक नेतृत्व से सुप्रीम लीडरशिप की ओर
शी ने बीते सालों में अपने कुछ खास कदमों और गुजरते समय के साथ धीरे धीरे अपनी ताकत बढ़ाई है. चीन में सामूहिक नेतृत्व की परंपरा रही है जिसमें महासचिव पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में समान लोगों में प्रथम होता है लेकिन अब शी के उदय के साथ देश सुप्रीम लीडरशीप की ओर बढ़ रहा है.
तस्वीर: Zhang Duo/Photoshot/picture alliance
आर्थिक नीतियों पर पकड़
चीन में आर्थिक नीतियां बनाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर रहती आई थी लेकिन अलग अलग समूहों के चेयरमैन के रूप में शी जिनपिंग ने यह जिम्मेदारी अपने हाथ में ले ली. इनमें 2012 में शी के सत्ता में आने के बाद बनी "सुधार और खुलापन" नीति और आर्थिक मामलों से जुड़ा एक पुराना समूह भी शामिल था.
तस्वीर: Liang/HPIC/dpa/picture alliance
विश्वासघाती, भ्रष्ट और बेकार अफसरों पर कार्रवाई
सत्ता में आने के बाद शी ने भ्रष्ट, विश्वासघाती और बेकार अफसरों पर कार्रवाई के लिए एक अभियान चलाया और इनकी खाली हुई जगहों पर अपने सहयोगियों को बिठाया. इस कदम से उनकी ताकत का आधार कई गुना बढ़ गया. इस दौरान करीब 47 लाख लोगों के खिलाफ जांच की गई.
तस्वीर: Mark Schiefelbein/AFP/Getty Images
भरोसेमंद लोगों की नियुक्ति
शी ने पार्टी के मानव संसाधन विभाग का प्रमुख अपने भरोसेमंद लोगों को बनाया. संगठन विभाग के उनके पहले प्रमुख थे झाओ लेजी, जिनके पिता ने शी के पिता के साथ काम किया था. उनके बाद 2017 में चेन शी ने यह पद संभाला जो शी के शिनघुआ यूनिवर्सिटी में सहपाठी थे.
तस्वीर: Ali Haider/EPA/dpa/picture alliance
सेना पर नियंत्रण
2015 में शी जिनपिंग ने चीन की सेना में व्यापक सुधारों की शुरुआत की और इसके जरिये इस पर भरपूर नियंत्रण हासिल किया. इस दौरान इसमें काफी छंटनी भी हुई. सेना पर नियंत्रण ने शी जिनपिंग की मजबूती और बढ़ाई.
तस्वीर: Li Gang/Xinhua/AP/picture alliance
घरेलू सुरक्षा तंत्र की सफाई
शी जिनपिंग ने घरेलू सुरक्षा तंत्र में व्यापक "सफाई" अभियान की शुरुआत की. इस भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में बहुत सारे जजों और पुलिस प्रमुखों ने अपनी नौकरी गंवाई. सत्ता तंत्र पर नियंत्रण की दिशा में यह कदम भी बहुत कारगर साबित हुआ.
तस्वीर: Guang Niu/Getty Images
संसद और सुप्रीम कोर्ट की सालाना रिपोर्ट
2015 में राष्ट्रपति जिनपिंग ने चीन की संसद, कैबिनेट और सुप्रीम कोर्ट समेत दूसरी संस्थाओं को अपने कामकाज की सालाना रिपोर्ट के बारे में उन्हें ब्यौरा देने का आदेश दिया.
तस्वीर: Jason Lee/AFP/Getty Images
मीडिया पर लगाम
2016 में शी जिनपिंग ने सरकारी मीडिया को पार्टी लाइन पर चलने का हुक्म दिया इसके मुताबिक उनका "सरनेम पार्टी है." इसके बाद से मीडिया की आजादी तेजी से घटी और शी से संबंधित प्रचार तेजी से बढ़ा.
तस्वीर: Greg Baker/AFP
पार्टी के सारतत्व
2016 में शी जिनपिंग ने खुद को औपचारिक रूप से पार्टी के "सारतत्व" के रूप में स्थापित किया. पार्टी में इसे सर्वोच्च नेता कहा जाता है.
तस्वीर: Nicolas Asfouri/AFP/Getty Images
पार्टी के संविधान में संशोधन
शी जिनपिंग ने 2017 में पार्टी के संविधान में संशोधन कर चीनी स्वभाव में समाजवाद पर अपने विचार को जगह दी. इस लिहाज से वो पार्टी के शीर्ष पर मौजूद नेताओं माओ त्से तुंग और डेंग शियाओपिंग की कतार में आ गये.
तस्वीर: Luong Thai Linh/EPA/dpa/picture alliance
पार्टी ही सबकुछ
2017 में उन्होंने चीन में पार्टी की भूमिका सर्वोच्च कर दी. शी जिनपिंग ने एलान किया, "पार्टी, सरकार, सेना, लोग, शिक्षा, पूरब, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, मध्य, हर चीज में नेतृत्व पार्टी ही करेगी."
तस्वीर: Li Xueren/Xinhua News Agency/picture alliance
राष्ट्रपति का कार्यकाल
2018 में चीन के संविधान में संशोधन कर उन्होंने राष्ट्रपति के लिए दो बार के निश्चित कार्यकाल की सीमा खत्म कर दी. इसके साथ ही जिनपिंग के लिए जीवन भर इस पद पर बने रहने का रास्ता साफ हो गया.
तस्वीर: Nicolas Asfouri/AFP/Getty Images
पार्टी की वफादारी
2021 में एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित कर पार्टी ने "टू एस्टबलिशेज" पर सहमति की मुहर लगा दी. इसके जरिये पार्टी ने शी जिनपिंग के प्रति वफादार रहने की शपथ ले ली. माओ त्से तुंग के बाद चीन में अब सिर्फ शी जिनपिंग हैं.
तस्वीर: Greg Baker/AFP/Getty Images
14 तस्वीरें1 | 14
हांग कांग में ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिध रह चुके नील फिलहाल विदेश नीति पर काम करने वाले ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टिट्यूट के साथ काम कर रहे हैं. वह कहते हैं, "इस (सख्ती) का असर ऊपर से नीचे तक हुआ है और निचले स्तर के अधिकारी, ब्यूरोक्रैट और राजनयिक भी लिखित नियमों से इधर-उधर जाने के कम इच्छुक हो गये हैं. अगर सब कुछ इस तरह औपचारिक रूप से प्रबंधित हो जाता है तो अनौपचारिक संवाद की गुंजाइश कम हो जाती है. अगर आपको व्यवस्था के वरिष्ठ नीति निर्माताओं तक कम पहुंच मिलती है तो समझौते और समानता के रास्ते खोजने के मौके भी कम हो जाते हैं.”
लगातार बढ़ता तनाव
चीन और पश्चिमी देशों के बीच हाल के सालों में संबंध लगातार तनावपूर्ण होते गये हैं. यूक्रेन युद्ध को लेकर चीन का रूस के साथ खड़ा होना इसकी एक बड़ी वजह रहा है. इसके अलावा ताइवान मुद्दे पर पश्चिमी देशों की सरगर्मी और संवेदनशील तकनीकों को लेकर होने वाले व्यापार पर प्रतिबंधों जैसे मुद्दों पर चीन की आलोचना करने के कारण संबंधों में तनाव बढ़ा है.
शी भारत क्यों नहीं जा रहे हैं, इसकी चीन ने ने कोई वजह नहीं बतायी है. दस साल पहले चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद शी अब तक हर जी20 बैठक में शामिल हुए हैं. यह पहली बार है जब उन्होंने जी20 की बैठक में हिस्सा लेने से इनकार किया है. उसने बस इतना कहा है कि 9-10 सितंबर को होने वाली बैठक में चीन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व राष्ट्रपति शी नहीं बल्कि प्रधानंत्री ली कियांग करेंगे.
इसकी एक वजह भारत के साथ चीन के संबंधों में तनाव को भी माना जा रहा है. 2019 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें होने के बाद से दोनों देश लगातार एक दूसरे के खिलाफ कूटनीतिक और व्यापारिक कार्रवाइयां करते रहे हैं. हालांकि भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत हो चकी है लेकिन अब तक किसी भी तरह का समझौता नहीं हो पाया है. इस बीच भारत ने चीनी कंपनियों पर अपने यहां कड़े प्रतिबंध लगाये हैं और छापेमारी जैसी कार्रवाइयां भी की हैं. दोनों देशों ने एक दूसरे के पत्रकारों का वीजा रद्द करने जैसे सख्त कदम भी उठाये हैं.
विज्ञापन
इस साल कम किये दौरे
कई विश्लेषक मानते हैं कि चीन ने इस साल अंतरराष्ट्रीय दौरों को काफी कम किया है और राष्ट्रपति शी उन्हीं देशों में गये हैं जिनके साथ चीन के संबंध दोस्ताना हैं. इस साल शी सिर्फ दो बार देश से बाहर गये हैं. एक बार वह रूस में व्लादिमीर पुतिन से मिलने रूस गये थे और दूसरी बार पिछले महीने ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका गये थे.
इसकी तुलना में 2022 में चीनी राष्ट्रपति का कार्यक्रम खूब व्यस्त रहा था. जबकि चीन और बाकी दुनिया में भी कोविड के कारण कई तरह के यात्रा प्रतिबंध लगे हुए थे, तब भी चीनी राष्ट्रपति ने पांच देशों का दौरा किया था. इससे पहले 2019 में कोविड के आने से पहले शी ने एक दर्जन देशों की यात्रा की थी.
इन देशों को मिला ब्रिक्स में शामिल होने का न्योता
40 देश, ब्रिक्स में शामिल होना चाहते हैं. लेकिन फिलहाल न्योता छह को ही मिला है. ये देश 2024 से ब्रिक्स के पूर्ण सदस्य होंगे.
तस्वीर: Sergei Bobylev/dpa/TASS/picture alliance
नए सदस्यों के लिए रजामंदी
ब्रिक्स सम्मेलन की मेजबानी कर रहे दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने छह देशों को फुल मेंबरशिप का न्योता देने की जानकारी दी है. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स में शामिल होने के लिए सभी सदस्यों की रजामंदी जरूरी होती है.
तस्वीर: Sergei Bobylev/Imago Images
मिस्र
मिस्र अरब जगत में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश है. स्वेज नहर को नियंत्रित करने वाले मिस्र के भारत और रूस से ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. एशिया और यूरोप के बीच होने वाला ज्यादातर समुद्री परिवहन मिस्र के मुहाने से ही गुजरता है.
तस्वीर: Suez Canal Authority/REUTERS
इथियोपिया
पूरी तरह जमीनी बॉर्डर से घिरा इथियोपिया, जनसंख्या के लिहाज से नाइजीरिया के बाद अफ्रीकी महाद्वीप का दूसरा बड़ा देश है. गरीबी और सूखे से जूझने के बावजूद बीते 23 साल से इथियोपिया की अर्थव्यवस्था हर साल औसतन 10 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से दौड़ रही है.
तस्वीर: AMANUEL SILESHI AFP via Getty Images
ईरान
पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंध रखने वाला ईरान मध्य पूर्व में एक बड़ी ताकत है. हाल के महीनों में चीन की मध्यस्थता में ईरान और खाड़ी के देशों के रिश्ते सुधर रहे हैं. ब्रिक्स में एंट्री, ईरान को अंतरराष्ट्रीय मंच से जोड़ने का काम करेगी.
तस्वीर: Francois Mori/AP Photo/picture alliance
अर्जेंटीना
कभी दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप की अहम ताकत कहा जाने वाला अर्जेंटीना, आज आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है. ब्राजील का पड़ोसी ये देश अमेरिका और चीन का बड़ा कारोबारी साझेदार है.
तस्वीर: Martin Villar/REUTERS
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई)
मध्य पूर्व एशिया से अमेरिका का मोहभंग हो चुका है. इलाके में अमेरिका के साझेदार रहे देशों को अब नए रिश्ते बनाने पड़ रहे हैं. इसी कोशिश में यूएई तेजी से एशियाई ताकतों के साथ संबंध बढ़ा रहा है.
तस्वीर: Kamran Jebreili/AP Photo/picture alliance
सऊदी अरब
सऊदी अरब दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जिसके तटों पर लाल सागर और फारस की खाड़ी हैं. इस्लाम का पवित्र केंद्र माना जाने वाला सऊदी अरब भी अब अमेरिकी छाया से निकलकर नए साझेदार तलाश रहा है.
तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images
7 तस्वीरें1 | 7
वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक स्टिम्सन सेंटर में चाइना प्रोग्राम के निदेशक युन सुन कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में ना जाने को चीन उन देशों के खिलाफ लाभ उठाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, जिनके साथ उसके संबंध अच्छे नहीं है.
युन सुन कहती हैं, "संपर्क और संवाद को चीन असहमति रखने वाले देशों का व्यवहार बदलने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है. मैंने यह भी सुना है कि चीन में पश्चिमी राजनयिकों को पहुंच देने पर भी काफी सख्ती बढ़ायी गई है.”