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शी जिनपिंग के भारत ना जाने के कई मायने

७ सितम्बर २०२३

चीन में काम करने वाले विदेशी कूटनीतिज्ञों के मुताबिक शी जिनपिंग का जी20 सम्मेलन के लिए भारत ना जाना चिंता की बात है. उन्हें लगता है कि यह एक खतरनाक चलन का प्रतीक है.

भारत में जी20
सितंबर में भारत में जी20 की शिखर बैठक हो रही हैतस्वीर: Kabir Jhangiani/ZUMA/picture alliance

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जी20 सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहे हैं. भारत ने इस बात को ज्यादा तूल नहीं दिया और कहा है कि उसके और चीन के संबंध पूरी तरह सामान्य हैं. लेकिन कई विशेषज्ञ इस बात के अलग मायने निकाल रहे हैं.

चीन में काम कर रहे विदेशी कूटनीतिज्ञों ने कहा है कि चीन की यह रणनीति पश्चिमी देशों और उनके सहयोगियों से दूरी बनाने का संकेत है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कम से कम दस विदेशी राजनयिकों ने कहा है कि चीन उन्हें संवाद का सीधा रास्ता नहीं दे रहा है और स्थानीय अधिकारियों से सूचनाएं हासिल करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है.

एक चलन का प्रतीक

नाम प्रकाशित ना करने की शर्त पर इन राजनयिकों का कहना है कि 2023 में यह चलन और ज्यादा बढ़कर सामने आया है, जब कोविड महामारी के दौरान लगा दुनिया का सबसे सख्त लॉकडाउन खत्म करके चीन ने अपने बाजार और अर्थव्यवस्था को दूसरे देशों के लिए खोलने का ऐलान किया था. लॉकडाउन के दौरान चीन ने राजनयिक गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण बरता था.

हालांकि चीनी विदेश मंत्रालय ने इस बारे में टिप्पणी नहीं की लेकिन विदेश नीति विश्लेषक रायन नीलम कहते हैं कि शी के सख्त शासन के दौरान चीनी अधिकारी विदेशियों से संवाद और संपर्क करने को लेकर अत्यधिक सचेत हो गये हैं.

हांग कांग में ऑस्ट्रेलिया के प्रतिनिध रह चुके नील फिलहाल विदेश नीति पर काम करने वाले ऑस्ट्रेलियाई थिंक टैंक लोवी इंस्टिट्यूट के साथ काम कर रहे हैं. वह कहते हैं, "इस (सख्ती) का असर ऊपर से नीचे तक हुआ है और निचले स्तर के अधिकारी, ब्यूरोक्रैट और राजनयिक भी लिखित नियमों से इधर-उधर जाने के कम इच्छुक हो गये हैं. अगर सब कुछ इस तरह औपचारिक रूप से प्रबंधित हो जाता है तो अनौपचारिक संवाद की गुंजाइश कम हो जाती है. अगर आपको व्यवस्था के वरिष्ठ नीति निर्माताओं तक कम पहुंच मिलती है तो समझौते और समानता के रास्ते खोजने के मौके भी कम हो जाते हैं.”

लगातार बढ़ता तनाव

चीन और पश्चिमी देशों के बीच हाल के सालों में संबंध लगातार तनावपूर्ण होते गये हैं. यूक्रेन युद्ध को लेकर चीन का रूस के साथ खड़ा होना इसकी एक बड़ी वजह रहा है. इसके अलावा ताइवान मुद्दे पर पश्चिमी देशों की सरगर्मी और संवेदनशील तकनीकों को लेकर होने वाले व्यापार पर प्रतिबंधों जैसे मुद्दों पर चीन की आलोचना करने के कारण संबंधों में तनाव बढ़ा है.

शी भारत क्यों नहीं जा रहे हैं, इसकी चीन ने ने कोई वजह नहीं बतायी है. दस साल पहले चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद शी अब तक हर जी20 बैठक में शामिल हुए हैं. यह पहली बार है जब उन्होंने जी20 की बैठक में हिस्सा लेने से इनकार किया है. उसने बस इतना कहा है कि 9-10 सितंबर को होने वाली बैठक में चीन के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व राष्ट्रपति शी नहीं बल्कि प्रधानंत्री ली कियांग करेंगे.

इसकी एक वजह भारत के साथ चीन के संबंधों में तनाव को भी माना जा रहा है. 2019 में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़पें होने के बाद से दोनों देश लगातार एक दूसरे के खिलाफ कूटनीतिक और व्यापारिक कार्रवाइयां करते रहे हैं. हालांकि भारत और चीन के सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत हो चकी है लेकिन अब तक किसी भी तरह का समझौता नहीं हो पाया है. इस बीच भारत ने चीनी कंपनियों पर अपने यहां कड़े प्रतिबंध लगाये हैं और छापेमारी जैसी कार्रवाइयां भी की हैं. दोनों देशों ने एक दूसरे के पत्रकारों का वीजा रद्द करने जैसे सख्त कदम भी उठाये हैं.

इस साल कम किये दौरे

कई विश्लेषक मानते हैं कि चीन ने इस साल अंतरराष्ट्रीय दौरों को काफी कम किया है और राष्ट्रपति शी उन्हीं देशों में गये हैं जिनके साथ चीन के संबंध दोस्ताना हैं. इस साल शी सिर्फ दो बार देश से बाहर गये हैं. एक बार वह रूस में व्लादिमीर पुतिन से मिलने रूस गये थे और दूसरी बार पिछले महीने ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण अफ्रीका गये थे.

इसकी तुलना में 2022 में चीनी राष्ट्रपति का कार्यक्रम खूब व्यस्त रहा था. जबकि चीन और बाकी दुनिया में भी कोविड के कारण कई तरह के यात्रा प्रतिबंध लगे हुए थे, तब भी चीनी राष्ट्रपति ने पांच देशों का दौरा किया था. इससे पहले 2019 में कोविड के आने से पहले शी ने एक दर्जन देशों की यात्रा की थी.

वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक स्टिम्सन सेंटर में चाइना प्रोग्राम के निदेशक युन सुन कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में ना जाने को चीन उन देशों के खिलाफ लाभ उठाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, जिनके साथ उसके संबंध अच्छे नहीं है.

युन सुन कहती हैं, "संपर्क और संवाद को चीन असहमति रखने वाले देशों का व्यवहार बदलने के हथियार के तौर पर इस्तेमाल करता है. मैंने यह भी सुना है कि चीन में पश्चिमी राजनयिकों को पहुंच देने पर भी काफी सख्ती बढ़ायी गई है.”

वीके/एए (रॉयटर्स)

 

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