कच्चे तेल के लिए एशिया की भूख लगातार बढ़ रही है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम चढ़ रहे हैं, जिसके चलते कच्चे तेल पर एशिया का सालाना खर्च जल्द एक ट्रिलियन डॉलर को पार कर सकता है.
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नवंबर 2014 के बाद पहली बार कच्चे तेल के दाम 80 डॉलर प्रति बैरल को छूते नजर आ रहे हैं. जनवरी से लेकर अब तक दामों में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. दुनिया का लगभग सारा तेल कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है. वह भी लगातार मजबूत हो रहा है जिसका असर तेल आयात पर निर्भर एशियाई देशों पर हो सकता है. इससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है जिससे कंपनियां और आम ग्राहक, दोनों ही प्रभावित होंगे.
कनाडा के एक निवेश बैंक आरबीसी कैपिटल मार्केट ने अपने एक नोट में चेतावनी दी है, "तेल के दामों में हो रही बढ़ोत्तरी से एशिया सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है." दुनिया भर में हर दिन 10 करोड़ बैरल तेल की खपत होती है. इसमें 35 प्रतिशत तेल अकेला प्रशांत एशिया क्षेत्र करता है. वहीं तेल उत्पादन के मामले में एशिया की हिस्सेदारी 10 फीसदी से भी कम है.
एशिया में चीन सबसे ज्यादा तेल आयात करता है. अप्रैल के आंकड़े बताते हैं कि उसने हर दिन 96 लाख बैरल तेल मंगाया. यह पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाले तेल का 10 फीसदी है. मौजूदा कीमतों के आधार पर देखें तो चीन हर दिन तेल आयात पर 76.8 करोड़ डॉलर खर्च कर रहा है जबकि एक महीने का खर्चा 23 अरब डॉलर और एक साल का खर्चा 280 अरब डॉलर बैठता है.
कच्चे तेल से क्या क्या मिलता है
कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल या डीजल ही नहीं मिलता है, इससे हर दिन इस्तेमाल होने वाली ढेरों चीजें मिलती हैं. एक नजर कच्चे तेल से मिलने वाले अहम उत्पादों पर.
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ब्यूटेन और प्रोपेन
कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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तरल ईंधन
प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है. फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है.
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नैफ्था
पेट्रोल, कैरोसिन और डीजल बनाने की प्रक्रिया में जो अपशेष मिलता है, उससे बेहद ज्वलनशील तरल नैफ्था भी बनाया जाता है. नैफ्था का इस्तेमाल पॉकेट लाइटरों में किया जाता है. उद्योगों में नैफ्था का इस्तेमाल स्टीम क्रैकिंग के लिए किया जाता है. नैफ्था सॉल्ट का इस्तेमाल कीड़ों से बचाव के लिए किया जाता है.
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नैपाम
कच्चे तेल से मिलने वाला नैपाम विस्फोटक का काम करता है. आग को बहुत दूर भेजना हो तो नैपाम का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह धीमे लेकिन लगातार जलता है. पेट्रोल या कैरोसिन के जरिए ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बहुत जल्दी जलते हैं और तेल से वाष्पीकृत भी होते हैं.
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मोटर ऑयल
गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है.
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ग्रीस
मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.
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पेट्रोलियम जेली
आम घरों में त्वचा के लिए इस्तेमाल होने वाला वैसलीन भी कच्चे तेल से ही निकलता है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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मोम
ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था.
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चारकोल
असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है.
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प्लास्टिक
कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.
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तेल के बढ़ते दामों का असर अन्य एशियाई देशों पर भी पड़ेगा. इनमें भारत और वियतनाम जैसे देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे. ये देश न सिर्फ आयात किए जाने वाले तेल पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं, बल्कि तेल के दामों में होने वाली अचानक वृद्धि से निपटना भी उनके लिए मुश्किल होगा. आरबीसी का कहना है, "गरीब देशों के पास कर्ज लेने की सीमित क्षमता होती है, इसलिए तेल के बढ़ते दामों के बीच उन्हें वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है."
अगर ईंधन पर सब्सिडी नहीं दी गई तो गरीब देशों में आम ग्राहकों और उद्योगों पर बढ़ते दामों का बुरा असर होगा. एक रिसर्च बताती है कि भारत, वियतनाम या फिर फिलीपींस जैसे देशों में लोगों के वेतन का 8 से 9 प्रतिशत ईंधन पर खर्च होता है. वहीं जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे अमीर देशों में यह खर्च वेतन का 1 से 2 प्रतिशत होता है.
तेल के दामों में इजाफे से ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक कंपनियों पर खास तौर से असर पड़ता है. एशिया में ऐसी ही एक बड़ी कंपनी है फिलीपींस में कुरियर एलबीसी एक्सप्रेस होल्डिंग्स. कंपनी के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर वी रे जूनियर का कहना है, "एलबीसी तेल के दामों में उतार चढ़ाव पर लगातार नजर बनाए हुए है. हम इस बात की तैयारी कर रहे हैं कि तेल के बढ़ते दामों से एयरलाइन, शिपिंग लाइन या फिर ट्रक कंपनियों पर हमारा खर्च कितना बढ़ेगा."
इन देशों के पास है सबसे बड़ा ऑयल रिजर्व
विश्व की राजनीति तेल में सनी रहती है. जिन देशों के पास तेल है, वे या दोस्त हैं या दुश्मन. अमेरिकी एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन की यह सूची इसकी झलक भी देती है.
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10. नाइजीरिया
ऑयल रिजर्व: 37.2 अरब बैरल
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Bureau
09. लीबिया
ऑयल रिजर्व: 48 अरब बैरल
तस्वीर: DW/K. Zurutuza
08. रूस
ऑयल रिजर्व: 80 अरब बैरल
तस्वीर: picture-alliance/dpa
07. संयुक्त अरब अमीरात
ऑयल रिजर्व: 97.8 अरब बैरल
तस्वीर: picture-alliance/dpa
06. कुवैत
ऑयल रिजर्व: 104 अरब बैरल
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05. इराक
ऑयल रिजर्व: 141.35 अरब बैरल
तस्वीर: picture-alliance/dpa
04. ईरान
ऑयल रिजर्व: 154.58 अरब बैरल
तस्वीर: imago/Xinhua
03. कनाडा
ऑयल रिजर्व: 173.1 अरब बैरल
तस्वीर: AFP/Getty Images/M. Ralston
02. सऊदी अरब
ऑयल रिजर्व: 267.9 अरब बैरल
तस्वीर: M. Naamani//AFP/Getty Images
01. वेनेजुएला
ऑयल रिजर्व: 287.6 अरब बैरल
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Sanchez
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वहीं कई कंपनियों का कहना है कि उनका खर्च जितना बढ़ेगा, वे उसे ग्राहकों पर डाल देंगी. फिलीपींस में चेल्सी लॉजिस्टिक कंपनी का कहना है कि बढ़ते दामों का असर निश्चित रूप से पड़ेगा लेकिन "हम कीमतों में बदलाव कर उसे ग्राहक की तरफ बढ़ा देंगे". लेकिन कुछ कंपनियों को यह भी डर है कि ग्राहकों पर ज्यादा बोझ डाला गए तो वे उन्हें खो देंगी. मुंबई में 50 ट्रक वाली प्रवीण रोडवेज कंपनी के मालिक आशीष सावला कहते हैं कि उनकी कंपनी का आधा से ज्यादा खर्च डीजल पर होता है, लेकिन बढ़ते खर्च को ग्राहकों पर डालना मुश्किल होगा. वह कहते हैं, "एक साल में डीजल के दाम 16 प्रतिशत बढ़ गए हैं लेकिन मैं किराए को पांच प्रतिशत नहीं बढ़ा सकता हूं. अगर मैंने किराया बढ़ाया तो ग्राहक सस्ते रेल ट्रांसपोर्ट को इस्तेमाल करने के बारे में सोचेंगे."
अनिल मित्तल मुंबई में एक कंटेनर लॉजिस्टिक कंपनी चलाते हैं और बॉम्बे गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के सदस्य हैं. वह कहते हैं कि उनकी कंपनी पहले ही "बहुत कम मार्जिन पर" काम कर रही है. उनके मुताबिक, "डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी का हमारे कारोबार पर बहुत असर पड़ा है.". वह कहते हैं कि उनके जैसी छोटी कंपनियों के लिए बैंकों का लोन चुकाना मुश्किल हो रहा है जो उन्होंने ट्रक खरीदने के लिए लिया था.
इन सब हालात में अर्थशास्त्री तेल पर निर्भरता घटाने पर जोर देते हैं. आरबीसी कैपिटल मार्केट का कहना है, "यह बहुत जरूरी है कि एशिया तेल पर अपनी निर्भरता कम करे और ऊर्जा कुशलता बढ़ाए. ताकि भविष्य में वह तेल के दामों में होने वाली वृद्धि के झटकों से बचा रहे."
एके/एमजे (रॉयटर्स)
कहां जाता है हर दिन अरबों लीटर कच्चा तेल
दुनिया भर में हर दिन अरबों लीटर पेट्रोल और डीजल फूंका जाता है. ज्यादातर ईंधन खाड़ी के देशों से आता है. कौन है कौन से सबसे ज्यादा तेल खरीदने वाले.