गांधीनगर में संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीशीज (सीएमएस) का सम्मेलन चल रहा है और यह 22 फरवरी तक चलेगा. प्रवासी प्रजाति के जीवों के संरक्षण का यह 13वां सम्मेलन है.
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संयुक्त राष्ट्र के 'प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण' पर हो रहे 13वें सम्मेलन में संकल्प लिया गया है कि एशियाई हाथी, जैगुआर, व्हाइट टिप शार्क और कई तरह के पक्षियों को लुप्तप्राय प्रवासी प्रजाति को कन्वेंशन ऑन माइग्रेटरी स्पीशीज (सीएमएस) की श्रेणी में शामिल किया जाएगा. लुप्त होने की कगार पर खड़े जीवों की ये प्रवासी प्रजातियां संधि के परिशिष्ट एक में शामिल हैं और इन्हें बचाने के लिए संधि सख्त सुरक्षा प्रदान करता है.
अधिवेशन में शनिवार को इस मुद्दे पर मतदान होना है और उम्मीद है कि यह प्रस्ताव पारित हो जाएगा. प्रस्ताव पास हो जाने के बाद सीएमएस पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को इन जानवरों की हत्या से बचाना होगा. कई और प्रजातियों के जीवों के भी परिशिष्ट दो में शामिल किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है जिसके बाद देशों को प्रजातियों की सुरक्षा के लिए और अधिक सहयोग करना होगा.
जानवरों के साथ क्या क्या करते हैं लोग
जानवरों से मिलने वाली तमाम चीजों का इस्तेमाल करना इंसान ने बहुत पहले ही सीख लिया था. लेकिन जब कुछ अजीब से शौक और धारणाओं के चलते जानवरों के अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगे, तो ठहर के सोचना होगा.
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'स्टेट्स सिंबल'
हाथी दांत, गैंडे के सींग तो थे ही, भालू के पंजे भी कई एशियाई देशों में खाने की खास चीज के तौर पर पेश किए जाते हैं. बहुत दर्दनाक तरीके से भालू का पित्त निकाला जाता रहा है जिसका इंसान के लिए दवाएं बनाने में इस्तेमाल होता है.
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बालों में कछुए का खोल?
कछुए के खोल का सदियों से इस्तेमाल होता आया है. कभी गहनों में तो कभी बालों की एक्सेसरी के रूप में. लेकिन एक खास किस्म के कछुए डॉकसबिल टर्टिल के खोल के पीछे पड़ जाने के कारण इस किस्म को "गंभीर खतरे" वाली सूची में शामिल करना पड़ा है. 1973 से ही इसके खोल के व्यापार पर प्रतिबंध है लेकिन इन्हें मारा जाना जारी है.
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बाघ की हड्डी से वाइन
बाघों की खाल को पुराने जमाने से रसूखदार लोग दिखावे के लिए इस्तेमाल करते आए हैं. लेकिन इनकी हड्डियों से बनने वाली वाइन को जब से गठिये और नपुंसकता के इलाज के तौर पर पेश किया गया, इनकी मांग बढ़ती ही चली गई.
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शार्क फिन
एशिया के कई हिस्सों में शार्क के पंखों यानि फिन के सूप बड़े उम्दा माने जाते हैं. जब शार्क के फिन काट के निकाल लिए जाते हैं तो वे उसके बिना तैर नहीं पातीं. लेकिन चूंकि उनके मांस की उतनी मांग नहीं है उन्हें इस तरह अपंग बनाकर वापस पानी में ही फेंक दिया जाता है. जाहिर है वे डूब जाती हैं और धीमी कष्टदायक मौत मरती हैं.
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असली चीते की छाप
बाघों की तरह ही हिम तेंदुए का भी उनकी खाल के लिए शिकार होता है. सेंट्रल एशिया. पूर्वी यूरोप और रूस में तो इनकी खूब मांग है. इनकी हड्डियों से भी कुछ पार्ंपरिक दवाएं बनाते हैं. अब तो दुनिया में केवल 4,000 स्नो लेपर्ड ही बचे हैं.
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गोरिल्ला ट्रॉफी
इन्हें इनके मांस के लिए मारा जाता है. ये काफी ऊंची कीमत पर बिकता है. तो कई लोग इस बात में गर्व महसूस करते हैं कि उन्होंने पहले ही खतरे में पड़े इस विशाल जानवर का शिकार किया.
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महक ने ली जान
कस्तूरी मृग की काफी मांग है. उसकी सुगंधित ग्रंथियों से कई तरह के इत्र बनाए जाते हैं. हालांकि मृग को बिना जान से मारे भी उसका मस्क पॉड निकाला जा सकता है लेकिन शिकारी कई बार उन्हें मार ही डालते हैं. ये जीव भी खतरे में पड़े जानवरों की सूची में रखे गए हैं लेकिन अब भी इनका व्यापार जारी है.
इस पक्षी का नाम है राइनोसिरस हॉर्नबिल. ऐसी चिड़िया जिसके सिर पर गैंडे की तरह एक सींग होती है. शिकारी इस पक्षी के पंखों और सींग के लिए इसे पकड़ते हैं. इसकी बड़ी कीमत है और इसके गहने बनाए जाते हैं. लोग बिना इस बात की परवाह किए इन्हें खरीदते हैं कि उस गहने के लिए कितने जानवरों को मारा गया होगा.
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संरक्षणवादियों का कहना है कि सीएमएस की सूची वाले जीवों की घटती आबादी के लिए इंसान के हाथों शिकार या फिर प्राकृतिक आवास को नष्ट किया जाना जिम्मेदार है. यूएन के एक शोध का अनुमान है कि आने वाले दशकों में जानवरों और पौधों की लाखों प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी. एशियाई हाथी अपने दांतों की वजह से शिकारियों के निशाने पर हैं. पशु कल्याण विशेषज्ञ राल्फ सोनटाग का कहना है कि जैगुआर पिछले एक सदी में अपने आवास का 40 फीसदी हिस्सा खो चुके हैं वहीं समुद्री व्हाइट टिप शार्क भी शिकार की वजह से लुप्तप्राय शार्क बन गए हैं. इनके पंख का सूप एशिया में खूब पसंद किया जाता है.