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समाज

कोरोना के कारण मस्जिदें भी खाली

२७ अप्रैल २०२०

कोरोना वायरस के चलते मुसलमान पाक महीने रमजान में इबादत के लिए मस्जिद नहीं जा पा रहे हैं. वे घरों में ही रमजान की इबादतें कर रहे हैं. मुसलमानों के लिए शायद ही ऐसा रमजान कभी आया हो.

Gazastreifen Muezzin leere Moschee Ramadan
तस्वीर: AFP/M. Abed

एशिया के मुसलमानों के लिए इससे पहले ऐसा रमजान नहीं आया होगा. पहले जहां मस्जिदें भरी होती थीं वही अब खाली पड़ी हुई हैं. कुछ जगहों पर मस्जिदों में ताला लगा दिया गया है ताकि सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों का सख्ती से पालन हो सके. इंडोनेशिया की मुख्य और दक्षिणपू्र्व एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद इश्तिकलाल में मगरिब की अजान के साथ ही लोगों से घरों में ही नमाज पढ़ने की अपील खाली मस्जिद से सुनाई पड़ती है. पिछले साल इसी मस्जिद का नजारा कुछ और था, हजारों की संख्या में नमाजी नमाज के लिए इकट्ठा होते थे. सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में अब तक 8,882 कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों की पुष्टि हो चुकी है और 743 लोगों की इस वायरस से मौत हो चुकी है.

बांग्लादेश की राजधानी ढाका में 'मेयर मोहम्मद हनीफ जामा मस्जिद' के दरवाजे बंद हैं और ताला लगा दिया गया है. पाकिस्तान के शहर कराची में पुलिस 'फैजान-ए-मदीना' के बाहर गश्त लगा रही है. यह शहर की सबसे बड़ी मस्जिद है. तरावीह के दौरान लोगों को मस्जिद में दाखिल होने से रोकने के लिए पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. रमजान के महीने में पांच वक्त की नमाजों के अलावा तरावीह की नमाज भी होती है, ऐसे में पुलिस लोगों को रोक रही है. पाकिस्तान में कोविड-19 के 11,000 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं जबकि 237 लोगों की मौत हो चुकी है.

मस्जिद में भी सामाजिक दूरी.तस्वीर: AFP/M. Rasfan

दिल्ली की जामा मस्जिद में रमजान के पहले दिन सिर्फ पांच ही लोग नमाज के लिए जुटे. पिछले साल यहां रमजान के समय में रात से लेकर सेहरी तक सड़कें गुलजार रहती थीं और दुकानें खुली रहती थी. जामा मस्जिद में इफ्तार के लिए लोग आस-पास के इलाकों से आते थे और मस्जिद परिसर में सूरज ढलने के बाद अपना रोजा खोलते थे. जामा मस्जिद के शाही इमाम भी लोगों से सरकार के दिशा-निर्देशों को पालन करने को कह चुके हैं. साथ ही उन्होंने लोगों से घर पर रहकर नमाज और इफ्तार करने की अपील की है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तेजी से फैलता कोरोना वायरस दक्षिण एशिया के गरीब, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ बढ़ा सकता है.

एए/सीके (रॉयटर्स)

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