असम सरकार ने रेस्तरां, होटल, सार्वजनिक समारोहों और अन्य सामुदायिक स्थानों पर बीफ परोसने और खाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है.
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असम सरकार ने तत्काल प्रभाव से सार्वजनिक रूप से गोमांस खाने पर प्रतिबंध लगा दिया है. राज्य के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस संबंध में बुधवार, 5 दिसंबर को एक्स पर एक बयान पोस्ट किया.
इसमें उन्होंने लिखा, "असम में हमने फैसला किया है कि किसी भी रेस्तरां या होटल में गोमांस नहीं परोसा जाएगा, न ही किसी सार्वजनिक समारोह या सार्वजनिक स्थान पर इसकी इजाजत दी जाएगी. इसलिए आज से हमने होटलों, रेस्तरां और सार्वजनिक स्थानों पर गोमांस के उपभोग को पूरी तरह से बैन करने का फैसला किया है."
मुख्यमंत्री ने आगे लिखा, "असम में हमने गोहत्या को रोकने के लिए तीन साल पहले कानून बनाया था, उस कानून के लागू होने से काफी सफलता मिली है. अब हमने सार्वजनिक जगहों और होटलों में गोमांस के खाने या परोसने पर बैन लगाने का फैसला लिया है."
असम में अब तक नहीं था बीफ पर बैन
असम में गोमांस खाने और परोसने पर किसी तरह की रोक नहीं थी. साल 2021 में 'असम मवेशी संरक्षण कानून' लाया गया, जो कि ऐसे इलाकों में बीफ की बिक्री पर रोक लगाता है जहां हिंदू मंदिर हैं. यह कानून मंदिरों के पांच किलोमीटर के दायरे पर लागू था. अब मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि यह फैसला पूरे राज्य में लागू होगा.
सीएम ने कहा कि नया प्रावधान राज्य में मवेशी हत्या रोकने के सरकार के उद्देश्य के अनुरूप है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भूपेन बोरा और रकीबुल हुसैन जो चाहते थे, वह अब पूरा होगा. इसलिए हमें उम्मीद है कि कांग्रेस इस फैसले में हमारा समर्थन करेगी.
ये हैं भारत के बीफ खाने वाले
भारत में खानपान की आदतें केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि धर्म, जाति, क्षेत्र और आय पर आधारित एक जटिल समीकरण से जुड़ी हैं. देखिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कौन लोग गाय या भैंस का मांस खाते हैं.
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राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ के 2011-12 के आंकड़ें दिखाते हैं कि भारत में करीब 8 करोड़ लोग बीफ या भैंस का मीट खाता है.
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आंकड़ों के अनुसार बीफ यानि गौमांस और भैंस का मीट खाने वाले ये लोग सभी धर्मों और राज्यों में पाये जाते हैं. इन 8 करोड़ लोगों में करीब सवा करोड़ हिन्दू हैं.
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एनएसएसओ के आंकड़ों से हाल के सालों में मीट की खपत बढ़ने का पता चलता है. इस सर्वे में करीब एक लाख लोगों से आंकड़ें इकट्ठे किए गए. देखा गया कि हफ्ते और महीने की औसत अवधि में एक परिवार खाने की किन चीजों पर कितना खर्च करता है.
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विश्व में मांस की खपत का लेखाजोखा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की 2007 में जारी 177 देशों की सूची में भारत को अंतिम स्थान मिला. 43 किलो के विश्व औसत के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति सालाना मांस की खपत मात्र 3.2 किलो दर्ज हुई.
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एफएओ बताता है कि दुनिया भर में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ने, शहरीकरण और खानपान की आदतें बदलने के कारण मांस की खपत बढ़ी है. भारत में खपत विश्व औसत से काफी कम है लेकिन वह बीफ, भैंस के मांस और काराबीफ का सबसे बड़ा निर्यातक है.
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भारत में धर्म के आधार पर गाय या भैंस का मांस खाने वाला सबसे बड़ा समुदाय 6 करोड़ से अधिक मुसलमानों का है. संख्या के मामले में इसके बाद सबसे अधिक हिन्दू समुदाय आता है. जबकि प्रतिशत के अनुसार मुसलमानों के बाद ईसाई आते हैं.
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मुसलमानों के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) गाय या भैंसों का मीट खाने वाला सबसे बड़ा तबका है. हिन्दुओं में इसे खाने वाले 70 फीसदी से अधिक लोग एससी/एसटी, 21 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और करीब 7 फीसदी उच्च जातियों से आते हैं.
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बीफ बैन पर राजनीति
'हिंदू' अखबार के मुताबिक, हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि उनके मंत्रिमंडल ने राज्य कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन बोरा और धुबरी के सांसद रकीबुल हुसैन के बयानों का विश्लेषण करने के बाद बीफ बैन पर फैसला लिया. दोनों नेताओं ने असम के मुसलमान बहुल समागुरी विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा गोमांस बांटने पर नाराजगी जताई थी.
13 नवंबर को समागुरी विधानसभा के उपचुनाव हुए थे और आरोप लगाए गए थे कि वोटरों को लुभाने के लिए बीफ बांटा गया. आरोप कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर लगे थे. कांग्रेस सांसद हुसैन ने यह भी दावा किया था उनके पास बीफ बांटे जाने के सबूत हैं.
इस सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी के डिप्लू रंजन सरमा ने 24,501 वोटों से हुसैन के बेटे तंजील हुसैन को हरा दिया था. पिछले 25 साल से कांग्रेस यह सीट जीतती आ रही थी. इस जीत के बाद सीएम ने कांग्रेस से सवाल किया कि क्या वह अब तक बीफ बांटकर समागुरी जीतती आ रही थी.
राज्य में बीफ खाने और परोसने पर लगाए गए प्रतिबंध पर रकीबुल हुसैन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि असम के मुख्यमंत्री की लोकप्रियता घट रही है और इसलिए वह लोगों का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह के कदम उठा रहे हैं. असम सरकार के मंत्री पीयूष हजारिका ने एक्स पर एक पोस्ट कर कांग्रेस पार्टी पर हमला बोला. उन्होंने सरमा के पोस्ट को रीट्वीट करते हुए लिखा, "मैं असम कांग्रेस इकाई को चुनौती देता हूं कि वह गोमांस पर प्रतिबंध का स्वागत करे या पाकिस्तान में जाकर बस जाए."
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असम का पशु संरक्षण कानून
असम सरकार ने राज्य में मवेशियों की रक्षा के लिए 2021 में कानून बनाया था. 'असम मवेशी संरक्षण विधेयक 2021' नामक इस कानून का मकसद वैसे तो पड़ोसी देश बांग्लादेश में गायों की तस्करी को रोकना है. इसे विधानसभा में पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था कि इसका मकसद यह सुनिश्चित करना भी है कि उन क्षेत्रों में बीफ खाने या बेचने की अनुमति नहीं दी जाए, जहां मुख्य रूप से हिंदू, जैन, सिख और बीफ नहीं खाने वाले समुदाय रहते हैं.
किसी मंदिर, धार्मिक स्थान या फिर अधिकारियों द्वारा तय किसी दूसरी संस्था के पांच किलोमीटर के दायरे में भी पशुओं की कटाई की अनुमति नहीं होगी. हालांकि, हिमंता बिस्वा सरमा ने उस समय यह भी कहा था कि कुछ धार्मिक अवसरों पर इसमें छूट दी जा सकती है.
इस कानून में लाइसेंसी बूचड़खानों को ही पशुओं को काटने की अनुमति देने का प्रावधान है. साथ ही, इसमें कहा गया कि अगर जांच के दौरान वैध दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए, तो राज्य के भीतर या बाहर एक जगह से दूसरी जगह पशुओं को ले जाने पर भी रोक लगा दी जाएगी.
इस कानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं. दोषी पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को कम-से-कम तीन साल की कैद या तीन से पांच लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है.
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
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राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
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गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
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आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
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उत्तर प्रदेश
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
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असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
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हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
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गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
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दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
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महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.