1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

असम: पेड़ लगाने पर 100 रुपये, तीन साल देखभाल पर 1,000 रुपये

प्रभाकर मणि तिवारी
१२ जून २०२३

असम में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का असर साफ देखा जा सकता है. असम सरकार अगले पांच साल में जंगल का विस्तार बढ़ाना चाहती है. इसके लिए 2 अक्टूबर को राज्य भर में एक करोड़ पेड़ लगाने का एलान हुआ है.

असम समेत पूरा पूर्वोत्तर इलाका अपनी जैव-विविधता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. जानकारों का कहना है कि मौसम के बदलते मिजाज की वजह से दुर्लभ किस्म की कई वनस्पतियों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है.
असम समेत पूरा पूर्वोत्तर इलाका अपनी जैव-विविधता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. जानकारों का कहना है कि मौसम के बदलते मिजाज की वजह से दुर्लभ किस्म की कई वनस्पतियों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है. तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

पूर्वोत्तर का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले असम में कई विरोधाभास देखने को मिलते हैं. एक ओर जहां राज्य में फॉरेस्ट मैन के नाम से मशहूर जादव पायंग ने अकेले अपने बूते बंजर जमीन पर जंगल खड़ा कर दिया है, वहीं दूसरी ओर अनियंत्रित शहरीकरण की वजह से तेजी से पेड़ भी कटे हैं. ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, असम में वर्ष 2001 से 2021 के दो दशकों के दौरान 2.87 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र घट गया है. यह दिल्ली के क्षेत्रफल का दोगुना है.

फिलहाल असम के कुल क्षेत्रफल का 36 फीसदी जंगल है. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने अगले पांच साल में इसे बढ़ा कर 38 फीसदी करने की महत्वाकांक्षी योजना का एलान किया है. इस खाई को पाटने के लिए असम सरकार ने 2 अक्टूबर को राज्य भर में एक करोड़ पौधे लगाने का फैसला किया है. लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मुख्यमंत्री हिमंता ने ऐसा करने वालों को 100-100 रुपए की प्रोत्साहन राशि देने का एलान भी किया है.

असम में 2001 से 2021 के दौरान 2.87 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र घट गया है. यह दिल्ली के क्षेत्रफल का दोगुना है.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

जलवायु परिवर्तन का असर

असम समेत पूर्वोत्तर राज्यों में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का असर साफ नजर आ रहा है. असम साल में कई बार भयावह बाढ़ की चपेट में आता रहा है. बीते साल विधानसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में जलवायु के लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील 25 जिलों में 15 असम में है. 25 जिलों की इस सूची में असम के कछार स्थित करीमगंज जिले का नाम पहले नंबर पर है. लेकिन अब तक सरकार की ओर से इस मामले में कोई ठोस पहल नहीं की गई है. यह इलाका हर साल कई बार बाढ़ की चपेट में आता है. बाढ़ का पानी अपने साथ जमीन की उपजाऊ परत के साथ हजारों पेड़ों को भी बहा ले जाता है.

नवंबर 2022 में पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद असम कैबिनेट ने जंगल के बाहर के पेड़ों को काटने पर लगी पाबंदियां हटा दी थीं. 71 प्रजातियों के पेड़ों पर पहले लागू रजिस्ट्रेशन और पूर्व अनुमति लेने की प्रक्रिया खत्म कर दी गई थी. तब दलील दी गई थी कि निजी जमीन पर पेड़ काटने की अनुमति देने से लोग पेड़ लगाने को प्रोत्साहित होंगे. लेकिन इसका कोई जमीनी असर नजर नहीं आया है.

यही वजह है कि सरकार ने पेड़ लगाने के बदले पैसे देने की घोषणा की है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि किसी व्यक्ति के लगाए पेड़ अगर तीन साल तक सही-सलामत रहते हैं, तो उसे एक हजार रुपए की अतिरिक्त रकम भी दी जाएगी. मुख्यमंत्री ने बताया कि वन आधारित समानांतर अर्थव्यवस्था बनाने के लिए राज्य सरकार ने साल, सागौन जैसी वाणिज्यिक लकड़ी वाले वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिए भी कदम उठाए हैं.

बाढ़ का पानी अपने साथ जमीन की उपजाऊ परत के साथ हजारों पेड़ों को भी बहा ले जाता है.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

असम के फॉरेस्ट मैन

असम में हालिया दशकों में पेड़ों की कटाई तेज हुई है. लेकिन इसके बीच जादव पायंग जैसे लोग भी हैं. फॉरेस्ट मैन के नाम से मशहूर जादव पयांग जोरहाट जिले के रहने वाले हैं. चार दशकों की मेहनत से उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे करीब 550 हेक्टेयर इलाके में जंगल लगा दिया है. जादव अब तक चार करोड़ पेड़ लगा चुके हैं.

बंजर जमीन पर जंगल बसाकर जादव ने हजारों जानवरों को एक नया घर भी दिया है. इसके लिए उन्हें 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है. असम एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने उन्हें पीएचडी की मानद उपाधि दी है. खुद पेड़ लगाने के साथ ही वह करीब आठ लाख हेक्टेयर जमीन पर वृक्षारोपण के लिए स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता अभियान भी चला चुके हैं.

हर साल आने वाली बाढ़ खेतों पर बालू की मोटी परत छोड़ जाती है. इससे फसलों, खासकर धान की पैदावार घटने लगी है. बाढ़ से हजारों पेड़ भी उखड़ जाते हैं.तस्वीर: Prabhakar Mani Tiwari/DW

जैव विविधता पर खतरा

असम समेत पूरा पूर्वोत्तर इलाका अपनी जैव-विविधता के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. जानकारों का कहना है कि मौसम के बदलते मिजाज की वजह से दुर्लभ किस्म की कई वनस्पतियों का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है. ऐसे में पेड़ लगाने की पहल सकारात्मक है, लेकिन साथ ही सरकार को पेड़ों की बढ़ती कटाई पर भी अंकुश लगाना होगा.

एक गैर-सरकारी संगठन के महासचिव पार्थ प्रतिम दास कहते हैं, "इलाके में तेजी से कटते जंगल और आबादी का बढ़ता घनत्व पारिस्थितिकी तंत्र को और बिगाड़ रहा है. जंगल घट रहे हैं, लेकिन उनकी भरपाई नहीं हो रही है. इसका असर मौसम पर पड़ रहा है. हर साल आने वाली बाढ़ असम की उपजाऊ मिट्टी को बहा ले जाती है और खेतों पर बालू की मोटी परत छोड़ जाती है. इससे फसलों, खासकर धान की पैदावार घटने लगी है. बाढ़ से हजारों पेड़ भी उखड़ जाते हैं.”

मौसम विज्ञानी डॉक्टर प्रथमेश हाजरा कहते हैं, "पेड़ों की कटाई रोकने और वृक्षारोपण अभियान को बढ़ावा देने के लिए सिर्फ प्रोत्साहन राशि देना ही काफी नहीं है. सरकार को स्थानीय लोगों के बीच जागरुकता अभियान भी चलाना होगा, ताकि वे पेड़ों की अहमियत समझ सकें.”

तूफान और ताकतवर लहरों से टकराने वाले मैंग्रोव जंगल

07:09

This browser does not support the video element.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें