असम में दूसरे धर्म के लोगों को जमीन की बिक्री करना हुआ कठिन
१ सितम्बर २०२५
असम मंत्रिमंडल ने हाल में इस मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) नियम को मंजूरी दे दी है. लेकिन विपक्ष ने इसे असंवैधानिक करार दिया है. इससे पहले सरकार ने एक अक्तूबर से 18 साल से ज्यादा उम्र वाले किसी व्यक्ति को आधार कार्ड जारी करने की प्रक्रिया पर रोक लगाने का फैसला किया था.
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की दलील थी कि राज्य में आबादी से ज्यादा आधार कार्ड बन गए हैं जबिक आदिवासियों और चाय बागान मजदूरों के मामले में यह आंकड़ा 96 फीसदी ही है. इसी वजह से इस तबके को एक साल के लिए इस पाबंदी से छूट दी गई है.
क्यों बना नया नियम?
आखिर असम सरकार ने जमीन की खरीद-फरोख्त के मामले में नया नियम क्यों बनाया है. सरकार की दलील है कि राज्य में बढ़ती घुसपैठ और जनसांख्यिकी में होने वाले बदलाव के लिए ऐसा करना जरूरी है. राजधानी गुवाहाटी में पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री का कहना था, अलग-अलग धर्मों के लोगों के बीच जमीन की बिक्री और हस्तांतरण के आवेदनों की जांच के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को मंजूरी दे दी गई है.
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ऐसे मामलों में असम पुलिस की विशेष शाखा इस बात की जांच करेगी कि इस हस्तांतरण में कोई धोखाधड़ी या अवैध काम तो नहीं हुआ है. इसे मंजूरी देने से पहले खरीददार के धन के स्रोत के साथ ही इस बात की भी जांच की जाएगी कि ऐसे सौदे से सामाजिक सद्भाव तो नहीं बिगड़ने या राष्ट्रीय सुरक्षा का कोई खतरा तो नहीं होगा.
बाहरी एनजीओ पर भी लागू होगा
जमीन हस्तांतरण के ताजा नियम बाहरी राज्यों गैर-सरकारी संगठनों की ओर से बड़े पैमाने पर जमीन के मामले में भी लागू होगी. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कहते हैं कि असम के गैर-सरकारी संगठनों को इस नियम से छूट मिलेगी. लेकिन बाहरी संगठनों के मामले में उनके धन के स्रोत और जमीन खरीदने के मकसद की जांच की जाएगा. मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि केरल के कई गैर-सरकारी संगठनों ने कछार, बरपेटा और श्रीभूमि जिलों में बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी है. ऐसे संगठन कई और जगह सौदेबाजी कर रहे हैं.
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राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहते हैं, "हाल के वर्षो में सीमा पार से लगातार होने वाली घुसपैठ के कारण असम बेहद संवेदनशील राज्य बन गया है. घुसपैठ की वजह से कई इलाकों में आबादी का संतुलन बिगड़ रहा है और सामाजिक सद्भाव को खतरा पैदा हो गया है." वो बताते हैं कि सीमा पार से आने वाले घुसपैठिए राज्य में पहुंचने के कुछ दिनों बाद यहां जमीन और घर खरीद लेते हैं और खुद के भारतीय नागरिक होने का दावा करने लगते हैं. कई ऐसे मामलों के सामने आने के बाद ही सरकार ने नए नियम तय किए हैं.
वैसे, सरकार ने इससे पहले बीते साल मार्च में ही भिन्न धर्म वाले लोगों के बीच जमीन की खरीद-फरोख्त के लिए अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) देने पर आंशिक पाबंदी लगा दी थी. उसके बाद बीते साल सितंबर में हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा था कि सरकार किसी भी धर्म के व्यक्ति को अपनी जमीन बेचने से तो रोक नहीं सकती. लेकिन हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच जमीन के हस्तांतरण के लिए मुख्यमंत्री का अनुमोदन अनिवार्य बनाया जाएगा.
अवैध अतिक्रमण भी सुर्खियों में
असम में बीते कुछ समय से अवैध अतिक्रमण हटाने का अभियान भी सुर्खियों में रहा है. इस दौरान सरकार ने खासकर अल्पसंख्यक-बहुल इलाकों में बड़े पैमाने पर ऐसा अभियान चला कर सरकारी जमीन उनके कब्जे से वापस ली है. हालांकि इस अभियान पर काफी विवाद भी होता रहा है और सरकार पर अल्पसंख्यक विरोधी एजेंडा चलाने के आरोप लगे हैं.
राज्य के मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से बातचीत में इस अभियान का बचाव करते हैं. उनका कहना था कि अब तक इस अभियान के तहत करीब 50 हजार एकड़ जमीन मुक्त कराई जा चुकी है. लेकिन अब भी 10 लाख एकड़ जमीन पर अवैध बांग्लादेशियों का कब्जा है. सरकार उससे अतिक्रमण हटाने के लिए कृतसंकल्प है. हिमंता बिस्वा सरमा बार-बार असम के मूल निवासियों का अस्तित्व खतरे में होने की बात दोहराते रहे हैं.
हमलावर विपक्ष
असम सरकार के ताजा फैसले की विपक्ष ने आलोचना की है और सरकार पर अल्पसंख्यक विरोधी एजेंडा लागू करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस ने कहा है कि हिमंता सरकार सत्ता में आने के बाद लगातार यह एजेंडा चला रही है. इसी के तहत बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चला कर हजारो लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसके अलावा अवैध अतिक्रमण हटाने के नाम पर हजारों लोगों को बेघर कर दिया गया है.
कांग्रेस के प्रवक्ता अमन वदूद ने डीडब्ल्यू से कहा, "सरकार का ताजा फैसला असंवैधानिक है. मेरा सवाल है कि क्या सरकार के पास ऐसा कोई कड़ा है जिससे साबित हो कि दो भिन्न समुदाय के लोगों के बीच जमीन की खरीद-फरोख्त से सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो रहा हो."
अल्पसंख्यकों के संगठन ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के नेता रफीकुल इस्लाम डीडब्ल्यू से कहते हैं, "असम में सत्ता संभालने के बाद से ही मौजूदा सरकार लगातार तुगलकी फैसले कर रही है. आधार कार्ड पर पाबंदी का फैसला भी ऐसा ही था. अगर कोई विदेशी घुसपैठिया यहां आता है तो उसकी शिनाख्त कर खदेड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है. लेकिन ऐसा करने की बजाय वह आम नागरिकों को परेशान कर रही है. अब ताजा फैसले से किसी के लिए अपनी जमीन बेचना बेहद मुश्किल हो जाएगा. सरकार का अल्पसंख्यक विरोधी एजेंडा अब साफ हो गया है. यह तमाम फैसले राजनीति से प्रेरित हैं."
राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि राज्य सरकार बीते चार साल से ऐसी गतिविधियां तेज की है जो अल्पसंख्यकों के खिलाफ हैं. विश्लेषक और सामाजिक कार्यकर्ता सकीना खातून डीडब्ल्यू से कहती हैं, "सरकार की मंशा साफ है. वह अल्पसंख्यकों को जमीन खरीदने से रोकना चाहती है. लेकिन यह तमाम अल्पसंख्यक स्थानीय निवासी हैं. बावजूद इसके सरकार उनको परेशान करने और विदेशी साबित करने के लिए नए-नए नियम बनाती रही है."