असम में मानव तस्करी पर अंकुश के लिए बनेगा नया कानून
प्रभाकर मणि तिवारी
१३ सितम्बर २०२२
चाय बागान इलाकों की आदिवासी युवतियों को बेहतर जीवन के सपने दिखा कर उनको दिल्ली और मुंबई समेत तमाम महानगरों में ले जाकर बंधुआ मजदूर बनाने या फिर कई मामलों में उनको बेच देने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं.
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पूर्वोत्तर राज्य असम मानव तस्करी के लिए कुख्यात रहा है. खासकर चाय बागान इलाकों की आदिवासी युवतियों को बेहतर जीवन के सपने दिखा कर उनको दिल्ली और मुंबई समेत तमाम महानगरों में ले जाकर बंधुआ मजदूर बनाने या फिर कई मामलों में उनको बेच देने के मामले अक्सर सामने आते रहे हैं. बीते दो साल यानी कोरोना के दौर में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, असम में बीते साल मानव तस्करी के 203 मामले दर्ज किए थे. इस मामले में राज्य महाराष्ट्र और तेलंगाना के बाद तीसरे नंबर पर रहा. बीते साल राज्य में कुल 460 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए. राज्य में बीते साल मई से इस साल अगस्त के दौरान मानव तस्करी के 174 मामले दर्ज किए गए हैं.
मानव तस्करी के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार अब एक नया कानून बनाने पर विचार कर रही है.
यहां इस बात का जिक्र जरूरी है कि पड़ोसी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार ने मानव तस्करी रोकने और घरेलू सहायक या सहायिकाओं को शोषण से बचाने के लिए चार साल पहले उनको ट्रेड यूनियन का अधिकार दिया था. बंगाल भी महिलाओं और बच्चों की तस्करी से काफी हद तक प्रभावित है.
प्रस्तावित कानून
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने विधानसभा में कहा, "घरेलू सहायक या सहायिका के रूप में काम करने वालों की सुरक्षा के लिए नया कानून लाया जाएगा. इससे उन लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और मानव तस्करी के मामलों में कमी आएगी. उनका कहना था कि इस कानून के अमल में आने के बाद एक बार जब कानून विधानसभा में पेश किया जाएगा, तो राज्य में घरेलू नौकरों को रोजगार देने वाले परिवारों को पुलिसिया कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे परिवारों को क्या करें और क्या नहीं करें, की एक सूची का भी पालन करना होगा.
मुख्यमंत्री ने कहा, "लोगों में आम धारणा है कि मानव तस्करी तभी होती है जब एक बच्चे, किशोर या किशोरी को दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है. लेकिन किसी को को उसके घर से दूर ले जाने की स्थिति में भी उसके मानव तस्करी की चपेट में आने का अंदेशा हो सकता है भले ही वह जगह राज्य की सीमा के भीतर ही क्यों नहीं हो. लेकिन ऐसे मामलों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता."
गुलामी के भवर में आज भी फंसे हैं भारत के कई लोग
भारत और अफ्रीका जैसे देशों को आजादी सालों पहले मिल गई, लेकिन फिर भी कई लोग आज भी अलग-अलग रूपों में गुलामों वाली जिंदगी जी रहे हैं.
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भारत में दुर्दशा
80 लाख की संख्या के साथ भारत में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं. इसके बाद 38.6 लाख के साथ चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर आता है. पाकिस्तान में 31.9 लाख, उत्तर कोरिया में 26.4 लाख और नाइजीरिया में 13.9 लाख लोग आज भी गुलाम हैं.
मुनाफे के लिए लोगों से हर तरह का काम कराया जा रहा है. उन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी और अपराधों की दुनिया में धकेला जा रहा है. कहीं उनसे भीख मंगवाई जा रही है, तो कहीं घरों में उनका शोषण हो रहा है. जबरन शादी और अंगों के व्यापार में भी उन्हें मुनाफे का जरिया बनाया जा रहा है.
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कुल कितने गुलाम
दुनिया में कम से 4.03 करोड़ लोग गुलामों की तरह रह रहे हैं. इसमें से दो करोड़ से खेतों, फैक्ट्रियों और फिशिंग बोट्स पर काम लिया जा रहा है. 1.54 करोड़ को शादी के लिए मजबूर किया जाता है जबकि पचास लाख लोग देह व्यापार में धकेले गए हैं.
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यूएन का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इंसानों की तस्करी तेजी से बढ़ते हुए अपराध उद्योग की जगह ले रही है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक बंधुआ मजदूरी और जबरी विवाह को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन यह काम बहुत ही चुनौतीपूर्ण है.
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इंसानी तस्करी विरोधी दिवस
कहां पर कितने लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है, इस पर कहीं विश्वसनीय आंकड़े नहीं मिलते. लेकिन कुछ आंकड़े और तथ्य इतना जरूर बता सकते हैं कि समस्या कितनी गंभीर है. इसी की तरफ ध्यान दिलाने के लिए यूरोपीय संघ 18 अक्टूबर को इंसानी तस्करी विरोधी दिवस मनाता है.
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महिलाएं और लड़कियां निशाना
आधुनिक गुलामों में हर दस लोगों में सात महिलाएं और लड़कियां हैं जबकि इनमें एक चौथाई बच्चे शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर देखें तो हर 185 लोगों में से एक गुलाम है. आबादी के हिसाब से उत्तर कोरिया में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं.
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कहां क्या स्थिति
उत्तर कोरिया में 10 प्रतिशत आबादी को गुलाम बनाकर रखा गया है. इसके बाद इरिट्रिया में 9.3 प्रतिशत, बुरुंडी में चार प्रतिशत, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 2.2 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 2.2 प्रतिशत लोग गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं.
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तो किसे अपराध कहेंगे?
2019 की शुरुआत तक 47 देशों में इंसानी तस्करी को अपराध घोषित नहीं किया गया था. 96 देशों में बंधुआ मजदूरी अपराध नहीं थी जबकि 133 देशों में जबरन शादी को रोकने वाला कोई कानून नहीं था.
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विकसित देश भी पीछे नहीं
अनुमान है कि इंसानी तस्करी से हर साल कम से कम 150 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया जा रहा है. विकासशील ही नहीं, विकसित देशों में भी आधुनिक गुलाम मौजूद हैं. ब्रिटेन में 1.36 लाख और अमेरिका में चार लाख लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है. (स्रोत: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, वॉक फ्री फाउंडेशन)
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सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रस्तावित कानून के मुताबिक, घरेलू नौकर के नियोक्ता उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होंगे. लोगों के लिए स्थानीय पुलिस में ऐसे घरेलू सहायकों का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा ताकि ऐसे लोगों के हितों पर पर निगाह रखी जा सके.
तेजी से बढ़ते मामले
मानव तस्करी के लिए बदनाम रहे असम में कोरोना के दौर में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, असम में वर्ष 2018 में मानव तस्करी के 308 मामले दर्ज किए गए. तब यह राज्य महाराष्ट्र के बाद दूसरे नंबर पर था. वर्ष 2019 में यह संख्या घट कर 201 हो गई. लेकिन तब भी असम देश में तीसरे नंबर पर रहा था. वर्ष 2020 में असम में मानव तस्करी के 124 मामले दर्ज किए गए थे जिनमें 177 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए. उसी वर्ष 157 व्यक्तियों को बचाया गया.
लेकिन ताजा आंकड़ों के मुताबिक, असम में बीते साल मानव तस्करी के 203 मामले दर्ज किए थे. इस मामले में राज्य महाराष्ट्र और तेलंगाना के बाद तीसरे नंबर पर रहा. बीते साल राज्य में कुल 460 लोग मानव तस्करी के शिकार हुए. आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश पीड़ितों को घरेलू काम और बेहतर जिंदगी का लालच देकर तस्करी का शिकार बनाया गया.
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कम उम्र के शिकार
मार्च 2013 में कैलाश सत्यार्थी के गैर-सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अकेले असम के लखीमपुर जिले से ही चार सौ से ज्यादा किशोरियां मानव तस्करी के शिकार हो चुकी हैं. तब संसद में इस रिपोर्ट पर भारी हंगामा हुआ था.
असम के कोकराझार में मानव तस्करी रोकने की दिशा में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन निदान फाउंडेशन अध्यक्ष दिगंबर नारजरी बताते हैं, "खासकर किशोरों की मानव तस्करी के मामले वर्ष 2020 की राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के दौरान भी जारी रही. हमने उस वर्ष के दौरान कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी के सिर्फ चार जिलों में बाल तस्करी के 144 मामले दर्ज किए थे. बीते साल यानी वर्ष 2021 में अकेले बोडोलैंड इलाके के चार जिलों में बाल तस्करी के कुल 156 मामले दर्ज किए गए. अगर पूरे राज्य के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो भयावह तस्वीर उभरेगी."
उनके मुताबिक, कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 के दौरान काम के लिए राज्य से बाहर रहने वाले हजारों लोगों की वापसी, महामारी के कारण स्कूलों का लंबे समय तक बंद रहना और दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेजों में सीटों की कमी भी इस मामले में वृद्धि की वजह हो सकती है.
कलकत्ता विश्वविद्यालय की महिला अध्ययन शोध केंद्र की निदेशक रहीं डा. ईशिता मुखर्जी कहती हैं, "पश्चिम बंगाल मानव तस्करी के अंतरराष्ट्रीय रूट पर स्थित है. यहां कई घरेलू व अंतरराष्ट्रीय गिरोह इस धंधे में सक्रिय हैं. इसके अलावा पड़ोसी देशों की सीमा से सटा होना भी इसकी एक प्रमुख वजह है. बंगाल से सटे होने की वजह से पूर्वोत्तर राज्य भी खासकर महिलाओं की तस्करी से परेशान हैं." उनके मुताबिक, असम सरकार के प्रस्तावित कानून को अगर ठोस तरीके से लागू किया जा सके तो इससे ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है.
पांच करोड़ लोग आज भी हैं आधुनिक गुलामी की गिरफ्त में
संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट ने दावा किया है कि दुनिया भर में पांच करोड़ लोग आज भी गुलामी के किसी ना किसी रूप में कैद हैं. इनमें जबरन मजदूरी से लेकर जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी महिलाएं भी शामिल हैं.
तस्वीर: Cindy Miller Hopkins/Danita Delimont/Imago Images
मिटती नहीं गुलामी
संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक आधुनिक गुलामी को जड़ से मिटा देने का लक्ष्य बनाया था, लेकिन एक नई रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2021 के बीच जबरन मजदूरी और जबरदस्ती कराई गए शादियों में फंसे लोगों की संख्या में एक करोड़ की बढ़ोतरी हो गई. अध्ययन संयुक्त राष्ट्र की श्रम और आप्रवासन से जुड़ी संस्थाओं ने वॉक फ्री फाउंडेशन के साथ मिल कर कराया.
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हर 150 में से एक गुलाम
अध्ययन में पाया गया कि 2021 के अंत में दुनिया में 2.8 करोड़ लोग जबरन मजदूरी कर रहे थे और 2.2 करोड़ लोग ऐसी शादियों में जी रहे थे जो उन पर जबरदस्ती थोपी गई थीं. इसका मतलब दुनिया में हर 150 लोगों में से एक व्यक्ति गुलामी के किसी आधुनिक रूप में फंसा है.
तस्वीर: Felipe Dana/AP Photo/picture alliance
कोविड-19 ने बढ़ाई गुलामी
जलवायु परिवर्तन और हिंसक संघर्षों के असर के साथ साथ कोविड-19 ने "अभूतपूर्व रूप से रोजगार और शिक्षा को प्रभावित किया, चरम गरीबी को और जबरन, असुरक्षित आप्रवासन को बढ़ाया." इस तरह महामारी ने भी गुलामी में पड़ने के जोखिम को बढ़ा दिया है.
तस्वीर: YURI KORSUNTSEV/AFP/Getty Images
प्रवासी श्रमिक भी खतरे में
रिपोर्ट के मुताबिक आम श्रमिकों के मुकाबले प्रवासी श्रमिकों की जबरन मजदूरी में होने की तीन गुना ज्यादा संभावना है. इसलिए आप्रवासन को सुरक्षित बनाने की जरूरत है.
तस्वीर: Aline Deschamps/Getty Images
दीर्घकालिक समस्या
रिपोर्ट के मुताबिक यह एक दीर्घकालिक समस्या है. अनुमान है कि जबरन मजदूरी में लोग सालों तक फंसे रहते हैं और जबरदस्ती कराई गई शादियां तो अक्सर "आजीवन कारावास" की सजा जैसी होती हैं.
तस्वीर: Daniel Berehulak/Getty Images
महिलाएं और बच्चे सबसे असुरक्षित
रिपोर्ट में कहा गया है कि जबरन मजदूरी में फंसे हर पांच लोगों में से एक बच्चा होता है. आधे से ज्यादा बच्चे तो व्यावसायिक यौन शोषण में फंसे हुए हैं. मुख्य रूप से महिलाएं और लड़कियां ही जबरदस्ती कराई गई शादियों में फंसी हुई हैं. 2016 के बाद से ऐसी महिलाओं और लड़कियों की संख्या में पूरे 66 लाख की बढ़ोतरी हुई है.
तस्वीर: Marco Ugarte/AP Photo/picture alliance
अमीर देशों में भी है गुलामी
आधुनिक गुलामी हर देश में मौजूद है. जबरन मजदूरी के आधे से ज्यादा मामले और जबरदस्ती कराई गयउ शादियों के एक चौथाई से ज्यादा मामले ऊपरी-मध्यम आय वाले और ऊंची-आय वाले देशों में हैं.
रिपोर्ट ने संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था द्वारा उठाई गई चिंताओं की तरफ भी इशारा किया, कि उत्तर कोरिया में "बेहद कड़े हालात में जबरन मजदूरी के विश्वसनीय रिपोर्ट है." चीन में शिनजियांग समेत कई इलाकों में जबरन मजदूरी कराए जाने की संभावना है. (सीके/एए (एएफपी))
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