दुर्लभ मामलों में खून में थक्के जमा सकती है कोविशील्ड
१ मई २०२४जर्मनी की अदालत में शुरुआती झटका लगने के बाद ब्रिटेन में भी एंग्लो-स्वीडिश दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका को धक्का लगा है. सोमवार को ब्रिटेन की एक अदालत में एस्ट्राजेनेका ने स्वीकार किया कि उसकी कोविड-19 वैक्सीन से "अति दुर्लभ मामलों में" थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम (टीटीएस) की शिकायत हो सकती है. टीटीएस के चलते शरीर में खून में थक्के बनने लगते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या भी गिर जाती है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे थक्कों के कारण स्ट्रोक और हार्ट अटैक जैसी गंभीर परेशानियां भी हो सकती हैं.
दिग्गज फॉर्मास्यूटिकल कंपनी की कोविड-19 वैक्सीन, महामारी के दौरान दुनिया भर में अरबों लोगों को लगाई गई. इसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर तैयार किया था. कुछ देशों में इस वैक्सीन को कोविशील्ड और वैक्सजेवरिया नाम भी दिया गया. भारत में इसे सीरम इंस्टीट्यूट ने बनाया था. भारतीय अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक भारत में 29 अप्रैल 2024 तक 1.7494 अरब वैक्सीन लगाई गईं. अखबार ने यह जानकारी भारत सरकार के कोविन पोर्टल के हवाले से दी है.
जर्मनी से हुई शुरुआत
ब्रिटेन से पहले अप्रैल 2024 में जर्मनी में भी एक महिला ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शुरुआती कानूनी लड़ाई जीती. 33 साल की महिला ने एस्ट्राजेनेका की वैक्सजेवरिया वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट्स के खिलाफ याचिका दायर की थी. दक्षिणी जर्मनी के बामबेर्ग हायर रिजनल कोर्ट के प्रवक्ता ने फैसले के बाद कहा, कंपनी को वैक्सीन के अब तक पता चले सभी साइड इफेक्ट्स और इससे जुड़ी ऐसी अहम जानकारियां सार्वजनिक करनी चाहिए "जो टीटीएस वाले थ्रोम्बोसिस से जुड़ी हों."
जर्मन अदालत के मुताबिक वैक्सीन को अप्रूवल मिलने की तारीख 27 दिसंबर, 2020 से लेकर 19 फरवरी, 2024 तक की जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए. याचिकाकर्ता महिला ने यह वैक्सीन मार्च, 2021 में लगवाई. महिला का दावा है कि वैक्सीन के बाद से उनकी आंतों की धमनियों में खून के थक्के बनने लगे. हालत इतनी बिगड़ी कि वह कोमा में चली गईं और अंत में उनकी आंत का एक हिस्सा हटाना पड़ा.
महिला के वकील फोल्कर लॉषनर के मुताबिक अदालत के इस फैसले से उन तमाम लोगों को राहत मिलेगी, जो एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन लगाने के बाद गंभीर साइड इफेक्ट्स से जूझ रहे हैं.
भारत में भी बीते दो साल में युवाओं में हार्ट अटैक के मामले काफी बढ़े हैं. कुछ लोग शक जताते हैं कि इनमें से कुछ मौतों के लिए कोविड वैक्सीन जिम्मेदार है. हालांकि भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने ऐसे आरोपों को खारिज किया है.
महामारी के लंबे साइड इफेक्ट्स
2019 के अंत में चीन के वुहान प्रांत में एक रहस्यमयी बीमारी फैलनी शुरू हुई. श्वसन तंत्र और फेफड़ों पर घातक हमला करने वाली यह बीमारी असल में एक वायरस के जरिए तेजी से लोगों में फैल रही थी. जनवरी 2020 तक कोविड-19 नाम की यह बीमारी कई और देशों में फैल गई. इसके बाद दुनिया भर के देशों में सख्त लॉकडाउन लगाए गए. वायरस को रोकने के लिए लोगों को मास्क लगाने और एक दूसरे से दूरी बनाए रखने (सोशल डिस्टेंसिंग) के निर्देश दिए गए. कोविड-19 के कारण दुनिया भर में 70 लाख से ज्यादा लोग मारे गए.
बीमारी फैलने के करीब साल भर बाद बॉयोनटेक, मॉर्डेना और एक्स्ट्राजेनेका जैसी दिग्गज कंपनियों ने सार्स कोव वी-2 वायरस के खिलाफ सफल वैक्सीन बनाने का दावा किया. बड़ी संख्या में लोगों की मौत और ऑक्सीजन की कमी जैसी मेडिकल इमरजेंसी के बीच कई सरकारों ने फटाफट कोविड वैक्सीनेशन प्रोग्राम शुरू किए. कुछ विशेषज्ञों ने तब भी चेताया था कि पर्याप्त क्लीनिकल ट्रायल के बिना इन वैक्सीनों को लगाना भविष्य में कुछ परेशानियां खड़ी कर सकता है.
ओंकार सिंह जनौटी (डीपीए)