विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि अफगानिस्तान हो या भारत लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन बेखौफ काम कर रहे हैं.
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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद तेजी से बदलते घटनाक्रम के बीच भारत ने गुरुवार को प्रतिबंधित हक्कानी नेटवर्क की "बढ़ी हुई गतिविधियों" को लेकर चेताया. साथ ही भारत ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे अन्य पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह "बिना भय और प्रोत्साहन" के साथ काम करना जारी रखे हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) को संबोधित करते हुए, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान की घटनाओं ने स्वाभाविक रूप से क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर वैश्विक चिंताओं को बढ़ा दिया है.
यूएनएससी में "अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा" विषय पर आयोजित बैठक को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि आतंकवाद को किसी धर्म, सभ्यता और जातीय समूह से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, "हमें आतंकवाद और इसके वित्तपोषकों से कभी समझौता नहीं करना चाहिए."
दुनिया को किया आगाह
साथ ही उन्होंने चेतावनी दी कि "हमारे अपने पड़ोस में आईएसआईएल-खोरासन (आईएसआईएल-के) अधिक ऊजार्वान हो गया है और लगातार अपने पदचिह्न् का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है."
विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद पहली बार आतंकवाद के बारे में भारत की चिंताओं को लेकर विस्तार से बयान दिया है. उन्होंने आतंकी समूहों का नाम लेकर दुनिया को आगाह भी किया.
पाकिस्तान का नाम लिए बिना जयशंकर ने कहा, "वैश्विक समुदाय को उन देशों के पाखंड का विरोध करना चाहिए जो निर्दोषों के खून से हाथ रंगने वाले आतंकवादियों की रक्षा करते हैं."
कैसे जीता तालिबानः 10 तारीखें
20 साल बाद तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में लौट रहा है. जैसे वे लौटे हैं, उसकी कल्पना 2021 के शुरू में मुश्किल थी. लेकिन 10 तारीखों ने इतिहास बदल दिया. जानिए, कौन सी थीं वे 10 अहम तारीखें
तस्वीर: Gulabuddin Amiri/AP/picture alliance
14 अप्रैलः तालिबान की जीत का पहला कदम
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ऐलान किया कि 1 मई से अमेरिकी फौजों की अफगानिस्तान से स्वदेश वापसी शुरू हो जाएगी और 31 अगस्त तक पूरी हो जाएगी.
4 मईः हमले शुरू
तालिबान ने अफगानिस्तान की सरकारी फौज के खिलाफ दक्षिणी हेलमंद प्रांत में सैन्य अभियान शुरू किया. उसी वक्त छह प्रांतों में एक साथ यह अभियान शुरू हुआ था.
तस्वीर: Abdul Khaliq/AP/picture alliance
11 जूनः नेर्ख
तालिबान ने काबुल के नजदीक नेर्ख जिले पर कब्जा कर लिया. इसी वक्त देशभर में कई जगहों पर भारी जंग जारी थी.
तस्वीर: STR /Xinhua/imago images
22 जूनः पहली चेतावनी
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत ने कहा कि तालिबान ने 370 में से 50 जिलों पर कब्जा कर लिया है.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
2 जुलाईः खाली हुआ बगराम
अमेरिकी फौजों ने चुपचाप बगराम हवाई अड्डे को खाली कर दिया. अमेरिकी सैनिक रातोरात वहां से चले गए, जो प्रभावी तौर पर अमेरिका की अफगानिस्तान में युद्ध से हटने का प्रतीक था.
तस्वीर: Wakil Kohsar/AFP/Getty Images
5 जुलाईः हर ओर जीत
तालिबान ने कहा कि वे अगस्त की शुरुआत से पहले अफगान सरकार को एक लिखित शांति प्रस्ताव भेज सकते हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
6 अगस्तः जरांज
तालिबान ने दक्षिण में ईरान से लगती सीमा पर स्थित निमरूज प्रांत की राजधानी जरांज पर कब्जा कर लिया जो सालों बाद उसके कब्जे में आई पहली प्रांतीय राजधानी थी. इसके बाद शहरों पर कब्जे का सिलसिला शुरू हो गया.
तस्वीर: AP
13 अगस्तः कंधार
तालिबान ने अफगानिस्तान के दूसरे सबसे बड़े शहर कंधार पर कब्जा कर लिया. इसके साथ ही पश्चिम में हेरात भी अफगान सेना के हाथ से चला गया.
तस्वीर: Sidiqullah Khan/AP/dpa/picture alliance
14 अगस्तः जलालाबाद
उत्तर के सबसे बड़े शहर मजार ए शरीफ पर तालिबानी झंडा फहरा गया. अमेरिका ने कहा कि वह अपने कर्मचारियों को निकालने के लिए और सैनिक भेज रहा है. तालिबान के लड़ाके काबुल की ओर बढ़ रहे थे और जलालाबाद में उनका कोई विरोध नहीं हुआ.
तस्वीर: REUTERS
15 अगस्तः काबुल
तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में प्रवेश कर लिया. राष्ट्रपति अशरफ गनी ने देश छोड़ दिया. अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के कर्मचारी भी काबुल से निकल गए. तालिबान के कमांडर राष्ट्रपति भवन में घुस गए.
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चीन और पाकिस्तान पर निशाना
उन्होंने पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बिना आतंकवादी समूहों को सहायता प्रदान करने में भूमिकाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से, कुछ देश ऐसे भी हैं जो आतंकवाद से लड़ने के हमारे सामूहिक संकल्प को कमजोर या नष्ट करना चाहते हैं. इसे पारित नहीं होने दिया जा सकता."
जयशंकर ने कहा, "जब हम देखते हैं कि निर्दोष लोगों के खून से हाथ रंगने वालों से राजकीय मेहनमान जैसा सलूक किया जा रहा है, तो हमें उनकी दोहरी बात पर टोकने का साहस करने से नहीं चूकना चाहिए."
चीन पर निशाना साधते हुए जयशंकर ने कहा, "कोविड की ही तरह आतंकवाद भी है, जब तक हम सभी सुरक्षित नहीं हैं तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है. लेकिन कुछ देश हमारे सामूहिक संकल्प को कमजोर करते हैं."
जयशंकर ने आतंकवाद के सभी पीड़ितों के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए कहा कि जहां अगले महीने अमेरिका पर 9/11 हमले की 20वीं बरसी आ रही है, वहीं 2008 का मुंबई आतंकी हमला हमारी यादों में ताजा है. 2016 का पठानकोट हवाईअड्डे पर हमला और 2019 के पुलवामा में पुलिसकर्मियों पर आत्मघाती हमले हम नहीं भूले हैं."
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को सबसे ज्यादा आतंकी हमले झेलने पड़े हैं.
अफगानिस्तान में 20 साल से चल रहे युद्ध की कीमत
सितंबर 2001 के आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ अफगानिस्तान में युद्ध अमेरिका का सबसे लंबा युद्ध बन चुका है. अब स्पष्ट हो चुका है कि संसाधनों और जिंदगियों की असीमित कीमत चुकाने के बाद भी अमेरिका यह युद्ध जीत नहीं पाया.
तस्वीर: Alexander Zemlianichenko/AFP
एक खूनी अभियान
युद्ध की सबसे बड़ी कीमत अफगानियों ने चुकाई है. ब्राउन विश्वविद्यालय के "युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान के कम से कम 47,245 नागरिक मारे जा चुके हैं. इसके अलावा 66,000-69,000 अफगान सैनिकों के भी मारे जाने का अनुमान है. अमेरिका ने 2,442 सैनिक और 3,800 निजी सुरक्षाकर्मी गंवाएं हैं और नाटो के 40 सदस्य राष्ट्रों के 1,144 कर्मी मारे गए हैं.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
भारी विस्थापन
युद्ध की वजह से 27 लाख से भी ज्यादा अफगानी लोग दूसरे देश चले गए. इनमें से अधिकतर ईरान, पाकिस्तान और यूरोप चले गए. जो देश में ही रह गए उनमें से 40 लाख देश के अंदर ही विस्थापित हो गए. देश की कुल आबादी 3.6 करोड़ है.
तस्वीर: Aref Karimi/DW
पैसों की बर्बादी
"युद्ध की कीमत" प्रोजेक्ट के मुताबिक अमेरिका ने इस युद्ध पर 2260 अरब डॉलर खर्च दिए हैं. अमेरिका के रक्षा मंत्रालय के मुताबिक सिर्फ युद्ध लड़ने में ही 815 अरब डॉलर खर्च हो गए. युद्ध के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्र निर्माण की अलग अलग परियोजनाओं में 143 अरब डॉलर खर्च हो गए. इतिहास में पहली बार एक युद्ध के लिए अमेरिका ने उधार भी लिया और पिछले सालों में वो 530 अरब डॉलर मूल्य के ब्याज का भुगतान कर चुका है.
तस्वीर: Gouvernement Media and Information Center
यह खर्च अभी भी चलता रहेगा
अमेरिका ने सेवानिवृत्त सैनिकों के इलाज और देखभाल पर 296 अरब डॉलर खर्च किए हैं. यह खर्च आने वाले कई सालों तक चलता रहेगा.
अमेरिकी सरकार का अनुमान है कि राष्ट्र निर्माण पर हुए खर्च में से अरबों रुपए बेकार चले गए. नहरें, बांध और राज्य मार्गों का इस्तेमाल ही नहीं हो पाया, नए अस्पताल और स्कूल खाली पड़े हैं और भ्रष्टाचार भी पनपा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. S. Arman
जाने का खर्च अलग है
कई लोगों को डर है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और महिलाओं के लिए अधिकारों के क्षेत्र में अफगानिस्तान में जो भी थोड़ी-बहुत तरक्की हुई है, वो अमेरिका के यहां से चले जाने के बाद संकट में पड़ जाएगी. पिछले 20 सालों में देश में अनुमानित जीवन-काल 56 से बढ़कर 64 हो गया है. मातृत्व मृत्यु दर आधे से भी ज्यादा कम हो गई है. साक्षरता दर आठ प्रतिशत बढ़ कर 43 प्रतिशत पर पहुंची है. बाल विवाह में भी 17 प्रतिशत की कमी आई है.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
अनिश्चितता का दौर
निश्चित रूप से अमेरिका एक स्थिर, लोकतांत्रिक अफगानिस्तान बनाने के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया और अब जब अमेरिकी सैनिक देश छोड़ रहे हैं, अफगानिस्तान का भविष्य अनिश्चितता से भरा हुआ नजर आ रहा है. (एपी)