जापान को आकुस में शामिल करने को लेकर ऑस्ट्रेलिया ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की तरफ से सकारात्मक बयान के बाद ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि जापान के साथ सहयोग सिर्फ परियोजनाओं पर आधारित होगा.
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सोमवार को आकुस की ओर से जारी एक साझा बयान में कहा गया था कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा और सैन्य सहयोग बढ़ाने के लिए संगठन अपना विस्तार करने पर विचार कर रहा है.
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय की प्रवक्ता सबरीना सिंह ने कहा, "जापान की शक्तियों और तीनों सदस्यों (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) के साथ रक्षा क्षेत्र में जारी उसके सहयोग को देखते हुए हम जापान को आकुस के दूसरे स्तंभ के रूप में देख रहे हैं. इससे सैन्य तकनीकों का आदान प्रदान हो सकेगा."
इस बयान के कुछ ही घंटे बाद ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने जापान की एक सहयोगी के रूप में तारीफ की लेकिन साथ ही कहा कि आकुस में जापान को शामिल करने की फिलहाल कोई योजना नहीं है. उन्होंने कहा, "जो (अमेरिका में) प्रस्तावित है, वह परियोजना के आधार पर आकुस का दूसरा स्तंभ खड़ा करने के बारे में है और जापान उसके लिए कुदरती उम्मीदवार है. आकुस की सदस्यता में विस्तार का कोई प्रस्ताव नहीं है."
भारत और चीन की सैन्यशक्ति की तुलना
पड़ोसी और प्रतिद्वन्द्वी भारत और चीन की सैन्य ताकत को आंकड़ों के आधार पर समझा जा सकता है. यूं तो भारत चीन से सिर्फ एक कदम पीछे, दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है लेकिन शक्ति में अंतर बड़ा है.
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भारत और चीन की तुलना
थिंकटैंक ग्लोबल फायर पावर ने चीन को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना है और भारत को चौथी. यह तुलना 46 मानकों पर परखने के बाद की गई है, जिनमें से 38 में चीन भारत से आगे है.
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सैनिकों की संख्या
चीन के पास 20 लाख से ज्यादा बड़ी सेना है जबकि भारत की सेना में 14 लाख 50 हजार जवान हैं. यानी चीन की सेना साढ़े पांच लाख ज्यादा जवानों के साथ मजबूत है.
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अर्धसैनिक बल
भारत में 25 लाख 27 हजार अर्धसैनिक बल हैं जबकि चीन में मात्र छह लाख 24 हजार. यानी भारत 19 लाख तीन हजार अर्धसैनिक बलों के साथ हावी है.
तस्वीर: Sourabh Sharma
रक्षा बजट
भारत रक्षा मद में 70 अरब डॉलर यानी लगभग साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये खर्चता है. इसके मुकाबले चीन का बजट तीन गुना से भी ज्यादा यानी लगभग 230 अरब डॉलर है.
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लड़ाकू विमान
चीन के पास 1,200 लड़ाकू विमान हैं जबकि भारत के पास 564. चीन के पास कुल विमान भी ज्यादा हैं. भारत के पास कुल 2,182 विमान हैं जबकि चीन के पास 3,285.
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टैंक
भारत के पास 4,614 टैंक हैं जो चीन के 5,250 टैंकों से कम हैं. बख्तरबादं गाड़ियां भी चीन के पास ज्यादा हैं. उसके पास 35,000 बख्तरबंद गाड़ियां हैं जबकि भारत के पास 12,000.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
विमानवाहक युद्धक पोत
भारत के पास सिर्फ एक विमानवाहक पोत है जबकि चीन के पास दो. भारत के पास 10 डिस्ट्रॉयर जहाज हैं और चीन के पास 41.
तस्वीर: Zuma/picture alliance
पनडुब्बियां
भारत के पास 17 पनडुब्बियां हैं और चीन के पास 79.
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इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने भी अल्बानीजी की बात दोहराई और कहा कि जापान कुछ तकनीक-आधारित परियोजनाओं पर ही आकुस के साथ काम करेगा, ना कि उसका सदस्य बनेगा.
क्या है आकुस?
ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका ने 2021 में आकुस (AUKUS) का गठन किया था. यह अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए उठाए जा रहे कदमों का ही एक हिस्सा है. चीन की बढ़ती सैन्य ताकत, ताइवान पर उसका प्रभाव और दक्षिणी चीन सागर में उसकी सैन्य तैनाती इन कदमों के केंद्र में है.
आकुस एक रक्षा समझौता है जो विशेषकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित है. इस समूह के समझौते के तहत अमेरिका और ब्रिटेन अपनी परमाणु शक्तिसंपन्न पनडुब्बियों की तकनीक ऑस्ट्रेलिया के साथ साझा करेंगे.
इसके अलावा तीनों देश मिलकर हाइपरसोनिक और काउंटर-हाइपरसोनिक और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमताओं को बढ़ाने में भी सहयोग करेंगे. अप्रैल 2022 में एक बैठक के बाद जारी साझा बयान में भी संगठन के विस्तार की बात कही गई थी. उस बयान में कहा गया, "जैसे-जैसे इन महत्वपूर्ण रक्षा और सुरक्षा क्षमताओं पर हमारा काम बढ़ेगा, हम अन्य सहयोगियों और साझीदारों को भी शामिल करेंगे."
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नए सदस्यों को लेकर झिझक
जापान के अलावा न्यूजीलैंड को भी इस समझौते में शामिल करने के बारे में कहा जा चुका है लेकिन अमेरिका अपनी तकनीक अन्य देशों के साथ साझा करने को लेकर हिचकता रहा है, इसलिए अब तक विस्तार के संबंध में ज्यादा कुछ नहीं हो पाया है.
सिर्फ 6 देशों के पास हैं परमाणु पनडुब्बियां
आकुस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बनाई जाएगी. इसके तैयार हो जाने पर वह सातवां ऐसा देश बन जाएगा जिसके पास परमाणु पनडुब्बी है. अब तक यह क्षमता हासिल कर चुके देश हैं..
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
ऑस्ट्रेलिया होगा 7वां देश
2016 की इस तस्वीर में फ्रांसीसी पनडुब्बी है जो ऑस्ट्रेलिया को मिलनी थी. अब फ्रांस की जगह वह अमेरिका से परमाणु पनडुब्बी लेकर सातवां देश बन जाएगा. बाकी छह देशों में भारत भी है. लेकिन सबसे ज्यादा पनडुब्बियां किसके पास हैं? अगली तस्वीर में जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Blackwood
अमेरिका
अमेरिका के पास सबसे ज्यादा 68 परमाणु पनडुब्बियां हैं. इनमें से 14 ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं.
तस्वीर: Amanda R. Gray/U.S. Navy via AP/picture alliance
रूस
रूस के पास 29 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से 11 में बैलिस्टिक मिसाइल से हमला करने की क्षमता है.
तस्वीर: Peter Kovalev/TASS/dpa/picture alliance
चीन
चीन के पास 12 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से आधी ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं. बाकी छह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां हैं.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/L. Ziheng
ब्रिटेन
ब्रिटेन 11 परमाणु पनडुब्बियों के साथ इस सूची में चौथे नंबर पर है. उसकी 4 पनडुब्बियां बैलिस्टिक मिसाइल दागने की क्षमता रखती हैं.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
फ्रांस
फ्रांस के पास भी बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकने वाली चार परमाणु पनडुब्बियां हैं. हालांकि उसकी कुल पनडुब्बियों की संख्या 8 है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/DCNS Group
भारत
भारत इस सूची में एक पनडुब्बी के साथ शामिल है. भारत की परमाणु ऊर्जा संपन्न यह पनडुब्बी मिसाइल भी दाग सकती है.
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
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लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया आकुस में चौथे सदस्य को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं है. एक कूटनीतिज्ञ ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की चिंता यह है कि अगर चौथा देश शामिल होता है तो समझौते का केंद्र उसे मिलने वाली पनडुब्बियों से हट सकता है और इससे उसे ये परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी मिलने में देर हो सकती है.
जापान को भी ऑस्ट्रेलिया की इस झिझक का अहसास है. एक जापानी अधिकारी ने कहा कि जापान के औपचारिक रूप से संगठन का सदस्य बनने को लेकर ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया तब तक हामी नहीं भरेंगे जब तक इस समझौते से उन्हें ठोस नतीजे नहीं मिल जाते.
इस अधिकारी ने नाम प्रकाशित ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "समझौते से अब तक कुछ हासिल नहीं हुआ है और ऐसे में नए सदस्य जोड़ने से सहयोग का ढांचा डगमगा सकता है, जो इसका मूल आधार है."
जापान पर पूरा भरोसा नहीं
आकुस के रक्षा विशेषज्ञों में जापान की साइबर सुरक्षा तकनीक को लेकर भी बहुत भरोसा नहीं है और वे कहते हैं कि समझौते में शामिल होने का अर्थ संवेदनशील तकनीकों और जानकारियों को साझा करना होगा, जिसके लिए पहले जापान को तैयार होने की जरूरत है.
जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा अमेरिका के दौरे पर हैं जहां बुधवार को उनकी मुलाकात अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से होनी है. इस मुलाकात में जापान को आकुस की परियोजनाओं में शामिल करने पर चर्चा हो सकती है.
किसके पास कितने परमाणु बम हैं?
स्वीडन के थिंक टैंक सिपरी के मुताबिक दुनिया में परमाणु हथियारों की संख्या फिर बढ़ने लगी है. देखिए, किस देश के पास कितने परमाणु बम हैं.
तस्वीर: KCNA VIA KNS/AFP
रूस सबसे ऊपर
रूस आज भी परमाणु हथियारों के सबसे बड़े जखीरे पर बैठा है. 2023 की शुरुआत में उसके पास 4,489 परमाणु हथियार थे. पिछले साल इस जखीरे में 12 नए बम जुड़े.
3,708 परमाणु हथियारों के साथ अमेरिका दूसरे नंबर पर है. हालांकि पिछले साल उसने कोई नया परमाणु हथियार नहीं जोड़ा.
तस्वीर: abaca/picture alliance
चीन अब तीसरे नंबर पर
अब चीन तीसरे नंबर पर आ गया है. पिछले साल उसने 60 नए परमाणु हथियार बनाए और अब उसके पास 410 बम हैं.
तस्वीर: ANTHONY WALLACE/AFP
फ्रांस
फ्रांस ने पिछले साल नए परमाणु हथियार नहीं बनाए और अब भी उसके हथियारों की संख्या 290 है.
तस्वीर: AP
यूनाइटेड किंग्डम
पांचवें नंबर पर यूके है, जिसने पिछले साल जखीरे में कुछ नया नहीं जोड़ा. उसके पास कुल 225 परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
पाकिस्तान
पाकिस्तान ने पिछले साल अपने जखीरे में पांच नए हथियार जोड़े और कुल संख्या अब 170 हो गई है.
तस्वीर: ISPR HO/epa/dpa/picture-alliance
भारत
सूची में सातवें नंबर पर भारत है, जिसके पास 164 परमाणु हथियार हैं. इनमें चार पिछले साल जोड़े गए.
तस्वीर: Indian Defence Research and Development Organisation/epa/dpa/picture alliance
इस्राएल
इस्राएल को आधिकारिक रूप से परमाणु शक्ति का दर्जा हासिल नहीं है, लेकिन सिपरी के मुताबिक उसके पास 90 परमाणु हथियार हैं.
तस्वीर: Kobi Gideon/Gpo/dpa/picture alliance
उत्तर कोरिया
पिछले साल पांच नए हथियार जोड़कर उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु हथियारों की संख्या 30 कर ली है.
तस्वीर: KCNA VIA KNS/AFP
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अमेरिका के उप-विदेश मंत्री कर्ट कैंबेल आकुस के दूसरे स्तंभ को खड़ा करने को लेकर काफी उत्सुक हैं. वह चाहते हैं कि जापान को ज्यादा जगह मिले. पिछले हफ्ते उन्होंने कहा था कि अमेरिका जापान को इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी की सुरक्षा बेहतर बनाने और खुफिया जानकारियों के संभालकर रखने के लिए अपने अधिकारियों को ज्यादा जवाबदेह बनाने को प्रोत्साहित कर रहा है.
कैंबेल ने कहा, "जापान ने इस संबंध में कई कदम उठाए हैं लेकिन सभी उपाय नहीं किए हैं."