ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया के बीच बड़ा सैन्य समझौता
२० अगस्त २०२४
ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया ने एक महत्वपूर्ण रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के यहां से काम करने की अनुमति देगा.
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सैन्य सहयोग को एक नए चरण में ले जाते हुए ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया की सेनाएं अब एक दूसरे के यहां से सैन्य अभियान चला सकेंगी. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीजी और इंडोनेशिया में जल्दी ही राष्ट्रपति का पद संभालने जा रहे प्रबोवो सुबांतो ने कैनबरा में यह एलान किया.
अल्बानीजी ने कहा, "यह समझौता हमारे दोनों देशों के सुरक्षा समर्थन के लिए एक महत्वपूर्ण आधार बनेगा, जो दोनों देशों के लिए और हमारे साझा क्षेत्र की स्थिरता के लिए अहम है."
ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया दुनिया की सबसे लंबी समुद्री सीमा साझा करते हैं और पहले से ही सुरक्षा, मानव तस्करी और नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे मुद्दों पर सहयोग करते हैं.
ये सात चीजें तय करेंगी अगले 20 सालों में दुनिया का भविष्य
ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय विज्ञान एजेंसी सीएसआईआरओ ने दो दशकों में दुनिया के लिए मेगाट्रेंड की सूची बनाई है. अगले बीस सालों में दुनिया कैसा रंग रूप लेगी और किस ओर जायेगी यह इन सात बातों पर दुनिया के रुख से पता चलेगा.
जलवायु में बदलाव के साथ रोजगार, बुनियादी ढांचा और लोगों की जीवन के गुणवत्ता की सुरक्षा कितनी बेहतर रहती है इससे तय होगा हमारा भविष्य. निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन आने वाले दशकों में इंसान के जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा.
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इंसान के विविध आयामों का ताला खोलना
विविधता, साझेदारी, कारोबार में पारदर्शिता, नीतियां और सामुदायिक स्तर पर निर्णय हमारे भविष्य में अहम भूमिका निभायेंगे. इंसानों को एक दूसरे की अहमियत समझनी होगी और उनकी क्षमताओं का सदुपयोग करना होगा. सामुदायिकता जरूरी शर्त होगी.
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हल्का, स्वच्छ और हरित
उत्सर्जन को नेट जीरो से आगे ले जाने की तरफ दुनिया के बढ़ते कदम, संसाधनों का कुशलता से इस्तेमाल और जैव विविधता की रक्षा भी भविष्य को बेहतर बनाने के लिए जरूरी होगी. धरती के संसाधन सिर्फ इंसान के लिये नहीं हैं यह सबको समझना होगा.
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स्वचालित होगा सबकुछ
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उदय और सभी तरह के उद्योगों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक स्वचालित तंत्र विकास भी अगले दशकों में बड़ी भूमिका निभायेगा. सिर्फ कारें ही नहीं ऑटोमेशन जीवन के और दूसरे क्षेत्रों में भी बड़े बदलाव लायेगा.
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स्वास्थ्य को लेकर बढ़ता दबाव
बढ़ती मांग, बुजुर्ग होती आबादी, उभरती बीमारियां और हानिकारक जीवनशैली के आगे स्वस्थ और सेहतमंद जीवन को बढ़ावा देना होगा तभी भविष्य सुरक्षित होगा. कोरोना की महामारी ने पहले ही दुनिया को आगार कर दिया है और स्वस्थ रहने की चुनौती बनी रहेगी.
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डिजिटल क्रांति
दुनिया के देशों को डिजिटल होने और डाटा इकोनॉमी की तरफ तेजी से बढ़ाना होगा, अगले कुछ दशकों तक दुनिया का भविष्य इस पर भी बहुत निर्भर होगा. डिजिटल क्रांति का सिर्फ नारा ही नहीं उसे जीवन के कई क्षेत्रों में जमीन पर उतारना होगा.
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भूराजनीतिक बदलाव
वैश्विक स्थिरता, कारोबार और आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए कोशिशें बढ़ानी होंगी और आने वाले दो दशकों में इसका व्यापक असर होगा. युद्ध, कलह से किसी का फायदा नहीं यह समझना होगा और आर्थिक विकास जरूरी होगा.
ऑस्ट्रेलियाई रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स ने कहा, "नक्शा वास्तव में यह तय करता है कि ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया, जो सबसे करीबी पड़ोसी हैं, एक साझा भविष्य के साथ जुड़े हुए हैं. लेकिन अब से, यह भविष्य गहरे रणनीतिक विश्वास द्वारा परिभाषित होगा."
हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया ने कई रक्षा समझौते किए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख अमेरिका और ब्रिटेन के साथ आकुस सैन्य गठबंधन है. इन समझौतों ने चीन को नाराज भी किया है.
पिछले नवंबर में एक फोरम में, प्रबोवो ने कहा था कि इंडोनेशिया अपनी गुट निरपेक्षता की नीति के प्रति प्रतिबद्ध है और चीन और अमेरिका दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखेगा.
ऑस्ट्रेलिया के दक्षिण पूर्व एशिया में रक्षा संबंध
ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों के साथ मजबूत रक्षा संबंध स्थापित किए हैं, जो क्षेत्रीय सुरक्षा, समुद्री सहयोग और सैन्य प्रशिक्षण पर केंद्रित हैं. इसके प्रमुख साझेदारों में से एक फिलीपींस है, जिसके साथ 2015 से एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है. इस साझेदारी में संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास और समुद्री सुरक्षा में सहयोग के अलावा एक समझौता शामिल है जिससे ऑस्ट्रेलियाई सैन्य कर्मियों को फिलीपींस में आपदा राहत के दौरान काम करने की अनुमति मिलती है.
ऑस्ट्रेलिया का दक्षिण पूर्व एशिया में रक्षा सहयोग अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर भी निर्भर करता है. यह विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया की योजनाबद्ध परमाणु ऊर्जा चालित पनडुब्बियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, जो इंडोनेशिया के जलमार्ग से गुजर सकती हैं. क्षेत्र में विश्वास और स्थिरता बनाए रखने के लिए इन अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन आवश्यक है.
ऑस्ट्रेलिया की इन 7 चीजों ने बदल दी दुनिया
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के केंद्र से दूर एक अलग-थलग देश है. लेकिन वहां जो खोजें हुई हैं, उन्होंने दुनिया के केंद्र को भी बदलकर रख दिया. जानिए, वे 7 चीजें जो ऑस्ट्रेलिया ने खोजीं...
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वाई-फाई
आज दुनियाभर में लोग जिस वाई-फाई की तलाश में भटकते हैं, उस तकनीक को ऑस्ट्रेलिया ने ही दुनिया को दिया. 1992 में CSIRO ने जॉन ओ सलिवन के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित किया था.
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गूगल मैप्स
मूलतः डेनमार्क के रहने वाले भाइयों लार्स और येन्स रासमुसेन ने गूगल मैप का प्लैटफॉर्म ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में ही बनाया था. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों नील गॉर्डन और स्टीफन मा के साथ मिलकर 2003 में एक छोटी सी कंपनी बनाई जिसने मैप्स जैसी तकनीक बनाकर तहलका मचा दिया. गूगल ने 2004 में इस कंपनी को खरीद लिया और चारों को नौकरी पर भी रख लिया.
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ब्लैक बॉक्स फ्लाइट रिकॉर्डर
विमान के भीतर की सारी गतिविधियां रिकॉर्ड करने वाला ब्लैक बॉक्स ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डॉ. डेविड वॉरेन ने ईजाद किया था. 1934 में उनके पिता की मौत के विमान हादसे में हुई थी. 1950 के दशक में हुई यह खोज आज हर विमान के लिए अत्यावश्यक है.
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इलेक्ट्रॉनिक पेसमेकर
डॉ. मार्क लिडविल और भौतिकविज्ञानी एजगर बूथ ने 1920 के दशक में कृत्रिम पेसमेकर बनाया था. आज दुनियाभर के तीस लाख से ज्यादा लोगों के दिल इलेक्ट्रॉनिक पेसमेकर की वजह से धड़क रहे हैं.
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प्लास्टिक के नोट
रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया और देश की प्रमुख वैज्ञानिक शोध संस्था CSIRO ने मिलकर 1980 के दशक में दुनिया का पहला प्लास्टिक नोट बनाया था. 1988 में सबसे पहले 10 डॉलर का नोट जारी किया गया. 1996 तक ऑस्ट्रेलिया में सारे करंसी नोट प्लास्टिक के हो गए थे.
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इलेक्ट्रिक ड्रिल
इस औजार के बिना दुनिया की शायद ही कोई फैक्ट्री चलती हो. 1889 में एक इंजीनियर आर्थर जेम्स आर्नोट ने अपने सहयोगी विलियम ब्रायन के साथ मिलकर इसे बनाया था.
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स्थायी क्रीज वाले कपड़े
कपड़ों पर क्रीज टूटे ना, इसके लिए कितनी जद्दोजहद की जाती है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के CSIRO ने 1957 में एक ऐसी तकनीक ईजाद की थी जिसके जरिए ऊनी कपड़ों को भी स्थायी क्रीज दी जा सकती है. इस तकनीक ने फैशन डिजाइनरों के हाथ खोल दिए और वे प्लेट्स वाली पैंट्स और स्कर्ट बनाने लगे
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ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच के संबंधों को चीन की उपस्थिति भी जटिल बनाती है, जो कई आसियान देशों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार है.
ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपने गठबंधन को संतुलित करते हुए, चीन के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने की कोशिश कर रहा है. यह संतुलन महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच बढ़ते तनाव से दक्षिण पूर्व एशिया में अस्थिरता पैदा हो सकती है. हाल ही में चीन के प्रधानमंत्री ने सात साल बाद ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था.
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संतुलन बनाता इंडोनेशिया
हाल के वर्षों में, इंडोनेशिया और चीन के बीच सैन्य सहयोग भी बढ़ा है. इसमें संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण कार्यक्रम और रक्षा अधिकारियों के बीच उच्चस्तरीय यात्राएं शामिल हैं. दोनों देशों के बीच कई रक्षा समझौते हुए हैं, जिसमें सैन्य उपकरण की खरीद भी शामिल है.
इंडोनेशिया और चीन के बीच साउथ चाइना सी में एक विवाद इन संबंधों को प्रभावित करता है. यह विवाद नेचुना द्वीपों को लेकर है जिन पर इंडोनेशिया दावा तो नहीं करता, लेकिन मछली पकड़ने के अधिकार और समुद्री सीमाओं को लेकर चीन के साथ उसकी तनातनी बनी रहती है.
चीन की पांडा-डिप्लोमेसी
चीन के प्रधानमंत्री ली चियांग ऑस्ट्रेलिया गए तो उन्होंने पांडा भेजने का वादा किया. मूल रूप से चीन में पाए जाने वाले पांडा उसके के लिए कूटनीति का एक औजार रहे हैं. देखिए, कैसे काम करती है चीन की पांडा-कूटनीति.
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क्या है चीन की पांडा डिप्लोमेसी?
पांडा भालू चीन में ही पाए जाते हैं. अक्सर चीन इन्हें विदेशों को तोहफे में देता है. इसे चीन की तरफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है.
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कब शुरू हुई यह कूटनीति?
1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद से ही चीन ने पांडा कूटनीति का इस्तेमाल किया है. 1957 में चीनी नेता माओ त्से तुंग ने सोवियत संघ की 40वीं वर्षगांठ पर पांडा भेंट किए थे. 1972 में जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन चीन की ऐतिहासिक यात्रा पर गए थे, तो उन्हें भी पांडा भेंट किए गए.
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अब उपहार नहीं
1984 के बाद चीन ने पांडा उपहार में देना बंद कर दिया क्योंकि उनकी आबादी घट रही थी. अब ये विदेशी चिड़ियाघरों को उधार पर दिए जाते हैं. अक्सर यह उधार 10 साल के लिए होता है और एक जोड़ा पांडा एक साल रखने के लिए चीन 10 लाख डॉलर तक लेता है.
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खुश करने के लिए
2013 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन में कहा था कि चीन पांडा कूटनीति का इस्तेमाल व्यापारिक साझीदारों को खुश करने के लिए करता है. जैसे कि कनाडा, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया को जब पांडा उपहार में दिए गए तो उस वक्त उन देशों से चीन ने यूरेनियम को लेकर समझौता किया था.
तस्वीर: Bernd Wüstneck/dpa/picture alliance
नाराजगी जाहिर करने के लिए
2010 में चीन ने अमेरिका में जन्मे दो पांडा, ताई शान और माई लान को वापस बुला लिया. उसके बाद उसने तत्कालीन अमरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तिब्बत के नेता दलाई लामा के साथ मुलाकात पर आपत्ति जताई.
तस्वीर: Roshan Patel/picture alliance/dpa
बढ़ रही है आबादी
एक वक्त चीन में पांडा की प्रजाति खतरे में पड़ गई थी. लेकिन पिछले सालों में उनकी संख्या में वृद्धि हुई है. 1980 के दशक में वहां 1,100 पांडा थे जो 2023 में बढ़कर 1,900 हो गए. अन्य देशों में फिलहाल 728 पांडा हैं.
तस्वीर: Roshan Patel/picture alliance/dpa
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समुद्री मुद्दों पर कभी-कभी तनाव के बावजूद, दोनों देशों ने इन विवादों को सुलझाने के लिए संवाद किया है और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए संयुक्त समुद्री अभ्यास में भाग लिया है. इसके अलावा इंडोनेशिया ने चीन से सैन्य उपकरण खरीदे हैं, जिनमें पनडुब्बियां और लड़ाकू जेट शामिल हैं. इससे उसकी रक्षा क्षमताओं को मजबूती मिली है.
इंडोनेशिया का चीन के साथ सैन्य संबंध अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसी शक्तियों के साथ संतुलन बनाने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है. इंडोनेशिया चीन के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है, जबकि पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को भी मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.