सिडनी समेत ऑस्ट्रेलिया के कई बड़े शहर इस वक्त लॉकडाउन में हैं. देश की सीमाएं एक साल से ज्यादा समय से बंद होने के बावजूद कोरोनावायरस को रोकने में कामयाबी नहीं मिल पाई तो अब रणनीति बदली गई है.
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पिछले साल मार्च के मध्य से सीमाएं बंद करके बैठे ऑस्ट्रेलिया ने उम्मीद की थी कि लोगों की आवाजाही बंद रखने से वह कोरोना महामारी से बचा रहेगा. लेकिन डेल्टा वेरिएंट के कारण लगातार बढ़ते मामलों ने न सिर्फ उसकी रणनीति को धराशायी कर दिया है, बल्कि तैयारी में रह गई कमियों को भी उजागर कर दिया है.
अब ऑस्ट्रेलिया ने चार चरण की एक योजना बनाई है, जिसे कोविड संकट से निकलने के रोडमैप के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा. देश की कैबिनेट ने शुक्रवार को इस योजना को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत कोविड से उसी तरह निपटा जाएगा, जैसे फ्लू से निपटा जाता है.
इसका अर्थ यह है कि कोविड के मामलों की संख्या को काबू करने से ध्यान हटाकर मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने और मृत्युदर कम रखने पर ध्यान दिया जाएगा. साथ ही, ऑस्ट्रेलिया के लोगों को हल्के-फुल्के संक्रमण के साथ जीना सीखना होगा. इसके अलावा, टीकाकरण की रफ्तार में तेजी लाने पर ज्यादा ध्यान देने की बात कही गई है.
महामारी की वजह से दुनिया में बढ़े संघर्ष
वैश्विक शांति सूचकांक के मुताबिक महामारी के दौरान दुनिया में संघर्ष के स्तरों में बढ़ोतरी हुई है. जानिए कहां कहां और किस किस तरह के संघर्ष के स्तर में इजाफा हुआ है.
तस्वीर: Saifurahman Safi/Xinhua/picture alliance
लगातार बढ़ रहे झगड़े
इंस्टिट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस ने कहा है कि 2020 में पिछले 12 सालों में नौवीं बार दुनिया में झगड़े बढ़ गए. संस्थान के वैश्विक शांति सूचकांक के मुताबिक कुल मिला कर संघर्ष और आतंकवाद के स्तर में तो गिरावट आई, लेकिन राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शन बढ़ गए.
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हिंसक घटनाएं
जनवरी 2020 से अप्रैल 2021 के बीच सूचकांक ने पूरी दुनिया में हुई महामारी से संबंधित 5,000 से ज्यादा हिंसक घटनाएं दर्ज की. 25 देशों में हिंसक प्रदर्शनों की संख्या बढ़ गई, जबकि सिर्फ आठ देशों में यह संख्या गिरी. सबसे खराब हालात रहे बेलारूस, म्यांमार और रूस में, जहां सरकार ने प्रदर्शनकारियों का हिंसक रूप से दमन किया.
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सबसे कम शांतिपूर्ण देश
रिपोर्ट ने अफगानिस्तान को दुनिया का सबसे कम शांतिपूर्ण देश पाया. इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिण सूडान और इराक को सबसे कम शांतिपूर्ण देशों में पाया गया. अफगानिस्तान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और मेक्सिको में आधी से भी ज्यादा आबादी ने उनकी रोज की जिंदगी में हिंसा सबसे बड़ा जोखिम बनी हुई है.
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सबसे शांतिपूर्ण देश
आइसलैंड को एक बार फिर सबसे शांतिपूर्ण देश पाया गया. आइसलैंड ने यह स्थान 2008 से अपने पास ही रखा हुआ है. पूरे यूरोप को ही कुल मिला कर सबसे शांतिपूर्ण प्रांत का दर्जा दिया गया है. हालांकि संस्थान के मुताबिक वहां भी राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है.
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अमेरिका में भी बढ़ी अशांति
इस अवधि में अमेरिका में भी नागरिक अशांति काफी तेजी से बढ़ी. हालांकि ऐसा सिर्फ महामारी की वजह से ही नहीं हुआ. इसमें ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन के विस्तार और जनवरी 2021 में यूएस कैपिटल पर हुए हमले का भी योगदान है.
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कई मोर्चों पर स्थिति बेहतर
दुनिया में कई स्थानों पर हत्या की दर, आतंकवाद की वजह से होने वाली मौतों की संख्या और जुर्म के मामलों में काफी गिरावट देखने को मिली.
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और बढ़ेगी अनिश्चितता
संस्थान के संस्थापक स्टीव किल्लीलिया का कहना है कि महामारी के आर्थिक असर की वजह से अनिश्चितता और बढ़ेगी, विशेष रूप से ऐसे देशों में जहां महामारी के पहले से ही हालात अच्छे नहीं थे. इस आर्थिक संकट से बाहर निकलने की प्रक्रिया भी काफी असमान रहेगी, जिससे मतभेद बढ़ेंगे. (डीपीए)
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विरोध के बाद बदली गई नीति
ऑस्ट्रेलिया सरकार की नीति अब तक यह रही है कि सीमाएं बंद रखी जाएं और कोविड-19 के मामलों को बढ़ने ही न दिया जाए. इस कारण, न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय आवाजाही पिछले साल मार्च से बंद है, बल्कि कुछ मामले सामने आते ही राज्यों और शहरों को भी नाकेबंदी में झोंक दिया जाता रहा है.
बहुत से कार्यकर्ता इस नीति का विरोध करते रहे हैं. उनका कहना था कि सीमाएं बंद रहना आर्थिक और मानवीय स्तर पर एक बड़ी त्रासदी है. इस कारण लोग विदेशों में ही फंसे हुए हैं और स्वदेश नहीं आ पा रहे हैं. इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया के लोगों को भी विदेश जाने की मनाही है.
कार्यकर्ताओं का कहना रहा है कि ऑस्ट्रेलिया को मामले बढ़ने से रोकने से ज्यादा कोविड के प्रबंधन पर जोर देना चाहिए. विदेश में फंसे लोगों को आने देना चाहिए और देश में क्वॉरंटीन की सुविधा बढ़ाई जानी चाहिए. अब केंद्र सरकार ने अपनी नीति में इसी तरह के बदलाव किए हैं.
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विदेशों से आने पर पाबंदी जारी
ऑस्ट्रेलिया ने विदेश से लोगों के आने पर पाबंदी को और सख्त कर दिया है. अब तक एक हफ्ते में 3,085 लोगों के ही ऑस्ट्रेलिया आने की इजाजत थी, जिसे घटाकर आधा कर दिया गया है. लेकिन सभी लोगों को सरकार द्वारा तय किए गए केंद्रों में क्वॉरंटीन में रखने के बजाय अलग अलग प्रारूपों को आजमाया जाएगा. इसके तहत घर के अंदर ही सात दिन के क्वॉरंटीन जैसे सुझावों पर विचार किया जाएगा.
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने शुक्रवार को मीडिया से बातचीत में कहा कि लॉकडाउन अब आखिरी विकल्प होगा. हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट नहीं बताया कि किस स्थिति में आखिरी विकल्प को लागू किया जाएगा.
कोरोना ने छीना जुबान का स्वाद
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इसके बाद क्या होगा
प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया अपने अगले कदम टीकाकरण की संख्या के आधार पर तय करेगा. उन्होंने जनता को स्पष्ट संदेश दिया कि उन्हें टीकाकरण कराना ही होगा. इसके लिए देश के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी पॉल केली को डोहर्टी संस्थान की एक टीम के साथ मिलकर यह तय करना होगा कि कितना टीकाकरण होने पर किस दौर के नियम लागू किए जा सकेंगे.
प्रधानमंत्री मॉरिसन ने कहा, "यह लोगों की राय या उनकी राजनीतिक सोच पर तय नहीं होगा बल्कि वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर फैसले लिए जाएंगे.” कौन सा दौर कितने समय तक रहेगा, यह उन्होंने स्पष्ट नहीं किया.
टीकाकरण करवाने पर राहत
अभी तक ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ 8.3 प्रतिशत लोगों ने ही कोविड वैक्सीन की दोनों खुराक ली हैं. मात्र 30 प्रतिशत लोग हैं जिन्हें कम से कम एक खुराक लग चुकी है. प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि दूसरे दौर में सरकार का ध्यान गंभीर रूप से बीमार लोगों की संख्या, अस्पतालों में भर्ती और मौतों को कम करने पर होगा. उन्होंने कहा कि इसके बाद के दौर में क्या होगा, यह अभी तय किया जाना बाकी है, लेकिन तीसरे दौर से लॉकडाउन नहीं होंगे.
चौथे दौर में स्थिति को सामान्य मान लेने जैसे कदम उठाए जाएंगे, लेकिन इनमें भी कुछ नियम-पाबंदियां लागू रहेंगी. मसलन, जो लोग टीका लगवा चुके होंगे उन्हें क्वॉरंटीन से राहत दी जा सकती है और लोगों के बाहर से ऑस्ट्रेलिया आने पर उनकी जांच की जाएगी. लेकिन प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया कि चौथे दौर में क्या होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि लोग टीकाकरण को कितना समर्थन देते हैं.
उन्होंने लोगों से कहा कहा, "अगर आप टीका लगवाते हैं, तो आप देश में रहन-सहन को बदल सकते हैं. देश में कैसे रहना है, यह तय करना आपके हाथ में है.”
सिर्फ बीमारी नहीं फैलाते हैं चमगादड़
कोरोना वायरस का स्रोत माने जाने की वजह से चमगादड़ बड़े बदनाम हो गए हैं, लेकिन असल में धरती पर इनकी काफी उपयोगिता भी है. क्या आप जानते हैं ये सब इनके बारे में?
तस्वीर: DW
ना कैंसर और ना बुढ़ापा छू सके
साल में केवल एक ही संतान पैदा कर सकने वाले चमगादड़ ज्यादा से ज्यादा 30 से 40 साल ही जीते हैं. लेकिन ये कभी बूढ़े नहीं होते यानि पुरानी पड़ती कोशिकाओं की लगातार मरम्मत करते रहते हैं. इसी खूबी के कारण इन्हें कभी कैंसर जैसी बीमारी भी नहीं होती.
ऑस्ट्रेलिया की झाड़ियों से लेकर मेक्सिको के तट तक - कहीं पेड़ों में लटके, तो कहीं पहाड़ की चोटी पर, कहीं गुफाओं में छुपे तो कहीं चट्टान की दरारों में - यह अंटार्कटिक को छोड़कर धरती के लगभग हर हिस्से में पाए जाते हैं. स्तनधारियों में चूहों के परिवार के बाद संख्या के मामले में चमगादड़ ही आते हैं.
तस्वीर: Imago/Bluegreen Pictures
क्या सारे चमगादड़ अंधे होते हैं
इनकी आंखें छोटी होने और कान बड़े होने की बहुत जरूरी वजहें हैं. यह सच है कि ज्यादातर की नजर बहुत कमजोर होती है और अंधेरे में अपने लिए रास्ता तलाशने के लिए वे सोनार तरंगों का सहारा लेते हैं. अपने गले से ये बेहद हाई पिच वाली आवाज निकालते हैं और जब वह आगे किसी चीज से टकरा कर वापस आती है तो इससे उन्हें अपने आसपास के माहौल का अंदाजा होता है.
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काले ही नहीं सफेद भी होते हैं चमगादड़
यह है होंडुरान व्हाइट बैट, जो यहां हेलिकोनिया पौधे की पत्ती में अपना टेंट सा बना कर चिपका हुआ है. दुनिया में पाई जाने वाली चमगादड़ों की 1,400 से भी अधिक किस्मों में से केवल पांच किस्में सफेद होती हैं और यह होंडुरान व्हाइट बैट तो केवल अंजीर खाते हैं.
चमगादड़ों को आम तौर पर दुष्ट खून चूसने वाले जीव समझा जाता है लेकिन असल में इनकी केवल तीन किस्में ही सचमुच खून पीती हैं. जो पीते हैं वे अपने दांतों को शिकार की त्वचा में गड़ा कर छेद करते हैं और फिर खून पीते हैं. यह किस्म अकसर सोते हुए गाय-भैंसों, घोड़ों को ही निशाना बनाते हैं लेकिन जब कभी ये इंसानों में दांत गड़ाते हैं तो उनमें कई तरह के संक्रमण और बीमारियां पहुंचा सकते हैं.
कुदरती तौर पर चमगादड़ कई तरह के वायरसों के होस्ट होते हैं. सार्स, मर्स, कोविड-19, मारबुर्ग, निपा, हेन्ड्रा और शायद इबोला का वायरस भी इनमें रहता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका अनोखा इम्यूम सिस्टम इसके लिए जिम्मेदार है जिससे ये दूसरे जीवों के लिए खतरनाक बीमारियों के कैरियर बनते हैं. इनके शरीर का तापमान काफी ऊंचा रहता है और इनमें इंटरफेरॉन नामका एक खास एंटीवायरल पदार्थ होता है.
तस्वीर: picture-lliance/Zuma
ये ना होते तो ना आम होते और ना केले
जी हां, आम, केले और आवोकाडो जैसे फलों के लिए जरूरी परागण का काम चमगादड़ ही करते हैं. ऐसी 500 से भी अधिक किस्में हैं जिनके फूलों में परागण की जिम्मेदारी इन पर ही है. तस्वीर में दिख रहे मेक्सिको केलंबी नाक वाले चमगादड़ और इक्वाडोर के ट्यूब जैसे होंठों वाले चमगादड़ अपनी लंबी जीभ से इस काम को अंजाम देते हैं. (चार्ली शील्ड/आरपी)