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राजनीतिऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय जासूसों को निकाला थाः रिपोर्ट

विवेक कुमार, सिडनी से
१ मई २०२४

2021 में ऑस्ट्रेलिया ने भारत के दो अधिकारियों को जासूसी के आरोप में निकाल दिया था. ऑस्ट्रेलिया के सार्वजनिक ब्रॉडकास्टर एबीसी ने यह खबर छापी है.

2023 में ऑस्ट्रेलिया और भारत के नेता
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया थातस्वीर: David Gray/AFP/Getty Images

ऑस्ट्रेलिया के पब्लिक ब्रॉडकास्टर एबीसी ने खबर छापी है कि 2020 में देश की खुफिया एजेंसी एजियो (एएसआईओ) ने जासूसों के जिस नेटवर्क को तोड़ा था, वह भारत के जासूसों का था. इसके बाद दो भारतीय अधिकारियों को देश से निष्कासित भी किया गया था.

जब इस बारे में मीडिया ने देश के मंत्रियों और प्रधानमंत्री से सवाल पूछे, तो उन्होंने सवालों को टाल दिया. खबर के मुताबिक, भारतीय जासूसों ने ऑस्ट्रेलिया के सैन्य रहस्यों को चुराने की कोशिश की थी और वे भारतीय आप्रवासी समुदाय के लोगों की भी निगरानी कर रहे थे.

इस बारे में सवाल पूछे जाने पर प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने कहा कि वह इंटेलिजेंस से जुड़े मामलों पर टिप्पणी नहीं करेंगे.

विदेश मंत्री पेनी वॉन्ग ने कहा कि उन्होंने इस बात पर बार-बार जोर दिया है कि हम अपने लोकतंत्र की सुरक्षा करेंगे. उन्होंने कहा, "इससे निपटने के लिए हमारे पास कानून हैं.” जब पेनी वॉन्ग से पूछा गया कि क्या भारतीय-ऑस्ट्रेलिया समुदाय को चिंतित होना चाहिए, तो उन्होंने कहा, "हम ऑस्ट्रेलिया के समाज की सांस्कृतिक विविधता का बहुत सम्मान करते हैं. यह हमारी ताकत है और हम चाहते हैं कि लोग हमारे लोकतंत्र का सक्रिय हिस्सा बने रहें.”

क्या है मामला?

यह मामला 2021 का है. तब एजियो ने कहा था कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के सैन्य रहस्यों को चुराने की कोशिश में लगे एक ‘नेस्ट ऑफ स्पाइज' का पता लगाया है. तब यह तो कहा गया कि जासूसों को देश से निकाल दिया गया है, लेकिन देश का नाम नहीं बताया गया था.

30 अप्रैल को वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर छापी कि 2020 में दो भारतीय जासूसों को ऑस्ट्रेलिया से निकाला गया था. 1 मई की सुबह ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की खबरों में दावा किया गया है कि वे भारत के जासूस थे. एबीसी ने अपनी खबर में लिखा है, "राष्ट्रीय सुरक्षा और सरकार से जुड़े अधिकारियों ने एबीसी से बातचीत में पुष्टि की है कि भारत के जासूस ‘नेस्ट ऑफ स्पाइज' के लिए जिम्मेदार थे और मॉरिसन सरकार ने कई भारतीय अधिकारियों को ऑस्ट्रेलिया से निकाला था.”

2021 में एजियो की सालाना रिपोर्ट पेश करते हुए एजेंसी के महानिदेशक माइक बर्जेस ने कहा था कि जासूसों के एक नेटवर्क को पकड़ा गया है. उन्होंने संबंधित देश का नाम यह कहते हुए नहीं लिया था कि यह "गैरजरूरी रूप से ध्यान भटकाने वाला” होगा.

बर्जेस ने तब बताया था, "जासूसों ने मौजूदा और पूर्व राजनीतिज्ञों, एक विदेशी दूतावास और एक राज्य की पुलिस सेवा के साथ रिश्ते बना रखे थे. उन्होंने आप्रवासी समुदाय की भी निगरानी की. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के व्यापारिक संबंधों से जुड़े गोपनीय दस्तावेज हासिल करने की कोशिश की. उन्होंने एक सरकारी कर्मचारी से मुख्य हवाई अड्डे पर सुरक्षा बंदोबस्त के बारे में जानकारी मांगी.”

एक के बाद एक खुलासे

संदिग्ध भारतीय जासूसों के अन्य देशों में पकड़े जाने की एक के बाद एक कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. पिछले साल पहले कनाडा और उसके बाद अमेरिका ने कहा कि भारतीय एजेंसियों ने उनके नागरिकों की हत्या की या करने की कोशिश की. उससे पहले 2018 में जर्मनी में एक भारतीय नागरिक को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

29 अप्रैल को ही अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर छापी कि खालिस्तान समर्थक भारतीय-अमेरिकी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश में भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ का एक अधिकारी विक्रम यादव शामिल था. वॉशिंगटन पोस्ट ने यह भी लिखा था कि ऑस्ट्रेलिया की घटना भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के साथ पश्चिमी देशों की तकरार की ही एक कड़ी थी.

वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा 2018 जर्मनी ने अपने यहां रह रहे सिख समुदाय के भीतर सक्रिय भारतीय जासूसों का सफाया करने के लिए कई गिरफ्तारियां की थीं. रिपोर्ट के मुताबिक, इंग्लैंड में रहने वाले सिख समुदाय की जासूसी के लिए वहां की जासूसी एजेंसी एमआई5 ने भी भारत को चेतावनी दी थी.

सिख समुदाय का मुद्दा

इन सभी देशों में बड़ा सिख समुदाय बसा हुआ है. इनमें ऐसे लोग बड़ी संख्या में हैं, जो 1984 में हुए सिख दंगों के बाद भारत छोड़कर अन्य देशों में बस गए थे. बीजेपी से जुड़े भारतीय समुदाय के एक नेता ने कहा कि खालिस्तान आंदोलन के जोर पकड़ने के कारण भारतीय एजेंसियों की सक्रियता बढ़ी है.

डॉयचे वेले से बातचीत में इस व्यक्ति ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा, "खालिस्तान भारत की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा है. भारत अपनी सुरक्षा के लिए अगर यह सुनिश्चित करना चाहता है कि विदेशी जमीन पर भारत-विरोधी तत्व ना पनपें, तो इसमें गलत क्या है?”

सिडनी में रहने वाले भारतीय मूल के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि बीजेपी सरकार हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर आप्रवासियों को प्रताड़ित कर रही है. उन्होंने भी अपना नाम सार्वजनिक ना करने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा, "बीजेपी सरकार का एजेंडा भारत की नहीं हिंदुत्व की रक्षा है. वे हर उस व्यक्ति की निगरानी करते हैं, जो मानवाधिकारों की बात करता है, उल्लंघनों की बात करता है, किसानों और मजदूरों के अधिकारों की बात करता है.”

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