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ऑस्ट्रेलिया ने बनाया नया सख्त कानून, भारत पर भी असर

३१ मार्च २०२३

ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए उद्योगों पर सख्त नियम लागू करने वाला कानून बनाया है. इस कानून का असर भारत पर भी पड़ सकता है.

ऑस्ट्रेलिया की पर्यावरण पर काम ना करने को लेकर आलोचना होती रही है
ऑस्ट्रेलिया की पर्यावरण पर काम ना करने को लेकर आलोचना होती रही हैतस्वीर: Scott Barbour/Getty Images

ऑस्ट्रेलिया की संसद ने एक ऐतिहासिक कानून पारित किया है जो ग्रीनहाउस गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले उद्योगों को उत्सर्जन कम करने पर मजबूर करेगा. गुरुवार को पारित हुए इस कानून के तहत उद्योगों का या तो अपना उत्सर्जन कम करना होगा या फिर कार्बन क्रेडिट के रूप में अतिरिक्त उत्सर्जन का भुगतान करना होगा.

ऑस्ट्रेलिया की लेबर सरकार ने इस कथित ‘सेफगार्ड मकैनिज्म' सुधार को ऑस्ट्रेलिया द्वारा तय किए गए कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी बताया है. इस महाद्वीपीय देश ने 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन के स्तर को 2005 के स्तर से 43 फीसदी कम करने का लक्ष्य तय कर रखा है.

क्या महासागरों से निकलेगा जलसंकट का समाधान?

आने वाली पहली जुलाई से नए नियम लागू हो जाएंगे जिनके तहत ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा उत्सर्जन करने वाले 215 उद्योगों को अपने उत्सर्जन में 4.9 फीसदी की सालाना कमी करनी होगी या फिर अतिरिक्त भुगतान करना होगा. लेबर पार्टी तीन चुनाव लगातार हारने के बाद पिछले साल ही सत्ता में आई थी और जलवायु परिवर्तन उसके प्रमुख चुनावी मुद्दों में से था.

बड़ा कदम

इससे पहले 2012 में इसी पार्टी की सरकार ने कार्बन टैक्स लागू किया था जिसे 2014 में लिबरल पार्टी की सरकार ने हटा दिया था. नए कानून का ग्रीन्स पार्टी और निर्दलीय सांसदों ने समर्थन किया. ग्रीन्स पार्टी ने कहा कि इस कानून का एक बड़ा असर यह होगा कि देश में प्रस्तावित नई 116 कोयला और गैस खनन परियोजनाओं में से कम से कम आधी अब रद्द हो जाएंगी.

विपक्षी लिबरल-नेशनल गठबंधन ने इस कानून का विरोध किया है. विपक्ष के जलवायु मामलों के प्रवक्ता टेड ओ ब्रायन ने कहा कि इस तरह के उत्सर्जन टैक्स लगाने से औद्योगिक निवेश भारत और चीन जैसे देशों को चला जाएगा, जिससे देश के लोगों के लिए महंगाई बढ़ेगी.

उन्होंने संसद में कहा, "इस टैक्स के कारण कीमतें बढ़ेंगी जबकि पहले ही जनता महंगाई झेल रही है.”

आ रही है भीषण गर्मी पर तैयार नहीं है भारत

भारत ने ऑस्ट्रेलिया से कोयला आयात बढ़ाया है और दोनों देशों के बीच इस बारे में कई समझौते हुए हैं. इस कानून का असर यह भी हो सकता है कि भारत को महंगा कोयला खरीदना पड़े.

पिछली लिबरल सरकार ने 2016 में ऐसे ही नियम लागू किए थे लेकिन तब उत्सर्जन की सीमा इतनी ऊंची थी कि 215 सबसे बड़े प्रदूषक जो देश के 30 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें अपना उत्सर्जन 4 फीसदी बढ़ाने की सुविधा मिल गई थी.

कई तबकों में निराशा

सरकार का तर्क है कि इस तरह के उपायों के बिना ऑस्ट्रेलिया इस दशक के आखिर तक कार्बन उत्सर्जन में 35 फीसदी ही कमी कर पाएगा. नए नियमों के कारण ऑस्ट्रेलिया का प्रदूषण 14 करोड़ मीट्रिक टन सालाना से ऊपर नहीं जा पाएगा और तय की गई सीमा हर साल घटती जाएगी. हालांकि उद्योगों को अतिरिक्त उत्सर्जन के लिए धन देकर कार्बन क्रेडिट खरीदने का विकल्प दिया गया है लेकिन जो उद्योग 30 फीसदी से ज्यादा कार्बन क्रेडिट का इस्तेमाल करेंगे उन्हें इस बात की सफाई देनी होगी कि वे अपना उत्सर्जन कम क्यों नहीं कर रहे हैं.

इन सुधारों के चलते ऑस्ट्रेलिया में 2030 तक गैस उत्सर्जन में 20 करोड़ मीट्रिक टन तक की कमी आने की उम्मीद जताई जा रही है. यह कार्बन उत्सर्जन देश से दो तिहाई कारों का सड़कों से हटा लेने के बराबर होगा. प्रधानमंत्री अल्बानीजी ने कहा कि उनकी पार्टी को लोगों ने पर्यावरण के मुद्दे पर वोट दिया है. उन्होंने कहा, "लोगों ने जो भरोसा दिखाया था, उसके बदले में आज एक बड़ा कदम उठाया गया है. इस कानून के जरिए ऑस्ट्रेलिया ने 2050 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने और 2030 तक उत्सर्जन में 43 फीसदी की कमी की दिशा में अहम कदम बढ़ा दिया है.”

देश के तेल और गैस उत्पादकों की प्रतिनिधि संस्था ‘ऑस्ट्रेलिया पेट्रोलियम प्रोडक्शन एंड एक्सप्लोरेशन एसोसिएशन' ने इस कानून के पारित होने पर निराशा जाहिर की है. एसोसिएशन ने कहा कि इस कानून के कारण ऑस्ट्रेलिया का कोयले जैसे ज्यादा नुकसानदायक ईंधन से हटकर गैस के इस्तेमाल के रास्ते अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने का रास्ता और मुश्किल हो जाएगा.

वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)

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