ऑस्ट्रेलिया में सरकार पूर्ण रोजगार की परिभाषा बदलने पर विचार कर रही है ताकि आधुनिक परिस्थितियों के अनुरूप बेरोजगारी दर को कम से कम रखा जा सके.
विज्ञापन
ऑस्ट्रेलिया में हाल ही में प्रकाशित एक श्वेत-पत्र में कहा गया है कि नीति-निर्माताओं को अर्थव्यवस्था में अल्प-रोजगार (Under Employment) और अल्प-उपयोग (Under Utilisation) की वास्तविकता को भी स्वीकार करना चाहिए क्योंकि इसका असर पूरे देश के तमाम समुदायों पर हो रहा है.
श्वेत-पत्र में सरकार ने कहा है कि वह नीतियां बनाते वक्त उन बाधाओं को दूर करने की कोशिश करेगी जो लोगों को कोई स्किल हासिल करने से रोक रही हैं. सरकार का मानना है कि ढांचागत बेरोजगारी को कम करने की कोशिश की जाएगी ताकि रोजगार क्षेत्र के निचले स्तर में स्किल के अंडरयूटिलाइजेशन को कम किया जाए.
क्या है पूर्ण रोजगार?
श्वेत-पत्र के मुताबिक पूर्ण रोजगार की परिभाषा और उसके अधार पर लोगों को मिलने वाली नौकरियों का लोगों के जीवन पर खासा असर होता है. इसलिए उसमें अल्प-रोजगार और अल्प-उपयोग की स्पष्ट परिभाषा को शामिल करना जरूरी है.
श्वेत-पत्र कहता है कि ऑस्ट्रेलिया में जिन लोगों को पूर्ण रोजगार हासिल माना जाता है, ऐसे हरेक व्यक्ति पर चार ऐसे लोग हैं जो काम तो करना चाहते हैं लेकिन या तो वे काम नहीं कर रहे हैं या फिर उतना नहीं कर रहे हैं, जितना वे करना चाहते हैं.
आंकड़े बताते हैं कि करीब ढाई करोड़ की आबादी वाले देश में इस वक्त 5 लाख लोग ऐसे हैं जिन्हें पूरी तरह बेरोजगार की श्रेणी में रखा जा सकता है. यानी वे काम करना चाहते हैं, काम की तलाश कर रहे हैं और काम के लिए उपलब्ध हैं लेकिन उनके पास काम नहीं है.
नागरिकता छोड़ कहां बस रहे हैं भारतीय
भारत सरकार के मुताबिक जून 2023 तक कम से कम 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपना नया ठिकाना बना रहे हैं.
तस्वीर: Fotolia/Arvind Balaraman
भारत छोड़ विदेशों में बसते भारतीय
भारतीय विदेश मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि जून 2023 तक 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी.
तस्वीर: Francis Mascarenhas/REUTERS
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जाते भारतीय
नागरिकता छोड़ने वाले भारतीय 135 देशों में जा बसे, जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
तस्वीर: Evaristo Sa/AFP/Getty Images
17 लाख से अधिक भारतीय छोड़ चुके नागरिकता
2011 के बाद से 17 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी है. भारत दोहरी नागरिकता की इजाजत नहीं देता, इसलिए जो दूसरे देश की नागरिकता लेते हैं उन्हें भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है.
तस्वीर: Fotolia/Arvind Balaraman
2022 में सबसे ज्यादा भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता
विदेश मंत्री ने संसद को बताया कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Mainka
अमेरिका अब भी लोकप्रिय देश
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक संख्या के आधार पर भारतीयों ने अमेरिकी सपने का पीछा करना जारी रखा है और उनमें से 78 हजार से ज्यादा भारतीयों ने वहां की नागरिकता ली.
तस्वीर: imago stock&people
ऑस्ट्रेलिया भी पसंद
अमेरिका के बाद दूसरी पसंद पर ऑस्ट्रेलिया है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में 23,533 भारतीयों ने ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता ली, इसके बाद कनाडा (21,597), और यूके (14,637) है.
तस्वीर: William West/AFP/Getty Images
यूरोपीय देश भी पसंदीदा ठिकाना
हाल के सालों में इटली, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, स्वीडन, स्पेन और सिंगापुर जैसे देश पसंदीदा ठिकाना बनकर सामने आए हैं. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग यहां जाकर बसना पसंद कर रहे हैं.
तस्वीर: Fabian Sommer/dpa/picture alliance
भारत के लिए एसेट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में दिए बयान में कहा कि सरकार मानती है कि देश के बाहर रह रहे लोग देश के लिए बहुत मायने रखते हैं. उनका कहना है कि विदेश में रहने वाले भारतीयों की कामयाबी और प्रभाव से देश को लाभ पहुंचता है.
तस्वीर: Prakash Singh/REUTERS
क्यों छोड़ रहे हैं नागरिकता
विदेश मंत्री ने बताया कि पिछले दो दशकों में बड़ी संख्या में भारतीय ग्लोबल वर्कप्लेस की तलाश करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कई लोगों ने अपनी सुविधा के लिए दूसरे देशों की नागरिकता ली.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Leal-Olivas
करोड़पति छोड़ रहे भारत
ब्रिटिश कंपनी हेनली एंड पार्टर्नस की सालाना हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 के मुताबिक इस साल भारत के 6,500 करोड़पति देश छोड़कर चले जाएंगे. पिछले साल के मुकाबले यह संख्या कम है. 2022 में 7,500 करोड़पतियों ने भारत छोड़ा था.
तस्वीर: Getty Images/S. Flores
10 तस्वीरें1 | 10
लेकिन इनके अलावा 13 लाख लोग ऐसे भी हैं जो काम करना तो चाहते हैं पर काम तलाश नहीं रहे हैं या अभी तुरंत किसी नौकरी के लिए उपलब्ध नहीं हैं. इन लोगों को ‘संभावित श्रमिकों' की श्रेणी में रखा जाता है.
करीब दस लाख लोग ऐसे भी हैं जो काम तो कर रहे हैं पर ज्यादा घंटे काम करना चाहते हैं. इन लोगों को अतिरिक्त घंटे उपलब्ध नहीं हैं. इन लोगों को अल्प-रोजगार की श्रेणी में रखा जाता है. अगर इन सभी को मिला दिया जाए तो 14 लाख लोग पूर्ण रोजगार की श्रेणी में आ जाएंगे.
विज्ञापन
क्या होगी नयी परिभाषा?
सरकार ने कहा है कि वह पूर्ण रोजगार की परिभाषा को विस्तृत करना चाहती है ताकि श्रम-बाजार की आधुनिक परिस्थितियों को इसके भीतर समाहित किया जा सके. श्वेत पत्र के मुताबिक पूर्ण रोजगार को अक्सर आंकड़ों पर आधारित अनुमान के भीतर समेट दिया जाता है, मसलन नॉन-एक्सलरेटिंग इन्फ्लेशन रेट ऑफ अनइंपलॉयमेंट (NAIRU).
श्वेत-पत्र कहता है कि नायरू रोजगार का एक ऐसा तकनीकी अनुमान है जिसे अर्थव्यववस्था कम अवधि में इस तरह संभाल सकती है कि महंगाई ना बढ़े. लेकिन इससे अर्थव्यवस्था की पूरी क्षमता का पता नहीं चलता. अर्थशास्त्री कहते हैं कि बेरोजगारी दर को ज्यादा होना चाहिए.
सर्वे: भारतीय कंपनियों में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी
जॉब्स फॉर हर की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक कॉर्पोरेट भारत में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियां महिलाओं को अधिक रोजगार देने के लिए तरह-तरह के कदम उठा रही है.
तस्वीर: Christin Klose/dpa-tmn/picture alliance
बढ़ी कामकाजी महिलाएं
जॉब्स फॉर हर ने 300 कंपनियों का सर्वे किया और पाया कि सर्वे में शामिल कंपनियों में महिलाएं लगभग 50 फीसदी हैं. 2021 की तुलना में यह 17 फीसदी की वृद्धि है.
तस्वीर: Christin Klose/dpa-tmn/picture alliance
लिंग विविधता पर जोर
अध्ययन के मुताबिक 70 फीसदी कंपनियों के पास अब अपनी नियुक्ति में लिंग विविधता हासिल करने के लिए अच्छी तरह से परिभाषित लक्ष्य हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13 प्रतिशत की वृद्धि का संकेत है.
तस्वीर: Katja Keppner
काम पर महिलाओं के लौटने के लिए आसान होते रास्ते
काम पर लौटने वाली महिलाओं के समर्थन में 57 प्रतिशत बड़े उद्यमों और 43 प्रतिशत स्टार्टअप/एसएमई ने उनकी सहायता के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं.
महिलाओं की भर्ती बढ़ाने के लिए भी कंपनियां जोर दे रही हैं. सर्वे में शामिल 51 फीसदी कंपनियों ने बताया कि उन्होंने नौकरी देने वाले प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी की है.
तस्वीर: picture-alliance/PhotoAlto/S. Olsson
वर्क फ्रॉम होम का चलन घटा
कोरोना काल के दौरान वर्क फ्रॉम होम का चलन बढ़ा था. 2022 में आयोजित विविधता सर्वे ने महामारी के बाद की अवधि के दौरान इस नीति को अपनाने में धीरे-धीरे कमी का संकेत दिया है. वर्तमान कार्यान्वयन दर अभी भी महामारी-पूर्व युग से अधिक है. 2019 में वर्क फ्रॉम होम को लागू करने वाली कंपनियों का प्रतिशत 59 प्रतिशत था, जो 2020 में बढ़कर 85, 2021 में 83 और फिर 2022 में घटकर 63 प्रतिशत हो गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. May
5 तस्वीरें1 | 5
ऑस्ट्रेलिया सरकार का कहना है कि उसका मकसद लोगों को टिकाऊ और समेकित पूर्ण रोजगार उपलब्ध कराना है. यानी हर व्यक्ति जो काम करना चाहता है, बिना बहुत ज्यादा तलाश के अपनी पसंद का रोजगार हासिल कर सके. यह ऐसा रोजगार हो, जो सुरक्षित हो और जिसमें अच्छा वेतन मिले.
सरकार के मुताबिक टिकाऊ पूर्ण रोजगार से उसका अर्थ विभिन्न नीतियों का इस्तेमाल करके अर्थव्यवस्था के विभिन्न चरणों में रोजगार के स्तर को टिकाऊ बनाया जा सके. यानी यह स्तर इसी तरह बना रहे लेकिन ऐसा भी ना हो कि ज्यादा लोगों के पास रोजगार होने से महंगाई बढ़ जाए.
पूर्ण रोजगार की परिभाषा का दूसरा अहम तत्व समेकन है. यानी श्रम बाजार की संभावनाओं को विस्तृत किया जा सके. काम खोजने और करने में आ रहीं बाधाएं कम की जा सकें. लोगों के कौशल का पूरा इस्तेमाल हो और लंबे समय तक होता रहे.