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ऑस्ट्रेलिया में बेरोजगारी में ऐतिहासिक कमी बनी बड़ी परेशानी

विवेक कुमार
७ सितम्बर २०२२

ऑस्ट्रेलिया में बेरोजगारी दर ऐतिहासिक रूप से नीचे पहुंच गई है. लेकिन देश के नेता और अर्थशास्त्री खुश नहीं, परेशान हैं और समस्या का हल तलाश रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया का प्रतीक ओपेरा हाउस
ऑस्ट्रेलिया का प्रतीक ओपेरा हाउसतस्वीर: I. Schulz/McPHOTO/blickwinkel/IMAGO

ताजा आंकड़ों के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में बेरोजगारी दर सिर्फ 3.4 प्रतिशत रह गई. जुलाई में यह 3.5 प्रतिशत था. हालांकि ऑस्ट्रेलियन ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स (ABS) ने साथ ही यह भी कहा है कि अनुमानतः 40,900 नौकरियां कम हुई हैं.

एबीएस के लेबर स्टैटिस्टिक्स प्रमुख ब्योर्न जार्विस ने बताया, "अक्टूबर 2021 के बाद से यह पहली गिरावट है जब डेल्टा लॉकडाउन खोला गया था.” वैसे, जार्विस ने यह भी स्पष्ट किया कि पार्टिसिपेशन रेट यानी नौकरी चाहने वाले लोगों की संख्या में कमी के कारण यह गिरावट आई है. देश में नौकरियां खोजने वाले या काम कर रहे लोगों का अनुपात जून में सर्वाधिक 66.8 प्रतिशत था, जो अब 66.4 प्रतिशत पर आ गया है.

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काम तलाश रहे लोगों की संख्या में गिरावट नौकरियों में आई गिरावट से कहीं ज्यादा है. एबीएस का कहना है कि यही बेरोजगारी दर में गिरावट की वजह है. ऐसी और कई संकेत हैं जो दिखाते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में रोजगार की स्थिति लगातार बेहतर हो रही है.

जार्विस कहते हैं कि यह गिरावट तेजी से कसती जा रही लेबर मार्किट का प्रतीक है. उन्होंने कहा, "जुलाई में सिर्फ 4,74,000 बेरोजार थे, जो कि मई में उपलब्ध नौकरियों (4,80,000) से कम है. अगस्त 1974 के बाद से यह अब तक की सबसे कम दर है.”

यह अच्छी बात नहीं है

बेरोजगारी का कम होना अच्छी बात है लेकिन ऑस्ट्रेलिया की स्थिति को अर्थशास्त्री बहुत अच्छी बात नहीं मानते. मेलबर्न की मोनाश यूनिर्सिटी में पढ़ाने वाले अर्थशास्त्री डॉ. विनोद मिश्रा कहते हैं कि बेरोजगारों की संख्या कम होना तो ठीक है लेकिन इसे डिमांड और सप्लाई के संदर्भ में देखना होगा.                                                                                                     

डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में डॉ. मिश्रा बताते हैं, "बेरोजगारी दर को भी डिमांड और सप्लाई के संदर्भ में देखना होता है. किसी भी क्षेत्र में एक हद तक डिमांड बढ़ने के बाद सप्लाई कमजोर होने लगती है. बेरोजगारी दर कम हो रही है इसका एक अर्थ यह भी है कि रोजगार के लिए उपलब्ध लोगों की सप्लाई कम हो रही है.”

बेरोजगारी कम होना कोई समस्या कैसे हो सकती है, इसे डॉ. मिश्रा कुछ एक उदाहरण के साथ समझाते हैं. वह कहते हैं, "मान लीजिए सौ में 95 लोगों के पास नौकरियां हैं. अब बचे पांच लोग. तो कुछ भी काम करने के लिए आपके पास पांच ही लोग हैं और उन्हीं में से आपको चुनना है. जैसे कि अगर आपको कैफे खोलना है तो उसके लिए आपको एक शेफ चाहिए. अगर शेफ नहीं है तो आप कैफे नहीं खोल सकते और उसमें जो चार लोग वेटर बनते, उनको भी नौकरी नहीं दे सकते.”

नतीजा यह होता है कि अर्थव्यवस्था से एक कैफे कम हो जाता है. इसका असर सिर्फ उन पांच लोगों पर नहीं होता, जिन्हें नौकरी नहीं दी जा सकी. इसका असर, कैफे को दूध, ब्रेड, अंडे, पनीर और कॉफी आदि सप्लाई करने वाले सप्लायर पर होगा. इस तरह पूरी अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित होगी. डॉ. मिश्रा ध्यान दिलाते हैं कि जिन लोगों को नौकरियां मिल चुकी हैं वे अधिकतर स्किल्ड वर्कर हैं और ऑस्ट्रेलियाई बाजार स्किल्ड वर्करों की कमी से जूझ रहा है.

पूरी दुनिया में हालात कमजोर

इस समस्या से जूझ रहा ऑस्ट्रेलिया अकेला देश नहीं है. इस वक्त पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं कामगारों की कमी से जूझ रही हैं. हाल ही में जर्मन उद्योगों ने कहा था कि उन्हें काम कराने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं. एसोसिएशन ऑफ जर्मन चैंबर्स ऑफ इंडस्ट्री एंड कॉमर्स के एक सर्वे को मुताबिक 2021 में 42 फीसदी कंपनियां ट्रेनी के अपने सभी पदों को नहीं भर पाईं. जर्मन इकोनॉमिक इंस्टीट्यूट ने कहा है कि 2021 में 4,73,064 युवाओं ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया, जो 2013 की तुलना में 10 फीसदी कम है.

जर्मन इकोनॉमिक इंस्टिट्यूट की वरिष्ठ अर्थशास्त्री रेगिना फ्लेक ने डीडब्ल्यू को बताया, "जर्मनी इकोनॉमिक मॉडल कुशल श्रमिकों और विशेष तौर पर व्यावसायिक और अकादमिक रूप से कुशल श्रमिकों पर निर्भर है. कुशल श्रमिकों की कमी का मतलब है कि स्थिति काफी ज्यादा खराब है. इससे कंपनियां बंद हो सकती हैं, आने वाले समय में आपूर्ति श्रृंखला ठप्प पड़ सकती है, और नई खोज की क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ सकता है."

कुछ ऐसी ही स्थिति न्यूजीलैंड की है, जहां लोगों की भारी किल्लत के कारण अर्थव्यवस्था दबाव में है. कीविबैंक में अर्थशास्त्री जैरड केर ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि इस कमी का असर अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं पर पड़ सकता है. उन्होंने कहा, "उद्योगों को काम करने वाले लोग नहीं मिल रहे हैं और ऐसे वक्त में हम अपने कर्मचारी खो रहे हैं." केर को उम्मीद है कि अगले साल स्थिति बेहतर होगी जब भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका से नए आप्रवासी आ जाएंगे. 2019 में 72,588 आप्रवासी आकर यहां बसे थे.

भारत के लिए मौका

डॉ. विनोद मिश्रा कहते हैं कि काम करने वाले लोगों की इस कमी की एक बड़ी वजह कोविड महामारी के दौरान प्रवासियों का आना-जाना बंद होना रहा. वह कहते हैं, "ऑस्ट्रेलिया में हर साल लगभग दो लाख लोग विदेशों से आते हैं और खाली पड़े पदों के लिए बड़ा लेबर पूल बन जाता है. लेकिन 2019-20 में कोविड के कारण यात्राओं पर पाबंदी लगी और वे लोग आ नहीं पाए. इसका असर हर क्षेत्र पर पड़ा है और श्रम बाजार तो इसके केंद्र में है ही.”

ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड या यूरोपीय देशों में कुशल कामगारों की यह कमी भारत के लिए एक बड़ा मौका हो सकती है. यूरोपीय देशों के अलावा ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा की अर्थव्यवस्था में आप्रवासियों की बड़ी भूमिका रहती है. पिछले कुछ सालों से इन देशों को जाने वाले भारतीयों की संख्या में खासी वृद्धि देखी गई है. 2020-21 में  1,38,646 लोगों ने ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता ली थी जिनमें से सबसे ज्यादा 24,706 भारतीय मूल के थे. यह पांचवां लगातार साल था जबकि ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता लेने वालों में भारतीयों की संख्या सबसे ऊपर थी. इसके अलावा सालाना आने वाले स्थायी और अस्थायी प्रवासियों में भी भारतीय सबसे ऊपर हैं.

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डॉ. मिश्रा कहते हैं कि भारत के लिए तो यह आदर्श स्थिति है. वह कहते हैं, "भारत में स्थिति ऑस्ट्रेलिया के एकदम उलट है. वहां काम करने वाले लोगों की बड़ी संख्या उपलब्ध है लेकिन नौकरियां उतनी नहीं हैं. इस समय भारत में उपलब्ध अतिरिक्त कौशल को ऑस्ट्रेलिया अगर इस्तेमाल कर सके तो यह दोनों देशों के लिए बहुत अच्छा होगा.”

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हाल के सालों में संबंध मजबूत हुए हैं. इसी साल मार्च में दोनों देशों ने एक बड़े व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे जिसका एक हिस्सा भारतीय श्रम को ऑस्ट्रेलिया में काम दिलाना भी है. जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, जो विदेश में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों का एक अहम ठिकाना है, भारतीय छात्रों को अतिरिक्त वीजा सुविधाएं देगा. विज्ञान और तकनीकी में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों को पढ़ाई पूरी होने के बाद काम करने के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा.

एक बड़ा ऐलान यह हुआ कि भारत की डिग्रियों को ऑस्ट्रेलिया में मान्यता दी जाएगी. इसके लिए एक विशेष टीम बनाई गई है, जो दोनों देशों की डिग्रियों का अध्ययन कर रही है. साथ ही, भारत से घूमने आने वाले एक हजार युवाओं को घूमने और रहने के साथ-साथ काम करने के लिए वीजा दिया जाएगा, जिसे ऑस्ट्रेलिया में बैगपैकर्स वीजा कहा जाता है. इसके अलावा, भारत के शेफ यानी खानसामों और योग शिक्षकों को भी विशेष वीजा सुविधा दी जाएगी.

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