ऑस्ट्रेलिया के पहले निजी उपग्रह में भारत की भूमिका
विवेक कुमार
७ मार्च २०२४
बुधवार को ऑस्ट्रेलिया का अब तक का सबसे बड़ा निजी उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा. ऑस्ट्रेलियाई कंपनी का उपग्रह अमेरिकी कंपनी के यान पर अंतरिक्ष पहुंचा, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की बढ़ती ताकत है.
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ऑस्ट्रेलिया की स्टार्टअप स्पेस मशींस कंपनी (SMC) का उपग्रह ऑप्टिमस बुधवार को पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया. यह ऑस्ट्रेलिया का अब तक का सबसे बड़ा निजी उपग्रह है जिसके लक्ष्यों में से एक पृथ्वी की कक्षा से कचरा हटाना भी है.
ऑप्टिमस को अमेरिका के कैलिफॉर्निया स्थित वैंडनबर्ग स्पेस स्टेशन से इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट पर भेजा गया था. इसके साथ कई निजी कंपनियों के उपकरण भेजे गए हैं, जिनमें एचईओ का रोबोटिक्स होम्स इमेजर, एस्पर का ओवर द रेनबो इमेजर और स्पाइरल ब्लू कंपनी का एसई-1 कंप्यूटर शामिल हैं.
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बैकग्राउंड में भारत
ऑप्टिमस को भले ही एक ऑस्ट्रेलियन कंपनी ने बनाया है और अमेरिकी कंपनी ने अंतरिक्ष तक पहुंचाया है, लेकिन भारत इस पूरे अभियान की पृष्ठभूमि में शामिल रहा है. जिस स्पेस मशींस कंपनी ने ऑप्टिमस को बनाया है, उसका रिसर्च एंड डिवेलपमेंट का काम भारत में होता है.
अंतरिक्ष की अभूतपूर्व तस्वीरें लेगा दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल कैमरा
चिली के खगोल वैज्ञानिक दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल कैमरे की मदद से ब्रह्मांड के रहस्यों पर से पर्दा उठाना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि एक गाड़ी के आकार का यह कैमरा ऐसी तस्वीरें ले पाएगा जो पहले कभी नहीं ली गईं.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
दुनिया का सबसे बड़ा कैमरा
रेगिस्तानी पहाड़ों और साफ नीले आसमान से घिरी उत्तरी चिली की वेरा सी रुबिन वेधशाला के खगोल वैज्ञानिक ब्रह्मांड के अध्ययन में क्रांति लाने की उम्मीद कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल कैमरे को एक दूरबीन से जोड़ा है.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
बड़ा बदलाव
स्टुअर्ट कॉर्डर 8,200 फुट ऊंचे 'सेरो पांचों' पहाड़ के ऊपर स्थित इस वेधशाला को चलाने वाले अमेरिकी शोध केंद्र नोआरलैब के डिप्टी निदेशक हैं. अगर वह सफल रहे तो चिली की राजधानी सैंटियागो से 560 किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ स्थित यह वेधशाला "खगोल शास्त्र में एक मूलभूत बदलाव" ले कर आएगी.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
नई नजर से अंतरिक्ष
यह उपकरण एक छोटी गाड़ी जितना बड़ा है और इसका वजन है 2.8 टन. अमेरिका द्वारा फंडेड इस परियोजना के प्रतिनिधियों ने बताया कि इससे अंतरिक्ष के बारे में ऐसी जानकारी मिलेगी जो पहले कभी नहीं मिली. उम्मीद की जा रही है कि 80 करोड़ डॉलर का यह कैमरा 2025 की शुरुआत में अपनी पहली तस्वीरें लेगा. यह हर तीसरे दिन तस्वीरें लेगा और वो तस्वीरें इतनी बारीक होंगी जितनी पहली कभी नहीं देखी गईं.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
विशालकाय तस्वीरें
यह कैमरा 3,200 मेगापिक्सल पर तस्वीरें ले सकेगा, जिसकी वजह से यह तस्वीरें इतनी विशालकाय होंगी कि ऐसी सिर्फ एक तस्वीर को देखने के लिए 300 से ज्यादा मध्यम आकार के हाई रेसोल्यूशन टेलीविजनों की जरूरत होगी. कलिफोर्निया में बनाये गए इस उपकरण की क्षमता दुनिया के सबसे शक्तिशाली कैमरा - जापान में स्थित 870 मेगापिक्सल वाले हाइपर सुप्रीम-कैम - से तीन गुना ज्यादा है.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
पहला लक्ष्य
नए कैमरे का पहला लक्ष्य होगा आसमान की 10 साल की एक समीक्षा को पूरा करना. इसे 'लिगेसी सर्वे ऑफ स्पेस एंड टाइम (एलएसएसटी)' कहते हैं और शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इससे दो करोड़ आकाशगंगाओं, 17 अरब सितारों और अंतरिक्ष में स्थित 60 लाख अन्य पिंडों के बारे में जानकारी पर से पर्दा उठेगा.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
एक साथ कई सितारे
चिलियन सोसाइटी ऑफ एस्ट्रोनॉमी (सोचियास) के अध्यक्ष ब्रूनो डीएस का कहना है कि इस उपकरण की मदद से शोधकर्ता "एक समय में एक सितारे के अध्ययन और उसके बारे में गहराई से जानने की जगह एक बार में हजारों सितारों का अध्ययन" कर पाएंगे.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
चिली में आगे बढ़ता खगोल विज्ञान
इस परियोजना से खगोलीय अध्ययन में चिली की प्रमुखता और मजबूत होगी. सोचियास के मुताबिक, दुनिया की सबसे शक्तिशाली दूरबीनों में से एक तिहाई चिली में ही हैं और इस यह दुनिया के उन देशों में भी शामिल है जहां आसमान सबसे ज्यादा साफ नजर आता है.
तस्वीर: Javier Torres/AFP
चिली का कोई मुकाबला नहीं
मानवता की सबसे महत्वपूर्ण खगोलीय खोजों में से कई 'सेरो तोलोलो' वेधशाला में ही हुई हैं. सोचियास के प्रमुख डीएस का कहना है कि हालांकि अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और स्पेन समेत कई दुनिया के कई देशों में महत्वपूर्ण वेधशालाएं खुली हैं, लेकिन खगोल विज्ञान की दुनिया में "चिली का कोई कोई मुकाबला" नहीं है. (यूली हुएनकेन)
तस्वीर: Javier Torres/AFP
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कंपनी के सीईओ भारतीय मूल के रजत कुलश्रेष्ठ हैं. इस कंपनी ने पिछले साल सितंबर में ही भारतीय कंपनी अनंत टेक्नोलॉजीज के साथ समझौता किया था, जिसके बाद ये मिलकर काम कर रही हैं. पिछले साल ही कंपनी ने भारत के बेंगलुरू में अपना दफ्तर भी खोला था.
ऑप्टिमस के सफल प्रक्षेपण पर भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त फिलिप ग्रीन ने भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों की उपलब्धि बताया. सोशल मीडिया साइट एक्स पर उन्होंने लिखा, "स्पेस मशीन कंपनी को अपने पहले उपग्रह प्रक्षेपण पर बधाई. यह एक बेहतरीन मिसाल है कि भारत में और भारत के साथ काम कर रही एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने ऐसी तकनीक विकसित की है जो उपग्रहों का जीवन लंबा करेगी और अंतरिक्ष में कचरा भी घटाएगी.”
भारत में एसएमसी
एसएमसी और अनंत टेक्नोलॉजीज के बीच सितंबर 2022 में समझौता हुआ था. इस समझौते के तहत दोनों कंपनियां अंतरिक्ष अभियानों, तकनीकी विकास, परीक्षण और सप्लाई चेन में एक-दूसरे के साथ सहयोग करने को राजी हुई थीं.
अंतरिक्ष में रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड
रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको ने अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. वह कुल मिलाकर 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
अंतरिक्ष में 879 दिन
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड अब रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको के नाम दर्ज हो गया है. 59 वर्ष के कोनोनोंको 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
पिछला रिकॉर्ड
अब तक अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड रूसी एस्ट्रोनॉट गेनादी पडाल्का के नाम था जिन्होंने 879 दिन, 11 घंटे, 29 मिनट और 48 सेंकड बिताए थे. यह रिकॉर्ड 2015 में बना था.
तस्वीर: AP/NASA/BILL INGALLS
पांच बार अंतरिक्ष यात्रा
ओलेग कोनोनेंको 2008 से अब तक पांच बार अंतरिक्ष यात्रा कर चुके हैं. वह कहते हैं, “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की हर यात्रा अलग होती है क्योंकि वहां लगातार बदलाव होते रहते हैं और उसी हिसाब से तैयारी करनी पड़ती है. लेकिन अंतरिक्ष की यात्रा मेरा बचपन का सपना था.“
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
1,000 दिन की ओर
कोनोनेंको की मौजूदा यात्रा 15 सितंबर 2023 को शुरू हुई थी. जब तक यह अभियान खत्म होगा वह कुल मिलाकर 1,000 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके होंगे.
तस्वीर: Shamil Zhumatov/AFP/Getty Images
रिकॉर्ड के लिए नहीं
पेशे से इंजीनियर कोनोनेंको ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं अंतरिक्ष में रिकॉर्ड बनाने नहीं जाता बल्कि इसलिए जाता हूं कि मुझे अपने काम से प्यार है. जब मैं बच्चा था, तब से अंतरिक्ष में जाने के बारे में सोचा करता था. पृथ्वी की कक्षा में रहने और काम करने का मौका मुझे बार-बार यहां आने को प्रेरित करता है.”
तस्वीर: Mikhail Metzel/AFP/Getty Images
छोटी शुरुआत से बड़ी मंजिल तक
कोनेनेंको रूस तुर्कमेनिस्तान के चारद्जू में जन्मे थे जो तब सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. उनके पिता ड्राइवर थे और मां तुर्कमेनिस्तान एयरपोर्ट पर टेलीफोन ऑपरेटर. पहली कोशिश में वह इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने में नाकाम रहे थे और उन्होंने मकैनिक के तौर पर काम किया. लेकिन दूसरी कोशिश में वह कामयाब रहे.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
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साथ ही, एसएमसी ने बेंगलुरू में अपना दफ्तर भी खोला था. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की टेस्ट फैसिलिटी के करीब स्थित इस दफ्तर में 10 से ज्यादा विशेषज्ञ रिसर्च और डिवेलपमेंट का काम कर रहे हैं. इस दफ्तर को लेकर कंपनी काफी उत्साहित है. एक बयान में कंपनी ने कहा कि स्पेस मशींस के पहले मिशन के विकास में इस दफ्तर की अहम भूमिका रही है और आने वाले समय में दोनों देशों के बीच मिलकर काम करने के कई मौके यहां से पैदा होंगे.
बुधवार को ऑप्टिमस के प्रक्षेपण के बाद एसएमएसी के सीईओ रजत कुलश्रेष्ठ ने कहा, "ऑप्टिमस का सफल प्रक्षेपण उपग्रहों के प्रक्षेपण और संचालन की दिशा में नए रास्ते खोलता है. हमारा मानना है कि यह अंतरिक्ष उद्योग के ढांचागत खर्च में बड़ा बदलाव आएगा.”
अंतरिक्ष में भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध
भारतीय अंतरिक्ष उद्योग की ताकत उसका कम खर्चीला होना ही है. पूरी दुनिया इसका लाभ उठाना चाहती है. ऑस्ट्रेलिया ने तो 2022 में जारी अपनी अंतरिक्ष रणनीति में भारत को खास जगह दी थी.
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ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया, "अभी 440 अरब डॉलर के अंतरिक्ष उद्योग में भारत का हिस्सा अभी सिर्फ दो फीसदी है. लेकिन हाल के दिनों में भारत सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को अंतरिक्ष उद्योग के लिए खोलने को लेकर जो 52 सुधार किए गए हैं, वे दिखाते हैं कि घरेलू अंतरिक्ष उद्योग को बढ़ाने की कोशिश हो रही है.”
भारत में लगभग 200 स्टार्टअप कंपनियां हैं जो अंतरिक्ष उद्योग में काम कर रही हैं. 2022 से 2023 के बीच ही इनकी संख्या दोगुनी हो चुकी थी. कंसल्टेंसी कंपनी डेलॉइट के मुताबिक 2021 और 2022 के बीच निजी अंतरिक्ष उद्योग में निवेश 77 फीसदी बढ़ा है.
यही वजह है कि अंतरिक्ष क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ संबंध और गाढ़े करना चाहता है. भारत और ऑस्ट्रेलिया ऐतिहासिक रूप से अंतरिक्ष उद्योग में मिलकर काम करते रहे हैं. दक्षिणी गोलार्ध में स्थित ऑस्ट्रेलिया की भोगौलिक स्थिति उसे हर अंतरिक्ष अभियान के लिए अहम बना देती है. चंद्रयान अभियान में भी ऑस्ट्रेलिया की अंतरिक्ष एजेंसी ने अहम भूमिका निभाई थी.
ऑप्टिमस के प्रक्षेपण से ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच तो अंतरिक्ष-उद्योग में साझेदारी का नया अध्याय शुरू हुआ ही है, बाकी दुनिया को भी भारत की संभावनाओं की स्पष्ट तस्वीर मिल गई है.