कभी भारतीय सामान खरीदने के लिए ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले लोगों को कई सौ किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी. अब लगभग सारी बड़ी सुपरमार्केट भारतीय सामान बेच रही हैं.
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हर हफ्ते की तरह इस बार भी कोल्स का कैटलॉग आया तो उसमें बटर चिकन बनाने की विधि, सामग्री और सामग्री की कीमतें छपी थीं. साथ ही में सब्जियों के विक्रेता के रूप में एक सरदार जी की तस्वीर थी, जो ऑस्ट्रेलिया में कहीं किसानी करते हैं और कोल्स को सामान सप्लाई करते हैं. ऑस्ट्रेलिया की भारतीय आबादी के लिए कोल्स के साप्ताहिक कैटलॉग किसी मजेदार अनुभव से कम नहीं है.
कोल्स ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी चंद सुपरमार्केट में से एक है. देशभर में 25 हजार से ज्यादा स्टोर्स के साथ यह सारे मोहल्लों में मौजूद है और सब कुछ बेचती है. सब कुछ यानी, घर-बाहर जहां जो कुछ इंसान को चाहिए, इस सुपरमार्केट में मौजूद है.
इसके बावजूद, कुछ समय पहले तक सिडनी में रहने वालीं श्वेता शर्मा राय का काम सिर्फ इस बाजार में जाकर नहीं चलता था. वह पहले कोल्स, वूलवर्थ, आईजीए या अन्य किसी ऑस्ट्रेलियन सुपरमार्केट में जाकर खरीददारी करती थीं, उसके बाद कोई ‘इंडियन स्टोर' यानी ऐसी दुकान खोजतीं जहां भारतीय सामान मिलता है.
डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में श्वेता बताती हैं, "हम भारतीयों की जरूरतें थोड़ी अलग होती हैं. मतलब, हमें भारतीय ब्रैंड की चाय चाहिए क्योंकि दूध वाली चाय बनाने के लिए उसकी कडक पत्ती की जरूरत होती है. या फिर हमें हल्दी, जीरा, धनिया ही नहीं गरम मसाला, अजवाइन और देगी मिर्च जैसे मसाले भी चाहिए जिनकी रसोई में रोज जरूरत होती है. यह सब कोल्स या वूलीज में नहीं मिलता था. इसलिए हमें इंडियन स्टोर तो हफ्ते में एक बार जाना ही पड़ता था.”
इंडिया की काली पीली टैक्सी सिडनी में
दिल्ली-मुंबई में चलने वाली एक काली पीली कार सिडनी में भी है. भारत से सिडनी पहुंचने की इस काली पीली कार की यात्रा भी बड़ी मजेदार है.
तस्वीर: Jammie Robinson
दिल्ली की कार सिडनी में
सिडनी में अक्सर सड़कों पर यह काली पीली टैक्सी घूमती दिखती है. अंदर से एकदम खांटी देसी अंदाज में सजी हुई. म्यूजिक भी देसी ही बजता है. बस चलाने वाला एक अंग्रेज है.
तस्वीर: Jammie Robinson
जेमी की कार
इस काली पीली कार के मालिक हैं सिडनी में रहने वाले जेमी रॉबिनसन. उन्होंने अपनी इस प्यारी टैक्सी को नाम दिया है ‘बॉलीवुड कार.’
तस्वीर: Jammie Robinson
भारत से प्यार
जेमी रहने वाले तो ब्रिटेन के हैं लेकिन बस गए हैं ऑस्ट्रेलिया में. पर उन्हें भारत से बहुत लगाव है. इसलिए वह कई बार भारत जा चुके हैं.
तस्वीर: Jammie Robinson
काली पीली कार
इंडिया वाली टैक्सी को जेमी रॉबिनसन ने कारों के टीवी शो में देखा था. तभी उनका इस कार पर मन आ गया और वह इसे सिडनी लाने की जुगत में जुट गए.
तस्वीर: Jammie Robinson
लाना तो संभव नहीं
नियम कानूनों के भारत से पुरानी कार को ऑस्ट्रेलिया लाना लगभग असंभव है. तो जेमी ने पुर्जे मंगाए भारत से और ऐम्बैस्डर की बॉडी खोजी ऑस्ट्रेलिया में. फिर उन्होंने कार को ऑस्ट्रेलिया में असेंबल किया, जिसमें तीन साल गए.
तस्वीर: Jammie Robinson
आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा
अब जेमी की कार सिडनी में खूब चलती है. लोग, खासकर भारतीय इस कार को अपने अलग अलग इवेंट्स के लिए किराये पर लेते हैं. और इसमें घूमना फिरना भी करते हैं, भारत जैसा आनंद लेने के लिए.
तस्वीर: Jammie Robinson
दीवाने हजारों हैं
जेमी बताते हैं कि इस पुरानी कार के बहुत दीवाने हैं. इसलिए लोग उन्हें कई बार राह चलते भी रोक लेते हैं और इस कार के बारे में पूछते हैं. उन्हें इंडिया की कार सिडनी में देखकर अचंभा होता है. यहां जेमी मशहूर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर स्टीव वॉ के साथ हैं.
तस्वीर: Jammie Robinson
जेमी का लगाव
जेमी को भारत से गहरा लगाव है. इस कार में उन्होंने अपनी कई भारत यात्राओं की यादें सहेज कर रखी हैं, जिन्हें वह अपनी सवारियों के साथ भी बांटते हैं.
तस्वीर: Jammie Robinson
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श्वेता शर्मा राय अपनी बातचीत में ‘था' का प्रयोग इसलिए कर रही हैं क्योंकि अब ये चीजें ऑस्ट्रेलियाई सुपरमार्केट में मिलने लगी हैं. देश की तमाम सुपरमार्केट अब भारतीय सामान बेच रही हैं. इनमें मसालों से लेकर भारतीय चावल के ब्रैंड और रेडीमेड पैकेज्ड फूड से लेकर मिठाई तक शामिल हैं.
जहां भारतीय, वहां सामान
पिछले कुछ महीनों में तमाम ऑस्ट्रेलियाई सुपरमार्केट अपने यहां भारतीय सामान उपलब्ध करवा रही हैं. कई जगह तो इनके लिए अलग से सेक्शन भी बना दिए गए हैं जिन्हें इंडियन या एशियन सेक्शन कहते हैं. इस सेक्शन में भारत की अलग-अलग ब्रैंड्स की दालें, चावल, आटा, मसाले, चाय पत्ती, कॉफी आदि लगभग हर तरह की जरूरत की चीजें मिल जाती हैं.
कोल्स की एक प्रवक्ता ने ईमेल से भेजे जवाब में डीडब्ल्यू हिंदी को बताया, "कोल्स में हम उन समुदायों का हिस्सा हैं, जिनकी हम सेवा करते हैं. इसलिए कुछ जगह स्टोर में हम अपने ग्राहकों की जरूरतों के हिसाब से चीजें उपबल्ध करवा रहे हैं. हम चाहते हैं कि हमारे ग्राहकों को वे सभी चीजें मिलें जो उनके सांस्कृतिक स्वाद के मुताबिक हों. साथ ही हम स्थानीय उत्पादकों और निर्माताओं को उनके आसपास की दुकानों में ही जगह दे रहे हैं ताकि खाने के लाने-ले जाने पर कम ऊर्जा व्यर्थ हो.”
कोल्स का कहना है कि देशभर में उसके 150 स्टोर ऐसे हैं जहां एशियन सेक्शन उपबल्ध है. कोल्स प्रवक्ता के मुताबिक इस कवायद का मकसद "ग्राहकों को प्रेरित करना और एशियाई सामग्री, खाना और स्नैक्स आसानी से उपलब्ध कराना है.”
ये हैं सबसे सुरक्षित देश
अगर धरती पर प्रलय आई तो ऑस्ट्रेलिया दूसरा सबसे सुरक्षित देश होगा. वैज्ञानिकों ने सबसे सुरक्षित देशों की सूची बनाई है. जानिए कौन कौन से देश इस सूची में हैं.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
प्रलय आई तो...
‘सस्टेनेबिलिटी’ जर्नल में छपे ब्रिटेन की एंगलिया रस्किन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में उन दस देशों की सूची बनाई गई, जिनमें प्रलय को झेलने की क्षमता सबसे अधिक होगी. यह प्रलय मौसमी, आर्थिक, सामाजिक या किसी भी रूप में हो सकती है.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
न्यूजीलैंड सबसे सुरक्षित
शोधकर्ता कहते हैं कि हर तरह के झटके झेलने की क्षमता न्यूजीलैंड में सबसे ज्यादा है. वह लिखते हैं कि कोई हैरत नहीं कि दुनिया के अरबपति न्यूजीलैंड में बंकर बनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया भी न्यूजीलैंड जैसा ही है. शोधकर्ताओं ने इसके इलाके तस्मानिया को खास तवज्जो दी है. शोधकर्ता कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया और खासकर तस्मानिया में नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदगी भी है और बड़ी संभावनाएं भी. इसकी परिस्थितियां भी न्यूजीलैंड जैसी ही हैं.
तस्वीर: Gerth Roland/Prisma/picture alliance
आयरलैंड
शोधकर्ता कहते हैं कि आयरलैंड के पास नवीकरणीय ऊर्जा की बड़ी संभावना है, कृषि संसाधन खूब हैं और आबादी कम है.
तस्वीर: Artur Widak/NurPhoto/picture alliance
आइसलैंड
कम आबादी और नॉर्थ अटलांटिक महासागर से सीधा संपर्क तो आइसलैंड को सुरक्षित बनाने वाले कारक हैं ही, उसके आसपास कोई दूसरी बड़ी आबादी वाला देश भी नहीं है. साथ ही उसके पास खनिज संसाधन भी प्रचुर हैं.
तस्वीर: Hans Lucas/picture alliance
ब्रिटेन
ब्रिटेन के हालत कमोबेश आयरलैंड जैसे ही हैं. इसकी उपजाऊ जमीन, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत और कुदरती आपदाओं से दूर रखने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अलावा मजबूत अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास भी जिम्मेदार हैं.
तस्वीर: Gareth Fuller/PA via AP/picture alliance
कनाडा और अमेरिका
तीन करोड़ 80 लाख की आबादी वाले कनाडा में भी प्रलय के झटके झेलने की अच्छी क्षमता है. यहां जमीन खूब है, महासागरों तक सीधी पहुंच है, उत्तरी अमेरिका से सीधा जमीनी जुड़ाव है और तकनीकी विकास भी खूब हुआ है.
तस्वीर: Lokman Vural Elibol/AA/picture alliance / AA
नॉर्वे
कुल 55 लाख की आबादी, यूरेशिया से जमीनी जुड़ाव, नवीकरणीय ऊर्जा और तकनीकी विकास के अलावा निर्माण की ठीकठाक क्षमता नॉर्वे को झटके झेलने की ताकत देगी.
शोधकर्ताओं ने पांच देशों को नॉर्वे के ठीक नीचे रखा है. सभी के हालात कमोबेश नॉर्वे जैसे ही हैं और आर्थिक प्रलय हो या मौसमी, इन देशों के पास उसे झेलने के संसाधन हैं.
इस सूची में जापान को भी नॉर्वे के बराबर जगह मिली है. हालांकि उसकी आबादी ज्यादा है लेकिन तकनीकी विकास, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और निर्माण की विशाल क्षमता उसे ताकतवर बनाती है.
तस्वीर: LEAD/Cover Images/picture alliance
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लगभग 50 साल से ऑस्ट्रेलिया में रह रहे सरदार जगतार सिंह के लिए तो यह किसी अजूबे से कम नहीं है. 76 साल के जगतार सिंह कहते हैं कि एक वक्त था जब ऑस्ट्रेलिया में कोई भारतीय दिख जाता था तो इतनी खुशी भरी हैरत होती थी. वह कहते हैं, "मुझे याद है कि 1980 के दशक में बोन्डाई के पास एक छोटी सी दुकान हुआ करती थी जहां भारत की कुछ चीजें मिल जाती थीं. वहां भी वैरायटी के नाम पर इक्का-दुक्का विकल्प होते थे. और वहीं कभी-कभार हमवतन लोग देखने को मिलते थे.”
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ऑस्ट्रेलिया में भारतीय
पिछले करीब एक दशक में ऑस्ट्रेलिया में भारतीय लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है. 2016 के बाद से यानी पिछले पांच साल में ही ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की आबादी में लगभग 48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2022 में जारी जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक 2021 में 1 जून को देश में 6,73,352 भारतीय मूल के लोग रह रहे थे जो कि 2016 की संख्या (4,55,389) से 47.86 प्रतिशत ज्यादा थे.
जाहिर है, आबादी बढ़ने का असर बाजारों पर दिख रहा है. जैसे कि यूं तो कोल्स में कई साल से थोड़ा-बहुत भारतीय और एशियाई सामान मिलता रहा है लेकिन बीते दो साल में इस सामान में खासी वृद्धि की गई है. कुछ दुकानों में 390 से ज्यादा भारतीय उत्पाद उपलब्ध हैं. कुछ दुकानें हैं जहां 72 प्रतिशत सामान एशियाई है. ये दुकानें उन इलाकों में हैं जहां एशियाई या भारतीय मूल के लोगों की आबादी ज्यादा घनी है.
आंकड़े दिखाते हैं कि 2017 की जनगणना के बाद से देश में दस लाख से ज्यादा (1,020,007) आप्रवासी आकर बसे हैं. सबसे ज्यादा विदेशी आप्रवासी भारत से आए हैं. उनकी संख्या में 2,17,963 लोगों की वृद्धि हुई है. दूसरी सबसे ज्यादा वृद्धि नेपाली मूल के लोगों की संख्या में हुई है. ऑस्ट्रेलिया में नेपालियों की संख्या दोगुनी से भी ज्यादा (123.7 फीसदी) बढ़ी है और 2016 के बाद से 67,752 ज्यादा लोग नेपाल से आकर ऑस्ट्रेलिया में बस गए हैं.
इंडियन स्टोर का क्या होगा?
जैसे-जैसे भारतीय आबादी बढ़ी है, ऑस्ट्रेलिया में भारतीय सामान रखने वाली दुकानें यानी इंडियन स्टोर भी तेजी से बढ़े हैं. जिन इलाकों में भारतीय आबादी घनी है, उन इलाकों में तो कई-कई इंडियन स्टोर भी खुले हैं. इससे इंडियन स्टोर तगड़े कॉम्पिटिशन से भी जूझ रहे हैं. जैसे कि सिडनी के पास बसे शहर वूलनगॉन्ग में भारतीय आबादी बहुत बड़ी नहीं है. दो हजार से भी कम आबादी वाले इस शहर में चार इंडियन स्टोर हैं.
नाम ना उजागर करने की शर्त पर एक इंडियन स्टोर के मालिक बताते हैं, "हमने जब स्टोर शुरू किया था तब यहां और कोई इंडियन स्टोर नहीं था. अब चार हैं. लोग बढ़े हैं लेकिन इतने ज्यादा भी नहीं बढ़े हैं. तो जाहिर है, कॉम्पिटिशन का असर कमाई पर हुआ है.”
ऐसे में कोल्स या वूलवर्थ जैसे सुपरमार्केट में भारतीय सामान का मिल जाना इन दुकानदारों को ज्यादा खुशी नहीं दे रहा है. इंडियन स्टोर मालिक कहते हैं, "हम इन सुपरमार्केट से तो मुकाबला नहीं कर सकते. ना कीमत में ना वैराइटी में. इसलिए, लोगों के लिए अच्छा होगा, हमारे लिए तो मुश्किल बढ़ाने वाला ही है.”
ऑस्ट्रेलिया की इन 7 चीजों ने बदल दी दुनिया
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के केंद्र से दूर एक अलग-थलग देश है. लेकिन वहां जो खोजें हुई हैं, उन्होंने दुनिया के केंद्र को भी बदलकर रख दिया. जानिए, वे 7 चीजें जो ऑस्ट्रेलिया ने खोजीं...
तस्वीर: imago/PHOTOMAX
वाई-फाई
आज दुनियाभर में लोग जिस वाई-फाई की तलाश में भटकते हैं, उस तकनीक को ऑस्ट्रेलिया ने ही दुनिया को दिया. 1992 में CSIRO ने जॉन ओ सलिवन के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित किया था.
तस्वीर: imago/PHOTOMAX
गूगल मैप्स
मूलतः डेनमार्क के रहने वाले भाइयों लार्स और येन्स रासमुसेन ने गूगल मैप का प्लैटफॉर्म ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में ही बनाया था. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों नील गॉर्डन और स्टीफन मा के साथ मिलकर 2003 में एक छोटी सी कंपनी बनाई जिसने मैप्स जैसी तकनीक बनाकर तहलका मचा दिया. गूगल ने 2004 में इस कंपनी को खरीद लिया और चारों को नौकरी पर भी रख लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Stache
ब्लैक बॉक्स फ्लाइट रिकॉर्डर
विमान के भीतर की सारी गतिविधियां रिकॉर्ड करने वाला ब्लैक बॉक्स ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डॉ. डेविड वॉरेन ने ईजाद किया था. 1934 में उनके पिता की मौत के विमान हादसे में हुई थी. 1950 के दशक में हुई यह खोज आज हर विमान के लिए अत्यावश्यक है.
तस्वीर: Reuters/Hyungwon Kang
इलेक्ट्रॉनिक पेसमेकर
डॉ. मार्क लिडविल और भौतिकविज्ञानी एजगर बूथ ने 1920 के दशक में कृत्रिम पेसमेकर बनाया था. आज दुनियाभर के तीस लाख से ज्यादा लोगों के दिल इलेक्ट्रॉनिक पेसमेकर की वजह से धड़क रहे हैं.
तस्वीर: Fotolia/beerkoff
प्लास्टिक के नोट
रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया और देश की प्रमुख वैज्ञानिक शोध संस्था CSIRO ने मिलकर 1980 के दशक में दुनिया का पहला प्लास्टिक नोट बनाया था. 1988 में सबसे पहले 10 डॉलर का नोट जारी किया गया. 1996 तक ऑस्ट्रेलिया में सारे करंसी नोट प्लास्टिक के हो गए थे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Reserve Bank of Australia
इलेक्ट्रिक ड्रिल
इस औजार के बिना दुनिया की शायद ही कोई फैक्ट्री चलती हो. 1889 में एक इंजीनियर आर्थर जेम्स आर्नोट ने अपने सहयोगी विलियम ब्रायन के साथ मिलकर इसे बनाया था.
तस्वीर: djama - Fotolia.com
स्थायी क्रीज वाले कपड़े
कपड़ों पर क्रीज टूटे ना, इसके लिए कितनी जद्दोजहद की जाती है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के CSIRO ने 1957 में एक ऐसी तकनीक ईजाद की थी जिसके जरिए ऊनी कपड़ों को भी स्थायी क्रीज दी जा सकती है. इस तकनीक ने फैशन डिजाइनरों के हाथ खोल दिए और वे प्लेट्स वाली पैंट्स और स्कर्ट बनाने लगे
तस्वीर: Fotolia/GoodMood Photo
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वैसे, सुपरमार्केट अब भी इंडियन स्टोर की जगह तो नहीं ले पाए हैं. श्वेता शर्मा राय कहती हैं, "पिछले कुछ सालों में कोल्स और वूलीज में देसी सामान के ऑप्शन बढ़ गए हैं पर ये पूरी तरह से इंडियन स्टोर का विकल्प नहीं है. अब इमरजेंसी में इंडियन स्टोर की दौड़ नहीं लगानी पड़ती लेकिन ज्यादातर सामान अभी भी वहीं से आता है.”
भारतीय सामान जब ऑस्ट्रेलियाई दुकानों में मिलता है तो उसे सिर्फ भारतीय नहीं ऑस्ट्रेलियाई और अन्य देशों के मूल निवासी भी खरीदते हैं. इस तरह भारत, उसकी संस्कृति और स्वाद घर-घर में पहुंच रहा है.