ऑस्ट्रेलिया के लाखों लोग ऐसे हैं जिनकी जिंदगी अधर में लटक गई है. अस्थायी वीजा पर रहने वाले इन लोगों के लिए सीमाएं बंद हैं तो उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा.
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जसवंत कौर का बेटा अक्सर पूछता है कि घर कब जाएंगे. पंजाब में लुधियाना के पास एक गांव में रहने वालीं जसवंत कौर के 5 साल के बेटे के लिए घर का मतलब मेलबर्न है, जहां उसने होश संभाला था. उसके लिए घर का मतलब वहां है जहां उसके पापा हैं और जिनसे वह डेढ़ साल से नहीं मिला है.
जसवंत कौर के पास अपने बेटे के सवालों का कोई जवाब नहीं है. भारत की एक यात्रा उनकी जिंदगी को ऐसे उथल पुथल देगी, उन्हें अंदाजा नहीं था. वह कहती हैं, "मैं तो बस अपनी बीमार मां को देखने आई थी. कहां पता था कि फिर वापस ही नहीं जा पाऊंगी.”
जसवंत की कहानी
जसवंत कौर अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रहती थीं, जहां वह नर्सिंग की पढ़ाई कर रही थीं. 12 मार्च 2020 को वह अपनी मां से मिलने ऑस्ट्रेलिया से भारत गईं. वह बताती हैं, "हम दो बहनें ही हैं और दोनों ऑस्ट्रेलिया में थीं. मेरी मां यहां अकेली थी. उनकी तबीयत खराब हुई तो मैं दो हफ्ते के लिए उनसे मिलने आई थी.”
ऑस्ट्रेलिया की बॉलीवुड टैक्सी
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19 मार्च 2020 को ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया कि सीमाएं बंद की जा रही हैं और जो भी देश से बाहर है, 24 घंटे के भीतर लौट आए. लाखों लोगों में हड़बड़ी मच गई. भारत में ही उस वक्त दसियों हजार लोग ऑस्ट्रेलिया से गए हुए थे. वे सभी अपनी अपनी टिकट बदलवाने में लग गए. जसवंत उन चंद लोगों में से थीं जिन्हें बॉर्डर बंद होने से पहले टिकट मिल गई.
वह कहती हैं, "मैंने तुरंत अपनी टिकट की तारीख बदलवाई और एयरपोर्ट पहुंच गई. लेकिन मुझे विमान में चढ़ने नहीं दिया गया. अधिकारियों ने कहा कि जब तक मेरी फ्लाइट के मेलबर्न पहुंचने से ढाई घंटे पहले ही बॉर्डर बंद हो चुका होगा. इस आधार पर मुझे एयरपोर्ट से लौटा दिया गया.”
तब से जसवंत कौर और उनका बेटा इंतजार ही करते रहे. इस बीच उनका स्टूडेंट वीजा खत्म हो गया. उन्होंने दोबारा वीजा अप्लाई किया लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें वीजा नहीं दिया. वह बताती हैं, "दो बार कोशिश की लेकिन दोनों बार वीजा नहीं मिला. कहते हैं कि मेरी बहन वहां है, इसलिए मैं वापस नहीं लौटूंगी. पर मेरी बहन तो वहां तब भी थी, जब मैं पढ़ रही थी. तब तो मुझे वीजा मिल गया था. फिर अब क्या बदल गया है?”
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लाखों लोगों की कहानी
ऑस्ट्रिलिया आप्रवासियों का देश है. यहां तीन तरह के लोग रहते हैं. एक वे जो यहां के नागरिक हैं. वे या तो यहां जन्मे हैं या फिर यहां की नागरिकता ले चुके हैं. दूसरे वे जो यहां के स्थायी निवासी हैं. वे नागरिक तो किसी और देश के हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने उन्हें स्थायी वीजा दे दिया है जिसके जरिए वे कहीं भी आ जा सकते हैं.
तस्वीरों में
ऑस्ट्रेलिया ने लौटाईं चुराई गईं कलाकृतियां
ऑस्ट्रेलिया ने लौटाईं चुराई गईं कलाकृतियां
ऑस्ट्रेलिया ने चुराई गईं 14 कलाकृतियां भारत को लौटाने का फैसला किया है. जानिए, क्या है इन कलाकृतियों की कहानी...
तस्वीर: The National Gallery of Australia
गुजराती परिवार
यह है गुरुदास स्टूडियो द्वारा बनाया गया गुजराती परिवार का पोट्रेट. पिछले 12 साल से यह बेशकीमती पेंटिंग ऑस्ट्रेलिया नैशनल गैलरी में थी. इसे भारत से चुराया गया था और गैलरी ने एक डीलर से खरीदा था. अब गैलरी इसे और ऐसी ही 13 और कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने इसे 1989 में खरीदा था. कुछ साल पहले गैलरी ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके तहत चुराई गईं कलाकृतियों के असल स्थान का पता लगाना था. दो मैजिस्ट्रेट के देखरेख में यह जांच शुरू हुई.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
नर्तक बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
यह मूर्ति खरीदी गई थी 2005 में. गैलरी ने ऐसी दर्जनों मूर्तियों, चित्रों और अन्य कलाकृतियों का पता लगाया कि वे कहां से चुराई गई थीं.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अलम, तेलंगाना (1851)
इस अलम को 2008 में खरीदा गया था. ऑस्ट्रेलिया की गैलरी अब 14 ऐसी कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
जैन स्वामी, माउंट आबू, राजस्थान (11वीं-12वीं सदी)
2003 में खरीदी गई जैन स्वमी की यह मूर्ति दो अलग अलग हिस्सों में खरीदी गई थी. गैलरी का कहना है कि उसके पास अब एक भी भारतीय कलाकृति नहीं बची है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
लक्ष्मी नारायण, राजस्थान या उत्तर प्रदेश (10वीं-11वीं सदी)
यह मूर्ति राजस्थान या उत्तर प्रदेश से रही होगी. इसे 2006 में खरीदा गया था. नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया 2014, 2017 और 2019 में भी भारत से चुराई गईं कई कलाकृतियां लौटा चुकी है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, गुजरात, (12वीं-13वीं सदी)
इस मूर्ति को गैलरी ने 2002 में खरीदा था. गैलरी ने कहा है कि सालों की रिसर्च, सोच-विचार और कानूनी व नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए इन कलाकृतियों को लौटाने का फैसला किया गया है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
विज्ञप्तिपत्र, राजस्थान (1835)
जैन साधुओं को भेजा जाने वाला यह निमंत्रण पत्र 2009 में गैलरी ने आर्ट डीलर से खरीदा था. गैलरी की रिसर्च में यह देखा जाता है कि कोई कलाकृति वहां तक कैसे पहुंची. अगर उसे चुराया गया, अवैध रूप से खनन करके निकाला गया, तस्करी करके लाया गया या अनैतिक रूप से हासिल किया गया तो गैलरी उसे लौटाने की कोशिश करेगी.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
महाराज सर किशन प्रशाद यमीन, लाला डी. दयाल (1903)
2010 में यह पोर्ट्रेट खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
मनोरथ, उदयपुर
इस पेंटिंग को गैलरी ने 2009 में खरीदा था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
हीरालाल ए गांधी, (1941)
शांति सी शाह द्वारा बनाया गया हीरा लाल गांधी का यह चित्र 2009 से ऑस्ट्रेलिया की गैलरी में था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोट्रेट, 1954
वीनस स्टूडियो द्वारा बना यह पोट्रेट 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोर्ट्रेट, उदयपुर
एक महिला का यह अनाम पोर्ट्रेट कब बनाया गया, यह पता नहीं चल पाया. इसे 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
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तीसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो अस्थायी वीजा पर ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं. इनमें अस्थायी कामगार और छात्र बड़ी संख्या में हैं. जसवंत कौर जैसे इन लोगों का जीवन कठिन होता है क्योंकि इन्हें सरकारी सुविधाएं जैसे मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा आदि नहीं मिलतीं.
कोविड के दौरान जब ऑस्ट्रेलिया ने सीमाएं बंद कीं और पूरे देश में लॉकडाउन हो गया तो इन अस्थायी वीजा धारकों की जिंदगी में उथल पुथल मच गई. मेलबर्न स्थित माइग्रेशन एक्सपर्ट चमन प्रीत बताती हैं, "अस्थायी वीजा धारकों के लिए ये समय सबसे ज्यादा मुश्किल रहा क्योंकि जो लोग अपने परिवारों आदि मिलने बाहर गए थे, वे वहीं रह गए. जो यहां थे, उनकी नौकरियां चली गईं और कुछ के लिए तो भूखे मरने की नौबत आ गई थी. ऐसे लाखों लोग हैं”
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 31 मार्च 2020 को देश में 2019 के मुकाबले 2,60,034 अस्थायी वीजा धारक कम थे, जो 10.7 प्रतिशत है.
लौटने का कोई विकल्प नहीं
सीमाएं बंद होने के बाद भी स्थायी वीजा धारकों और नागरिकों को तो लौटने का विकल्प मिला लेकिन अस्थायी वीजा धारकों के लिए सीमाएं अब तक बंद हैं. और अब जबकि ऑस्ट्रेलिया ने सीमाएं खोलने का फैसला किया है, तो भी अस्थायी वीजा धारकों को देश में आने की इजाजत नहीं दी गई है.
प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने पिछले हफ्ते देश की सीमाएं खोलने का ऐलान करते हुए कहा कि जिन राज्यों में टीकाकरण की दर 80 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी, वहां के स्थायी निवासी और नागरिक विदेशों से आ जा सकेंगे.
देखिए, ये हैं सबसे सुरक्षित देश
ये हैं सबसे सुरक्षित देश
अगर धरती पर प्रलय आई तो ऑस्ट्रेलिया दूसरा सबसे सुरक्षित देश होगा. वैज्ञानिकों ने सबसे सुरक्षित देशों की सूची बनाई है. जानिए कौन कौन से देश इस सूची में हैं.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
प्रलय आई तो...
‘सस्टेनेबिलिटी’ जर्नल में छपे ब्रिटेन की एंगलिया रस्किन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में उन दस देशों की सूची बनाई गई, जिनमें प्रलय को झेलने की क्षमता सबसे अधिक होगी. यह प्रलय मौसमी, आर्थिक, सामाजिक या किसी भी रूप में हो सकती है.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
न्यूजीलैंड सबसे सुरक्षित
शोधकर्ता कहते हैं कि हर तरह के झटके झेलने की क्षमता न्यूजीलैंड में सबसे ज्यादा है. वह लिखते हैं कि कोई हैरत नहीं कि दुनिया के अरबपति न्यूजीलैंड में बंकर बनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया भी न्यूजीलैंड जैसा ही है. शोधकर्ताओं ने इसके इलाके तस्मानिया को खास तवज्जो दी है. शोधकर्ता कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया और खासकर तस्मानिया में नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदगी भी है और बड़ी संभावनाएं भी. इसकी परिस्थितियां भी न्यूजीलैंड जैसी ही हैं.
तस्वीर: Gerth Roland/Prisma/picture alliance
आयरलैंड
शोधकर्ता कहते हैं कि आयरलैंड के पास नवीकरणीय ऊर्जा की बड़ी संभावना है, कृषि संसाधन खूब हैं और आबादी कम है.
तस्वीर: Artur Widak/NurPhoto/picture alliance
आइसलैंड
कम आबादी और नॉर्थ अटलांटिक महासागर से सीधा संपर्क तो आइसलैंड को सुरक्षित बनाने वाले कारक हैं ही, उसके आसपास कोई दूसरी बड़ी आबादी वाला देश भी नहीं है. साथ ही उसके पास खनिज संसाधन भी प्रचुर हैं.
तस्वीर: Hans Lucas/picture alliance
ब्रिटेन
ब्रिटेन के हालत कमोबेश आयरलैंड जैसे ही हैं. इसकी उपजाऊ जमीन, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत और कुदरती आपदाओं से दूर रखने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अलावा मजबूत अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास भी जिम्मेदार हैं.
तस्वीर: Gareth Fuller/PA via AP/picture alliance
कनाडा और अमेरिका
तीन करोड़ 80 लाख की आबादी वाले कनाडा में भी प्रलय के झटके झेलने की अच्छी क्षमता है. यहां जमीन खूब है, महासागरों तक सीधी पहुंच है, उत्तरी अमेरिका से सीधा जमीनी जुड़ाव है और तकनीकी विकास भी खूब हुआ है.
तस्वीर: Lokman Vural Elibol/AA/picture alliance / AA
नॉर्वे
कुल 55 लाख की आबादी, यूरेशिया से जमीनी जुड़ाव, नवीकरणीय ऊर्जा और तकनीकी विकास के अलावा निर्माण की ठीकठाक क्षमता नॉर्वे को झटके झेलने की ताकत देगी.
शोधकर्ताओं ने पांच देशों को नॉर्वे के ठीक नीचे रखा है. सभी के हालात कमोबेश नॉर्वे जैसे ही हैं और आर्थिक प्रलय हो या मौसमी, इन देशों के पास उसे झेलने के संसाधन हैं.
इस सूची में जापान को भी नॉर्वे के बराबर जगह मिली है. हालांकि उसकी आबादी ज्यादा है लेकिन तकनीकी विकास, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और निर्माण की विशाल क्षमता उसे ताकतवर बनाती है.
तस्वीर: LEAD/Cover Images/picture alliance
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लेकिन उन लाखों लोगों का भविष्य अब भी अधर में है. बहुत से लोगों का ऑस्ट्रेलिया में रहने, पढ़ने या बस जाने का सपना टूट चुका है. जसवंत कौर के पति ने डेढ़ साल इंतजार के बाद भारत लौटने का फैसला किया है.
जसवंत कहती हैं, "कब तक इंतजार करेंगे. अब वीजा देने से इनकार ही कर दिया है. लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं. अब और तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, कम से कम हम लोग साथ तो होंगे.”