महिला की परिभाषा पर ऑस्ट्रेलिया की अदालत का बड़ा फैसला
२६ अगस्त २०२४
ट्रांसजेंडर महिला को महिला माना जाए या नहीं, इस सवाल पर ऑस्ट्रेलिया की अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है.
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एक ऑस्ट्रेलियाई अदालत के एक फैसले से महिला अधिकारों पर नई बहस छिड़ गई है. फेडरल कोर्ट ने बीते शुक्रवार को फैसला सुनाया कि एक ट्रांसजेंडर महिला को सिर्फ महिलाओं के लिए बनाए गए सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म "गिगल फॉर गर्ल्स" से हटाना भेदभाव है.
यह फैसला देश में लैंगिक पहचान से संबंधित मामलों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है. अदालत ने कहा कि कानूनन किसी व्यक्ति का लिंग सिर्फ महिला या पुरुष नहीं हो सकता.
2022 में न्यू साउथ वेल्स राज्य में रहने वालीं रॉक्सैन टिकल ने इस ऐप और इसकी संस्थापक सैली ग्रोवर के खिलाफ अवैध लैंगिक भेदभाव का मुकदमा दायर किया था. टिकल ने आरोप लगाया कि ग्रोवर ने उनकी तस्वीर देखकर उन्हें "पुरुष" मानते हुए उनका अकाउंट बंद कर दिया था.
ऑस्ट्रेलिया की दूसरी सबसे बड़ी अदालत, फेडरल कोर्ट ने "गिगल फॉर गर्ल्स" को टिकल को 10,000 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (लगभग साढ़े पांच लाख रुपये) का हर्जाना और कानूनी खर्च देने का आदेश दिया. हालांकि कंपनी से लिखित माफी मांगने का टिकल का अनुरोध अस्वीकार कर दिया गया.
लैंगिक पहचान बदलना कहां है आसान और कहां मुश्किल
कई देशों ने लैंगिक पहचान बदलने के लिए मेडिकल या मनोवैज्ञानिक जांच की अनिवार्यता समाप्त कर दी है. जानिए किन किन देशों ने दिया आसानी से लैंगिक पहचान बदलने का अधिकार.
तस्वीर: Iulianna Est/Zoonar/picture alliance
संयुक्त राष्ट्र के 25 सदस्य
अंतरराष्ट्रीय लेस्बियन और गे एसोसिएशन के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के कम से कम 25 सदस्य देश "निषेधात्मक अपेक्षाओं के बिना कानूनी रूप से लैंगिक पहचान की अनुमति देते हैं." लेकिन सिर्फ कुछ ही देश ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को एक सरल से बयान के आधार पर अपनी पहचान बदलने की इजाजत देते हैं.
तस्वीर: Michael M. Santiago/Getty Images
स्वीडन
स्वीडन 1972 में ही लैंगिक पहचान बदलने को कानूनी मान्यता देने वाला देश बन गया था. लेकिन हाल ही में वहां नाबालिगों के लिए रीअसाइनमेंट हॉर्मोन ट्रीटमेंट पर पाबंदियां लगाई गई हैं.
तस्वीर: Iulianna Est/Zoonar/picture alliance
अर्जेंटीना
अर्जेंटीना को ट्रांसजेंडर अधिकारों के क्षेत्र में अगुवाई के लिए जाना जाता है. वहां 2012 में सिर्फ एक बयान के आधार पर राष्ट्रीय पहचान पत्र में लैंगिक पहचान बदलने की इजाजत दे दी गई थी. इसके बाद कई लैटिन अमेरिकी देशों ने ऐसा किया, जिनमें बोलीविया, चिली, कोलंबिया, इक्वाडोर, पेरू और उरुग्वे शामिल हैं.
तस्वीर: ZUMA Wire/imago
चिली
चिली में ऑस्कर जीतने वाली फिल्म "अ फैंटास्टिक वुमन" की अंतरराष्ट्रीय सफलता ने एक लैंगिक पहचान कानून के लिए समर्थन जुटाने का काम किया. 2019 में यह कानून पास हो गया. फिल्म में मुख्य भूमिका ट्रांसजेंडर अभिनेत्री डैनिएला वेगा ने निभाई थी.
स्कॉटलैंड में हाल ही में लोगों के लिए अपनी लैंगिक पहचान खुद निर्धारित करना आसान बनाने के लिए एक कानून पारित किया गया था. लेकिन कानून स्वीकृति नहीं मिली.
तस्वीर: David Cheskin/empics/picture alliance
डेनमार्क
डेनमार्क 2014 में बिना मेडिकल या मनोवैज्ञानिक जांच कराए लैंगिक पहचान बदलने के लिए वयस्कों को आवेदन करने की अनुमति देने वाला पहला यूरोपीय देश बन गया था. उसके बाद बेल्जियम, आयरलैंड, माल्टा और नॉर्वे ने भी वैसा ही किया.
स्पेन ने फरवरी 2023 में बयान के आधार पर लैंगिक पहचान बदलने की अनुमति दे दी. इसे देश की 'बराबरी मंत्री' आइरीन मोंटेरो ने "आगे की तरफ एक विशाल कदम" बताया है. स्पेन ऐसा करने वाले यूरोप का सबसे बड़ा देश बन गया है. 14 साल तक के नाबालिग भी अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावकों की इजाजत से आवेदन कर सकते हैं.
तस्वीर: Susana Vera/REUTERS
जर्मनी
जून 2022 में जर्मनी की सरकार ने निजी बयान के आधार पर लैंगिक पहचान बदलने की अनुमति देने की योजना की घोषणा की. देश में 2018 में ही जन्म प्रमाण पत्रों पर तीसरे जेंडर को शामिल करने को कानूनी मान्यता दे दी गई थी.
तस्वीर: lev dolgachov/Zoonar/picture alliance
फ्रांस
फ्रांस में भी ट्रांसजेंडर लोगों को अपनी लैंगिक पहचान बदलने की अनुमति है, लेकिन उन्हें अदालत से स्वीकृति लेनी होती है.
तस्वीर: Julien Mattia/Le Pictorium/IMAGO
भारत
भारत में 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे जेंडर को मान्यता दी. पड़ोसी देशों में से बांग्लादेश में 2018 से ट्रांसजेंडर लोग तीसरे जेंडर के रूप में बतौर मतदाता अपना पंजीकरण करा पा रहे हैं. पाकिस्तान 2009 में तीसरे जेंडर को कानूनी मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया था. नेपाल में 2013 में नागरिकता प्रमाणपत्रों में एक ट्रांसजेंडर श्रेणी जोड़ दी गई.
तस्वीर: Ayush Chopra/SOPA Images via ZUMA Press Wire/picture alliance
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया में 2013 में पासपोर्ट में एक तीसरी लैंगिक श्रेणी जोड़ने की अनुमति दे दी गई.
तस्वीर: Subel Bhandari/dpa/picture alliance
अमेरिका
अमेरिका में 2021 में विदेश मंत्रालय ने ट्रांसजेंडर लोगों को पासपोर्ट में 'X' श्रेणी चुनने की इजाजत दे दी. (एएफपी)
तस्वीर: Ivy Ceballo/ZUMAPRESS/picture alliance
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जज रॉबर्ट ब्रॉमविच ने कहा, "टिकल का सीधे लैंगिक भेदभाव का दावा विफल रहा, लेकिन उनके साथ अप्रत्यक्ष लैंगिक भेदभाव का दावा सही है."
यह मामला 2013 में सेक्स डिस्क्रिमिनेशन एक्ट में किए गए बदलावों के बाद लैंगिक भेदभाव के नए नियमों के आधार पर सुनाया गया पहला फैसला है.
ऐतिहासिक फैसला
मोनाश यूनिवर्सिटी के कानून विभाग की प्रोफेसर पाउला गेरबर ने कहा, "यह फैसला ऑस्ट्रेलिया की ट्रांसजेंडर महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है." उन्होंने कहा, "यह मामला सभी ऑस्ट्रेलियाई लोगों को स्पष्ट संदेश देता है कि ट्रांसजेंडर महिलाओं के साथ अन्य महिलाओं से अलग व्यवहार करना गैरकानूनी है. कोई व्यक्ति महिला है या नहीं, यह फैसला केवल उसके बाहरी रूप के आधार पर नहीं किया जा सकता."
‘गिगल फॉर गर्ल्स' सिर्फ महिलाओं के लिए बनाया गया एक सोशल मीडिया एप था. उसे महिलाओं के लिए एक "सुरक्षित जगह" के रूप में प्रचारित किया गया था, जहां महिलाएं अपने अनुभव साझा कर सकती थीं. 2021 में इसके लगभग 20,000 यूजर्स थे. कोर्ट में पेश दस्तावेजों के अनुसार, 2022 में इसे बंद कर दिया गया था. हालांकि ग्रोवर ने कहा कि इसे जल्द ही फिर से लॉन्च करने की योजना है.
ट्रांसजेंडर्स के लिए पाक में बदल रहा है माहौल...
पेशावर में चल रही इस बर्थडे पार्टी में नाचते-गाते मेहमानों को देखकर लग सकता है कि यह कोई आम पार्टी है. लेकिन दरवाजे पर हथियारों से लैस पुलिस तैनात भी है इससे समझा जा सकता है कि यह कोई साधारण पार्टी नहीं है.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
जश्न में चूर
तस्वीरों में नजर आ रहे ये लोग ट्रांसजेंडर हैं जो अब तक दूसरों के शादी-ब्याहों में तो नाचते नजर आते हैं लेकिन ये अपना कोई जश्न नहीं मना सकते थे.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
पहला मौका
ट्रांसएक्शन पाकिस्तान कैंपेन से जुड़ी फरजाना बताती हैं कि पिछले दस सालों में यह पहला मौका होगा जब ये लोग खुलेआम ऐसा कोई कार्यक्रम कर रहे हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
पांच लाख लोग
ट्रांसएक्शन पाकिस्तान के मुताबिक करीब 19 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में करीब पांच लाख ट्रांसजेंडर हैं.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
कड़े नियम
ट्रांसजेंडर पार्टियों को अकसर प्रशासन अनुमति नहीं देता और पुलिस इन पार्टियों पर छापे भी मार देती है.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
नरम होता रुख
पिछले साल एक ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता को गोलियों से भून दिया गया था और पेशावर अस्पताल ने उसके इलाज से भी इनकार कर दिया था. उसके बाद ट्रांसजेंडर्स को लेकर रुख में नरमी आई है.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
मिली छूट
रविवार को हुई पार्टी के लिए कोई लिखित अनुमति नहीं ली गई थी इसलिए इस पर प्रतिबंध भी नहीं लगाया गया. यहां तक कि पुलिस ने सुरक्षा भी मुहैया कराई.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
40वां जन्मदिन
यह पार्टी शकीला के 40वें जन्मदिन के मौके पर रखी गई थी. मेहमानों ने शकीला को इस मौके पर तोहफे में पैसे और सामान दिया ताकि उम्र के इस पड़ाव पर वह कोई काम शुरू कर सकें.
तस्वीर: Reuters/C. Firouz
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जस्टिस ब्रॉमविच ने कहा कि "गिगल फॉर गर्ल्स" केवल जन्म के समय के लिंग को मान्य आधार मानता है, जिसके अनुसार कोई व्यक्ति पुरुष या महिला हो सकता है. टिकल का जन्म के समय पुरुष लिंग था, लेकिन उन्होंने सेक्स-चेंज सर्जरी करवाई थी और उनका जन्म प्रमाण पत्र अपडेट किया गया था.
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रूप से महिला या पुरुष मानना अनुचित
ग्रोवर ने कोर्ट के फैसले को महिला अधिकारों का विरोधी बताया. सोशल मीडिया साइट एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "दुर्भाग्य से, हमें वही फैसला मिला जिसकी हमें उम्मीद थी. महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ाई जारी है."
टिकल ने इस फैसले को "जख्म भरने वाला" बताया और कहा कि उन्हें ऑनलाइन नफरत भरे कॉमेंट्स का सामना करना पड़ा है और उनके उपहास के लिए विशेष रूप से अभियान चलाया गया.
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया के अनुसार, टिकल ने कोर्ट के बाहर कहा, "हमारे जैसे ट्रांस और लैंगिक विविधता वाले लोगों के खिलाफ केवल हमारी पहचान के कारण इतनी नफरत और गालियां फैलाई जाती हैं."
LGBTQ की ABCD
भारत समेत कई देशों में समलैंगिक अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहे हैं. लेकिन जिन्हें हम एक शब्द "समलैंगिक" में समेट देते हैं, वे खुद को एलजीबीटीक्यू कम्यूनिटी कहते हैं. आखिर क्या है LGBTQ?
तस्वीर: Reuters/O. Teofilovski
एल से लेस्बियन
लेस्बियन यानी वे महिलाएं जो महिलाओं की ओर आकर्षित होती हैं. 1996 में आई फिल्म फायर ने जब इस मुद्दे को उठाया तब काफी बवाल हुआ. आज 20 साल बाद भी यह मुद्दा उतना ही संवेदनशील है.
तस्वीर: Reuters
जी से गे
गे यानी वे पुरुष जो पुरुषों की ओर आकर्षित होते हैं. दोस्ताना और कल हो ना हो जैसी फिल्मों में हंसी मजाक में समलैंगिक पुरुषों के मुद्दे को उठाया गया, तो हाल ही में आई अलीगढ़ में इसकी संजीदगी देखने को मिली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बी से बायसेक्शुअल
बायसेक्शुअल एक ऐसा व्यक्ति है जो महिला और पुरुष दोनों की ओर आकर्षित महसूस करे. ऐंजेलिना जोली और लेडी गागा खुल कर अपने बायसेक्शुअल होने की बात कह चुकी हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo
टी से ट्रांसजेंडर
एल, जी और बी से अलग ट्रांसजेंडर को उनके लैंगिक रुझान के अनुसार नहीं देखा जाता. भारत में जिन्हें हिजड़े या किन्नर कहा जाता है, वे भी ट्रांसजेंडर हैं और बॉलीवुड में जानेमाने बॉबी डार्लिंग जैसे वे लोग भी जो खुद अपना सेक्स बदलवाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Muheisen
क्यू से क्वीयर
इस शब्द का मतलब होता है अजीब. इसके जरिये हर उस व्यक्ति की बात की जा सकती है जो "सामान्य" नहीं है. चाहे जन्म से उस व्यक्ति में महिला और पुरुष दोनों के गुण हों और चाहे वह किसी की भी ओर आकर्षित हो.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Bruna
और भी हैं
यह सूची यहां खत्म नहीं होती. कई बार एलजीबीटीक्यू के आगे ए भी लगा दिखता है. इसका मतलब है एसेक्शुअल यानी ऐसा व्यक्ति जिसकी सेक्स में कोई रुचि ना हो. इनके अलावा क्रॉसड्रेसर भी होते हैं यानी वे लोग जो विपरीत लिंग की तरह कपड़े पहनना पसंद करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Hitij
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एप जॉइन करने के लिए यूजर्स को एक सेल्फी अपलोड करनी होती थी, जिसे काइरोजएआई जेंडर डिटेक्शन सॉफ्टवेयर द्वारा और फिर ग्रोवर द्वारा महिला के रूप में सत्यापित किया जाता था. टिकल ने जब एप जॉइन की, तब तो उन्हें अनुमति मिल गई, लेकिन छह महीने बाद उन्हें एप से हटा दिया गया.
अप्रैल में तीन दिन तक चली सुनवाई के दौरान बताया गया कि टिकल 2017 से एक महिला के रूप में जीवन जी रही थीं, उनका महिला के नाम पर जन्म प्रमाण पत्र था, और वह "अपने मन में महसूस करती हैं कि मनोवैज्ञानिक रूप से वह एक महिला हैं."
जज ने कहा कि सबूतों से यह साबित नहीं हुआ कि टिकल को सीधे तौर पर उनकी लैंगिक पहचान के कारण गिगल से बाहर किया गया था, हालांकि ऐसी संभावना है. लेकिन अप्रत्यक्ष भेदभाव का मामला इसलिए सफल रहा क्योंकि टिकल को सोशल मीडिया एप का उपयोग करने से इसलिए रोका गया क्योंकि वे "पर्याप्त रूप से महिला नहीं दिखती थीं."
सिर्फ महिला या पुरुष नहीं हो सकता लिंग
जज ब्रॉमविच ने ग्रोवर और गिगल के उस तर्क से असहमति जताई जिसमें उन्होंने कानून में लैंगिक पहचान की सुरक्षा की संवैधानिकता पर सवाल उठाए थे.
गिगल और ग्रोवर की टीम ने तर्क दिया कि मामला केवल जैविक लिंग पर केंद्रित होना चाहिए. वकील ब्रिडी नोलन ने कहा, "लिंग भेदभावपूर्ण है, हमेशा से था और हमेशा रहेगा... जैविक लिंग को प्राथमिकता मिलनी चाहिए."
भारत में ट्रांसजेंडरों को रक्तदान की इजाजत क्यों नहीं है
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ग्रोवर ने अदालत से कहा कि वह टिकल को "सुश्री" के रूप में संबोधित नहीं करेंगी, और यहां तक कि अगर कोई ट्रांसजेंडर, महिला के रूप में सामने आती है, जेंडर अफर्मेशन सर्जरी करवा चुकी है, महिला के रूप में जी रही है, और महिला पहचान वाले दस्तावेज रखती है, तो भी ग्रोवर उसे "जैविक पुरुष" के रूप में देखेंगी.
ऑस्ट्रेलियाई मानवाधिकार आयोग ने अदालत के फैसले का समर्थन किया. वकील जेली हेगर ने अदालत से कहा कि सेक्स डिस्क्रिमिनेशन एक्ट में अब लिंग को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन "महत्वपूर्ण बात यह है कि यह अधिनियम मान्यता देता है कि किसी व्यक्ति का लिंग केवल (पुरुष या महिला) होने तक सीमित नहीं है."