ऑस्ट्रेलिया के चुनावों में निर्दलीय महिला उम्मीदवारों ने सत्ता पक्ष के कई बड़े नेताओं से उनकी सुरक्षित सीटें छीन लीं. इन महिलाओं ने जलवायु परिवर्तन और लैंगिक समानता के मुद्दों पर चुनाव लड़ा था.
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ऑस्ट्रेलिया की कुछ पेशेवर महिलाओं ने जलवायु परिवर्तन के लिए चिंतित देश के मतदाताओं के साथ मिलकर राजनीति में एक बड़े बदलाव की आहट दी है. देश में हाल ही में हुए आम चुनावों में कई महिलाओं ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चुनाव लड़ा और बड़े नेताओं को हराया.
ऑस्ट्रेलिया में पिछले तीन बार से लगातार विपक्ष में बैठ रही लेबर पार्टी ने चुनाव जीता है लेकिन उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया. 151 सीटों वाले निचले सदन में लेबर पार्टी को 72 सीटें मिली हैं, जबकि लिबरल-नेशनल गठबंधन विपक्ष में होगा, जिसे 52 सीटें मिली हैं. इसकी बड़ी वजह रही निर्दलीय उम्मीदवार, जिन्होंने कई अहम सीटों पर दोनों मुख्य पार्टियों लेबर और लिबरल के नेताओं को हराया. अन्यों को 15 सीटें मिली हैं जिनमें 3 ग्रीन्स सांसद हैं और बारीक निर्दलीय हैं. यह निर्दलीयों की अब तक की सबसे बड़ी जीत है.
महिलाओं को श्रेय
इस जीत का श्रेय उन निर्दलीय महिलाओं को दिया जा रहा है जिन्होंने मुख्यतया जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चुनाव लड़ा. यह चुनाव बहुत योजनाबद्ध तरीके से लड़ा गया जिसमें अलग-अलग सीटों पर समुदायों के समूह बनाकर प्रचार किया गया. इस प्रचार अभियान की कमान अक्सर महिलाओं के हाथों में ही थी.
सिडनी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर साइमन जैकमैन कहते हैं, "ऑस्ट्रेलियाई राजनीति में इस तरह के अभियान कम ही नजर आते हैं. ऐसे अभियान जो चिंगारी की तरह शुरू हों और आग की तरह फैल जाएंगे.”
महिलाओं की इस कामयाबी के पीछे पूर्व प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और उनकी सरकारके प्रति जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर निष्क्रिय रहने को लेकर महिलाओं का विशेष गुस्सा भी एक वजह माना जा रहा है. कैनबरा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर क्रिस वॉलेस कहती हैं कि महिलाओं में "ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में जवाबदेही को लौटा लाने की जबर्दस्त इच्छा” देखी गई.
वॉलेस कहती हैं, "सरकार से नाराज महिलाओं में से ऐसी बहुत सी थीं जो जलवायु परिवर्तन पर नीतिगत कार्रवाई चाहती हैं. इसने महिलाओं को ऐसी संख्या में एकजुट किया जैसा पहले कभी नहीं देखा गया. अभिजात्य वर्ग की धनी महिलाओं से लेकर मध्यमवर्गीय पेशेवर्ग महिलाओं तक सभी ने गठबंधन की कई सुरक्षित मानी जाने वालीं सीटों पर धावा बोला और उन्हें कब्जा लिया.”
ऑस्ट्रेलिया ने लौटाईं चुराई गईं कलाकृतियां
ऑस्ट्रेलिया ने चुराई गईं 14 कलाकृतियां भारत को लौटाने का फैसला किया है. जानिए, क्या है इन कलाकृतियों की कहानी...
तस्वीर: The National Gallery of Australia
गुजराती परिवार
यह है गुरुदास स्टूडियो द्वारा बनाया गया गुजराती परिवार का पोट्रेट. पिछले 12 साल से यह बेशकीमती पेंटिंग ऑस्ट्रेलिया नैशनल गैलरी में थी. इसे भारत से चुराया गया था और गैलरी ने एक डीलर से खरीदा था. अब गैलरी इसे और ऐसी ही 13 और कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने इसे 1989 में खरीदा था. कुछ साल पहले गैलरी ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके तहत चुराई गईं कलाकृतियों के असल स्थान का पता लगाना था. दो मैजिस्ट्रेट के देखरेख में यह जांच शुरू हुई.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
नर्तक बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
यह मूर्ति खरीदी गई थी 2005 में. गैलरी ने ऐसी दर्जनों मूर्तियों, चित्रों और अन्य कलाकृतियों का पता लगाया कि वे कहां से चुराई गई थीं.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अलम, तेलंगाना (1851)
इस अलम को 2008 में खरीदा गया था. ऑस्ट्रेलिया की गैलरी अब 14 ऐसी कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
जैन स्वामी, माउंट आबू, राजस्थान (11वीं-12वीं सदी)
2003 में खरीदी गई जैन स्वमी की यह मूर्ति दो अलग अलग हिस्सों में खरीदी गई थी. गैलरी का कहना है कि उसके पास अब एक भी भारतीय कलाकृति नहीं बची है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
लक्ष्मी नारायण, राजस्थान या उत्तर प्रदेश (10वीं-11वीं सदी)
यह मूर्ति राजस्थान या उत्तर प्रदेश से रही होगी. इसे 2006 में खरीदा गया था. नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया 2014, 2017 और 2019 में भी भारत से चुराई गईं कई कलाकृतियां लौटा चुकी है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, गुजरात, (12वीं-13वीं सदी)
इस मूर्ति को गैलरी ने 2002 में खरीदा था. गैलरी ने कहा है कि सालों की रिसर्च, सोच-विचार और कानूनी व नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए इन कलाकृतियों को लौटाने का फैसला किया गया है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
विज्ञप्तिपत्र, राजस्थान (1835)
जैन साधुओं को भेजा जाने वाला यह निमंत्रण पत्र 2009 में गैलरी ने आर्ट डीलर से खरीदा था. गैलरी की रिसर्च में यह देखा जाता है कि कोई कलाकृति वहां तक कैसे पहुंची. अगर उसे चुराया गया, अवैध रूप से खनन करके निकाला गया, तस्करी करके लाया गया या अनैतिक रूप से हासिल किया गया तो गैलरी उसे लौटाने की कोशिश करेगी.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
महाराज सर किशन प्रशाद यमीन, लाला डी. दयाल (1903)
2010 में यह पोर्ट्रेट खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
मनोरथ, उदयपुर
इस पेंटिंग को गैलरी ने 2009 में खरीदा था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
हीरालाल ए गांधी, (1941)
शांति सी शाह द्वारा बनाया गया हीरा लाल गांधी का यह चित्र 2009 से ऑस्ट्रेलिया की गैलरी में था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोट्रेट, 1954
वीनस स्टूडियो द्वारा बना यह पोट्रेट 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोर्ट्रेट, उदयपुर
एक महिला का यह अनाम पोर्ट्रेट कब बनाया गया, यह पता नहीं चल पाया. इसे 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
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सिडनी की एक सीट को निर्दलीय सोफी स्कैंप्स ने जीता है. यह सीट पिछले 70 साल से लिबरल पार्टी के कब्जे में थी. पेशे से डॉक्टर स्कैंप्स ने स्थानीय स्काई न्यूज से कहा, "मैं ऐसे कितने ही लोगों से मिली जो कह रहे थे कि उन्होंने पूरी उम्र लिबरल पार्टी को वोट दिया है लेकिन अब वे हमारा प्रतिनिधित्व नहीं करते.”
केंद्र में वित्त मंत्री रहे और लिबरल पार्टी के बड़े नेता जॉश फ्राइडेनबर्ग को भी एक निर्दलीय महिला उम्मीदवार से मात खानी पड़ी. मोनीक रायन बाल रोग विशेषज्ञ हैं. रविवार को अपने विजयी भाषण में रायन ने कहा कि महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले भुगतान में अंतर और लैंगिक हिंसा उनके सबसे बड़े मुद्दे रहे.
ऑस्ट्रेलिया आगे बढ़ा है
प्रोफेसर जैकमैन कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा था जिसने आमतौर पर लोगों को छुआ. क्लाइमेट-200 नामक एक संस्था के साथ पोलिंग डेटा पर काम करने वाले प्रोफेसर जैकमैन ने मतदान के रोज बड़ी संख्या में मतदाताओं से बात की. वह बताते हैं कि उच्च शिक्षा प्राप्त मतदाता कई अन्य मुद्दों पर भी सरकार से नाराज थे जिनमें निष्ठा, संसद में यौन हमलों के आरोपों पर प्रतिक्रिया और लैंगिक भेदभाव के मामले शामिल थे.
सिर्फ 6 देशों के पास हैं परमाणु पनडुब्बियां
आकुस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बनाई जाएगी. इसके तैयार हो जाने पर वह सातवां ऐसा देश बन जाएगा जिसके पास परमाणु पनडुब्बी है. अब तक यह क्षमता हासिल कर चुके देश हैं..
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
ऑस्ट्रेलिया होगा 7वां देश
2016 की इस तस्वीर में फ्रांसीसी पनडुब्बी है जो ऑस्ट्रेलिया को मिलनी थी. अब फ्रांस की जगह वह अमेरिका से परमाणु पनडुब्बी लेकर सातवां देश बन जाएगा. बाकी छह देशों में भारत भी है. लेकिन सबसे ज्यादा पनडुब्बियां किसके पास हैं? अगली तस्वीर में जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Blackwood
अमेरिका
अमेरिका के पास सबसे ज्यादा 68 परमाणु पनडुब्बियां हैं. इनमें से 14 ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं.
तस्वीर: Amanda R. Gray/U.S. Navy via AP/picture alliance
रूस
रूस के पास 29 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से 11 में बैलिस्टिक मिसाइल से हमला करने की क्षमता है.
तस्वीर: Peter Kovalev/TASS/dpa/picture alliance
चीन
चीन के पास 12 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से आधी ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं. बाकी छह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां हैं.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/L. Ziheng
ब्रिटेन
ब्रिटेन 11 परमाणु पनडुब्बियों के साथ इस सूची में चौथे नंबर पर है. उसकी 4 पनडुब्बियां बैलिस्टिक मिसाइल दागने की क्षमता रखती हैं.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
फ्रांस
फ्रांस के पास भी बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकने वाली चार परमाणु पनडुब्बियां हैं. हालांकि उसकी कुल पनडुब्बियों की संख्या 8 है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/DCNS Group
भारत
भारत इस सूची में एक पनडुब्बी के साथ शामिल है. भारत की परमाणु ऊर्जा संपन्न यह पनडुब्बी मिसाइल भी दाग सकती है.
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
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जैकमैन कहते हैं, "महिलाओं विशेष तौर पर उत्साहित थीं, जबकि उनके पुरुष जीवनसाथी भी यह मान रहे थे कि लिबरल पार्टी अब गुजरी बात हो चुकी है. ऑस्ट्रेलिया आगे बढ़ चुका है. हम जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर आगे बढ़ चुके हैं. हम लैंगिक समानता के मुद्दे पर आगे बढ़ चुके हैं.”
लिबरल-नेशनल गठबंधन सरकार में वित्त मंत्री रहे साइमन बर्मिंगम ने माना कि मॉरिसन सरकार को 2030 के उत्सर्जन लक्ष्यों को ज्यादा गंभीरता से अपनाने चाहिए थे, और चुनाव के नतीजे दिखाते हैं कि लिबरल पार्टी को और ज्यादा समावेशी होने की जरूरत है. एबीसी टीवी से बातचीत में उन्होंने कहा, "खासतौर पर ऑस्ट्रेलियाई महिलाओं को शामिल करने की जरूरत है, जो आज कहीं ज्यादा शिक्षित हैं. यह एक ऐसा समूह है जिसे हम समुचित संख्या में प्रतिनिधित्व देने में नाकाम रहे.”
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नया जनादेश
सिडनी की वेंटवर्थ सीट पर एक उद्योगपति ऐलेग्रा स्पेंडर ने भारतीय मूल के लिबरल उम्मीदवार डेव शर्मा को हराया. जैकमैन कहते हैं कि स्पेंडर को तो लिबरल पार्टी की शान होना चाहिए था, क्योंकि वह और उनके पिता एक दशक तक पार्टी के सांसद रहे और उनके दादा देश के विदेश मंत्री रहे थे.
प्रोफेसर जैकमैन ने कहा, "हुआ यह कि वेंटवर्थ एक मिसाल बन गई है कि कैसे पढ़े-लिखे मध्यमार्गी लिबरल वोटर जो जलवायु विज्ञान की समझ रखते हैं और स्वच्छ तकनीक में निवेश करना चाहते हैं, पार्टी को छोड़ रहे हैं.”
जलवायु परिवर्तन ऑस्ट्रेलियाई वोटरों के लिए कैसे अहम मुद्दा रहा, इसका संकेत ब्रिसबेन शहर की दो सीटों पर ग्रीन्स पार्टी को पहली बार मिली जीत से भी मिलता है. चुनाव से ठीक पहले ब्रिसबेन में बाढ़ ने तबाही मचाई थी, जिसके लिए जलवायु परिवर्तन को ही जिम्मेदार माना गया था. ग्रीन्स पार्टी के नेता ऐडम बेंट कहते हैं, "लिबरल और लेबर दोनों पार्टियों ने अपने मतदाताओं को खोया है और रिकॉर्ड संख्या में लोगों ने ग्रीन्स पार्टी के लिए मतदान किया है. यह चुनावी नतीजा जलवायु परिवर्तन और समानता पर कार्रवाई करने का जनादेश है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
ये हैं सबसे सुरक्षित देश
अगर धरती पर प्रलय आई तो ऑस्ट्रेलिया दूसरा सबसे सुरक्षित देश होगा. वैज्ञानिकों ने सबसे सुरक्षित देशों की सूची बनाई है. जानिए कौन कौन से देश इस सूची में हैं.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
प्रलय आई तो...
‘सस्टेनेबिलिटी’ जर्नल में छपे ब्रिटेन की एंगलिया रस्किन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में उन दस देशों की सूची बनाई गई, जिनमें प्रलय को झेलने की क्षमता सबसे अधिक होगी. यह प्रलय मौसमी, आर्थिक, सामाजिक या किसी भी रूप में हो सकती है.
तस्वीर: imago/StockTrek Images
न्यूजीलैंड सबसे सुरक्षित
शोधकर्ता कहते हैं कि हर तरह के झटके झेलने की क्षमता न्यूजीलैंड में सबसे ज्यादा है. वह लिखते हैं कि कोई हैरत नहीं कि दुनिया के अरबपति न्यूजीलैंड में बंकर बनाने के लिए जमीन खरीद रहे हैं.
तस्वीर: kavram/Zoonar/picture alliance
ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया भी न्यूजीलैंड जैसा ही है. शोधकर्ताओं ने इसके इलाके तस्मानिया को खास तवज्जो दी है. शोधकर्ता कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया और खासकर तस्मानिया में नवीकरणीय ऊर्जा की मौजूदगी भी है और बड़ी संभावनाएं भी. इसकी परिस्थितियां भी न्यूजीलैंड जैसी ही हैं.
तस्वीर: Gerth Roland/Prisma/picture alliance
आयरलैंड
शोधकर्ता कहते हैं कि आयरलैंड के पास नवीकरणीय ऊर्जा की बड़ी संभावना है, कृषि संसाधन खूब हैं और आबादी कम है.
तस्वीर: Artur Widak/NurPhoto/picture alliance
आइसलैंड
कम आबादी और नॉर्थ अटलांटिक महासागर से सीधा संपर्क तो आइसलैंड को सुरक्षित बनाने वाले कारक हैं ही, उसके आसपास कोई दूसरी बड़ी आबादी वाला देश भी नहीं है. साथ ही उसके पास खनिज संसाधन भी प्रचुर हैं.
तस्वीर: Hans Lucas/picture alliance
ब्रिटेन
ब्रिटेन के हालत कमोबेश आयरलैंड जैसे ही हैं. इसकी उपजाऊ जमीन, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत और कुदरती आपदाओं से दूर रखने वाली भौगोलिक परिस्थितियों के अलावा मजबूत अर्थव्यवस्था और तकनीकी विकास भी जिम्मेदार हैं.
तस्वीर: Gareth Fuller/PA via AP/picture alliance
कनाडा और अमेरिका
तीन करोड़ 80 लाख की आबादी वाले कनाडा में भी प्रलय के झटके झेलने की अच्छी क्षमता है. यहां जमीन खूब है, महासागरों तक सीधी पहुंच है, उत्तरी अमेरिका से सीधा जमीनी जुड़ाव है और तकनीकी विकास भी खूब हुआ है.
तस्वीर: Lokman Vural Elibol/AA/picture alliance / AA
नॉर्वे
कुल 55 लाख की आबादी, यूरेशिया से जमीनी जुड़ाव, नवीकरणीय ऊर्जा और तकनीकी विकास के अलावा निर्माण की ठीकठाक क्षमता नॉर्वे को झटके झेलने की ताकत देगी.
शोधकर्ताओं ने पांच देशों को नॉर्वे के ठीक नीचे रखा है. सभी के हालात कमोबेश नॉर्वे जैसे ही हैं और आर्थिक प्रलय हो या मौसमी, इन देशों के पास उसे झेलने के संसाधन हैं.
इस सूची में जापान को भी नॉर्वे के बराबर जगह मिली है. हालांकि उसकी आबादी ज्यादा है लेकिन तकनीकी विकास, नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और निर्माण की विशाल क्षमता उसे ताकतवर बनाती है.