ऑस्ट्रेलिया में बहुत से आप्रवासी मांग कर रहे हैं कि माता-पिता को परिवार का हिस्सा माना जाए. इस मांग की जरूरत कोविड के कारण लागू किए गए एक नियम के कारण पड़ रही है.
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शनिवार को ऑस्ट्रेलिया के राज्य साउथ ऑस्ट्रेलिया की राजधानी ऐडिलेड में दर्जनों परिवार एक जगह जमा हुए. उनके हाथों में ऐसे बैनर और पोस्टर थे, जिन पर लिखा था कि माता-पिता भी ‘निकटतम परिवार' का हिस्सा हैं.
ये लोग उन हजारों लोगों में शामिल हैं जो महीनों से ऑस्ट्रेलिया सरकार से मांग कर रहे हैं कि माता-पिता को ‘निकटतम परिवार' का हिस्सा माना जाए. ऐसा ऑस्ट्रेलिया में कोरोनावायरस के कारण लगाए गए यात्रा प्रतिबंधों के कारण है.
क्या है पूरा मामला
पिछले साल जब कोरोनावायरस के कारण ऑस्ट्रेलिया ने अपनी सीमाएं आने-जाने के लिए बंद कर दी थीं, तब कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे. इन प्रतिबंधों के तहत ऑस्ट्रेलिया के स्थायी निवासियों और नागरिकों को देश छोड़कर जाने की इजाजत विशेष परिस्थितियों में ही मिल सकती है.
इन प्रतिबंधों में यह भी शामिल है कि विदेशों से वही लोग ऑस्ट्रेलिया आ सकते हैं, जिनके निकटतम परिजन यहां ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं. ‘निकटतम परिजन' को ऑस्ट्रेलिया के गृह मंत्रालय ने जो परिभाषा दी है, उनमें वयस्कों के माता-पिता शामिल नहीं हैं.
ऑस्ट्रेलिया के गृह मंत्रालय पर प्रकाशित नियमावली के अनुसार "पति, पत्नी, जीवनसाथी, माता-पिता पर निर्भर बच्चों या अवयस्क बच्चों के कानूनन अभिभावकों को” ही ‘निकटतम परिजन' माना जाएगा. यानी ऑस्ट्रेलिया में रह रहे वयस्क लोगों के माता-पिता उनके निकटतम परिजन नहीं हैं. इस नियम के कारण कोई भी विदेशों से अपने माता-पिताओं को ऑस्ट्रेलिया नहीं बुला सकता.
‘अमानवीय स्थिति'
एडिलेड में प्रदर्शन में शामिल हुए भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियाई नागरिक मानव जग्गी कहते हैं कि यह अमानवीय स्थिति है. वह बताते हैं, "अभी हमारे माता-पिता ऑस्ट्रेलिया नहीं आ सकते क्योंकि वे निकटतम परिजनों की श्रेणी में नहीं आते. माता-पिता हमारे परिवारों के लिए उतने ही अहम हैं, जितने यहां ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले उन परिवारों के लिए, जिनके माता पिता यहीं हैं. लेकिन इस नियम के कारण हम उनसे मिल नहीं सकते.”
तस्वीरों मेंः ऑस्ट्रेलिया ने लौटाईं चुराई गईं कलाकृतियां
ऑस्ट्रेलिया ने लौटाईं चुराई गईं कलाकृतियां
ऑस्ट्रेलिया ने चुराई गईं 14 कलाकृतियां भारत को लौटाने का फैसला किया है. जानिए, क्या है इन कलाकृतियों की कहानी...
तस्वीर: The National Gallery of Australia
गुजराती परिवार
यह है गुरुदास स्टूडियो द्वारा बनाया गया गुजराती परिवार का पोट्रेट. पिछले 12 साल से यह बेशकीमती पेंटिंग ऑस्ट्रेलिया नैशनल गैलरी में थी. इसे भारत से चुराया गया था और गैलरी ने एक डीलर से खरीदा था. अब गैलरी इसे और ऐसी ही 13 और कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने इसे 1989 में खरीदा था. कुछ साल पहले गैलरी ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके तहत चुराई गईं कलाकृतियों के असल स्थान का पता लगाना था. दो मैजिस्ट्रेट के देखरेख में यह जांच शुरू हुई.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
नर्तक बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
यह मूर्ति खरीदी गई थी 2005 में. गैलरी ने ऐसी दर्जनों मूर्तियों, चित्रों और अन्य कलाकृतियों का पता लगाया कि वे कहां से चुराई गई थीं.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अलम, तेलंगाना (1851)
इस अलम को 2008 में खरीदा गया था. ऑस्ट्रेलिया की गैलरी अब 14 ऐसी कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
जैन स्वामी, माउंट आबू, राजस्थान (11वीं-12वीं सदी)
2003 में खरीदी गई जैन स्वमी की यह मूर्ति दो अलग अलग हिस्सों में खरीदी गई थी. गैलरी का कहना है कि उसके पास अब एक भी भारतीय कलाकृति नहीं बची है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
लक्ष्मी नारायण, राजस्थान या उत्तर प्रदेश (10वीं-11वीं सदी)
यह मूर्ति राजस्थान या उत्तर प्रदेश से रही होगी. इसे 2006 में खरीदा गया था. नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया 2014, 2017 और 2019 में भी भारत से चुराई गईं कई कलाकृतियां लौटा चुकी है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, गुजरात, (12वीं-13वीं सदी)
इस मूर्ति को गैलरी ने 2002 में खरीदा था. गैलरी ने कहा है कि सालों की रिसर्च, सोच-विचार और कानूनी व नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए इन कलाकृतियों को लौटाने का फैसला किया गया है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
विज्ञप्तिपत्र, राजस्थान (1835)
जैन साधुओं को भेजा जाने वाला यह निमंत्रण पत्र 2009 में गैलरी ने आर्ट डीलर से खरीदा था. गैलरी की रिसर्च में यह देखा जाता है कि कोई कलाकृति वहां तक कैसे पहुंची. अगर उसे चुराया गया, अवैध रूप से खनन करके निकाला गया, तस्करी करके लाया गया या अनैतिक रूप से हासिल किया गया तो गैलरी उसे लौटाने की कोशिश करेगी.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
महाराज सर किशन प्रशाद यमीन, लाला डी. दयाल (1903)
2010 में यह पोर्ट्रेट खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
मनोरथ, उदयपुर
इस पेंटिंग को गैलरी ने 2009 में खरीदा था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
हीरालाल ए गांधी, (1941)
शांति सी शाह द्वारा बनाया गया हीरा लाल गांधी का यह चित्र 2009 से ऑस्ट्रेलिया की गैलरी में था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोट्रेट, 1954
वीनस स्टूडियो द्वारा बना यह पोट्रेट 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोर्ट्रेट, उदयपुर
एक महिला का यह अनाम पोर्ट्रेट कब बनाया गया, यह पता नहीं चल पाया. इसे 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
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मानव जग्गी कहते हैं कि चूंकि ऑस्ट्रेलिया से बाहर जाने पर भी पाबंदी लगी है, इसलिए हम अपने माता-पिता के पास जा भी नहीं सकते.
वह कहते हैं, "ऑस्ट्रेलिया से बाहर जाने के लिए विशेष इजाजत लेनी पड़ती है, जिसकी सख्त शर्तें हैं. एक तो आप विशेष आपातकालीन परिस्थितियों में ही देश छोड़ सकते हैं. फिर यह भी शर्त रखी जाती है कि लौटने में कम से कम तीन महीने तक या उससे ज्यादा समय भी लग सकता है. बहुत से लोगों की नौकरियां हैं, यहां पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं. यह सब छोड़कर हम तीन महीने के लिए कैसे जा सकते हैं?”
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सरकार क्या कहती है?
इस मांग के समर्थन में कई बार विभिन्न विपक्षी दलों के सांसद सरकार के सामने यह मामला उठा चुके हैं. पिछले साल नवंबर में और इस साल फरवरी में दो अलग-अलग याचिकाएं भी संसद में पेश की गई थीं. इनमें से एक याचिका की अवधि मई तक थी और उस पर 70 हजार से ज्यादा लोगों ने दस्तखत किए थे.
देखिएः ये हैं दुनिया के सबसे रहने योग्य शहर
ये है दुनिया का सबसे रहने योग्य शहर
दुनिया के रहने योग्य शहरों की इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की सालाना सूची में आठ शहर एशिया-प्रशांत क्षेत्र के हैं. कोरोनो महामारी से निपटने के दौरान यूरोपीय शहर रैंकिंग में काफी नीचे गिर गए. जानिए कौन सा शहर है टॉप पर.
तस्वीर: Newscom/picture alliance
रहने के लिहाज से "जन्नत"
न्यूजीलैंड की कोरोना वायरस प्रतिक्रिया ने ऑकलैंड को दुनिया के सबसे अधिक रहने योग्य शहरों की इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) की 2021 की रैंकिंग में टॉप पर पहुंचा दिया है क्योंकि कई यूरोपीय शहर लॉकडाउन के प्रभाव के कारण काफी नीचे खिसक गए हैं.
तस्वीर: Sun Xueliang/Xinhua/IANS
कोरोना महामारी पर प्रतिक्रिया का फायदा
चार अन्य एशिया-प्रशांत शहर ओसाका, टोक्यो (जापान) एडिलेड (ऑस्ट्रेलिया) और वेलिंगटन (न्यूजीलैंड) ने इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की तरफ से जारी ग्लोबल लिवेबिलिटी रैंकिंग के 2021 संस्करण में शीर्ष पांच स्थानों में जगह हासिल की.
तस्वीर: Reuters/I. Kato
कमाल के ऑस्ट्रेलियाई शहर
एडिलेड के अलावा ऑस्ट्रेलिया के तीन और शहर पर्थ, मेलबर्न और ब्रिसबेन ने साल 2021 के रहने योग्य विश्व के टॉप 10 शहरों में जगह बनाई है. देश को कोविड-19 मैनेजमेंट का सीधा लाभ मिला है.
तस्वीर: James Ross/AAP/picture alliance
यूरोपीय शहरों को झटका
पिछले साल दुनिया का सबसे रहने योग्य शहर, ऑस्ट्रिया का वियना इस साल के संस्करण में टॉप 10 से बाहर हो गया, इस साल वह सूची में 12वें स्थान पर आ गया. साफ है कि यूरोपीय शहरों पर कोरोना वायरस का प्रभाव पड़ा है.
तस्वीर: Joe Klamar/AFP
रहने लायक शहरों पर असर
ईआईयू के मुताबिक, "कोविड-19 महामारी ने वैश्विक जीवंतता पर भारी असर डाला है. दुनिया भर के शहर अब महामारी शुरू होने से पहले की तुलना में बहुत कम रहने योग्य हैं. और हमने देखा है कि यूरोप जैसे क्षेत्रों को खास तौर से मार पड़ी है."
तस्वीर: Noppasin Wongchum/Zoonar/picture alliance
हैम्बर्ग की रैंकिंग भी गिरी
जर्मनी का बंदरगाह शहर हैम्बर्ग इस साल 34वें पायदान से गिरकर 47वें नंबर पर पहुंच गया है. कई और यूरोपीय शहरों का यही हाल रहा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Scholz
होनोलुलु की रैंकिंग में उछाल
होनोलूलू, हवाई (अमेरिका) की रैंकिंग में सबसे उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है. कोरोना महामारी से निपटने और टीकाकरण कार्यक्रम में तेजी के कारण वह 46 पायदान की उछाल के साथ 14वें स्थान पर पहुंच गया है.
तस्वीर: Colourbox
दमिश्क सबसे खराब शहर
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट की सूची के मुताबिक सीरिया की राजधानी दमिश्क, रहने के लिए दुनिया का सबसे खराब शहर है. सीरिया में गृहयुद्ध के कारण लोगों की मौत हो रही है और वहां सुविधाओं की भारी कमी है.
तस्वीर: Ammar Safarjalani/Xinhua/picture alliance
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यह याचिका कहती है, "हमारी सदन से अपील है कि माता-पिता को भी आने की छूट वाली श्रेणी में शामिल किया जाए. अगर ऐसा नहीं हो सकता तो, माता-पिता से मिलने जाने को छूट देने के लिए जरूरी ‘अत्यावश्यक कारणों' में शामिल किया जाए.”
निर्दलीय सांसद यह जाली स्टीगल ने यह याचिका इस साल जून में संसद में पेश की थी और सरकार से अनुरोध किया था कि माता-पिता को ‘निकटतम संबंधी' की परिभाषा में शामिल किया जाए. हालांकि सरकार एक से ज्यादा मौकों पर कह चुकी है कि फिलहाल इस परिभाषा में बदलाव का उसका कोई इरादा नहीं है.