ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने एक विदेशी व्यक्ति के बारे में कहा है कि वह जब तक चाहे, ऑस्ट्रेलिया में रह सकता है. फ्रांसीसी मूल के दामिएन जेरो एक मजदूर हैं.
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ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीजी ने फ्रांसीसी मूल के कंस्ट्रक्शन वर्कर दामिएन जेरो को जब तक चाहें ऑस्ट्रेलिया में रहने का न्योता दिया है. सप्ताहांत पर सिडनी के एक शॉपिंग मॉल में हुई छुरेबाजी के दौरान जेरो ने बहादुरी दिखाई थी और छुरेबाज से भिड़ गए थे.
ऑस्ट्रेलिया में जेरो की सोशल मीडिया पर जमकर तारीफ हो रही है. उन्हें ‘बोलार्ड मैन' नाम दिया गया है क्योंकि वह ‘बोलार्ड' यानी आने-जाने वालों को सावधान करने के लिए लगाया जाने वाला प्लास्टिक का छोटा सा खूंटा लेकर छुरेबाज जोएल काउची से भिड़ गए थे.
सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें जेरो को खूंटा लेकर काउची को डराते हुए देखा जा सकता है. जेरो के कारण ही काउची ऊपरी मंजिल पर नहीं जा सका और ज्यादा लोग उसका शिकार नहीं हुए.
स्थायी वीजा की पेशकश
जेरो का अस्थायी वर्क वीजा जुलाई में खत्म होना है. लेकिन अब उन्हें वीजा बढ़वाने में कोई मुश्किल नहीं होगी. अल्बानीजी ने कहा, "अपनी वीजा एप्लिकेशन से जूझ रहे दामिएन जेरो को मैं कहना चाहता हूं, आपका यहां स्वागत है. आप जब तक चाहे, यहां रह सकते हैं. यह एक ऐसा व्यक्ति है जिसे ऑस्ट्रेलियाई नागरिकता देने में हमें खुशी होगी. हालांकि, बेशक यह फ्रांस का नुकसान होगा.”
जेरो की वकील बेलिंडा रॉबिन्सन ने एसबीएस न्यूज को बताया कि सरकार ने मंगलवार देर रात इस बात की पुष्टि कर दी कि जेरो को स्थायी वीजा दिया जाएगा.
नागरिकता छोड़ कहां बस रहे हैं भारतीय
भारत सरकार के मुताबिक जून 2023 तक कम से कम 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी है. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपना नया ठिकाना बना रहे हैं.
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भारत छोड़ विदेशों में बसते भारतीय
भारतीय विदेश मंत्रालय ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया है कि जून 2023 तक 87,026 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी.
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अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी जाते भारतीय
नागरिकता छोड़ने वाले भारतीय 135 देशों में जा बसे, जिनमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और पाकिस्तान जैसे देश शामिल हैं.
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17 लाख से अधिक भारतीय छोड़ चुके नागरिकता
2011 के बाद से 17 लाख से अधिक लोगों ने भारतीय नागरिकता छोड़ दी है. भारत दोहरी नागरिकता की इजाजत नहीं देता, इसलिए जो दूसरे देश की नागरिकता लेते हैं उन्हें भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ती है.
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2022 में सबसे ज्यादा भारतीयों ने छोड़ी नागरिकता
विदेश मंत्री ने संसद को बताया कि 2022 में 2,25,620 भारतीयों ने अपनी नागरिकता छोड़ दी जबकि 2021 में उनकी संख्या 1,63,370 और 2020 में 85,256 थी.
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अमेरिका अब भी लोकप्रिय देश
विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक संख्या के आधार पर भारतीयों ने अमेरिकी सपने का पीछा करना जारी रखा है और उनमें से 78 हजार से ज्यादा भारतीयों ने वहां की नागरिकता ली.
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ऑस्ट्रेलिया भी पसंद
अमेरिका के बाद दूसरी पसंद पर ऑस्ट्रेलिया है. विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में 23,533 भारतीयों ने ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता ली, इसके बाद कनाडा (21,597), और यूके (14,637) है.
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यूरोपीय देश भी पसंदीदा ठिकाना
हाल के सालों में इटली, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड्स, स्वीडन, स्पेन और सिंगापुर जैसे देश पसंदीदा ठिकाना बनकर सामने आए हैं. भारतीय नागरिकता छोड़ लोग यहां जाकर बसना पसंद कर रहे हैं.
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भारत के लिए एसेट
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में दिए बयान में कहा कि सरकार मानती है कि देश के बाहर रह रहे लोग देश के लिए बहुत मायने रखते हैं. उनका कहना है कि विदेश में रहने वाले भारतीयों की कामयाबी और प्रभाव से देश को लाभ पहुंचता है.
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क्यों छोड़ रहे हैं नागरिकता
विदेश मंत्री ने बताया कि पिछले दो दशकों में बड़ी संख्या में भारतीय ग्लोबल वर्कप्लेस की तलाश करते रहे हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कई लोगों ने अपनी सुविधा के लिए दूसरे देशों की नागरिकता ली.
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करोड़पति छोड़ रहे भारत
ब्रिटिश कंपनी हेनली एंड पार्टर्नस की सालाना हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट 2023 के मुताबिक इस साल भारत के 6,500 करोड़पति देश छोड़कर चले जाएंगे. पिछले साल के मुकाबले यह संख्या कम है. 2022 में 7,500 करोड़पतियों ने भारत छोड़ा था.
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जेरो अकेले नहीं हैं जिन्होंने जोएल काउची को रोकने की कोशिश की. कई लोगों ने उसे पकड़ने की कोशिश की जिनमें पाकिस्तानी मूल का एक शरणार्थी भी शामिल था जो हाल ही में ऑस्ट्रेलिया आया था. अधिकारियों ने कहा कि अगर ये लोग हमलावर से ना भिड़ते तो मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा हो सकती थी. 30 साल के फराज ताहिर एक साल से भी कम समय से सिडनी में रह रहे थे और हाल ही में उन्हें एक सिक्यॉरिटी गार्ड की नौकरी मिली थी. उस दिन मॉल में वह काम पर थे और काउची को चाकू चलाते देख उससे भिड़ गए. हमले में ताहिर की भी जान चली गई.
काउची के हमले में पांच महिलाओं की जान गई है. पुलिस का मानना है कि काउची ने खासतौर पर महिलाओं को निशाना बनाया. हालांकि यह कहा जा रहा है कि वह मानसिक बीमारियोंसे ग्रस्त था. पुलिस ने इस बात का भी खुलासा किया है कि वह एक मेल सेक्स वर्कर के रूप में गुपचुप काम कर रहा था.
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एक के बाद एक हमले
सिडनी में एक के बाद एक चाकुओं से हमले की दो घटनाएं होने के बाद न्यू साउथ वेल्स राज्य के मुख्यमंत्री क्रिस मिन्स ने कहा है कि वह चाकू रखने संबंधी नियमों को और कड़ा बनाने पर विचार कर सकते हैं.
जोएल काउची की घटना के दो दिन बाद 16 वर्षीय एक किशोर ने एक चर्च में दो पादरियों पर चाकू से हमला कर दिया था. इस हमले को पुलिस ने एक आतंकवादी घटना बताया है. पुलिस का कहना है कि हमलावर किशोर के धार्मिक रुझान को देखते हुए इस घटना की जांच आतंकवादी हमले के रूप में की जा रही है.
हालांकि आधिकारिक तौर पर किशोर की धार्मिक पहचान उजागर नहीं की गई है लेकिन घटना के बाद से देश के विभिन्न समुदायों के बीच तनाव का माहौल है. मुख्यमंत्री क्रिस मिन ने राज्य के मुस्लिम नेताओं से आगे आकर घटना की निंदा करने का अनुरोध किया है. शहर की एक प्रमुख मस्जिद के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें बम हमले की धमकी मिली है.
आतंकी हमला क्यों?
कुछ लोगों ने इस बात की आलोचना की है कि शॉपिंग मॉल की घटना को आतंकी हमला नहीं कहा गया जबकि चर्च में हमले को आतंकी हमला माना जा रहा है. इसके जवाब में ऑस्ट्रेलिया की जासूसी एजेंसी एजियो (ASIO) के प्रमुख माइक बर्जेस ने कहा कि घटना की पृष्ठभूमि के आधार पर तय होता है कि वह आतंकी है या नहीं.
ऑस्ट्रेलिया की इन 7 चीजों ने बदल दी दुनिया
ऑस्ट्रेलिया दुनिया के केंद्र से दूर एक अलग-थलग देश है. लेकिन वहां जो खोजें हुई हैं, उन्होंने दुनिया के केंद्र को भी बदलकर रख दिया. जानिए, वे 7 चीजें जो ऑस्ट्रेलिया ने खोजीं...
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वाई-फाई
आज दुनियाभर में लोग जिस वाई-फाई की तलाश में भटकते हैं, उस तकनीक को ऑस्ट्रेलिया ने ही दुनिया को दिया. 1992 में CSIRO ने जॉन ओ सलिवन के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित किया था.
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गूगल मैप्स
मूलतः डेनमार्क के रहने वाले भाइयों लार्स और येन्स रासमुसेन ने गूगल मैप का प्लैटफॉर्म ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में ही बनाया था. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों नील गॉर्डन और स्टीफन मा के साथ मिलकर 2003 में एक छोटी सी कंपनी बनाई जिसने मैप्स जैसी तकनीक बनाकर तहलका मचा दिया. गूगल ने 2004 में इस कंपनी को खरीद लिया और चारों को नौकरी पर भी रख लिया.
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ब्लैक बॉक्स फ्लाइट रिकॉर्डर
विमान के भीतर की सारी गतिविधियां रिकॉर्ड करने वाला ब्लैक बॉक्स ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डॉ. डेविड वॉरेन ने ईजाद किया था. 1934 में उनके पिता की मौत के विमान हादसे में हुई थी. 1950 के दशक में हुई यह खोज आज हर विमान के लिए अत्यावश्यक है.
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इलेक्ट्रॉनिक पेसमेकर
डॉ. मार्क लिडविल और भौतिकविज्ञानी एजगर बूथ ने 1920 के दशक में कृत्रिम पेसमेकर बनाया था. आज दुनियाभर के तीस लाख से ज्यादा लोगों के दिल इलेक्ट्रॉनिक पेसमेकर की वजह से धड़क रहे हैं.
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प्लास्टिक के नोट
रिजर्व बैंक ऑफ ऑस्ट्रेलिया और देश की प्रमुख वैज्ञानिक शोध संस्था CSIRO ने मिलकर 1980 के दशक में दुनिया का पहला प्लास्टिक नोट बनाया था. 1988 में सबसे पहले 10 डॉलर का नोट जारी किया गया. 1996 तक ऑस्ट्रेलिया में सारे करंसी नोट प्लास्टिक के हो गए थे.
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इलेक्ट्रिक ड्रिल
इस औजार के बिना दुनिया की शायद ही कोई फैक्ट्री चलती हो. 1889 में एक इंजीनियर आर्थर जेम्स आर्नोट ने अपने सहयोगी विलियम ब्रायन के साथ मिलकर इसे बनाया था.
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स्थायी क्रीज वाले कपड़े
कपड़ों पर क्रीज टूटे ना, इसके लिए कितनी जद्दोजहद की जाती है. लेकिन ऑस्ट्रेलिया के CSIRO ने 1957 में एक ऐसी तकनीक ईजाद की थी जिसके जरिए ऊनी कपड़ों को भी स्थायी क्रीज दी जा सकती है. इस तकनीक ने फैशन डिजाइनरों के हाथ खोल दिए और वे प्लेट्स वाली पैंट्स और स्कर्ट बनाने लगे
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बर्जेस ने कहा, "घटना को आतंकी कहने के लिए आपको ऐसी सूचनाएं या सबूत चाहिए जो संकेत करें कि हमले की वजह धार्मिक या वैचारिक हो सकती है. शनिवार (जोएल काउची) के हमले में ऐसा नहीं था. इस (चर्च) मामले में हमारे पास ऐसी सूचनाएं हैं. इसलिए इसे एक आतंकी हमला कहा गया है.”
किशोर ने जिस पादरी पर हमला किया, वह इस्लाम की निंदा करते रहे हैं. हमले के वक्त का हमलावर किशोर का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वह कहता सुना जा सकता है कि अगर वह (पादरी) हमारे धर्म के बारे में ना बोलता तो ऐसा ना होता.