रीफ बचाने की एक अरब डॉलर की ऑस्ट्रेलियाई योजना पर सवाल
विवेक कुमार, सिडनी से
३१ जनवरी २०२२
ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने ग्रेट बैरियर रीफ को नष्ट होने से बचाने के लिए एक अरब डॉलर की योजना का ऐलान किया है. लेकिन दुनिया के कई पर्यावरणविदों ने इस योजना को नाकाफी बताते हुए इसकी आलोचना की है.
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ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने पिछले हफ्ते एक अरब डॉलर की योजना का ऐलान किया है. नौ साल लंबी इस योजना का मकसद नष्ट हो जाने का खतरा झेल रहे दुनिया के सबसे बड़े कोरल रीफ, ग्रेट बैरियर रीफ की सुरक्षा है.
रीफ की सुरक्षा के लिए यह अब तक का सबसे बड़ा निवेश है, जिसका ऐलान प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने क्वीन्सलैंड के केयर्न्स शहर में किया था. इस योजना में ऐसी तकनीक और जल प्रबंधन व्यवस्था के विकास पर ध्यान दिया जाएगा, जो रीफ की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं.
कई संस्थाओं ने किया स्वागत
नई योजना में ज्यादातर निवेश जल प्रदूषण को कम करने और जल प्रबंधन बेहतर बनाने में किया जाएगा. ऑस्ट्रेलिया और विश्व स्तर पर पर्यावरण व रीफ संरक्षण के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने संघीय सरकार की इस योजना का स्वागत किया है. वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड ने कहा है कि यह एक सकारात्मक समाचार है.
ताहिती के समुद्र में छिपा हैरतअंगेज रहस्य
साउथ पैसिफिक में ताहिती के पास समुद्र के नीचे जब एक कोरल रीफ मिली तो वैज्ञानिक उसकी सेहत को देखकर हैरान रह गए. कैसी है ये सीक्रेट कोरल रीफ...
ताहिती के ये कोरल गुलाब के आकार के हैं. ये समुद्र तल से 30 से 65 मीटर की गहराई में हैं. इस क्षेत्र के बारे में वैज्ञानिकों को उथले पानी के मुकाबले कम ही जानकारी है.
कोरल रीफ महासागरों की सेहत के लिए जरूरी हैं. ये सिर्फ एक प्रतिशत हिस्से में हैं लेकिन यहां समुद्री जीवन की 25 प्रतिशत आबादी रहती है.
तस्वीर: Jason Suwandy/IUCN Photo Library/picture-alliance/dpa
ग्लोबल वॉर्मिंग से खतरा
दुनियाभर के कोरल रीफ ग्लोबल वॉर्मिंग की मार झेल रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया में दुनिया की सबसे बड़ी ग्रेट बैरियर रीफ खत्म होने का खतरा झेल रही है. लेकिन ताहिती के कोरल रीफ की अच्छी सेहत हैरान करने वाली है.
तस्वीर: David Bellwood/ARC Centre of Excellence for Coral Reef Studies/AP/picture alliance
2019 में आया था खतरा
2019 में ताहिती के तट को ब्लीचिंग ने काफी प्रभावित किया था लेकिन कोरल रीफ तब भी सुरक्षित है. इसकी एक वजह यह हो सकती है कि यह जिस गहराई पर है, वहां पानी काफी गर्म है.
ताहिती के कोरल रीफ की खोज ने ऐसे ही और रीफ छिपे होने की उम्मीद बढ़ा दी है. युनेस्को के अब तक समुद्रतल का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा ही खोजा जा सका है. इसिलए हो सकता है ऐसे कई रहस्य छिपे हों, जिनके बारे में अभी हमें पता ही नहीं है.
डबल्यूडबल्यूएफ-ऑस्ट्रेलिया के महासागर प्रमुख रिचर्ड लेक ने कहा, "यह हमारे राष्ट्रीय प्रतीक के लिए एक अच्छी खबर है और इस बात का प्रतीक है कि रीफ के लिए धन की उपलब्धता लगभग मौजूदा स्तर पर बनी रहेगी. रीफ की सुरक्षा के लिए जल प्रदूषण को कम करने में सरकार अपने लक्ष्य से चूक गई है. इसलिए यह जरूरी है कि यह निवेश इस तरह से लागू हो कि पानी की गुणवत्ता को सुधारे. साथ ही जल प्रदूषण के खिलाफ ज्यादा सख्त कानून और उनके पालन में सख्ती की भी जरूरत है.”
ऑस्ट्रेलियन मरीन कंजर्वेशन सोसाइटी (AMCS) ने भी मॉरिसन सरकार की घोषणा का स्वागत किया है. संस्था के जल गुणवत्ता विशेषज्ञ जेमी वेबस्टर कहते हैं, "रीफ के भविष्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक से निपटने के लिए यह निवेश स्वागतयोग्य है. जल प्रदूषण से निपटने के लिए निवेश बढ़ाना रीफ को मौसम परिवर्तन से लड़ने में सक्षम बनाने के लिए आवशयक है.”
वेबस्टर हालांकि अभी योजना की बारीकियों के सामने आने का इंतजार कर रहे हैं ताकि इसे और अच्छी तरह समझ सकें लेकिन वह मंशा की तारीफ करने से नहीं हिचकते. वह कहते हैं, "जिस तरह के संकट से रीफ इस वक्त जूझ रही है, और जल प्रदूषण को कम करने में जिस तरह की धीमी प्रगति हुई है, यह जरूरी हो गया है कि अगले तीन साल में जल प्रबंधन में निवेश को तेजी से इस्तेमाल किया जाए. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि क्वीन्सलैंड राज्य और ऑस्ट्रेलिया की सरकारें उस चार अरब डॉलर के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई हैं, जो जल गुणवत्ता हासिल करने के लिए 2025 तक उपलब्ध करवाने का वादा किया गया था.”
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तीखी आलोचना
तारीफों और स्वागत के बावजूद कई विशेषज्ञ इस योजना को नाकाफी मानते हैं और सरकार के ऐलान से खुश नहीं हैं. क्वीन्सलैंड स्थित जेम्स कुक यूनिवर्सिटी में मरीन बायोलॉजी पढ़ाने वालीं एसोसिएट प्रोफेसर जोडी रमर कहती हैं कि इस ऐलान ने उन्हें उत्साहित नहीं किया है.
स्थानीय सार्वजनिक चैनल एबीसी को दिए एक इंटरव्यू में रमर कहती हैं कि मौसम परिवर्तन का जिक्र किए बिना यह घोषणा कोई खास नहीं लगती. रमर ने बताया, "हमें अपने संसाधन और धन 2035 तक नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करने की ओर व हमारे उत्सर्जन को इस दशक में 75 प्रतिशत तक कम करने की ओर खर्च करना चाहिए.”
प्रलय से पहले पर्यटन
खत्म होती सबसे बड़ी मूंगा चट्टान से लेकर पिघलते ग्लेशियरों तक, पर्यटक ऐसी जगहों को देखने भारी तादाद में पहुंच रहे हैं, जिन पर अस्तित्व खोने और गायब होने का खतरा मंडरा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/McPhoto/SBA
ग्रेट बैरियर रीफ - ऑस्ट्रेलिया
हर साल करीब 20 लाख लोग इसे देखने पहुंचते हैं. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली एजेंसी का कहना है कि अगर हम वैश्विक तापमान को दो डिग्री बढ़ने तक सीमित भी कर लें, तब भी इस कोरल रीफ का 99 फीसदी खो देंगे. इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों के छूने से यह और जल्दी खत्म हो सकती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Probst
ध्रुवीय भालू - कनाडा
कनाडा के चर्चिल इलाके में ध्रुवीय भालू दिखाने के लिए सफारी का आयोजन होता है. 2010 में हुई एक स्टडी से पता चला कि सफारी के कारण यहां का कार्बन फुटप्रिंट कई गुना बढ़ जाता है. पर्यटक हवाई यात्रा कर वहां पहुंचते हैं, जो कि कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन के बोझ को और बढ़ाता है.
तस्वीर: picture-alliance/McPhoto/SBA
अंटार्कटिक की यात्रा
ध्रुवीय भालू की ही तरह जलवायु परिवर्तन का नाम लेते ही पिघलते ग्लेशियरों की तस्वीर जेहन में आती है. इनको पास से देखने जाने वाले पर्यटक न केवल क्रूज जहाजों को भारी कीमत चुकाते हैं बल्कि ग्लेशियर को भी नुकसान पहुंचाते हैं. 1990 के दशक में सालाना केवल 5,000 लोग पहुंचे थे वहीं 2018 में करीब 46,000 लोग.
तस्वीर: S. Weniger/M. Marek
अफ्रीकी नेशनल पार्क
यहां के नेशनल पार्कों में सवाना मैदानों के पीछे किलिमंजारो पर्वत की बर्फीली चोटियां देखी जा सकती हैं. हर साल यहां केवल पर्यटन से 5 करोड़ डॉलर की कमाई होती है. कई पर्यटक फर्टवेंगलर ग्लेशियर पर भी चढ़ते हैं. पिछले 100 सालों में इसकी करीब 85 फीसदी बर्फ पिघल चुकी है. बाकी बची बर्फ भी इसी सदी के मध्य तक गल जाएगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Schnoz
मोंटाना ग्लेशियर नेशनल पार्क
सन 1920 में खुले मोंटाना पार्क में तब 100 से भी ज्यादा बर्फीली संरचनाएं थीं. आज दो दर्जन से भी कम बची हैं. इतनी तेजी से बर्फ खोने के कारण यह पार्क जलवायु परिवर्तन पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों का केंद्र बन गया है. हर साल इसे देखने करीब 30 लाख पर्यटक पहुंचते हैं.
तस्वीर: Imago Images/Aurora/J. Miller
मालदीव के डूबते द्वीप
मालदीव में सफेद रेतीले तटों वाले करीब 1,200 कोरल द्वीप हैं. नीले समुद्री पानी से ये द्वीप करीब 2.5 मीटर की ही ऊंचाई पर हैं. 2017 में नए हवाई अड्डे और कई मेगा-रिजॉर्ट बना कर यहां पर्यटकों की तादाद सात गुना बढ़ाने की योजना बनी. राष्ट्रपति इसकी कमाई से नए द्वीप बसा कर डूब रहे द्वीपों के लोगों को वहां बसाना चाहते थे. लेकिन सत्ता से बाहर हो चुके पूर्व राष्ट्रपति अब भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हैं.
तस्वीर: Colourbox
खारे पानी के दलदल
केवल द्वीप ही नहीं बल्कि दलदल वाले इलाकों पर भी खतरा है. फ्लोरिडा के एवरग्लेड वेटलैंड तेजी से गायब हुए हैं. पिछली सदी में इसके आधे हिस्से को सुखा कर वहां खेती की जाने लगी है. बाकी बचे प्राकृतिक दलदल में नमकीन पानी घुस रहा है. विश्व धरोहरों में शामिल एवरग्लेड दलदल गंभीर खतरे में है.
तस्वीर: Imago/Robertharding/F. Fell
गालापागोस की भंग होती शांति
डार्विन के नाम से जुड़े गालापागोस के द्वीप भी भारी बदलाव से गुजर रहे हैं. इसके उलट डार्विन के समय उनकी खासियत ही यही थी कि वे बाकी दुनिया से कटा होने के कारण काफी जैवविविधता संरक्षित किए हुए थे. वहां इतने पर्यटक पहुंचते हैं कि वातावरण में तेज बदलाव हो रहे हैं. समुद्र का तापमान बढ़ने से यहां के खास समुद्री इगुआना जीव भूखे मरने लगे हैं. (रुबी रसेल/आरपी)
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Kaufhold
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डॉ. रमर उन बहुत सारे विशेषज्ञों में शामिल हैं जिनका मानना है कि ऑस्ट्रेलिया ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने की दिशा में समुचित कोशिशें नहीं कर रहा है. वह कहती हैं, "हमने अब तक जो देखा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग में 1-1.2 डिग्री का बढ़ना पांच साल में 30 लाख ग्रीष्म-लहरें लेकर आया और दुनियाभर के रीफ में 98 प्रतिशत ब्लीचिंग हुई. यहां ऑस्ट्रेलिया बाकी दुनिया से अलग नहीं है. यह पूरी दुनिया की समस्या है.”
ऑस्ट्रेलिया के विपक्षी दलों ने भी सरकार की योजना की आलोचना की है. विपक्षी लेबर पार्टी की पर्यावरण मामलों की प्रवक्ता टेरी बटलर ने इस योजना के ऐलान के समय पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा, "सरकार ने यह धन दस साल के लिए उपबल्ध करवाया है. हम नहीं जानते हैं कि इसमें से कितना धन अब खर्च होगा और कितना आने वाले सात, आठ या नौ साल में खर्च किया जाएगा.”
ऑस्ट्रेलिया की प्रतिबद्धताओं पर सवाल
पर्यावरण परिवर्तन को लेकर ऑस्ट्रेलिया सरकार के रुख की लगातार आलोचना होती रही है. स्थानीय राजनेता और कार्यकर्ता ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणविद भी कहते रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने में ऑस्ट्रेलिया को जितना योगदान करना चाहिए, उतना वह नहीं कर रहा है.
देश के मौसम विभाग के अनुसार 1910 में आंकड़े जमा किए जाने के वक्त से अब तक ऑस्ट्रेलिया के तापमान में 1.44 (+- 0.24 ) डिग्री की वृद्धि हो चुकी है और देश में अत्याधिक गर्मी पड़ने की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं. विभाग कहता है कि 1970 से अब तक देश के दक्षिण पश्चिमी हिस्से में अप्रैल से अक्टूबर के बीच होने वाली बारिश में 16 प्रतिशत की कमी हो चुकी है जबकि मई-जुलाई की बारिश 20 प्रतिशत तक घट चुकी है.
1950 से अब तक ऑस्ट्रेलिया में आग लगने की घटनाएं, अत्याधिक गर्मी पड़ने की घटनाएं और आग लगने के खतरे वाले मौसम की समयावधि में भी वृद्धि दर्ज की गई है. 1982 से अब तक चक्रवातीय तूफानों की संख्या घटी है लेकिन 1910 से अब तक के आंकड़े दिखाते हैं कि देश के आसपास के महासागरों का तापमान 1 डिग्री तक बढ़ चुका है और उनका अम्लीयकण भी बढ़ा है, जिससे समुद्री हीटवेव में वृद्धि हुई है.