किलर रोबोटों के लिए अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की मांग
१६ नवम्बर २०२०
युद्ध में जिंदगी और मौत का फैसला रोबोट करेंगे या इंसान? क्या रोबोटों को ये अधिकार दिया जाना चाहिए कि वे बिना नैतिक समझ के इंसान को मार डालें?
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ऑस्ट्रिया की सरकार का कहना है कि इंसान की जिंदगी और मौत का फैसला करने का अधिकार इंसानों के पास ही होना चाहिए. युद्ध के दौरान किलर रोबोटों या एल्गोरिदम्स को ये अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए.
ऑस्ट्रिया ने इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय कायदे कानूनों की मांग की है. विएना ने खुद एक कूटनीतिक पहल शुरू की है. इस पहल के जरिए तमाम देशों को साथ लाया जाएगा और मिलकर फैसला किया जाएगा.
ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री आलेक्जांडर शालेनबेर्ग के मुताबिक दुनिया भर में जैसे कायदे कानून क्लस्टर बमों और बारूदी सुरंगों को लेकर हैं, वैसे ही कायदे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाली मशीनों के लिए भी बनाए जाने की जरूरत है.
जर्मन अखबार वेल्ट आम जोंटॉग से बातचीत में शालेनबेर्ग ने कहा, "किलर रोबोटों के युद्ध के मैदान पर पहुंचने से पहले हमें नियम बनाने होंगे."
ऑस्ट्रिया की सरकार 2021 में राजधानी वियना में इस मुद्दे को लेकर एक सम्मेलन की तैयारी भी कर रही है. शालेनबेर्ग ने उम्मीद जताई कि "सम्मेलन में युद्ध के मैदान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल को लेकर अंतरराष्ट्रीय संधि की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी."
ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री के मुताबिक अब तक कूटनीतिक समुदाय में इस मसले पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, "इस कॉन्फ्रेंस के जरिए हम सरकारों, विशेषज्ञों और रेड क्रॉस जैसी गैर सरकारी संस्थाओं के बीच एक अभियान शुरू करना चाहते हैं."
जीवन और मृत्यु का फैसला
ऑस्ट्रियाई सरकार बार बार इस बात पर जोर दे रही है कि युद्ध को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जिम्मे नहीं छोड़ना चाहिए. विदेश मंत्री ने कहा, "जिंदगी और मौत का फैसला करने का अधिकार एक ऐसे व्यक्ति के पास होना चाहिए जो अपनी मूल्यपरक और नैतिक समझ के आधार पर निर्णय ले सके, ना कि शून्य और एक के तालमेल से बनी कोई एल्गोरिदम ये फैसला करे."
संयुक्त राष्ट्र 2015 से लीथल ऑटोनॉमस वेपंस पर चर्चा कर रहा है. लेकिन यह चर्चा पारंपरिक हथियारों के लिए बनाए गए फ्रेमवर्क के तहत की जा रही है.
ऑटोनॉमस हथियारों के मामले में रूस, अमेरिका और इस्राएल सबसे आगे हैं. तीनों देश किसी भी तरह के अंतरराष्ट्रीय नियम को खारिज करते रहे हैं. आर्टिफिशियल इंटेजिलेंस से लेस हथियार युद्ध के दौरान कई फैसले खुद कर सकते हैं. यही तकनीक इन्हें बेहद घातक बना देती है.
वहीं "स्टॉप किलर रोबोट्स" नाम का एक एनजीओ कई देशों के साथ मिलकर ऐसे हथियारों पर बैन लगाना चाहता है. यूरोपीय संसद समेत 30 देश किलर रोबोटों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.
रिपोर्ट: रिचर्ड कॉनर
सेना में रोबोट
बम धमाकों, गोलियों की तड़तहाड़ट या बेहद जोखिम भरे हालात में अगर कोई इंसान घायल हो जाए, तो उसे कैसे बचाया जाए. पोलैंड की राजधानी वारसा में सैन्य रोबोट प्रतियोगिता एम-एलरोब में इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढे जा रहे हैं.
तस्वीर: DW/F. Schmidt
फील्ड ट्रायल
सैनिक 75 किलो भारी डमी को "जख्मी जवान" के तौर पर मैदान में ले जा रहे हैं. अब देखा जाएगा कि रोबोट जख्मी सैनिक को कैसे बचाते हैं. असल हालात में घटनास्थल पर बारूदी सुरंगें भी फटेंगी और गोलियां भी चलेंगी.
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ऊंची घास से परेशानी
रोबोट को कमर तक ऊंची घास में आगे बढ़ना होगा. जीपीएस की मदद से डमी की जगह पता की जाती है. लेकिन मुश्किल यह है कि रोबोट को दूर से नियंत्रित कर रहे शख्स को घास, धूल या धुएं की वजह साफ वीडियो देखने में परेशानी हो रही है.
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मिल गया
रोबोट ने डमी को खोज निकाला. लेकिन अब घायल सैनिक को सुरक्षित तरीके से बाहर निकालना होगा. ये आसान नहीं.
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कॉलर से पकड़ा
रोबोट नकली सैनिक को कॉलर के पास पकड़ता है. घायल को ऊपर उठाना जरूरी है क्योंकि जख्मी को घसीटते हुए नहीं लाया जा सकता.
तस्वीर: DW/F. Schmidt
हो गई गड़बड़
डमी के भार से रोबोट गिर पड़ा और घायल सैनिक भी. अब रोबोट को डमी को छोड़ना होगा और खुद खड़े होने की कोशिश करनी होगी. इसके बाद ही बचाव का काम आगे बढ़ सकेगा. यह कठिन चुनौती है.
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पोलैंड का वेटलिफ्टर
मारेक, रिमोट से चलने वाला ये रोबोट वारसा की सैन्य अकादमी का है. इसमें एक कैमरा लगा है और खुदाई करने वाले शॉवल भी. यह पेड़ के गिल्टों को भी उठा सकता है. लिहाजा इंसान के वजन उठाना इसके लिए कोई समस्या नहीं.
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सही जगह पहुंचा
निचला शॉवल डमी को छुए बिना जमीन को खोदता है, इससे डमी को उठाने के लिए अच्छी ग्रिप बन जाती है
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सैनिक को कवर किया
मारेक घायल सैनिक को कुछ ही सेकंड में कवर कर लेता है. डमी शॉवल पर सुरक्षित ढंग से लेटी हुई है. अब मारेक डमी को उठाकर वापस लाएगा, ताकि उसे इलाज मिल सके.
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छोटा लेकिन मददगार
लेकिन अगर घटनास्थल पर मारेक जितने बड़े रोबोट के लिए जगह न हो तो. जर्मनी में फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट ने इसके लिए ट्रिक निकाली है. ये छोटा सा रोबोट सीढ़ियां चढ़ सकता है और बहुत ही कम जगह में मुड़ भी सकता है.
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तार और हुक भी
ये छोटा रोबोट घायल को उठा कर नहीं ला सकता. ये खींचने वाले हुक और तार का इस्तेमाल करता है
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बेल्ट पहनना जरूरी
लेकिन ये छोटा रोबोट तभी सफल होगा, जब घायल ने बेल्ट पहनी हो. जीवन रक्षक जैकेट पहनी हो तो काफी मदद मिलेगी.
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दूर से नियंत्रण
इंसानी पायलट रोबोट पर बहुत ही दूर एक टेंट के भीतर से भी कंट्रोल कर सकते हैं. वो रोबोट्स को नहीं देख सकते. ऐसे में पायलट पूरी तरह रोबोट में लगे कैमरों और सेंसरों पर निर्भर रहते हैं.