जर्मन सीमा से लगते ऑस्ट्रियाई शहर का वह घर गिराया जाएगा जहां हिटलर पैदा हुआ था. यहां एक नई इमारत बनाई जाएगी ताकि कोई प्रतीक भी न बचे.
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पश्चिमी ऑस्ट्रिया के ब्राउनाउ अम इन में बना यह तिमंजिला घर बहुत ही सामान्य है. रंग उतर रहा है, खिड़कियों पर धूल जम रही है. दीवारों पर निशान बता रहे हैं कि इमारत बहुत पुरानी पड़ चुकी है. इलाके के बाकी घरों जैसा यह घर कहीं से भी खास नहीं है. खाली पड़े इस घर में कोई आता-जाता भी नहीं, सिवाय कुछ नियो नाजियों के. इसमें कुछ भी तो देखने लायक नहीं है. लेकिन इस घर को लेकर बरसों से कानूनी जंग चल रही थी. यह घर खास है क्योंकि यहां अडॉल्फ हिटलर जन्मा था.
1889 में इसी घर में अडॉल्फ का जन्म हुआ था. अब ऑस्ट्रियाई सरकार ने इसे गिराने का फैसला कर लिया है. गृह मंत्रालय के प्रवक्ता आंद्रियास ग्रोसशार्टनर ने बताया कि बरसों चली कानूनी लड़ाई के बाद इस घर को गिराने का फैसला हो गया है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि यह घर नियोनाजियों यानी हिटलर के विचारों को मानने वालों के लिए मजार का रूप ना ले ले.
इस बारे में 13 सदस्यीय आयोग ने काफी विचार विमर्श के बाद फैसला किया है. हालांकि यह कैसे होगा और इस इमारत की जगह का क्या किया जाएगा, इस बारे में अभी कानूनी प्रक्रिया के तहत फैसला लिया जाना है. इसके लिए संसद में वोटिंग भी होगी. लेकिन सरकार ने फैसला कर लिया है कि मौजूदा इमारत को गिरा दिया जाएगा.
ऑस्ट्रिया में इस वक्त सोशल डेमोक्रैटिक और पीपल्स पार्टी की साझा सरकार है. साथ ही विपक्षी पार्टियों से भी इस प्रस्ताव का समर्थन करने की उम्मीद की जा रही है और माना जा रहा है कि अब इस प्रस्ताव पर अमल में कोई मुश्किल नहीं होगी. गृह मंत्री वोल्फगांग सोबोत्का ने कहा, "इस इमारत के सांकेतिक महत्व और पहचान को बदलने के लिए इसमें आमूलचूल बदलाव की जरूरत है." मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि नींव के अलावा इमारत का कोई मौजूदा हिस्सा नहीं रखा जाएगा और इसकी जगह एक नई इमारत खड़ी की जाएगी. बयान के मुताबिक यहां बनने वाली नई इमारत को सरकार या किसी सामाजिक संस्था को दिया जा सकता है. सरकार जगह को खाली नहीं छोड़ना चाहती क्योंकि उससे ऑस्ट्रिया के इतिहास से नजरें चुराने का संदेश जा सकता है. इस मुद्दे पर बनाए गए आयोग ने सिफारिश की है कि जगह को खाली ना रखा जाए.
तस्वीरों में:
इंसानी इतिहास के सबसे क्रूर तानाशाह
हर चीज को अपने मुताबिक करवाने की सनक, ताकत और अतिमहत्वाकांक्षा का मिश्रण धरती को नर्क बना सकता है. एक नजर ऐसे तानाशाहों पर जिनकी सनक ने लाखों लोगों की जान ली.
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1. माओ त्से तुंग
आधुनिक चीन की नींव रखने वाले माओ त्से तुंग के हाथ अपने ही लोगों के खून से रंगे थे. 1958 में सोवियत संघ का आर्थिक मॉडल चुराकर माओ ने विकास का नारा दिया. माओ की सनक ने 4.5 करोड़ लोगों की जान ली. 10 साल बाद माओ ने सांस्कृतिक क्रांति का नारा दिया और फिर 3 करोड़ लोगों की जान ली.
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2. अडोल्फ हिटलर
जर्मनी के नाजी तानाशाह अडोल्फ हिटलर के अपराधों की लिस्ट बहुत ही लंबी है. हिटलर ने 1.1 करोड़ लोगों की हत्या का आदेश दिया. उनमें से 60 लाख यहूदी थे. उसने दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में भी धकेला. लड़ाई में 7 करोड़ जानें गई. युद्ध के अंत में पकड़े जाने के डर से हिटलर ने खुदकुशी कर ली.
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3. जोसेफ स्टालिन
सोवियत संघ के संस्थापकों में से एक व्लादिमीर लेनिन के मुताबिक जोसेफ स्टालिन रुखे स्वभाव का शख्स था. लेनिन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद सोवियत संघ की कमान संभालने वाले स्टालिन ने जर्मनी को हराकर दूसरे विश्वयुद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई. लेकिन स्टालिन ने अपने हर विरोधी को मौत के घाट भी उतारा. स्टालिन के 31 साल के राज में 2 करोड़ लोग मारे गए.
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4. पोल पॉट
कंबोडिया में खमेर रूज आंदोलन के नेता पोल पॉट ने सत्ता में आने के बाद चार साल के भीतर 10 लाख लोगों को मौत के मुंह में धकेला. ज्यादातर पीड़ित श्रम शिविरों में भूख से या जेल में यातनाओं के चलते मारे गए. हजारों की हत्या की गई. 1998 तक कंबोडिया के जंगलों में पोल पॉट के गुरिल्ला मौजूद थे.
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5. सद्दाम हुसैन
इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन की कुर्द समुदाय के प्रति नफरत किसी से छुपी नहीं थी. 1979 से 2003 के बीच इराक में 3,00,000 कुर्द मारे गए. सद्दाम पर रासायनिक हथियारों का प्रयोग करने के आरोप भी लगे. इराक पर अमेरिकी हमले के बाद सद्दाम हुसैन को पकड़ा गया और 2006 में फांसी दी गई.
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6. ईदी अमीन
सात साल तक युगांडा की सत्ता संभालने वाले ईदी अमीन ने 2,50,000 से ज्यादा लोगों को मरवाया. ईदी अमीन ने नस्ली सफाये, हत्याओं और यातनाओं का दौर चलाया. यही वजह है कि ईदी अमीन को युगांडा का बूचड़ भी कहा जाता है. पद छोड़ने के बाद ईदी अमीन भागकर सऊदी अरब गया. वहां मौत तक उसने विलासिता भरी जिंदगी जी.
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7. मेनगिस्तु हाइले मरियम
इथियोपिया के कम्युनिस्ट तानाशाह से अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लाल आतंक अभियान छेड़ा. 1977 से 1978 के बीच ही उसने करीब 5,00,000 लाख लोगों की हत्या करवाई. 2006 में इथियोपिया ने उसे जनसंहार का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई. मरियम भागकर जिम्बाब्वे चला गया.
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8. किम जोंग इल
इन सभी तानाशाहों में सिर्फ किम जोंग इल ही ऐसे हैं जिन्हे लाखों लोगों को मारने के बाद भी उत्तर कोरिया में भगवान सा माना जाता है. इल के कार्यकाल में 25 लाख लोग गरीबी और कुपोषण से मारे गए. इल ने लोगों पर ध्यान देने के बजाए सिर्फ सेना को चमकाया.
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9. मुअम्मर गद्दाफी
मुअम्मर गद्दाफी ने 40 साल से ज्यादा समय तक लीबिया का शासन चलाया. तख्तापलट कर सत्ता प्राप्त करने वाले गद्दाफी के तानाशाही के किस्से मशहूर हैं. गद्दाफी पर हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने और सैकड़ों औरतों से बलात्कार और यौन शोषण के आरोप हैं. 2011 में लीबिया में गद्दाफी के विरोध में चले लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों में गद्दाफी की मौत हो गई.
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10. फ्रांकोइस डुवेलियर
1957 में हैती की कमान संभालने वाला डुवेलियर भी एक क्रूर तानाशाह था. डुवेलियर ने अपने हजारों विरोधियों को मरवा दिया. वो अपने विरोधियों को काले जादू से मारने का दावा करता था. हैती में उसे पापा डुवेलियर के नाम से जाना जाता था. 1971 में उसकी मौत हो गई. फिर डुवेलियर का बेटा भी हैती का तानाशाह बना.
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इस घर की मालकिन इमारत को बेचने को तैयार नहीं थीं. कई अनुरोधों के बावजूद जब वह महिला घर बेचने को तैयार नहीं हुई तो कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई. मकान मालकिन तो इमारत में थोड़े से भी बदलाव को तैयार नहीं थी क्योंकि उसे लगता था कि इससे जगह की प्रतीकात्मक अहमियत कम हो जाएगी. कुछ इतिहासकार भी उनका साथ देते हैं. वे मानते हैं कि इस इमारत को संरक्षित किया जाना चाहिए क्योंकि नाजी तानाशाह के परिवार से जुड़ीं कुछ ही इमारतें बची हैं.
पास ही में लियोंडिंग शहर है जहां हिटलर बचपन में रहा था. वहां वाले घर को स्थानीय कब्रिस्तान के वास्ते ताबूत रखने का गोदाम बना दिया गया है. हिटलर के माता पिता की कब्रों को भी हटा दिया गया जब नियोनाजी वहां आने लगे. ऐसा परिवार के ही एक व्यक्ति की गुजारिश पर किया गया. ब्राउनाउ के पास फिशलहाम के जिस स्कूल में हिटलर पढ़ा था, वहां एक बैनर लगाया गया है जिस पर हिटलर के इंसानियत विरोधी कामों की तीखी आलोचना लिखी गई है. बर्लिन का वह बंकर भी बर्बाद कर दिया गया था जिसमें 30 अप्रैल 1945 को हिटलर ने खुदकुशी की थी. वह जमीन काफी समय तक खाली पड़ी रही. फिर 1980 के दशक में वहां एक अपार्मेंट कॉम्पलेक्स बना दिया गया. इस अपार्टमेंट से यहूदी नरसंहार में मारे गए लोगों की याद में बनाया गया स्मारक दिखता है.
यह भी देखें: दूसरे विश्वयुद्ध की तस्वीरें
दूसरा विश्व युद्ध तस्वीरों में
01 सितंबर, 1939 को अडोल्फ हिटलर के आदेश पर जर्मन सेना ने पोलैंड पर हमला किया. 08 मई, 1945 तक यूरोप के देश एक दूसरे से लड़ते रहे. जानिए कब क्या हुआ.
तस्वीर: AP
1939
पहली सितंबर के दिन जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया. पोलैंड के सहयोगियों फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ तीन सितंबर को युद्ध का ऐलान किया.
अप्रैल 1940
अप्रैल 1940 में जर्मन सेना डेनमार्क की ओर बढ़ी और नॉर्वे पहुंचने के लिए इस देश को प्लेटफॉर्म बनाया. वहां से जर्मनी को युद्ध के लिए जरूरी कच्चा माल मिलता था. ब्रिटेन इस आपूर्ति को रोकना चाहता था, इसलिए उसने नॉर्वे सेना भेजी. लेकिन जून में नॉर्वे में भी सहयोगी देशों ने घुटने टेक दिए.
लक्जेम्बर्ग
10 मई को जर्मन सेना ने नीदरलैंड्स, बेल्जियम और लक्जेम्बर्ग पर हमला किया. इसके बाद सेना ने पेरिस का रुख किया. 22 जून के दिन फ्रांस ने हाथ खड़े कर दिए. और फ्रांस दो हिस्सों में बंटा. एक हिटलर के राज का हिस्सा और दूसरा विषी फ्रांस जहां जनरल पेटां का शासन था.
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ब्रिटेन का रुख
इसके बाद हिटलर ने ब्रिटेन का रुख किया. उसके बमों ने कोवेंट्री जैसे शहरों को तहस नहस कर दिया. साथ ही उत्तरी फ्रांस और दक्षिणी इंग्लैंड के बीच हवाई लड़ाई भी हुई. ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स ने जर्मन विमानों को ध्वस्त कर दिया. 1941 की शुरुआत में जर्मन हवाई हमले काफी कम हो गए.
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1941
इंग्लैंड में हवाई मार खाने के बाद हिटलर ने ब्रिटेन के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों की ओर रुख किया. इसके बाद उत्तरी अफ्रीका, बाल्कान, सोवियत संघ और फिर युगोस्लाविया पर भी हमला किया गया.
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1942
शुरुआत में रेड आर्मी ने ज्यादा कार्रवाई नहीं की. लेकिन रूस पर चढ़ाई ने जर्मनी की हालत खराब कर दी. भारी नुकसान और मुश्किलों से जर्मनी का हमला कमजोर हुआ. हिटलर के हाथ में करीब करीब पूरा यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और सोवियत संघ के कुछ हिस्से थे. लेकिन साल 1942 निर्णायक साबित हुआ.
तस्वीर: Getty Images
यातना शिविर
इटली की मदद से जर्मनी ने उत्तरी अफ्रीका में ब्रिटिश सेना पर जीत हासिल की लेकिन बाद में जर्मनी ढीला पड़ा. इधर पूर्वी इलाकों में हिटलर ने आउश्वित्स जैसे यातना गृह बना लिए थे. करीब 60 लाख लोग हिटलर के नस्लभेद का शिकार हुए.
तस्वीर: Yad Vashem Photo Archives
1943
उस साल जर्मनी के खिलाफ खड़ी सेनाएं मजबूत हुईं. और लड़ाई में रुख पलटने का प्रतीक स्टालिनग्राड बना. इस शहर के लिए लड़ाई में जर्मनी का उत्साह कमजोर हुआ. उत्तरी अफ्रीका में जर्मन और इटैलियन सैनिकों की हार के बाद मित्र देशों के लिए इटली का रास्ता खुला था.
तस्वीर: picture alliance/akg
1944
रेड आर्मी ने जर्मनी की सेना को पछाड़ना शुरू किया. युगोस्लाविया, रोमानिया, बुल्गारिया, पोलैंड, एक एक कर सारे सोवियत संघ के पास चले गए. छह जून को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और दूसरे देशों की सेना उत्तरी अफ्रीका की नॉर्मैंडी में उतरी. 15 अगस्त को पश्चिमी मित्र देशों ने दक्षिणी फ्रांस पर जवाबी हमला किया. 25 अगस्त के दिन पैरिस को जर्मन कब्जे से छुड़ा लिया गया.
तस्वीर: Getty Images
1944-45
1944-45 की सर्दियों में जर्मन सेना ने हमला करने की कोशिश की लेकिन पश्चिमी देश इस हमले को रोकने में कामयाब रहे. धीरे धीरे वे पश्चिम और पूर्व की ओर से जर्मन साम्राज्य की ओर बढ़े.
तस्वीर: imago/United Archives
1945
08 मई, 1945 को नाजी जर्मनी ने बिना किसी शर्त घुटने टेक दिए. 30 अप्रैल को हिटलर ने खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली ताकि कोई उसे गिरफ्तार न कर सके. यूरोप के अधिकतर शहर छह साल के युद्ध के बाद मलबे में तब्दील हो चुके थे. दूसरे विश्व युद्ध में करीब पांच करोड़ लोग मारे गए. जनरल फील्ड मार्शल विल्हेल्म काइटेल ने मई 1945 को बर्लिन में संधिपत्र पर हस्ताक्षर किए.