पिघलते ग्लेशियर प्रकृति के रहस्य लिए जा रहे हैं
८ अगस्त २०२२![Jamtalferner Gletscher bei Galtuer, Östtereich](https://static.dw.com/image/59635592_800.webp)
वैज्ञानिक आंद्रेया फिशर ऑस्ट्रिया के जमतल ग्लेशियर पर बन चुकी एक खाड़ी पर स्थित एक एक चट्टान पर जा रही हैं. ग्लेशियरों की बर्फ अभूतपूर्व गति से पिघल रही है और उन्हें चिंता है कि अमूल्य वैज्ञानिक डाटा हमेशा के लिए खो जाएगा.
फिशर ऑस्ट्रियन अकाडेमी ऑफ साइंसेज के इंटरडिसिप्लिनरी माउंटेन रिसर्च की उप निदेशक हैं. वो कहती हैं, "मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि बर्फ कभी इतने नाटकीय ढंग से पिघलेगी जितनी इन गर्मियों में पिघली है. हमारे पुरालेख पिघल रहे हैं."
डाटा का खजाना
फिशर 20 सालों से भी ज्यादा से जमतल और चार और अल्पाइन ग्लेशियरों का अध्ययन कर रही हैं. पृथ्वी के बरसों पहले की जलवायु की फिर से रचना करने की कोशिश करने वाले वैज्ञानिकों के लिए इस तरह के ग्लेशियर हजारों साल पीछे तक जाने वाले दुर्लभ टाइम कैप्सूल होते हैं.
इन ग्लेशियरों में डाटा का एक अनमोल खजाना है. वो जैसे जैसे फैलते गए उनकी बर्फ में पट्टियां और टहनियां समाती गईं, जिनकी अब कार्बन डेटिंग से उम्र पता की जा सकती है. फिर उनकी उम्र और वो जितनी गहराई में मिले उसके आधार पर वैज्ञानिक पता लगा सकते हैं कि कब ठंडे मौसम में बर्फ और बढ़ी या कब मौसम थोड़ा गर्म हुआ और बर्फ पिघली.
लेकिन अब ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. यूरोप की सबसे ऊंची पहाड़ियों में पिछले 120 सालों में तापमान लगभग दो डिग्री सेल्सियस बढ़े हैं. इंटरनैशनल कमीशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ द ऐल्प्स के मुताबिक ये वैश्विक औसत का लगभग दोगुना है.
ग्लेशियर रहेगा ही नहीं
इस वजह से ऐल्प्स के करीब 4,000 ग्लेशियर ग्लोबल वॉर्मिंग के सबसे पक्के संकेतों में से एक बन गए हैं. फिशर कहती हैं जमतल ग्लेशियर की सतह हर साल करीब एक मीटर सिमट रही है, लेकिन इस साल तो अभी तक ही वो एक मीटर से भी ज्यादा सिमट गई है.
वो चेतावनी देती हैं, "और अभी तो गर्मियों के कम से कम दो महीने बचे हैं...जब ग्लेशियर पूरी तरह से सूरज के आगे उघाड़ा हुआ रहता है." बर्फ अमूमन ग्लेशियल आइस को सूरज की गर्मी से सितंबर तक बचा कर रखती है, लेकिन पिछली सर्दियों में जो थोड़ी बहुत बर्फ गिरी वो वो जुलाई की शुरुआत तक ही पिघल गई थी.
फिशर कहती हैं, "यह साल तो पिछले 6,000 सालों के औसत के मुकाबले बेहद चौंका देने वाला है. अगर यह ऐसे ही चलता रहा तो पांच सालों में जमतल ग्लेशियर एक ग्लेशियर रहेगा ही नहीं."
फिशर का अनुमान है कि गर्मियों के अंत तक उसके सतह से करीब सात मीटर बर्फ पिघल जाएगी. ये करीब 300 सालों के जलवायु "पुरालेख" के बराबर है. फिशर और उनकी टीम ने जमतल के दोनों तरफ से और दूसरे ग्लेशियरों में भी छेद कर डाटा निकाला है. उन्होंने 14 मीटर तक की गहराई से बर्फ के सैंपल निकाले हैं.
जैसे जैसे तापमान बढ़ रहा है और ग्लेशियर और अस्थिर होते जा रहे हैं, उन्हें और सुरक्षात्मक इंतजाम भी करने पड़ रहे हैं. जुलाई में इटली के डोलोमाइट में तापमान के रेकॉर्ड स्तर हासिल करने के अगले ही दिन हिमस्खलन हुआ और 11 लोग मर गए.
सीके/एए (एएफपी)