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अपने आप चलने वाली कार का सपना अभी कितना दूर है?

२ अगस्त २०१९

स्वचलित कारें अभी तो आम लोगों के लिए दूर की कौड़ी ही हैं लेकिन अगले 30 सालों में दुनियाभर की कारों में 70 प्रतिशत अपने आप चलने वाली कारें होंगी. पर क्या ये सब इतना आसान होगा?

Testfeld Autonomes Fahren
तस्वीर: picture-alliance/M. Murat/dpa

सड़कों पर तो कारें जाम में फंसी ही रहती हैं लेकिन ऑटो उद्योग का हाल भी किसी भयानक ट्रैफिक जाम से कम नहीं है. कहीं इलेक्ट्रिक कारें, तो कहीं अपने आप चलने वाली कारें.  ये सभी ऑटोमोटिव उद्योग और नियम बनाने वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं. हालांकि उद्योग को उम्मीद है कि जल्दी ही ये सब मिलकर ट्रैफिक को सस्ता, सुगम और इको फ्रेंडली बनाएगा.

फिलहाल कार शेयरिंग का काम अच्छा चल रहा है. जर्मन कार शेयरिंग एसोसिएशन के मुताबिक जर्मनी में करीबन 25 लाख लोग कार शेयरिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह पिछले साल की तुलना में 17 प्रतिशत ज्यादा है. साथ ही जर्मनी की सड़कों पर इलेक्ट्रिक कार का दिखना आम हो गया है.

हालांकि अपने आप चलने वाली कारें अभी दूर की कौड़ी ही साबित हो रही हैं. वैसे भी ये कुछ ऐसा नहीं है जो एक रात में हो जाएगा. इस क्षेत्र में हो रहे विकास के बारे में भी रोज बात नहीं की जाती है. हालांकि ये आज भी वाहन बनाने वाली कंपनियों के लिए प्रमुख कामों में बना हुआ है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Deck

यही वजह है कि हाल ही में फोल्क्सवागेन और फोर्ड के साथ साथ बीएमडब्ल्यू और डायम्लर के बीच अपने आप चलने वाली कार विकसित करने का समझौता हुआ है. सिर्फ कार बनाने वाली कंपनियां ही नहीं बल्कि गूगल जैसी कंप्यूटर तकनीकी वाली कंपनियों के साथ मोबाइल निर्माता और कई स्टार्टअप भी स्वचलित कार बनाने की कोशिश में लगे हैं.

जैसे स्वीडन के स्टार्टअप आइनराइड सड़क पर पूरी तरह से स्वचलित ट्रक उतारने वाली पहली कंपनी बनी. टी पॉड नाम का ये इलेक्ट्रिक ट्रक डीही शेंकर के दो वेयरहाउसों के बीच सामान लाने-ले जाने का काम करता है. इसमें कोई ड्राइवर नहीं होता. इसमें ड्राइवर की सीट भी नहीं है.

टी पॉड को मार्च 2019 में स्वीडन सरकार ने सड़क पर चलने की अनुमति दी थी क्योंकि यह स्वीडन के सभी ट्रैफिक नियमों का पालन कर रहा था. यह ट्रक वहां के औद्योगिक पार्क की सार्वजनिक सड़क पर सफलतापूर्वक चल चुका है. टी पॉड ने भले ही ठीक से काम किया हो लेकिन स्वचलित ट्रक अभी भी एक पायलट प्रोजेक्ट ही है. और उसे 2020 तक ही सड़क पर चलने की अनुमति मिली है.

आज की तारीख में हम कहां है?

तकनीकी रूप से देखें तो दुनियाभर में स्वचलित वाहनों के साथ अलग-अलग प्रयोग चल रहे हैं. लेकिन अभी भी यह देखना दिलचस्प है कि स्वचलित कारें कब सड़क पर बिना किसी विशेष अनुमति के चल पाएंगी. हालांकि जर्मनी में हाइली ऑटोमेटेड वाहनों जिन्हें पायलेटेड वाहन कहा जाता है, को साल 2017 से चलने की अनुमति दे दी गई थी. ये पूर्ण स्वचलित वाहनों की तरफ तीसरा कदम है. ऑटोमोटिव उद्योग और सोसायटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजिनियर्स स्वचलित ड्राइविंग को विकसित करने के लिए पांच चरणों की एक योजना लाया है.

हर स्तर का मतलब स्वचलित वाहनों का एक नया तौर तरीका होगा जिससे धीरे-धीरे ड्राइवर की जरूरत खत्म हो जाएगी. स्तर 3 का मतलब होगा कि कार पूरी तरह खुद से चल सकेगी लेकिन तब भी एक ड्राइवर की जरूरत होगी. इसका मतलब ड्राइवर किसी भी परिस्थित में खुद गाड़ी चला सकता है, लेकिन जैसे ही इस गाड़ी को हाइली ऑटोमेटेड मोड में डाला जाएगा तो ड्राइवर फिर ट्रैफिक से ध्यान हटाकर बेफिक्र होकर चाहे तो अखबार पढ़ सकता है या अपने बच्चे के साथ खेल सकता है.

ये वाहन अपने आप को और परिस्थितियों को संभालने में स्मार्ट होगा. ये अपनी स्टीयरिंग और ब्रेक खुद संभाल सकेगा. जरूरत पड़ने पर चेतावनी दे सकेगा. हालांकि इसका सिस्टम इस तरह बना है कि ड्राइवर जब चाहे कमान संभाल सकता है. स्तर 3 को राजमार्गों पर चलने के लिए बनाया गया है. अभी इससे आगे के स्तरों के वाहन सड़क पर चलने के लिए तैयार नहीं हैं.  हालांकि सभी बड़ी कंपनियां स्वचलित वाहन तैयार करने की कोशिशों में लगी हुई हैं.

तस्वीर: MIT/akinbostanci

स्वचलित गाड़ियों के सामने अभी कई चुनौतियां हैं जिनसे पार पाने के बाद ही वे सड़क पर उतर सकेंगी. इनमें से प्रमुख हैं: कानूनी चुनौतियां, तकनीकी रूप से परिपक्वता, वाहन की गति और ढांचागत विकास. ये सभी चुनौतियां अलग-अलग देश के हिसाब से अलग-अलग हैं. हालांकि बड़े-बड़े संस्थान अभी इन सब मुश्किलों का हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं. कुछ रिसर्चर कह रहे हैं कि 2020 तक दुनिया में दो प्रतिशत कारें स्वचलित हो जाएंगी. 2050 आते-आते यह संख्या दुनियाभर में 70 प्रतिशत हो जाएगी. लेकिन इसके लिए कार निर्माताओं को सब चुनौतियों से पार पाना होगा.

रिपोर्ट: हाना फुक्स/आरएस

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