हवाई जहाज उद्योग में एयरबस ने बोइंग को पीछे छोड़ा
१८ जून २०२५
आंकड़ों के लिहाज से लंबी दूरी तय करने के लिए हवाई जहाज सबसे सुरक्षित है. यहां तक की घर से एयरपोर्ट जाना भी विमान में बैठ कर अपने गंतव्य तक पहुंचने की तुलना में ज्यादा जोखिम भरा होता है.
हालांकि जब एयर इंडिया फ्लाइट 171 के जैसा कोई विमान हादसा होता है, तो यह आंकड़े विलुप्त हो जाते हैं. पिछले हफ्ते 12 जून को हुई इस हादसे में 241 यात्रियों और क्रू सदस्यों समेत कुल 270 लोगों की जान गई.
ऐसे दुखद हादसों का असर केवल पीड़ितों तक सीमित नहीं रहता है. आर्थिक क्षेत्र में भी इसका असर साफ नजर आता है. एक पैसेंजर विमान के लिए केवल उसकी कार्यक्षमता और पर्यावरण के प्रति अनुकूलता ही काफी नहीं होती, बल्कि उसका सुरक्षित संचालन सबसे अहम होता है.
एयरबस निकला आगे
कई दशकों तक बोइंग व्यावसायिक विमान बनाने और बेचने की होड़ में विश्व में सबसे आगे रहा लेकिन पिछले कुछ सालों से यह कंपनी लगातार संघर्ष कर रही है और भारी घाटे का सामना भी रही है.
साल 2024 में बोइंग को करीब 11.8 अरब डॉलर का परिचालन घाटा हुआ और उसकी कुल कमाई 66.5 अरब डॉलर रही.
इस साल में बोइंग ने केवल 348 यात्री विमान डिलीवर किए, जो 2023 के 528 विमानों की तुलना में काफी कम हैं. इस गिरावट के पीछे कई कारण माने जा रहे हैं, जैसे जनवरी में एक उड़ान के दौरान विमान का दरवाजा ढीला होकर खुल जाना, शरद ऋतु में हुई मशीन चलाने वालों की हड़ताल और सप्लाई चेन में लगातार आ रही समस्याएं.
पिछले साल एयरबस ने 766 विमान डिलीवर किए. यह बोइंग के मुकाबले बहुत ज्यादा थे. इन संख्याओं से लगता है कि एयरबस अब बाजार में बोइंग से काफी निकल चुका है. एयरबस में लगभग 1,60,000 कर्मचारी काम करते है. इस अवधि में उसने करीब $5.78 अरब डॉलर का लाभ कमाया और उसकी कुल कमाई लगभग $75.43 अरब डॉलर रही.
यात्री विमानों के उत्पादन और बिक्री के आंकड़ों से पूरी कहानी का पता नहीं लगाया जा सकता है. दोनों कंपनियां सिर्फ हवाई जहाज ही नहीं बनाती हैं. बल्कि वह अंतरिक्ष प्रणालियों और रक्षा उपकरणों के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं. इस वजह से इन दोनों कंपनियों की सीधी तुलना कर पाना कठिन है.
एयरबस और बोइंग की बदकिस्मती और गलतियां
एयर इंडिया विमान हादसा बोइंग की सुरक्षा छवि के लिए ताजा झटका है. हाल के समय में अमेरिकी कंपनी, बोइंग लगातार एक के बाद एक दुर्घटनाओं और तकनीकी समस्याओं से जूझती रही है. जिसके कारण इसके निर्माण कार्य में भी कई बार रुकावट आई है.
बोइंग की मुश्किलों की साफ झलक तब दिखी जब उसकी तुलना एयरबस से की गई. खासकर तब जब दोनों के सबसे बड़े विमानों की तुलना सामने आई.
एयरबस का सबसे बड़ा विमान, ए380 अब तक का सबसे बड़ा पैसेंजर हवाई जहाज है. इस दो-मंजिला विशाल विमान के लिए दुनिया भर के हवाईअड्डों को अपने टर्मिनल, गेट और बुनियादी ढांचे में कई बड़े बदलाव करने पड़े हैं.
इसमें चार इंजन थे और इसके रख-रखाव की लागत भी काफी ज्यादा थी. इसमें 500 से 850 यात्रियों के बैठने की व्यवस्था थी, जिसे भर पाना ज्यादातर एयरलाइंस के लिए मुश्किल हो रहा था. जिस वजह से ए380 का संचालन आर्थिक रूप से जोखिम भरा हो गया और अंत में 2021 में एयरबस ने इसे बनाना बंद कर दिया.
ड्रीमलाइनर ने तोड़ा दिल
बोइंग ने अपने लिए एयरबस से अलग रास्ता चुना. जब उसने अपने प्रसिद्ध 747 जंबो जेट का उत्पादन बंद किया, तो उसने ए380 से मुकाबले के लिए 787 ड्रीमलाइनर विमान विकसित करना शुरू किया, जो पुराने 767 विमान का बेहतर विकल्प था.
एक तरफ एयरबस ने चुपचाप ए380 को हटाना शुरू कर दिया था, दूसरी तरफ बोइंग ड्रीमलाइनर के प्रति लगातार नकारात्मक खबरें सामने आने लगीं. इस विमान में इस्तेमाल किए गए नए सामान और सप्लायरों के साथ तालमेल की कमी जैसी समस्याएं सामने आईं. इसके चलते परीक्षण उड़ानें रद्द करनी पड़ी, पहली उड़ानों में देरी हुई और विमान की डिलीवरी समय पर नहीं हो सकी.
इसके बाद सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं सामने आने लगी. 2013 में जब ड्रीमलाइनर को इस्तेमाल में आए केवल कुछ ही समय हुआ था. तब दो अलग-अलग घटनाओं में बैटरियों में आग लगने की शिकायतें सामने आई. जिसके बाद पूरी दुनिया में ड्रीमलाइनर विमानों को ग्राउंड कर दिया गया यानी अस्थायी रूप से इस्तेमाल बंद कर दिया गया.
अमेरिका और यूरोप में सब्सिडी को लेकर टकराव
एयरबस और बोइंग के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा साल 2000 में एयरबस (यूरोपियन एरोनॉटिक डिफेंस एंड स्पेस कंपनी) की आधिकारिक स्थापना के साथ और भी तेज हो गई. दोनों कंपनियों के बीच बाजार पर नियंत्रण की लड़ाई इतनी गंभीर रही कि इसमें विश्व व्यापार संगठन, अमेरिका, यूरोप की सरकार भी शामिल हो गई.
इस टकराव का मुख्य कारण था कि सरकारी सब्सिडी किसे ज्यादा मिलती है और वह सब्सिडी उचित है या नहीं.
इस सवाल का सीधा जवाब देना लगभग नामुमकिन है. अमेरिका में केवल एक देश की केंद्र सरकार सब्सिडी देती है, जबकि यूरोप में कई देश जैसे नीदरलैंड, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन, जर्मनी और यूरोपीय आयोग (ब्रसेल्स) मिलकर इसमें भूमिका निभाते हैं.
मामला और जटिल हो जाता है, जब दिखता है कि दोनों कंपनियां सिर्फ यात्री विमान नहीं बनाती, बल्कि अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में भी एक-दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हैं. हालांकि दोनों रक्षा क्षेत्र की शीर्ष कंपनियों में नहीं आती, फिर भी बोइंग इस क्षेत्र में छठे स्थान पर है, जबकि एयरबस 13वें स्थान पर है. देखा जाए तो बोइंग इस क्षेत्र में काफी आगे है, लेकिन दोनों ही कंपनियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.
दोनों ही कंपनियां सरकारी ठेकों पर बहुत हद तक निर्भर करती हैं. हालांकि यह ठेके केवल अनुसंधान और विकास क्षेत्र में आगे बढ़ने में काम नहीं आते, बल्कि सरकारें खुद इन कंपनियों की सबसे बड़े ग्राहक हैं. इसलिए यह तय कर पाना मुश्किल है कि सब्सिडी किस व्यापार क्षेत्र में दिया गया है और कितना दिया गया है.
बोइंग और एयरबस की नई चुनौती
जहां ब्राजील की कंपनी, एम्ब्रेयर केवल छोटे क्षेत्रीय विमानों पर फोकस करती है और कनाडा की कंपनी, बॉम्बार्डियर सिर्फ बिजनेस जेट में काम कर रही है.
वहीं अब चीन इस क्षेत्र में एक नया और महत्वाकांक्षी खिलाडी बनकर उभर रहा है. चीन दुनिया के सबसे बड़े विमान बाजारों में से एक है. वह अब अपनी विमान बनाने वाली घरेलू कंपनी ‘कमर्शियल एयरक्राफ्ट कारपोरेशन ऑफ चाइना' (कोमेक) के जरिए ध्यान खींच रहा है.
2008 में स्थापित शंघाई की इस कंपनी को चीनी सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है. कोमेक ने 2015 में सी919 नाम का पहला यात्री विमान पेश किया. यह दो इंजन वाला पैसेंजर एयरक्राफ्ट पूरी तरह से चीन में तैयार किया गया था.
अब कोमेक रूसी एयरोस्पेस और रक्षा कंपनी यूएसी के साथ मिलकर सी929 नाम का एक लंबी दूरी का विमान विकसित करने की योजना बना रहा है. जिसे 2028 तक बाजार में लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. हालांकि, तब तक चौड़ी बॉडी वाले वाणिज्यिक विमानों का बाजार अमेरिका की बोइंग और यूरोप की एयरबस के कब्जे में ही रहेगा.