अयोध्या की जमीन ट्रस्ट को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया अवैध
समीरात्मज मिश्र
७ जनवरी २०२२
अयोध्या में जमीन विवाद के एक मामले में हुई जांच में महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को जमीन ट्रांसफर किए जाने को अवैध पाया गया है. ट्रस्ट को ट्रांसफर हुई इसी जमीन को खरीदने वालों में बड़े अधिकारी और विधायक तक शामिल हैं.
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उत्तर प्रदेश में अयोध्या के असिस्टेंट रिकॉर्ड ऑफिसर यानी एआरओ की कोर्ट ने दलितों की करीब 21 बीघा जमीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट को ट्रांसफर करने के सरकारी आदेश को अवैध माना है. यह जमीन 22 अगस्त 1996 को ट्रांसफर की गई थी. एआरओ कोर्ट ने ट्रांसफर वाले सरकारी आदेश को अवैध घोषित कर जमीन राज्य सरकार को सौंप दी है. इसका मतलब हुआ कि कोर्ट ने जमीन ट्रांसफर की पूरी प्रक्रिया को ही अवैध माना है. हालांकि कोर्ट ने ट्रस्ट के खिलाफ किसी कार्रवाई की सिफारिश नहीं की है क्योंकि कोर्ट के मुताबिक, इसमें किसी तरह की जालसाजी नहीं की गई है.
पिछले साल 22 दिसंबर 2021 को अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी थी जिसके मुताबिक, अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां जमीन के दाम काफी बढ़ गए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां जमीन खरीदने वालों में अयोध्या में तैनात कई नौकरशाह, उनके रिश्तेदार और जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं.
जिस जमीन पर एआरओ कोर्ट का फैसला आया है, वह रामजन्मभूमि स्थल से करीब पांच किलोमीटर दूर है और कुछ दलित समुदाय के लोगों ने दलितों से जमीन खरीद कर ट्रस्ट को दान किया था. बाद में इसी जमीन को ट्रस्ट ने अयोध्या के कई हाईप्रोफाइल लोगों को बेच दिया. इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगले ही दिन जमीन सौदों की जांच के आदेश दे दिए.
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1528
कुछ हिंदू नेताओं का दावा है कि इसी साल मुगल शासक बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी.
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1853
इस जगह पर पहली बार सांप्रदायिक हिंसा हुई.
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1859
ब्रिटिश सरकार ने एक दीवार बनाकर हिंदू और मुसलमानों के पूजा स्थलों को अलग कर दिया.
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1949
मस्जिद में राम की मूर्ति रख दी गई. आरोप है कि ऐसा हिंदुओं ने किया. मुसलमानों ने विरोध किया और मुकदमे दाखिल हो गए. सरकार ने ताले लगा दिए.
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1984
विश्व हिंदू परिषद ने एक कमेटी का गठन किया जिसे रामलला का मंदिर बनाने का जिम्मा सौंपा गया.
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1986
जिला उपायुक्त ने ताला खोलकर वहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी. विरोध में मुसलमानों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.
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1989
विश्व हिंदू परिषद ने मस्जिद से साथ लगती जमीन पर मंदिर की नींव रख दी.
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1992
वीएचपी, शिव सेना और बीजेपी नेताओं की अगुआई में सैकड़ों लोगों ने बाबरी मस्जिद पर चढ़ाई की और उसे गिरा दिया.
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जनवरी 2002
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में एक विशेष सेल बनाया. शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी गई.
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मार्च 2002
गोधरा में अयोध्या से लौट रहे कार सेवकों को जलाकर मारे जाने के बाद भड़के दंगों में हजारों लोग मारे गए.
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अगस्त 2003
पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं.
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जुलाई 2005
विवादित स्थल के पास आतंकवादी हमला हुआ. जीप से एक बम धमाका किया गया. सुरक्षाबलों ने पांच लोगों को गोलीबारी में मार डाला.
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2009
जस्टिस लिब्रहान कमिश्न ने 17 साल की जांच के बाद बाबरी मस्जिद गिराये जाने की घटना की रिपोर्ट सौंपी. रिपोर्ट में बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया गया.
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सितंबर 2010
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विवादित स्थल को हिंदू और मुसलमानों में बांट दिया जाए. मुसलमानों को एक तिहाई हिस्सा दिया जाए. एक तिहाई हिस्सा हिंदुओं को मिले. और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. मुख्य विवादित हिस्सा हिंदुओं को दे दिया जाए.
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मई 2011
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को निलंबित किया.
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मार्च 2017
रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों को यह विवाद आपस में सुलझाना चाहिए.
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मार्च, 2019
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की मध्यस्थता के लिए एक तीन सदस्यीय समिति बनाई. श्रीश्री रविशंकर, श्रीराम पांचू और जस्टिस खलीफुल्लाह इस समिति के सदस्य थे. जून में इस समिति ने रिपोर्ट दी और ये मामला मध्यस्थता से नहीं सुलझ सका. अगस्त, 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोज इस मामले की सुनवाई शुरू की.
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नवंबर, 2019
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया कि विवादित 2.7 एकड़ जमीन पर राम मंदिर बनेगा जबकि अयोध्या में मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन सरकार मुहैया कराएगी.
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अगस्त, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
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महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने साल 1992 से 1996 के बीच बरहटा माझा गांव और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी थी. इन्हीं जमीनों में 21 बीघा जमीन ऐसी थी जो दलितों की थी और उसकी खरीद में सारे नियम-कानून ताख पर रख दिए गए. दरअसल, दलित समुदाय का कोई व्यक्ति दलित समुदाय के ही किसी अन्य व्यक्ति को जमीन बेच सकता है और दलित समुदाय के व्यक्ति से जमीन खरीदने के लिए मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होती है. लेकिन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने इससे बचने के लिए दलितों की जमीन अपने करीबी एक दलित व्यक्ति को दिला दी और फिर उस व्यक्ति ने वह जमीन ट्रस्ट को दान कर दी.
लेकिन जिन दलितों की जमीन खरीदी गई उन्हीं में से महादेव नाम के एक व्यक्ति ने लखनऊ स्थित राजस्व परिषद में इसकी शिकायत कर दी. इस शिकायत की जांच के लिए एक कमेटी बनी और पिछले साल अयोध्या के तत्कालीन जिलाधिकारी अयोध्या की संस्तुति से यह मामला एआरओ की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया. जमीन ट्रांसफर की प्रक्रिया अवैध घोषित किए जाने के बाद अब यह पूरी जमीन सरकारी हो गई है.
एआरओ भान सिंह के मुताबिक, एसडीएम के आदेश के बाद यह पूरी जमीन ग्रामसभा में शामिल कर ली जाएगी. अयोध्या के जिलाधिकारी नितीश कुमार के मुताबिक, मुख्यमंत्री के आदेश पर शासन स्तर पर गठित जांच टीम ने अयोध्या आकर इस प्रकरण की जांच की है कि महर्षि ट्रस्ट से जुड़ी जमीनों को किन-किन लोगों ने खरीदा, क्या उनका महर्षि ट्रस्ट के प्रकरण से किसी तरह से जुड़ाव था या नहीं और ये पूरी रिपोर्ट शासन को सौंप दी गई है.
इस मामले के सामने आने के बाद इसने राजनीतिक तूल भी पकड़ लिया. कांग्रेस पार्टी ने आरोप लगाया था कि बीजेपी के कई नेताओं और उत्तर प्रदेश शासन के कुछ अफसरों ने अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के आसपास की जमीनों को औने-पौने दाम पर खरीदा है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह आरोप लगाया कि राम मंदिर के आस-पास की जमीनों की लूट हो रही है और इस कथित लूट में बीजेपी के नेता और स्थानीय अधिकारी शामिल हैं. इससे पहले, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी निभा रहे श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर भी जमीन खरीद में धांधली के आरोप लगे थे और उसकी भी जांच चल रही है.
जमीन विवाद का यह इकलौता मामला नहीं है बल्कि विकास की संभावना देखते हुए जमीनों के दाम अक्सर बढ़ते हैं और जिन्हें इसके बारे में जानकारी होती है वो सरकारी तंत्र से जमीन खरीदकर बाद में उसे महंगे दाम पर बेच देते हैं. जगह-जगह बने एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले हों या फिर नए जिला या तहसील मुख्यालय बनने के दौरान की प्रक्रिया हो, यह सामान्य बात है. लेकिन कई बार कुछ मामलों में हाईप्रोफाइल लोगों के शामिल होने की वजह से मामला ज्यादा सुर्खियों में आ जाता है.
अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
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राम मंदिर भूमि पूजन
5 अगस्त 2020 भारतीय इतिहास में उस तारीख के रूप में दर्ज हो गई जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया गया. लंबे कानूनी झगड़े के बाद अयोध्या में विशाल राम मंदिर निर्माण होने जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया.
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राम मंदिर की नींव
नरेंद्र मोदी ने राम जन्मभूमि मंदिर की नींव में नौ शिलाएं रखीं. भूमि पूजन का शुभ मुहूर्त 12 बजकर 44 मिनट पर था. तय कार्यक्रम के मुताबिक पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया गया. अयोध्या पहुंचकर सबसे पहले मोदी ने हनुमान गढ़ी जाकर दर्शन किए और आरती उतारी. टीवी चैनलों पर सुबह से ही कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया जा रहा था.
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राम के दर्शन
मोदी ने राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास करने के बाद कहा कि राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, "आज पूरा देश राममय और हर मन दीपमय है. सदियों का इंतजार समाप्त हुआ." सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दशकों पुराने मामले का निबटारा करते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था. मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन मिली है.
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राम भक्तों का जश्न
राम मंदिर निर्माण की नींव रखे जाने से भारत में राम भक्तों के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी. कोरोना वायरस की वजह से राम मंदिर भूमि पूजन के लिए सीमित संख्या में मेहमानों को आमंत्रित किया गया था. ज्यादातर लोगों ने ढोल और नगाड़े बजाकर अपनी खुशी का इजहार किया. इस तस्वीर में बीजेपी युवा मोर्चा के कार्यकर्ता जश्न मनाते दिख रहे हैं. राम मंदिर आंदोलन के सहारे ही बीजेपी सत्ता के शिखर तक पहुंच पाई.
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खुशी से झूमती महिलाएं
नई दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय के बाहर महिलाएं खुशी से झूमती हुईं. राम मंदिर के लिए वीएचपी, आरएसएस और बीजेपी ने आंदोलन चलाया. आंदोलन से जुड़े दो वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी राम मंदिर भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए.
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पटाखों के साथ खुशी
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखने के बाद नई दिल्ली में बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़े और हवा में रंग उड़ाए. कई शहरों में राम भक्तों ने लड्डू बांटे और एक दूसरे को इस अवसर पर बधाई दी.
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खास मेहमान
पिछले कई महीनों से अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास को लेकर हलचल तेज थी और तैयारियां जोरों पर थीं. राम मंदिर तीर्थ ट्रस्ट ने भूमि पूजन के लिए खास तैयारी की थी. चुनिंदा मेहमानों के अलावा भूमि पूजन के लिए आम लोगों को जाने की इजाजत नहीं थी. लोग दूर से इस पल का गवाह बने.
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सीधा प्रसारण
राम मंदिर भूमि पूजन का सीधा प्रसारण टीवी पर किया गया. कोरोना वायरस के कारण लोगों ने बड़ी स्क्रीन पर मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम देखा. कई शहरों में इसके लिए खास इंतजाम किए गए थे.
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
लड्डू का प्रसाद
अयोध्या में प्रसाद के तौर पर पिछले कुछ दिनों से लड्डू बनाने का काम चल रहा था. भूमि पूजन के बाद 1,11,000 डिब्बों में प्रसाद के रूप में देसी घी के लड्डू वितरित किए गए. इन लड्डूओं को कई तीर्थ क्षेत्रों में वितरित भी किया जाएगा.
तस्वीर: IANS
अयोध्या में सैनिटाइजेशन
कोरोना वायरस के कारण पूरी अयोध्या नगरी को सैनिटाइज किया गया. तमाम रास्तों, गलियों, मंदिरों और भूमि पूजन से जुड़ी जगहों को स्वास्थ्य कर्मचारियों ने सैनिटाइज किया. भूमि पूजन के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा, "कोरोना से बनी स्थितियों के कारण भूमि पूजन का कार्यक्रम मर्यादाओं के बीच हो रहा है."
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सख्त पहरा
अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के पहले ही सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी. भूमि पूजन से पहले ही अयोध्या में तीन चक्र की सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे. स्थानीय पुलिस, अर्धसैनिक बल और एसपीजी के जवान तैनात किए गए थे.
तस्वीर: Reuters/P. Kumar
अयोध्या
अयोध्या में पिछले कुछ हफ्तों से सजावट का काम चल रहा था. जगह-जगह दीवारों पर राम के चित्र बनाए गए और सड़कों पर रंगोली बनाई गई. सरयू नदी पर मंगलवार से ही मनमोहक नजारा दिख रहा है. नदी के किनारे को भूमि पूजन के लिए रंगीन रोशनी और रंगोली से सजाया गया.
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हरियाणा में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर भी रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी को औने-पौने दाम पर जमीन देने और नियमों को ताख पर रखने के आरोप लगे थे. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी प्राइवेट लिमिटेड ने साल 2008 में गुरुग्राम और उसके आस-पास जमीनें खरीदी थीं. आरोप हैं कि कंपनी ने ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज से साढ़े तीन एकड़ जमीन जमीन साढ़े सात करोड़ रुपए में खरीदी जबकि इस कंपनी की नेटवर्थ महज एक लाख रुपये थी. विपक्ष ने उस वक्त इस मामले को लेकर काफी हंगामा किया था लेकिन करीब सात साल से मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है.
एक दशक से भी ज्यादा पहले पश्चिम बंगाल में सिंगुर में हुआ जमीन विवाद राजनीतिक स्तर पर इतना ज्यादा तूल पकड़ गया कि दशकों से काबिज वामपंथी सरकार की पश्चिम बंगाल से विदाई हो गई. टाटा ग्रुप के रतन टाटा ने 18 मई 2006 को घोषणा की थी कि वह पश्चिम बंगाल के हुगली ज़िले के सिंगुर में करीब 997 एकड़ जमीन पर नैनो कार फैक्टरी बनाएंगे. उस समय पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा की सरकार थी और मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य थे. करीब 6 हज़ार किसानों ने जमीन देने के लिए दस्तावेज पर दस्तखत कर दिए लेकिन बड़ी संख्या में किसानों ने अपनी जमीनें नहीं दीं. बावजूद इसके, सरकार के सहयोग से उन लोगों की भी जमीनें जबरन ले ली गईं. टाटा ग्रुप ने वहां निर्माण कार्य भी शुरू कर दिया लेकिन ममता बनर्जी के नेतृत्व में चले लंबे आंदोलन के बाद टाटा को अपनी कंपनी बंद करनी पड़ी. बाद में ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद लोगों की जमीनें वापस कर दी गईं. हालांकि वो जमीनें अब उस तरह से खेती करने योग्य नहीं रहीं, जैसी कि पहले थीं.
पिछले साल तेलंगाना के मलिकाजगिरी से कांग्रेस पार्टी के लोकसभा सदस्य रेवंत रेड्डी ने आरोप लगाया था कि तेलंगाना सरकार द्वारा कोकापेट की जमीन को नीलामी में 1,000 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है. तेलंगाना कांग्रेस ने इस मामले को लेकर प्रदर्शन करने की भी कोशिश की थी लेकिन तमाम नेताओं को नजरबंद कर दिया गया और इस मामले को लेकर काफी हंगामा हुआ. रेड्डी का आरोप है कि तेलंगाना सरकार न अपने रिश्तेदरों को जमीन कौड़ियों के भाव में बेच दी है. कोकापेट रंगारेड्डी जिले में औद्योगिक क्षेत्र है जहां औद्योगिक इकाइयों के लिए जमीन की नीलामी की जानी थी. इसे लेकर कोर्ट में भी कुछ याचिकाएं दाखिल की गई थीं लेकिन कोर्ट ने उन याचिकाओं को खारिज कर दिया.