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अयोध्या में फिर चर्चा में आया भूमि विवाद

समीरात्मज मिश्र
२३ दिसम्बर २०२१

इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या में तैनात अधिकारियों और नेताओं के अलावा उनके रिश्तेदारों ने बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी है.

तस्वीर: Rajeev Bhatt/AP/picture alliance

करीब छह महीने पहले अयोध्या में मंदिर निर्माण की जिम्मेदारी निभा रहे श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पर भी बड़े पैमाने पर महंगी दरों पर जमीनें खरीदने के आरोप लगे थे. आरोप अयोध्या के मेयर और ट्रस्ट के सचिव चंपतराय पर लगे थे.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां जमीनें खरीदने की होड़ लग गई और खरीददारों में सबसे ज्यादा स्थानीय विधायक, मेयर, नौकरशाह और इनके रिश्तेदार शामिल हैं.

तस्वीरेंः भूमि पूजन

रिपोर्ट के मुताबिक इन लोगों ने राम मंदिर स्थल के 5 किमी के दायरे में जमीन खरीदी हैं. इनमें अयोध्या के स्थानीय विधायक वेदप्रकाश गुप्त, महापौर ऋषिकेश उपाध्याय के अलावा राज्य ओबीसी आयोग के एक सदस्य हैं और राज्य सूचना आयुक्त के रिश्तेदार भी शामिल हैं. जिन अधिकारियों के नाम जमीन खरीद में आए हैं उनमें अयोध्या में तैनात मंडलायुक्त, एसडीएम, डीआईजी और कुछ अन्य अधिकारी शामिल हैं.

कई अनियमितताएं

रिपोर्ट के मुताबिक, जमीन खरीदने में कई तरह की अनियमितताएं भी सामने आई हैं. ज्यादातर लोगों ने ये जमीनें महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट नाम के एक ट्रस्ट से खरीदी हैं. इस ट्रस्ट के खिलाफ जमीन घोटाले की जांच यही अधिकारी कर रहे हैं. आरोप हैं कि ट्रस्ट ने 1990 के दशक में दलित ग्रामीणों से जमीन खरीदी थी जो नियमानुसार नहीं खरीदी जा सकती.

जमीन खरीदने वालों में अयोध्या जिले में गोसाईगंज से विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी भी हैं जिनकी विधानसभा सदस्यता फर्जी मार्कशीट मामले में दोषी साबित होने के बाद समाप्त घोषित कर दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, तिवारी ने 18 नवंबर 2019 को बरहटा मांझा में करीब ढाई हजार वर्ग मीटर जमीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट से तीस लाख रुपये में खरीदी थी जबकि इसी साल में मार्च में उनके एक रिश्तेदार ने भी बरहटा माझा में 6320 वर्गमीटर जमीन को 47.40 लाख रुपये में खरीदा. हालांकि राजेश मिश्र कहते हैं कि इस सौदे में खब्बू तिवारी की कोई भूमिका नहीं है बल्कि उन्होंने अपने स्तर पर और अपने पैसे से खरीदी है.

तस्वीरेंः अयोध्या में कब क्या हुआ

जमीन खरीदने वालों में कुछ समय पहले तक अयोध्या के मुख्य राजस्व अधिकारी रहे पुरुषोत्तम दास गुप्ता के एक रिश्तेदार, कुछ समय पहले तक डीआईजी रहे दीपक कुमार के रिश्तेदार, अयोध्या में एसडीएम रहे आयुष चौधरी के रिश्तेदार और अयोध्या के बीजेपी विधायक वेद प्रकाश गुप्ता के रिश्तेदार शामिल हैं.

घोटाले का शक

अखबार के मुताबिक, ये अधिकारी यह तर्क दे रहे हैं कि जमीनें उनके कार्यकाल में नहीं खरीदी गईं और उन्होंने अपने नाम पर नहीं खरीदीं लेकिन सवाल यह उठता है कि उन अधिकारियों के रिश्तेदारों ने उसी समय जमीन खरीदने में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाई जब मंदिर-मस्जिद विवाद का फैसला होने के बाद अयोध्या में जमीनों के दाम बेतहाशा बढ़ने की खबरें आने लगीं.

अयोध्या के रहने वाले एक बड़े प्रॉपर्टी डीलर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि जमीन खरीदी में ये जो नाम सामने आए हैं ये तो कुछ भी नहीं हैं बल्कि कई अधिकारियों ने तो कथित तौर पर फर्जी रिश्तेदारों तक के नाम पर जमीनें खरीद ली हैं.

वह कहते हैं, "ये जमीनें अयोध्या में विकास के नाम पर स्थानीय किसानों से औने-पौने दामों में खरीदी गईं और बाद में अन्य लोगों को महंगे दामों पर बेची गईं. जिन लोगों ने जमीनें खरीदकर छोड़ रखी हैं, उन्हें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इनकी कीमतें और बढ़ेगीं या फिर वो खुद यहां कुछ निवेश करेंगे."

देखिए अयोध्या की दिवाली

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जमीन खरीद में कथित धांधली पर कांग्रेस पार्टी ने सरकार को घेरा है और मामले की जांच कराने की मांग की है. कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का कहना है, "पहले मंदिर के नाम पर चंदे की लूट की गई और अब संपत्ति बनाने की लूट हो रही है. साफ है कि भाजपाई अब रामद्रोह कर रहे हैं. जमीन की सीधे लूट मची हुई है. एक तरफ आस्था का दीया जलाया गया और दूसरी तरफ बीजेपी के लोगों द्वारा जमीन की लूट मचाई गई है."

पहले भी उठे विवाद

इसी साल जून महीने में भी अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए जमीन खरीद में बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक तेजनारायण पांडेय उर्फ पवन पांडेय ने आरोप लगाया था कि सिर्फ दो करोड़ रुपये में खरीदी गई जमीन कुछ ही मिनटों बाद 18.5 करोड़ रुपये में खरीदी गई.

पवन पांडेय का कहना था, "18 मार्च 2021 को पहले बैनामा हुआ और फिर दस मिनट बाद ही एग्रीमेंट भी. जिस जमीन को दो करोड़ रुपये में ख़रीदा गया उसी जमीन का 10 मिनट बाद साढ़े 18 करोड़ रुपये में एग्रीमेंट हो गया. एग्रीमेंट और बैनामा दोनों में ही ट्रस्टी अनिल मिश्र और मेयर ऋषिकेष उपाध्याय गवाह थे."

पवन पांडेय ने दस्तावेजों के साथ कई सबूत दिए और इसे लेकर उस वक्त काफी हंगामा भी हुआ. यहां तक कि ट्रस्ट के सचिव चंपतराय को ट्रस्ट से हटाने की भी मांग हुई लेकिन कुछ समय बाद मामला थम सा गया. हालांकि राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सचिव चंपत राय ने इन आरोपों को बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित बताया था और एक बयान जारी कर कहा था कि जो भी जमीन ट्रस्ट ने खरीदी है वो नियमों के अनुसार खरीदी है और बाजार मूल्य से कम पर खरीदी है.

अयोध्या में जमीन से जुड़े कुछ मामले उसके बाद भी उभर कर सामने आए लेकिन ट्रस्ट की ओर से उनके संतोषजनक जवाब अब तक नहीं आए हैं.

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