विपक्ष के निलंबित सांसदों की संसद परिसर में ही डेरा डाले हुए तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं. जानिए क्या शर्तें हैं सांसदों के निलंबन की.
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संसद के सदस्यों के कई विशेषाधिकार होते हैं, लेकिन इसके बावजूद संसद से सांसदों के निलंबन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. 26 जुलाई को राज्य सभा के 19 सदस्यों को "अनियंत्रित आचरण" के लिए पूरे मानसून सत्र की अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया.
निलंबित सांसद इस फैसले के विरोध में संसद के परिसर में ही धरने पर बैठ गए. उन्होंने 50 घंटों तक परिसर में ही डेरा डाले रखा और सोशल मीडिया पर वहीं से तस्वीरें और वीडियो भी डाले. सांसदों ने पहले संसद परिसर के मैदान में धरना दिया और बाद में बारिश होने पर अंदर की तरफ डेरा डाल लिया.
नवंबर, 2021 में भी इसी तरह राज्य सभा से विपक्ष के 12 सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था. सितंबर, 2020 में भी आठ राज्य सभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था. हर बार निलंबित होने वाले सांसद अपने निलंबन का विरोध करते हैं, लेकिन यह एक तय प्रक्रिया और नियमों के तहत किया जाता है.
दोनों सदनों में "प्रक्रिया तथा कार्य संचालन" नियम होते हैं जिनकी मदद से पीठासीन अधिकारी सदन की कार्यवाही चलाते हैं. राज्य सभा में इनमें नियम 255 और 276 में निलंबन का प्रावधान हैं.
निलंबन की शर्तें
नियम 255 के तहत अगर सभापति की यह राय हो की किसी सदस्य का व्यवहार "घोर अव्यवस्थापूर्ण" है तो अध्यक्ष द्वारा उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर चले जाने का निर्देश दिया जा सकेगा.
इस नियम के तहत निलंबन अधिकतम दिन भर की कार्यवाही के लिए होता है. नियम 256 के तहत "सभापति के अधिकार की उपेक्षा" या "बार बार और जान बूझकर सभा के कार्य में बाधा डालने" के लिए निलंबन का प्रावधान है.
इसके तहत सभापति को इस सदस्य का नाम लेना होता है फिर अधिकारी द्वारा प्रस्ताव किए जाने पर सदन के सामने यह प्रश्न रखा जाता है कि उस सदस्य को सत्र की बाकी बची अवधि के लिए सदन से निलंबित कर दिया जाए. यह निलंबन सत्र की शेष अवधि तक के लिए होता है.
किसी भी तरह के निलंबन को सदन की अनुमति से कभी भी रद्द भी किया जा सकता है. समस्या यह है कि बीते कुछ सालों में सांसदों द्वारा संसद में गतिरोध पैदा करना बहुत आम हो गया है. सांसद किसी मांग पर अड़ जाते हैं, सरकार उसे नहीं मानने पर अड़ जाती है और सदन की कार्यवाही ठप हो जाती है.
ऐसे में दोनों सदनों में काम को सुचारू रूप से चलाने के लिए पीठासीन अधिकारी कड़े कदम उठा सकें इसीलिए ये नियम बनाए गए. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि संसद में अगर संवाद बढ़े और दोनों पक्ष एक दूसरे की बात सुनें तो निलंबन की नौबत ही नहीं आएगी.
भारत के नए संसद भवन का शिलान्यास
10 दिसंबर 2020 की तारीख इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है. आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक हो गया है क्योंकि आज देश के नए संसद भवन का शिलान्यास हुआ.
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भूमिपूजन से शुरुआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के लिए 10 दिसंबर को पूरे विधिवत तौर पर भूमिपूजन किया. पंडितों ने मंत्रों का उच्चारण किया और उसके बाद मोदी ने नए भवन के लिए नींव रखी. तैयार होने के बाद नया संसद भवन पुरानी संसद की जगह ले लेगा.
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सर्व धर्म प्रार्थना
करीब 971 करोड़ रुपये की लागत से बनने जा रहे संसद के नए भवन का निर्माण कार्य साल 2022 तक पूरा हो जाएगा. इसी साल आजादी की 75वीं वर्षगांठ भी देश मनाएगा. ऐसे में नई संसद का महत्व और बढ़ जाएगा. देश के नए संसद भवन के शिलान्यास के मौके पर सर्व धर्म प्रार्थना भी की गई.
तस्वीर: IANS
ऐतिहासिक दिन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के भूमिपूजन के बाद कहा कि आज का दिन बहुत ही ऐतिहासिक है. आज का दिन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में मील के पत्थर की तरह है. उन्होंने कहा, "130 करोड़ लोग नए संसद भवन को बनाएंगे. संसद हमारे लोकतंत्र की धरोहर है, 21वीं सदी के भारत के लिए निर्माण जरूरी है."
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न्यू इंडिया, न्यू पार्लियामेंट
प्रधानमंत्री ने शिलान्यास के मौके पर कहा, "आत्मनिर्भर भारत का गवाह बनेगा नया संसद भवन, आने वाली पीढ़ियों को गर्व होगा. हमारे हर फैसले में राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए."
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नए संसद भवन में नई सुविधाएं
नया संसद भवन भविष्य की जरूरतों को देखते हुए डिजाइन किया गया है. यह भवन पुराने भवन से हर लिहाज से आधुनिक और अधिक बड़ा और आकर्षक होगा. सांसदों की सीट पर विशेष इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स लगे होंगे.
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दो साल में बनेगी नई संसद
नया संसद भवन दो साल में बनकर तैयार हो जाएगा. नया संसद भवन 64,500 स्क्वायर मीटर में बनाया जाएगा, जो चार मंजिला होगा और इसका खर्च 971 करोड़ रुपये आएगा. नए संसद भवन का डिजाइन एचसीपी डिजाइन द्वारा तैयार किया गया है.
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आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
नया भवन भूकंप रोधी होगा. इमारत इस तरह से तैयार की जाएगी की कि यह सबसे आधुनिक तकनीक को आसानी से अपना ले. सीटों पर बायोमीट्रिक डाटा इकट्ठा करने का भी प्रावधान होगा जिससे वोटिंग में आसानी हो. इसी के साथ ऐसे गैजेट्स लगे होंगे जिससे भाषण का अनुवाद भी आसानी से हो सके. इमारत के भीतर देश की सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाया जाएगा.
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इतिहास में मोदी की छाप
कुछ जानकारों का कहना है कि मोदी इतिहास में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं और लंबे वक्त तक लोगों के जेहन में बने रहना चाहते हैं. इंडिया गेट के पास उन्होंने साल 2019 में शहीदों को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक समर्पित किया था. इंडिया गेट अंग्रेजों ने बनाया था और मोदी ने शहीदों को समर्पित करने के लिए वॉर मेमोरियल बनवाया और इसी तरह से नया संसद भवन भी बनवाया जा रहा है, जो पूरी तरह से आजाद भारत का बनवाया होगा.