करीमा बलोच पाकिस्तान में मानवाधिकारों के हनन की आलोचक और पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम प्रांत बलोचिस्तान के लिए स्वायत्तता की समर्थक थीं. साल 2015 में करीमा पाकिस्तान से भागकर कनाडा चली गई थीं.
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करीमा के लापता होने की खबर सबसे पहले रविवार को सामने आई थी और उनके शव को बाद में कनाडा के टोरंटो में पाया गया. करीमा पाकिस्तान की जानी मानी मानवाधिकार कार्यकर्ता थीं और पाकिस्तान में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाती आई थीं. उनके लापता होने के बाद पुलिस ने उनकी खोज शुरू की थी. वह रविवार से लापता थीं. पुलिस ने उनका शव सोमवार को ओंटारियो झील के पास पाया. करीमा के परिवार ने बाद में पुष्टि की कि शव उनका ही है.
करीमा मानवाधिकार और खासकर महिलाओं अधिकारों के मुद्दे उठाते आई थीं. वह बलोचिस्तान के लोगों की दुर्दशा के बारे में खुले तौर पर बोलती थीं. 2016 में बीबीसी ने करीमा बलोच को दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था. 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 39वें सत्र में करीमा ने पाकिस्तान के समाज में लैंगिक भेदभाव और असमानता का मुद्दा उठाया था. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के अपने संबोधन में उन्होंने बलोचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी. करीमा को देश और विदेश में बलोचों की सबसे मजबूत आवाज के रूप में माना जाता था.
यह पहली घटना नहीं
बलोच पत्रकार साजिद हुसैन इस साल मई में स्वीडन में मृत पाए गए थे. वे मार्च में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम से उपसाला शहर से लापता हो गए थे. 2012 में पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत से भागने वाले साजिद बलोच 2017 से स्वीडन में रह रहे थे. बलोचिस्तान में चल रहे अलगाववादी आंदोलन को एक पुराना आंदोलन माना जाता है. कई सशस्त्र समूह भी प्रांत में लड़ रहे हैं और पाकिस्तानी सरकार ने उन पर विदेशी समर्थन पाने का आरोप लगाया है, ये सशस्त्र समूह पाकिस्तानी सुरक्षाकर्मियों से भिड़ते हैं. बलोच खुद को असमानता का शिकार बताते आए हैं.
बलोचिस्तान के अलगाववादी समूहों ने हमेशा सरकारी एजेंसियो पर बलोच राजनीतिक कार्यकर्ताओं के गायब होने और हत्याओं का आरोप लगाया है जबकि पाकिस्तानी सरकार इस तरह के आरोपों से इनकार करती आई है. बड़ी संख्या में बलोच राजनीतिक कार्यकर्ता देश छोड़कर चले गए हैं और कई देशों में निर्वासित रह रहे हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने करीमा की मौत की जांच की मांग की है. संस्था ने एक बयान में कहा, "अपराधियों को मौत की सजा दिए बिना सजा होनी चाहिए." कनाडा में पाकिस्तान उच्चायोग ने कहा कि उसने कनाडा सरकार से करीमा की मौत के कारण निर्धारित करने के लिए संपर्क किया है.
सरकार विरोधी प्रदर्शनों की लहर भारत समेत ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में चली हुई है. इनमें से कइयों का मोर्चा देश की महिलाओं ने संभाला है, जो बड़े जोखिम उठा कर व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं.
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भेदभावपूर्ण कानून के खिलाफ
भारत के आम नागरिकों के समूहों ने देश में लागू हुए नए नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ कई हफ्तों से प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारी सत्ताधारी बीजेपी पर मुसलमानों के प्रति इस तथाकथित भेदभावपूर्ण कानून को वापस लेने का दबाव बना रहे थे.
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फासीवाद के खिलाफ संघर्ष
भारत के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाली छात्राओं ने देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को ठेस पहुंचाने की कोशिशों का विरोध किया. विवादास्पद कानून के अलावा युवा स्टूडेंट ने फासीवादी सोच, स्त्री जाति से द्वेष, धार्मिक कट्टरवाद और पुलिस की बर्बरता के खिलाफ भी आवाज उठाई.
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जब निकाल फेंका हिजाब
ईरान में महिला आंदोलनकारियों ने देश की ताकतवर शिया सत्ता को चुनौती देते हुए अपना हिजाब निकाल फेंका था. पिछले कुछ सालों से ईरानी महिलाएं तमाम अहम मुद्दों को लेकर पितृसत्तात्मक रवैये और महिलाओं की आजादी पर पाबंदी लगाने वाली चीजों का विरोध करती आई हैं.
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दमनकारी सत्ता के खिलाफ
ईरानी महिलाओं ने 1979 की इस्लामी क्रांति के समय से ही सख्त पितृसत्तावादी दबाव झेले हैं. बराबरी के अधिकारों और बोलने की आजादी जैसी मांगों पर सत्ताधारियों ने हमेशा ही महिलाओं को डरा धमका कर पीछे रखा है.फिर भी महिलाएं हिम्मत के साथ तमाम राजनैतिक एवं नागरिक प्रदर्शनों में हिस्सा ले रही हैं.
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पाकिस्तानी महिलाएं बोल उठीं बस बहुत हुआ
भारत के पड़ोसी पाकिस्तान में भी बराबर का हक मांगने वाली महिलाओं के प्रति बुरा रवैया रहता है. इन्हें कभी "पश्चिम की एजेंट" तो कभी "एनजीओ माफिया" जैसे विशेषणों के साथ जोड़ा जाता है. महिला अधिकारों की बात करने वाली फेमिनिस्ट महिलाओं को अकसर समाज से अवहेलना झेलनी पड़ती है. फिर भी रैली, प्रदर्शन कर समाज में बदलाव लाने की महिलाओं की कोशिशें जारी हैं.
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लोकतंत्र को लेकर बड़े सामाजिक आंदोलन
पाकिस्तान में हुए अब तक के ज्यादातर महिला अधिकार आंदोलन कुछ ही मुद्दों पर केंद्रित रहे हैं, जैसे लैंगिक हिंसा, बाल विवाह और इज्जत के नाम पर हत्या. लेकिन अब महिलाएं लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं. पिछले साल पाकिस्तान की यूनिवर्सिटी छात्राओं ने राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन का नेतृत्व किया जिसकी मांग छात्र संघों की बहाली थी. दबाव का असर दिखा और संसद में इस पर बहस कराई गई.
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इंसाफ के लिए लड़तीं अफगानी महिलाएं
अमेरिका और तालिबान का समझौता हो गया तो अफगानिस्तान में एक ओर युद्धकाल का औपचारिक रूप से खात्मा हो जाएगा. लेकिन साथ ही बीते 20 सालों में अफगानी महिलाओं को जो कुछ भी अधिकार और आजादी हासिल हुई है वो खतरे में पड़ सकती है. 2015 में कुरान की प्रति जलाने के आरोप में भीड़ द्वारा पीट पीट कर मार डाली गई फरखुंदा मलिकजादा के लिए इंसाफ की मांग लेकर भी महिला अधिकार कार्यकर्ता सड़क पर उतरीं. (शामिल शम्स/आरपी)