बांग्लादेश: गरीबी से जूझता देश कैसे बना उभरती आर्थिक ताकत
जोबैर अहमद
१७ दिसम्बर २०२१
बांग्लादेश के 50 साल पूरे हो गए हैं. इस दौरान बांग्लादेश ने भयानक गरीबी और भुखमरी से लेकर आर्थिक विकास की एक बढ़िया मिसाल बनने का सफर तय किया है. ये कैसे हुआ और आगे बांग्लादेश के सामने क्या चुनौतियां हैं, आइए जानते हैं.
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जब बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में जब पाकिस्तानी सेना ने हथियार डाले, तब दक्षिण एशिया के इस नए आजाद हुए देश की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में थी. देश की 80 फीसदी आबादी अत्यधिक गरीबी में जी रही थी.
फिर अगले कुछ बरसों तक बांग्लादेश सैन्य तख़्तापलट, राजनीतिक संकट, ग़रीबी और अकाल से जूझता रहा. लेकिन, अब जबकि ये अपनी आजादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है, तब हालात पहले से बहुत बेहतर हो चुके हैं.
16 दिसंबर, 1971 को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तान की सेना ने हार स्वीकार की. इसी दिन की याद में बांग्लादेश में विजय दिवस मनाया जाता है और सरकारी छुट्टी होती है.
बांग्लादेश के सेंटर फ़ॉर पॉलिसी डायलॉग में अर्थशास्त्री मुस्तफिजुर रहमान डॉयचे वेले को बताते हैं, "सत्तर के दशक में ये कहा जाता था कि अगर बांग्लादेश का आर्थिक विकास हो सकता है, तो किसी भी देश का आर्थिक विकास हो सकता है."
वह बताते हैं कि विकास के मुद्दे पर बांग्लादेश को एक उदाहरण की तरह देखा जाता था, जिस पर सबकी निगाहें थीं. नॉर्वे के सामाजिक शोधकर्ता आरिक जी. यानसन बताते हैं कि करीब 35 साल बाद 2009 में वह बांग्लादेश के एक गांव में दोबारा पहुंचे. तब उन्हें बांग्लादेश के सामाजिक-आर्थिक विकास और लोगों की आय में हुई असाधारण बढ़ोतरी देखकर बड़ी हैरानी हुई.
डॉयचे वेले से बातचीत में यानसन कहते हैं, "वहां लोगों की आय दस गुना तक बढ़ गई थी. इसका मतलब था कि वो अपनी दिहाड़ी से कम से कम 10-15 किलो चावल खरीद सकते थे."
यानसन 1976 से 1980 के बीच मानिकगंज जिले के एक गांव में कई गरीब परिवारों के साथ रहे थे. वह बताते हैं, "अगर आपके घर में पांच या छह लोग हैं और आप सिर्फ आधा किलो चावल लेकर घर पहुंचते हैं, तो आप घर के सभी सदस्यों का पेट नहीं भर सकते."
यानसन समझाते हैं, "अत्यधिक गरीबी से आशय यह है कि बड़ी तादाद में लोगों को खाना नहीं मिल रहा था. स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था भी न के बराबर थी. कई लोग महज 40 से 50 साल की उम्र के बीच में बीमार पड़ गए या बीमारियों से उनकी मौत हो गई, जबकि पोषण मुहैया कराके उनकी जान बचाई जा सकती थी. कई बच्चों की भी मौत हो गई थी."
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1971 के युद्ध को बयान करती तस्वीरें
1971 की लड़ाई ने बांग्लादेश के रूप में एक नए देश को जन्म दिया. पाकिस्तान के लिए यह करारी चोट थी, जिसे आज तक वह नहीं भूल पाया है. लेकिन इस संघर्ष में पूर्वी पाकिस्तान की बंगाली आबादी ने बहुत कुछ झेला.
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तूफानी मार्च
23 मार्च 1971: ढाका की सड़कों पर आजादी के मांग के साथ प्रदर्शन.
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जशोर में मुक्ति वाहिनी
2 अप्रैल 1971: मुक्ति वाहिनी के जवान जशोर में मार्च करते हुए. जशोर भारतीय सीमा के पास का इलाका है.
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त्रिपुरा में बांग्लादेशी शरणार्थी
5 अप्रैल 1971: भीषण जंग के बीच मोहनपुर, त्रिपुरा (भारत) की एक स्कूली इमारत में शरण लेते बांग्लादेशी शरणार्थी.
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भारतीय बॉर्डर के पास पहुंचे बांग्लादेशी
7 अप्रैल 1971: बांग्लादेशी स्वतंत्रता सैनानियों समेत कई नागरिकों को भारतीय बॉर्डर से करीब 45 किलोमीटर पास कुष्टिया इलाके में पहुंचाया गया.
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बेनापुल का शरणार्थी कैंप
14 अप्रैल 1971: 5 हजार से ज्यादा शरणार्थियों ने भारतीय सीमा के पास बने बेनापुल, जशोर शरणार्थी कैंप में शरण ली.
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जख्मी लड़ाके
16 अप्रैल 1971 को पाकिस्तानी एयरफोर्स की बमबारी में घायल हुए सैनिकों को इलाज के लिए चुआडंगा ले जाते आम नागरिक और मुक्ति वाहिनी के सदस्य.
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मुक्ति योद्धा
मुक्ति वाहिनी के सदस्य हिमायतुद्दीन 3 अगस्त 1971 के दिन ढाका ने नजदीक बने एक खुफिया कैंप में मशीन गन से निशाना साधते दिख रहे हैं.
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मात्र 19 साल के छात्र की पलटन
13 नवंबर 1971: फरीदपुर इलाके में मुक्ति वाहिनी के युवा सदस्यों की रायफल ट्रेनिंग की तस्वीर. वहां 70 लोगों की पलटन बनाई गई थी. इस पलटन ने देश के दक्षिणी हिस्से में दवाइयां और सैन्य रसद पहुंचाने में मदद की. तस्वीर में बिल्कुल बाईं ओर दिख रहे 19 साल के छात्र (ढाका यूनिवर्सिटी) ने इस पलटन का नेतृत्व किया था.
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पारुलिया पर नियंत्रण
26 नवंबर 1971: मुक्ति वाहिनी ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के पारुलिया गांव पर नियंत्रण किया.
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अखाउड़ा में पाकिस्तानी जवान
29 नवंबर 1971: अखाउड़ा में हथियारों की सुरक्षा में डटे पाकिस्तानी जवान. पाकिस्तान का दावा था कि ये हथियार भारतीय फौज से जब्त किए गए हैं.
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भारतीय टैंक
14 दिसंबर 1971: भारतीय सेना के 7 टैंक बोगरा के लिए कूच कर गए.
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भारतीय फौज
6 दिसंबर 1971: भारतीय सीमा के पास स्थित डोंगरपाड़ा के खुले इलाके में मशीन गन से निशाना साधता भारतीय सैनिक.
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दिसंबर महीने तक ढाका में थे पाकिस्तानी सार्जेंट
12 दिसंबर 1971: राजधानी ढाका के बाहरी इलाके में 2 सैनिकों को निर्देश देता पाकिस्तानी सार्जेंट.
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संघर्ष विराम
12 दिसंबर 1971: ढाका एयरपोर्ट में इंतजार करते विदेशी. एक ब्रितानी विमान 8 बजे एयरपोर्ट पर उतरा था. ये विमान 6 घंटे के संघर्ष विराम के दौरान विदेशियों को बाहर निकालने के लिए भेजा गया था.
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4 रजाकरों को मारने के बाद मुक्ति वाहिनी की प्रतिक्रिया
हत्या, बलात्कार और लूट में पाकिस्तानी सेना का साथ देने वाले 4 रजाकरों को मारने के बाद शुक्र अदा करते स्वतंत्रता सैनानी.
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युद्ध की समाप्ति
16 दिसंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के साथ हथियार डालने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए.
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वृद्धि और विकास में आगे बढ़ता बांग्लादेश
कोरोना वायरस महामारी से पहले बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से फल-फूल रही थी. उसकी सालाना आर्थिक वृद्धि दर आठ फीसदी थी. एशियन डिवेलपमेंट बैंक के मुताबिक महामारी की मार झेलने के बावजूद बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौट रही है. रहमान बताते हैं, "बांग्लादेश अपनी करीब 16.7 करोड़ की आबादी का पेट भरने लायक अनाज उगाता है. दुनिया के कई देशों से उलट यहां जच्चा-बच्चा मृत्युदर में भी खासी कमी आई है."
साल 2015 में बांग्लादेश ने निम्न-मध्यम आय वाले देश का दर्जा हासिल कर लिया था. अब यह संयुक्त राष्ट्र की 'सबसे कम विकसित देशों' की सूची से निकलने की राह पर है. आज की तारीख में देशभर के 98 फीसदी बच्चे प्राइमरी शिक्षा हासिल कर चुके हैं और सेकेंड्री स्कूलों में लड़कों की तुलना में लड़कियां ज़्यादा है.
पर्यवेक्षक बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में इस मुस्लिम-बहुल राष्ट्र ने लड़कियों और महिलाओं की जिदगियों को बेहतर बनाने में भारी निवेश किया है. बच्चों के कुपोषण और प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य के मुद्दे पर भी इसने प्रगति की है.
यानसन बताते हैं कि 2010 में जब वह दोबारा मानिकगंज के उस गांव में गए, तो उन्होंने पाया कि इलाके में स्कूल दोबारा बनाए गए हैं. अब लड़के और लड़कियां, दोनों स्कूल जा रहे हैं.
यानसन मानते हैं कि लड़कियों की पढ़ाई के हालात बेहतर होने से बांग्लादेश के सामाजिक-आर्थिक ढांचे का कायापलट हुआ है. वह कहते हैं, "लड़कियों और महिलाओं को पढ़ने के लिए वजीफा देना भी एक अहम बात है. अब महिलाएं पहले से ज्यादा मुखर हैं. अब वे उतनी शर्मीली नहीं हैं, जितना चार दशक पहले मैंने उन्हें देखा था."
खेती से उद्योगों तक
बांग्लादेश 409 अरब डॉलर से ज्यादा की जीडीपी के साथ अभी दुनिया की 37वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक इसकी अर्थव्यवस्था दोगुनी हो सकती है.
साल 1971 में अस्तित्व में आते समय बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से खेती पर निर्भर थी, लेकिन बीते दशकों में ये संरचना बदली है. अब यहां अर्थव्यवस्था में उद्योग और सेवाओं की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है. जीडीपी में खेती की हिस्सेदारी गिरकर महज 13 फीसदी रह गई है.
यानसन बताते हैं कि खेती से इतर नौकरियों के अवसरों ने भी आर्थिक विकास को रफ्तार दी है. वह कहते हैं, "जैसे कई महिलाओं को कपड़ा उद्योग और दस्तकारी के क्षेत्र में काम करने का मौका मिला. वहीं पुरुषों को स्थानीय छोटे उद्योगों में नौकरियों के अवसर मिले. कुछ लोग खाड़ी देशों, सिंगापुर और मलयेशिया जैसी जगहों पर पलायन कर गए."
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इन देशों के हैं सबसे ज्यादा पड़ोसी देश
पड़ोसी देश मतलब वो देश जिनसे किसी देश की सीमा लगती है. भारत की सीमा सात देशों से लगती है. ये पड़ोसी देश बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार, भूटान और अफगानिस्तान हैं. देखिए सबसे ज्यादा पड़ोसी किन देशों के हैं.
जाम्बिया
अफ्रीकी देश जाम्बिया 11वां सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाला देश है. जाम्बिया की सीमा डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, अंगोला, मलावी, मोजांबिक, तंजानिया, नामीबिया, जिम्बाब्वे और बोतस्वाना से मिलती है.
तस्वीर: DW/C.Mwakideu
तुर्की
तुर्की 10वां सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाला देश है. तुर्की की सीमा अर्मेनिया, जॉर्जिया, ईरान, इराक, सीरिया, अजरबैजान, बुल्गारिया और ग्रीस से लगती है. तुर्की के आठ पड़ोसी देश हैं जिनके साथ 2,648 किलोमीटर की सीमा लगती है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Altan
तंजानिया
अफ्रीकी देश तंजानिया नवां सबसे ज्यादा पड़ोसियों वाला देश है. तंजानिया की सीमा केन्या, बुरुंडी, युगांडा, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, जांबिया, मलावी, मोजांबिक और रवांडा से लगती है. आठ पड़ोसी देशों से तंजानिया की 3,861 किलोमीटर लंबी सीमा लगती है.
तस्वीर: DW/N. Quarmyne
सर्बिया
सर्बिया की सीमा रोमानिया, हंगरी, क्रोएशिया, बोस्निया और हरजेगोवनिया, मेसेडोनिया, बुल्गारिया, कोसोवो, और मॉन्टेनेग्रो से लगती है. नौ पड़ोसी देशों वाले सर्बिया की सीमा 2,027 किलोमीटर लंबी है. सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ये आठवें नंबर पर है.
तस्वीर: Reuters/M. Djurica
फ्रांस
फ्रांस के पड़ोसी देशों में बेल्जियम, जर्मनी, स्विटजरलैंड, इटली, स्पेन, अंडोरा, लक्जमबर्ग, मोनाको और ब्रिटेन में शामिल हैं. इन आठ पड़ोसी देशों के साथ फ्रांस की 623 किलोमीटर लंबी सीमा है. ब्रिटेन के साथ फ्रांस की जल सीमा है. सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ये सातवें नंबर पर है.
तस्वीर: Reuters/B. Tessier
ऑस्ट्रिया
ऑस्ट्रिया के भी आठ पड़ोसी देश हैं. इनमें हंगरी, स्लोवाकिया, चेक रिपब्लिक, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली, लिश्टेनश्टाइन और स्लोवेनिया शामिल हैं. ऑस्ट्रिया की सीमा 2,562 किलोमीटर की है. सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ये छठे नंबर पर है.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/Guo Chen
जर्मनी
जर्मनी के सभी नौ पड़ोसी देशों के नाम नीदरलैंड्स, बेल्जियम, फ्रांस, स्विटजरलैंड, ऑस्ट्रिया, चेक रिपब्लिक, पोलैंड, डेनमार्क और लक्जमबर्ग हैं. जर्मनी की सबसे सीमा चेक रिपब्लिक के साथ लगी है, जो 815 किलोमीटर लंबी है.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/Y. Tang
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो
सबसे ज्यादा पड़ोसी देशों के मामले में चौथे स्थान पर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो है. इसके पड़ोसी बुरुंडी, रवांडा, युगांडा, दक्षिण सूडान, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, कॉन्गो रिपब्लिक, अंगोला, जाम्बिया और तंजानिया हैं. इसकी सीमा की लंबाई 2410 किलोमीटर है.
तस्वीर: AFP
ब्राजील
सबसे ज्यादा पड़ोसियों के मामले में ब्राजील तीसरे स्थान पर है. ब्राजील के 10 पड़ोसी देश हैं जिनमें सूरीनाम, गुएना, फ्रेंच गुएना, वेनेजुएला, कोलंबिया, पेरू, बोलिविया, उरुग्वे, पैराग्वे और अर्जेंटीना शामिल हैं. ब्राजील की सीमा 14,691 किलोमीटर लंबी है.
तस्वीर: AFP/D. Ramalho
रूस
रूस के कुल 14 पड़ोसी हैं. इनमें 12 रूस की मुख्यभूमि और दो पड़ोसी मुख्यभूमि के दूर के एक इलाके के हैं. मुख्यभूमि के पड़ोसी फिनलैंड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, बेलारूस, यूक्रेन, जॉर्जिया, अजरबैजान, कजाखस्तान, चीन, मंगोलिया, उत्तरी कोरिया और नॉर्वे हैं. वहीं दो और पड़ोसियों लिथुआनिया और पोलैंड के बीच रूस का कलिनिन्ग्राद का इलाका है. रूस की सीमा 20,241 किलोमीटर लंबी है.
तस्वीर: Reuters/S. Zhumatov
चीन
सबसे ज्यादा पड़ोसी देश चीन के हैं. चीन की सीमा 14 देशों से लगती है. इनमें भारत, मंगोलिया, कजाखस्तान, उत्तरी कोरिया, रूस, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार, लाओस और वियतनाम शामिल हैं. इसके अलावा चीन के दो स्वायत्त इलाके हांगकांग और मकाउ भी उसके पड़ोसी हैं. चीन की थल सीमा की कुल लंबाई 22,117 किलोमीटर है.
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हाल के दशकों में बांग्लादेश की सफलता में सबसे अहम योगदान कपड़ा उद्योग का रहा है. कपड़ा उद्योग के मामले में बांग्लादेश दुनिया में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. यहां से हर साल 35 अरब डॉलर से ज्यादा के कपड़ों का निर्यात होता है.
इस क्षेत्र में करीब 40 लाख लोग काम करते हैं, जिनमें से ज्यादातर महिलाएं हैं. इस तरह वे महिला सशक्तिकरण में योगदान दे रही हैं.
रहमान कहते हैं, "कपड़ा उद्योग ने न सिर्फ अर्थव्यवस्था की सूरत, बल्कि देश में महिलाओं की सामाजिक स्थिति को भी बदल दिया है." इस बीच बांग्लादेश का लक्ष्य 2022 तक कपड़ों का निर्यात बढ़ाकर इसे 51 अरब डॉलर तक पहुंचाना है.
देश के बाहर से आने वाला पैसा भी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाता है. साल 2021 में विदेशों में काम करने वाले बांग्लादेशियों ने करीब 24.7 अरब डॉलर बांग्लादेश भेजे हैं.
गुणवत्ता और असमानता की चुनौती
बांग्लादेश में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या में भारी वृद्धि के बावजूद शिक्षा की गुणवत्ता कमजोर है. रहमान कहते हैं कि इससे कुशल कर्मचारी तैयार करने में बड़ी चुनौती पेश आती है. साथ ही, विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश में हुई शानदार प्रगति और विकास का फायदा हर किसी तक नहीं पहुंचा है. इसके पक्ष में वह आय बढ़ने के बावजूद संपत्ति में असमानता और धीमी गति से नौकरियां पैदा होने की ओर इशारा करते हैं.
रहमान कहते हैं, "बांग्लादेश में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन आय और संपत्ति के बंटवारे को अधिक समान और पारदर्शी बनाया जा सकता है. समाज के ऊपरी पांच फीसदी और निचले 40 फीसदी लोगों के बीच आय का असमानता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है."
एक और बड़ी समस्या यह है कि बड़ी आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में ढाका और चटगांव जैसे बड़े शहर ही हैं. इससे शहरों और गांवों के बीच खाई गहरी हो रही है और गांवों में गरीबी बढ़ रही है.
रहमान जोर देकर कहते हैं, "गरीबी का स्तर कम होकर 20 फीसदी पर भले आ गया हो, लेकिन कुछ शहरों में तो 50 फीसदी तक लोग गरीबी से जूझ रहे हैं." अपनी आजादी की पचासवीं सालगिरह पर बांग्लादेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये सुनिश्चित करने की है कि आर्थिक समृद्धि और विकास का फल समाज की आखिरी पंक्ति के लोग भी चख सकें.
कितना सुंदर है बांग्लादेश
बांग्लादेश की ये तस्वीरें आपके अंदर मौजूद देश की छवि को बदल देंगी. आमतौर पर सिर्फ भीड़ भरे बाजारों की तस्वीरें दिखती हैं लेकिन ये तस्वीरें देखकर आप कहेंगे, आहा!
तस्वीर: DW/M. Mamun
सबसे लंबा बीच
कॉक्स बाजार का यह बीच दुनिया का सबसे लंबा बीच है. इसकी लंबाई है 120 किलोमीटर.
तस्वीर: DW/M. Mamun
अकेला कॉरल आईलैंड
यह बांग्लादेश का एकमात्र कॉरल द्वीप है. टेकनाफ में इस द्वीप का नाम है सेंट मार्टिन.
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निर्जन द्वीप
टेकनाफ बहुत चुप सी जगह है. एकदम साफ, स्वच्छ और निर्जन. तन्हाई पसंद लोगों के लिए जन्नत.
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नील पर्वत
2220 फुट ऊंचा यह हिल स्टेशन बादलों की सैरगाह है. बंदरबान जिले में इस हिल स्टेशन पर खूब लोग आते हैं.
तस्वीर: DW/M. Mamun
नीलाचल
बंदरबान से छह किलोमीटर दूर नीलाचल है. समुद्रतल से 1600 फुट ऊंची इस जगह पर पंछी गाते हैं.
तस्वीर: DW/M. Mamun
पहाड़ी झील
रंगामाटी झील पर झूलता पुल रोमांचकारी भी है और नीचे बोट की सवारी भी है. इसीलिए जगह सबको प्यारी भी है.
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पत्थरों की चादर
सिलहट जिले के बिछनाकांदी में पत्थरों की यह चादर भारतीय सीमा के पास ही है.
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60 गुंबद
दक्षिणी बागेरहाट जिले की यह 60 गुंबदों वाली मस्जिद यूनेस्को की विरासत सूची में शामिल है.
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सुंदरबन
भारत और बांग्लादेश की सीमाओं के आर-पार फैला सुंदरबन दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव हैं.
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रंगामाटी की छत
त्रिपुरा के नजदीक ही समुद्रतट से 1800 फुट की ऊंचाई पर है खागराछोरी की जगह जिसे रंगामाटी की छत कहते हैं.
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तैरते बाजार
दक्षिणी जिले झालोकाठी में शहर से बस 15 किलोमीटर दूर है भीमरूली गांव जहां ये तैरते बाजार हैं.
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कुआकाटा
दक्षिणी जिले पोटुआखली में है कुआकाटा. सूरज की रोशनी में लाल हुआ यह रेत दिन रात का भेद मिटा देता है.
तस्वीर: DW/M. Mamun
ढाकेश्वरी मंदिर
ढाका में दुर्गा का यह मंदिर राजा बल्लाल सेन ने बनवाया था. कहते हैं ढाका इसी मंदिर के कारण ढाका है.
तस्वीर: DW/M. Mamun
लालबाग दुर्ग
ढाका का लालबाग दुर्ग औरंगजेब के बेटे आजाद ने 1678 में बनवाया था.
तस्वीर: DW/M. Mamun
सोनारगांव
ढाका में यह सोने सा चमकता सनहरी गांव है जहां बहुत सारी प्राचीन इमारतें इतिहास अलटती पलटती रहती हैं.