24 अप्रैल 2013 को बांग्लादेश में एक कपड़ा फैक्ट्री की इमारत गिरने से 1,100 लोगों की जान गयी. उस दुर्घटना में मारे गए लोगों के परिजन उस सदमे से उभर नहीं पाए हैं.
24 अप्रैल 2013 को बांग्लादेश में एक कपड़ा फैक्ट्री की इमारत गिरने से 1100 लोगों की जान गयी. एक साल बाद भी मारे गए लोगों के परिजन उस सदमे से उभर नहीं पाए हैं.
तस्वीर: DW/C. Meyerहादसे के एक साल बाद भी राना प्लाजा पर शोक का माहौल है. इसी जगह आज से एक साल पहले 1100 लोगों की जान गयी.
तस्वीर: DW/C. Meyerपिछले एक साल से मारे गए लोगों के परिजन हर रोज मुआवजे की राशि के लिए चक्कर लगा रहे हैं. कई लोगों को अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.
तस्वीर: DW/C. Meyerजिस वक्त यह हादसा हुआ राना प्लाजा इमारत में तीन हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे. दमकल दल ने लाशों की खोज मई 2013 में खत्म की.
तस्वीर: DW/C. Meyerराना प्लाजा कई मंजिलों वाला एक बड़ा सा कॉम्प्लेक्स है जिसमें फैक्टरियों के अलावा शॉपिंग मॉल भी था. यहां लोग रोजमर्रा का सामान खरीदने आया करते थे.
तस्वीर: DW/C. Meyerमलबे में से जो कुछ भी मिला उसे दोबारा इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है, चाहे वह पार्किंग में रखी गाड़ियों के पुर्जे हों या पहिए.
तस्वीर: DW/C. Meyerहादसे से एक दिन पहले ही कई कमरे खाली करा लिए गए थे. इमारत की दीवारों में दरारें देखी गयी थीं. लेकिन इसके बाद भी कपड़ा फैक्ट्री में काम जारी रखा गया.
तस्वीर: DW/C. Meyerयह जगह आज पूरी दुनिया के लिए शोषण का प्रतीक बन गयी है. जिन गरीबों की जान गयी, वे पश्चिमी देशों की बड़ी बड़ी कंपनियों के लिए कपड़े बनाया करते थे.
तस्वीर: DW/C. Meyerरेहाना अख्तर आठ घंटे तक मलबे के नीचे दबी रहीं. उनकी बायीं टांग को बचाया नहीं जा सका. उन्हें साढ़े सात लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है, पर क्या केवल पैसा ही काफी है?
तस्वीर: DW/C. Meyerबांग्लादेश की पांच हजार कपड़ा फैक्ट्रियों में करीब चालीस लाख मजदूर बुरे हालात में काम करते हैं. इनमें से अधिकतर महिलाएं हैं.
तस्वीर: DW/C. Meyerइस हादसे के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान फैक्ट्रियों की सुरक्षा की ओर गया है. आग लगने की स्थिति में आपात निकास पर भी ध्यान दिया जा रहा है.
तस्वीर: DW/C. Meyerइन फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग महीने में बस चार हजार रुपये ही कमा पाते हैं. बेहतर वेतन की मांग हो रही है.
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