बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना कई उम्मीदें लिए चार दिवसीय दौरे पर भारत आई हैं. माना जा रहा है कि हसीना तीस्ता संधि और सीमावर्ती इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा जैसे विषयों को उठाना चाहेंगी.
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शेख हसीना अपनी भारत यात्रा के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगी. वो तीन साल बाद भारत आ रही हैं. इससे पहले वो 2019 में भारत आई थीं. मार्च 2021 में मोदी बांग्लादेश गए थे.
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि हसीना की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, नदियों के पानी समेत कई क्षेत्रों में संधियों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं. लेकिन जानकारों का कहना है कि हसीना कुछ संवेदनशील विषयों को भी उठाना चाहती हैं और भारतीय नेतृत्व से बात करना चाहती हैं.
बांग्लादेश में 2023 में चुनाव होने हैं और हसीना की भारत यात्रा का असर चुनावों पर पड़ने की भी संभावना है. इसलिए वो बांग्लादेश के हित के मुद्दों को उठाना चाह रही हैं ताकि अपने देश वापस लौट कर वो जनता को बता पाएं कि भारत से क्या आश्वासन लेकर लौटी हैं.
इनमें से सबसे बड़ा मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी से पता चला है कि पिछले कई महीनों में दोनों देशों के सीमावर्ती इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाओं के होने की वजह से बांग्लादेश चिंतित है.
बांग्लादेश का मानना है कि भारत के सीमावर्ती इलाकों में इस तरह की घटनाओं का असर सीमा पार तक होता है, इसलिए बांग्लादेश सरकार चाहती है कि भारत इन हिंसा को नियंत्रण में लाने के लिए कुछ कदम उठाए.
बांग्लादेश सरकार भारत सरकार को यह भी दिखाना चाह रही है कि वहां विशेष रूप से पिछले दो सालों में जब भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं तब सरकार ने अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं. इस विषय पर हसीना सरकार के मंत्रिमंडल में भी चर्चा हुई थी और फैसला लिया गया था कि इस बारे में भारत में चर्चा की जाएगी.
बांग्लादेश में पानी कर रहा है लोगों को बेघर
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दूसरा बड़ा मुद्दा म्यांमार से अपनी जान बचा कर भाग कर आए रोहिंग्या शरणार्थियों का है. म्यांमार के रहने वाले इन रोहिंग्या लोगों पर 2017 में म्यांमार के राखाइन प्रांत में हमले हुए जिसके बाद ये अपनी जान बचाने के लिए सीमा लांघ कर भारत और बांग्लादेश चले गए.
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस समय बांग्लादेश में नौ लाख से भी ज्यादा रोहिंग्या रह रहे हैं. बांग्लादेश सरकार लंबे समय से म्यांमार सरकार से मांग कर रही है कि वो अब इन्हें वापस ले ले. बांग्लादेश चाह रहा है कि भारत इस बारे में म्यांमार सरकार से बात करे. भारत ने अभी तक इस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है.
भारत सरकार का रोहिंग्याओं के प्रति बहुत सख्त रवैया है. उन्हें सरकार अवैध विदेशियों का दर्जा देती है और उन्हें कैंपों में रखा जाता है. देखना होगा कि उनके बारे में हसीना को भारत से कोई वादा मिलता है या नहीं.
50 साल में बांग्लादेश का सफर
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दोनों देशों से हो कर बहने वाली नदियों के पानी का साझा इस्तेमाल हमेशा से भारत-बांग्लादेश संबंधों के केंद्र में रहा है. विशेष रूप से तीस्ता संधि को लेकर बांग्लादेश चिंतित रहा है, जिस पर 2011 में ही हस्ताक्षर हो जाने थे लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार की आपत्ति की वजह से अभी तक नहीं हो सके.
हसीना ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस विषय पर बात करने के लिए मिलने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन हसीना की भारत यात्रा के दौरान भारत सरकार ने बनर्जी को दिल्ली आने का न्योता नहीं दिया है. इस वजह से जानकारों में यह देखने की उत्सुकता है कि हसीना की यात्रा के दौरान तीस्ता संधि आगे बढ़ पाएगी या नहीं.
दोनों देशों के बीच इस विषय पर के संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) भी है लेकिन पिछले 12 सालों से आयोग की एक भी बैठक नहीं हुई थी. 26 अगस्त को आयोग की 12 सालों में पहली बैठक हुई, जिसमें दोनों तरफ से आए प्रतिनिधिमंडलों का संबंधित मंत्रियों ने नेतृत्व किया. बैठक में तीस्ता संधि पर भी चर्चा हुई.
बांग्लादेश की आजादी के 50 साल
पचास साल पहले बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का जन्म एक अद्भुत घटना थी. देखिए इन तस्वीरों में बांग्लादेश के बनने की कहानी.
तस्वीर: AP/picture alliance
आजादी की हुंकार
ढाका के रेस कोर्स मैदान में सात मार्च 1971 को बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान द्वारा दिया गया यह भाषण ऐतिहासिक माना जाता है. करोड़ों लोगों की उपस्थिति में इसी भाषण में रहमान ने आजादी की मांग की थी.
तस्वीर: AP/picture alliance
सशस्त्र लड़ाके
दो अप्रैल 1971 की इस तस्वीर में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के जेस्सोर में हथियारबंद लड़ाकों को रिक्शा पर जाते हुए देखा जा सकता है. भारत की सीमा के पास स्थित इस शहर में रहमान के समर्थकों और पाकिस्तानी सेना के सैनिकों के बीच घमासान लड़ाई हुई थी.
तस्वीर: AP/picture alliance
आजादी की सेना
यह भी दो अप्रैल, 1971 की ही तस्वीर है जिसमें पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने के लिए बनाई गई सेना मुक्ति-बाहिनी के सैनिकों को भी जेस्सोर में पाकिस्तानी सेना के सैनिकों के खिलाफ लड़ाई करने के लिए जाते हुए देखा जा सकता है.
तस्वीर: AP/picture alliance
'जय बांग्ला'
आठ अप्रैल की इस तस्वीर में मुक्ति-बहिनी के सैनिक पूर्वी पाकिस्तान के कुश्तिया में 'जय बांग्ला' के नारे लगा रहे हैं.
तस्वीर: Michel Laurent/AP/picture alliance
लोगों का जज्बा
नौ अप्रैल की इस तस्वीर में पूर्वी पाकिस्तान के पंगसा गांव में रहमान और मुक्ति-बाहिनी के समर्थन में आम लोग भी 'जय बांग्ला' के नारे लगा रहा हैं.
तस्वीर: Michel Laurent/AP/picture alliance
ढाका से पलायन
11 अप्रैल की तस्वीर. ढाका छोड़ कर जा रहे बंगाली शरणार्थियों से भरी एक बस निकलने को तैयार है. कई और शरणार्थी दूसरी बस का इंतजार कर रहे हैं.
तस्वीर: Michel Laurent/AP/picture alliance
भारत से उम्मीद
पूर्वी पाकिस्तानी के महरपुर से देश छोड़ कर जाते शरणार्थियों का एक परिवार. पाकिस्तानी सेना द्वारा बांग्लादेशी लड़ाकों को खदेड़ दिए जाने के बाद, ये शरणार्थी अपनी सुरक्षा के लिए भारत की तरफ जा रहे थे.
तस्वीर: AP/picture alliance
भारतीय सेना मैदान में
दिसंबर 1971 में भारत भी युद्ध में शामिल हो गया था. सात दिसंबर की इस तस्वीर में भारतीय सेना के फॉरवर्ड आर्टिलरी के कर्मियों को मोर्चे पर तैनात देखा जा सकता है.
तस्वीर: AP/picture alliance
भारत की भूमिका
जेस्सोर को अपने कब्जे में ले लेने के बाद भारतीय सैनिक इस तस्वीर में ढाका की तरफ जाने वाली एक सड़क पर तैनात खड़े दिख रहे हैं.
तस्वीर: AP/picture alliance
मुजीबुर रहमान की सरकार
11 दिसंबर की यह तस्वीर जेस्सोर में हुई एक जनसभा की है जिसमें लोग रहमान के नेतृत्व में बनी बांग्लादेश की कार्यकारी सरकार की जय के नारे लगा रहे हैं. बंदूक लिए मुक्ति-बाहिनी का एक सैनिक लोगों को शांत करने की कोशिश कर रहा है. पीछे सिटी हॉल दिख रहा है जिसकी छत पर भारतीय सैनिक पहरा दे रहे हैं.
तस्वीर: AP/picture alliance
विदेशी नागरिकों की सुरक्षा
12 दिसंबर को ब्रिटेन के एक जहाज में विदेशी नागरिकों को ढाका से निकाल लिया गया. यह मिशन इसके पहले गोलीबारी की वजह से तीन बार असफल हो चुका था. अंत में जब छह घंटों के युद्ध-विराम पर सहमति हुई, तब जा कर यह मिशन सफल हो पाया.
तस्वीर: AP/picture alliance
भारतीय सेना का स्वागत
14 दिसंबर की इस तस्वीर में पूर्वी पाकिस्तान के बोगरा की तरफ बढ़ते भारतीय सेना के एक टैंक को देख कर गांव-वाले सैनिकों का स्वागत कर रहे हैं. भारतीय सेना ने इन्हीं टैंकों की मदद से दुश्मन की घेराबंदी को तोड़ दिया था.
तस्वीर: AP/picture alliance
आत्मसमर्पण
16 दिसंबर को पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. तस्वीर में बाएं से दूसरे शख्स हैं जनरल नियाजी जो भारतीय सेना की पूर्वी कमांड के प्रमुख जनरल अरोड़ा और दूसरे कमांडरों की उपस्थिति में हस्ताक्षर कर रहे हैं.
तस्वीर: AP/picture alliance
मौत की सजा
18 दिसंबर की इस तस्वीर में मौत की सजा मिलने से पहले 'राजाकार' हाथ उठा कर दुआ कर रहे हैं. मुक्ति-बाहिनी के सैनिक पीछे खड़े हैं. इन चारों को पांच हजार लोगों के सामने सरेआम मौत की सजा दे दी गई थी.
तस्वीर: Horst Faas/AP/picture alliance
बिहारी शरणार्थियों का शिविर
22 दिसंबर की यह तस्वीर ढाका के मोहम्मदपुर बिहारी शरणार्थी शिविर की है. उर्दू बोलने वाले कई बिहारी 1947 के बंटवारे के दौरान और उसके बाद भी बिहार से पूर्वी पाकिस्तान चले गए थे. इन्होंने इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ दिया. इनमें से कई परिवारों के सदस्य मुक्ति-बाहिनी के सैनिकों के हाथों मारे गए थे.
तस्वीर: Michel Laurent/AP/picture alliance
'बंगबंधु' की वापसी
प्यार से 'बंगबंधु' कहलाए जाने वाले मुजीबुर रहमान को जनवरी 1972 में पाकिस्तान ने रिहा कर दिया. इस तस्वीर में रहमान ढाका के रेस कोर्स मैदान में इकठ्ठा हुए करीब 10 लाख लोगों को संबोधित करने के लिए बढ़ रहे हैं.
तस्वीर: Michel Laurent/AP/picture alliance
इंदिरा गांधी से मुलाकात
छह फरवरी की इस तस्वीर में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कलकत्ता हवाई अड्डे पर रहमान का स्वागत कर रही हैं. रहमान तब बांग्लादेश की आजादी के बाद पहली बार दो दिन की यात्रा पर भारत आए थे.