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शेख हसीना तीन साल बाद भारत में

चारु कार्तिकेय | सामंतक घोष
५ सितम्बर २०२२

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना कई उम्मीदें लिए चार दिवसीय दौरे पर भारत आई हैं. माना जा रहा है कि हसीना तीस्ता संधि और सीमावर्ती इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा जैसे विषयों को उठाना चाहेंगी.

ढाका में शेख हसीना और नरेंद्र मोदी
मार्च 2021 में ढाका में शेख हसीना से मिलते नरेंद्र मोदीतस्वीर: Press Information Department of Bangladesh/ABM Aktaruzzaman

शेख हसीना अपनी भारत यात्रा के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगी. वो तीन साल बाद भारत आ रही हैं. इससे पहले वो 2019 में भारत आई थीं. मार्च 2021 में मोदी बांग्लादेश गए थे.

मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि हसीना की यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, नदियों के पानी समेत कई क्षेत्रों में संधियों पर हस्ताक्षर हो सकते हैं. लेकिन जानकारों का कहना है कि हसीना कुछ संवेदनशील विषयों को भी उठाना चाहती हैं और भारतीय नेतृत्व से बात करना चाहती हैं.

दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर विमान से उतरतीं प्रधानमंत्री शेख हसीनातस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images

बांग्लादेश में 2023 में चुनाव होने हैं और हसीना की भारत यात्रा का असर चुनावों पर पड़ने की भी संभावना है. इसलिए वो बांग्लादेश के हित के मुद्दों को उठाना चाह रही हैं ताकि अपने देश वापस लौट कर वो जनता को बता पाएं कि भारत से क्या आश्वासन लेकर लौटी हैं.

(पढ़ें: बांग्लादेश: गरीबी से जूझता देश कैसे बना उभरती आर्थिक ताकत)

सांप्रदायिक हिंसा

इनमें से सबसे बड़ा मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा है. सूत्रों से प्राप्त जानकारी से पता चला है कि पिछले कई महीनों में दोनों देशों के सीमावर्ती इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाओं के होने की वजह से बांग्लादेश चिंतित है.

बांग्लादेश का मानना है कि भारत के सीमावर्ती इलाकों में इस तरह की घटनाओं का असर सीमा पार तक होता है, इसलिए बांग्लादेश सरकार चाहती है कि भारत इन हिंसा को नियंत्रण में लाने के लिए कुछ कदम उठाए.

बांग्लादेश सरकार भारत सरकार को यह भी दिखाना चाह रही है कि वहां विशेष रूप से पिछले दो सालों में जब भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं तब सरकार ने अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं. इस विषय पर हसीना सरकार के मंत्रिमंडल में भी चर्चा हुई थी और फैसला लिया गया था कि इस बारे में भारत में चर्चा की जाएगी.

बांग्लादेश में पानी कर रहा है लोगों को बेघर

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दूसरा बड़ा मुद्दा म्यांमार से अपनी जान बचा कर भाग कर आए रोहिंग्या शरणार्थियों का है. म्यांमार के रहने वाले इन रोहिंग्या लोगों पर 2017 में म्यांमार के राखाइन प्रांत में हमले हुए जिसके बाद ये अपनी जान बचाने के लिए सीमा लांघ कर भारत और बांग्लादेश चले गए.

(पढ़ें: बांग्लादेश के बहाने त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा)

रोहिंग्या पर भारत की चुप्पी

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस समय बांग्लादेश में नौ लाख से भी ज्यादा रोहिंग्या रह रहे हैं. बांग्लादेश सरकार लंबे समय से म्यांमार सरकार से मांग कर रही है कि वो अब इन्हें वापस ले ले. बांग्लादेश चाह रहा है कि भारत इस बारे में म्यांमार सरकार से बात करे. भारत ने अभी तक इस पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है.

भारत सरकार का रोहिंग्याओं के प्रति बहुत सख्त रवैया है. उन्हें सरकार अवैध विदेशियों का दर्जा देती है और उन्हें कैंपों में रखा जाता है. देखना होगा कि उनके बारे में हसीना को भारत से कोई वादा मिलता है या नहीं.

50 साल में बांग्लादेश का सफर

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दोनों देशों से हो कर बहने वाली नदियों के पानी का साझा इस्तेमाल हमेशा से भारत-बांग्लादेश संबंधों के केंद्र में रहा है. विशेष रूप से तीस्ता संधि को लेकर बांग्लादेश चिंतित रहा है, जिस पर 2011 में ही हस्ताक्षर हो जाने थे लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार की आपत्ति की वजह से अभी तक नहीं हो सके.

(पढ़ें: बांग्लादेश में पूजा पंडालों में तोड़फोड़)

हसीना ने हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस विषय पर बात करने के लिए मिलने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन हसीना की भारत यात्रा के दौरान भारत सरकार ने बनर्जी को दिल्ली आने का न्योता नहीं दिया है. इस वजह से जानकारों में यह देखने की उत्सुकता है कि हसीना की यात्रा के दौरान तीस्ता संधि आगे बढ़ पाएगी या नहीं.

दोनों देशों के बीच इस विषय पर के संयुक्त नदी आयोग (जेआरसी) भी है लेकिन पिछले 12 सालों से आयोग की एक भी बैठक नहीं हुई थी. 26 अगस्त को आयोग की 12 सालों में पहली बैठक हुई, जिसमें दोनों तरफ से आए प्रतिनिधिमंडलों का संबंधित मंत्रियों ने नेतृत्व किया. बैठक में तीस्ता संधि पर भी चर्चा हुई.

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