बांग्लादेश: भारतीय उच्चायुक्त समेत पांच दूत वापस बुलाए गए
३ अक्टूबर २०२४
विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने एक बड़े कूटनीतिक फेरबदल के तहत पड़ोसी देश भारत के उच्चायुक्त समेत पांच राजदूतों को वापस बुला लिया है.
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बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने अपने पांच राजदूतों को वापस ढाका बुला लिया है. जिन देशों से राजदूतों को वापस बुलाया गया है उनमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, पुर्तगाल और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि शामिल हैं. नाम न बताने की शर्त पर अधिकारी ने बताया कि विदेश मंत्रालय ने इन राजदूतों को तुरंत राजधानी ढाका लौटने का आदेश दिया है.
विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने ज्यादा जानकारी दिए बिना कहा कि उन्हें तुरंत अपनी जिम्मेदारियां सौंपकर लौटने को कहा गया है. यह कदम ब्रिटेन में राजदूत सईदा मुना तस्नीम को वापस बुलाने के बाद उठाया गया है. उन्हें भी इसी तरह लौटने को कहा गया था. हसीना को सत्ता से बेदखल करने वाले छात्र-नेतृत्व वाले आंदोलन के दौरान 700 से अधिक लोग मारे गए थे, इससे भारत के साथ संबंध भी खराब हो गए थे. बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों ने राजनीतिक परिवर्तन के बाद हिंदुओं पर हमले का आरोप लगाया था. बांग्लादेश सरकार का कहना है कि हिंसा राजनीति से प्रेरित थी, धर्म से नहीं.
हसीना के देश छोड़ने के बाद हुए हमलों में कुछ बांग्लादेशी हिंदुओं और मंदिरों को निशाना बनाया गया था, जिसकी निंदा छात्र नेताओं और अंतरिम सरकार ने की थी. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वहां हिंदुओं पर हुए हमले का जिक्र स्वतंत्रता दिवस के मौके पर किया था. मोदी ने अपने संबोधन में कहा था, "140 करोड़ भारतीय पड़ोसी देश में हिंदुओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. भारत शांति के लिए प्रतिबद्ध है और वह बांग्लादेश की विकास यात्रा में उसका शुभचिंतक बना रहेगा."
इसके एक दिन बाद 16 अगस्त को पीएम मोदी और मोहम्मद यूनुस के बीच फोन पर बातचीत हुई थी. जिसमें मोदी ने एक बार फिर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था. मोदी से बातचीत में यूनुस ने बांग्लादेश में हिंदुओं और सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का आश्वासन दिया था.
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हसीना ने ली है भारत में शरण
संयुक्त राष्ट्र की एक प्राथमिक रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश के हालिया आंदोलन में कम-से-कम 600 लोग मारे गए थे. आशंका है कि मृतकों की संख्या इस अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकती है. बांग्लादेश,हसीना का डिप्लोमैटिक पासपोर्ट रद्द कर चुका है. मोहम्मद यूनुस भी उन्हें वापस लाने की बात कर चुके हैं. हसीना के शासन में सुरक्षाकर्मियों पर सैकड़ों लोगों को गायब करने के आरोप भी लगे और हाल ही में इस मामले में एक सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज द्वारा जांच भी शुरू करवाई गई.
बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शनों के बाद शेख हसीना को 5 अगस्त को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और देश से भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी. हसीना के इस्तीफे के बाद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार बनाए गए थे.
एए/वीके(रॉयटर्स)
मोहम्मद यूनुस: बांग्लादेश के 'गरीबों का बैंकर'
मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगे. बांग्लादेश के इकलौते नोबेल विजेता यूनुस को देश में हीरो माना जाता है, लेकिन शेख हसीना सरकार के कार्यकाल में उन पर 100 से भी ज्यादा मुकदमे थोपे गए.
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अमेरिका में पढ़ाई
मोहम्मद यूनुस को "सबसे गरीब लोगों का बैंकर" के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 1940 में चिट्टागोंग के एक समृद्ध परिवार में हुआ. बड़े होकर उन्हें अमेरिका में पढ़ाई करने के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली. बांग्लादेश की आजादी के तुरंत बाद ही वो वापस आ गए.
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अकाल से मिली प्रेरणा
वापस आने पर उन्हें चिट्टागोंग विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया लेकिन एक भयानक अकाल से गुजर रहे उनके देश की हालत उनसे देखी नहीं गई. उन्होंने खुद कहा था कि उन हालात में उन्हें अर्थशास्त्र के सिद्धांत पढ़ना बहुत कठिन लग रहा था और वो कुछ ऐसा करना चाहते थे जिससे लोगों की तुरंत मदद हो सके.
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एक अनोखे बैंक की स्थापना
उन्होंने गरीबी की वजह से पारंपरिक लोन के लिए अयोग्य पाए जाने वाले लोगों को लोन दिलाने के कई तरीकों पर प्रयोग करने के बाद 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की. आज इस बैंक के 90 लाख से ज्यादा ग्राहक हैं, जिनमें से 97 प्रतिशत महिलाएं हैं.
तस्वीर: Abdul Saboor/REUTERS
महिलाओं के जरिए बदलाव
'ग्रामीण बैंक' के जरिए यूनुस ने ग्रामीण महिलाओं को बहुत ही छोटे लोन देने का अभियान शुरू किया. इन महिलाओं को कृषि उपकरण या व्यापार उपकरण खरीदने और अपनी कमाई बढ़ाने के लिए लोन की जरूरत थी.
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'गरीबों का बैंकर'
ग्रामीण बैंक की बांग्लादेश में तेजी से हुए आर्थिक विकास को गति देने के लिए दुनियाभर में सराहना की गई. बाद में बैंक के इस काम को बीसियों विकासशील देशों में अपनाया गया. यूनुस और ग्रामीण बैंक को 2006 में गरीबी को कम करने में मदद करने के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया.
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समझा गया प्रतिद्वंदी
लेकिन बांग्लादेश में उनकी लोकप्रियता की वजह से वो तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की आंखों में खटकने लगे. हसीना ने उन पर गरीबों का "खून चूसने" का आरोप लगाया. 2007 में यूनुस ने "नागरिक शक्ति" नाम की अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की योजना की घोषणा की. बाद में उन्होंने कुछ ही महीनों में अपनी इस योजना को वापस भी ले लिया, लेकिन उनकी इस योजना को एक चुनौती की तरह लिया गया.
यूनुस के खिलाफ 100 से भी ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज किए गए. सरकार की एक इस्लामिक एजेंसी ने उनपर समलैंगिकता को बढ़ावा देने का आरोप भी लगाया और उन्हें बदनाम करने की पूरी कोशिश की. 2011 में सरकार ने उन्हें जबरन ग्रामीण बैंक से भी निकलवा दिया. यूनुस ने इस फैसले को चुनौती दी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को सही ठहराया.
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जेल की सजा
जनवरी, 2024 में ढाका की एक श्रम अदालत ने उन्हें और उनके तीन साथियों को उनकी एक कंपनी में श्रमिक कल्याण कोष नहीं बनाने का दोषी ठहराया और छह महीने की जेल की सजा सुनाई. हालांकि उन्हें फैसले को चुनौती देने तक जमानत पर बरी भी कर दिया.
तस्वीर: Samir Kumar Dey/DW
सत्य की जीत
इन चारों ने उन पर लगे आरोपों से इनकार किया. उस समय बांग्लादेश की अदालतों पर हसीना सरकार के फैसलों पर मोहर लगाने के आरोप लग रहे थे. इस मामले की भी इसी आधार पर आलोचना की गई. दुनियाभर में कई लोगों और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संस्थानों ने भी इस फैसले की आलोचना की. छह अगस्त को ढाका की एक अदालत ने यूनुस को बरी कर दिया. - सीके/एए (एएफपी)