बांग्लादेश में शरणार्थियों के तौर पर शिविर में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों में कोरोना वायरस का मामला सामने आया है. कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में दस लाख रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं. मामला आने के बाद चिंता बढ़ गई है.
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मानवीय समूहों ने चेतावनी दी है कि खचाखच भरे रोहिंग्या कैंपों में कोविड-19 गंभीर तबाही मचा सकता है. बांग्लादेश के वरिष्ठ अधिकारी और संयुक्त राष्ट्र की प्रवक्ता ने कहा है कि शरणार्थी और एक अन्य शख्स कोरोना संक्रमण के लिए पॉजिटिव पाए गए हैं. बांग्लादेश शरणार्थी सहायता आयोग के अध्यक्ष महबूब आलम तालुकदार ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन्हें आइसोलेशन केंद्र में भेज दिया गया है." पॉजिटिव पाया गया दूसरा शख्स रोहिंग्या शरणार्थी नहीं है.
शुक्रवार 15 मई तक बांग्लादेश में कोरोना के 18,863 पॉजिटिव मामले सामने आ चुके थे और इस महामारी के कारण देश में 283 मौतें दर्ज की जा चुकी थीं. सहायता एजेंसियों ने संभावित मानवीय आपदा की चेतावनी देते हुए कहा है कि मामला गंभीर रूप ले सकता है. कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर में दस लाख से भी अधिक रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं और उनकी मूलभूत सुविधाओं तक पहुंच सीमित है.
बांग्लादेश में सेव द चिल्ड्रेन के स्वास्थ्य निदेशक डॉ. शमीम जहां के मुताबिक वायरस ने देश को पहले ही हिला कर रख दिया है. डॉ. शमीम ने एक बयान में कहा,"पूरे बांग्लादेश में एक अनुमान के मुताबिक 16 करोड़ की आबादी के लिए केवल 2,000 वेंटीलेटर मौजूद हैं. रोहिंग्या शरणार्थी शिविर में फिलहाल गहन चिकित्सा देखभाल के लिए एक भी बेड मौजूद नहीं है. अब जब की यह वायरस दुनिया के सबसे बड़े शरणार्थी शिविर में दाखिल हो गया है, बहुत वास्तविक संभावना है कि हजारों लोगों की मौत कोविड-19 के कारण हो सकती है." उन्होंने आगे कहा,"यह महामारी बांग्लादेश को दशकों पीछे ले जा सकती है."
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के एम्बैसेडर एट लार्ज सैम ब्राउनबैक ने वॉशिंगटन में पत्रकारों से कहा, "मैं उस शरणार्थी शिविर का दौरा कर चुका हूं. वहां बहुत भीड़ है, दुर्भाग्य से कोविड-19 वायरस वहां तेजी से फैलेगा. वहां लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच मिलनी चाहिए."
बांग्लादेश में अंतरराष्ट्रीय रेस्क्यू कमेटी के निदेशक मनीष अग्रवाल कहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं में कर्मचारियों और जगहों की कमी है, जबकि कैंप में रह रहे लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में साबुन और पानी नहीं है. वह कहते हैं, "यहां प्रति वर्ग स्क्वायर किलोमीटर में 40,000 से 70,000 लोग रह रहे हैं, जो कि डायमंड प्रिंसेस जहाज में मौजूद लोगों की तुलना में 1.6 अधिक घनी आबादी वाला इलाका है. डायमंड प्रिंसेस जहाज में वुहान से चार गुना तेजी से कोरोना वायरस फैला था."
मनीष कहते हैं, "स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच बढ़ाने की कोशिशों के बिना, स्वच्छता की कमी और संदिग्धों को अलग करने के उपाय नहीं अपनाने से बीमारी शरणार्थी और स्थानीय आबादी को तबाह कर देगी." म्यांमार से जान बचाकर बांग्लादेश आए रोहिंग्या मुसलमान घनी आबादी वाले शिविरों में रहने को मजबूर हैं. कई सदियों से वे म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रह रहे थे, जिसे अराकन के नाम से भी जाना जाता है.
रोहिंग्या लोगों में ज्यादातर मुसलमान हैं. म्यांमार की सरकार उन्हें अपना नागरिक नहीं मानती है. दशकों से म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों पर रोहिंग्या लोगों से भेदभाव और हिंसा करने के आरोप लगते हैं. कुछ रोहिंग्या मुसलमान भारत में भी बतौर शरणार्थी रहते हैं.
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.