डॉलर की कमी के कारण बांग्लादेश को ईंधन आयात करने में समस्या आ रही है. वह कच्चे तेल के आयात का भुगतान नहीं कर पा रहा है. डॉलर की कमी के कारण नया आयात भी कर पाना संभव नहीं होगा.
विज्ञापन
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने बांग्लादेशी अधिकारियों के पत्र के हवाले से रिपोर्ट दी है कि देश की पेट्रोलियम कंपनी वर्तमान में 30 करोड़ डॉलर की कमी का सामना कर रही है. बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन भारत के साथ अपने भुगतान को रुपये में निपटाने की अनुमति मांग रहr है क्योंकि देश के ईंधन भंडार खतरनाक रूप से कम हो गए हैं.
भारतीय रुपये में भुगतान की अनुमति की मांग
बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन (बीपीसी) 17 करोड़ लोगों के देश बांग्लादेश में ईंधन का मुख्य आयातक और वितरक है, बीपीसी ने सरकार से स्थानीय वाणिज्यिक बैंकों को भारत के साथ रुपये में भुगतान करने की अनुमति देने का अनुरोध किया है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से बांग्लादेश का डॉलर रिजर्व एक तिहाई से भी ज्यादा कम हो गया है. 17 मई को बांग्लादेश का कुल डॉलर रिजर्व सात साल के निचले स्तर 30.18 अरब पर पहुंच गया था.
बांग्लादेश ईंधन के आयात पर निर्भर है और ईंधन की कमी के कारण लोड-शेडिंग ने देश के कपड़ा उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है.
बिजली कटौती से परेशान उद्योग
बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन द्वारा ऊर्जा मंत्रालय को 9 मई को लिखे एक पत्र में कहा गया है, "स्थानीय बाजार और केंद्रीय बैंक में डॉलर की कमी के कारण वाणिज्यिक बैंकों को आयात के लिए भुगतान करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है."
इससे पहले अप्रैल में एक चेतावनी पत्र लिखा गया था, जिसके अनुसार, "ईंधन के भंडार की खतरनाक कमी के कारण मई के लिए निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ईंधन का आयात संभव नहीं हुआ तो पूरे देश में ईंधन की कमी हो जाएगी और पूरे देश में वितरण बाधित हो सकता है."
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक विद्युत मंत्रालय ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही रॉयटर्स के सवालों का कोई जवाब दिया है.
बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन मासिक आधार पर 5,00,000 टन रिफाइंड तेल और 1,00,000 टन कच्चे तेल का आयात करता है.
तेल की कमी के चलते बिजली कटौती हो रही है और इससे उद्योग भी प्रभावित हैं. बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कपड़ा और जूट उत्पादन को माना जाता है जो पूरी तरह से एक्सपोर्ट इंडस्ट्री है.
एए/वीके (रॉयटर्स)
बांग्लादेश की 'मृत' नदी, बूढ़ीगंगा
बांग्लादेश की "बूढ़ीगंगा" कभी एक शक्तिशाली नदी हुआ करती थी, लेकिन आज वो दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से है. टॉक्सिन से भरे काले पानी वाली यह नदी मौत के कगार पर है.
तस्वीर: Nayem Shaan/Zumapress/picture alliance
आखिरी सांसें लेती नदी
नुरुल इस्लाम कभी ढाका की जीवनरेखा समझे जाने वाली बूढ़ीगंगा नदी को देख रहे हैं. दो दशक पहले इस्लाम इसी नदी से मछलियां पकड़ा करते थे, लेकिन आज नदी में शायद ही मछलियां बची हों. 70 साल के इस्लाम को अपना पुराना पेश छोड़ना पड़ा. आज वो खाने पीने की चीजें बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं. औद्योगिक और मानव अपशिष्ट के नदी में अनियंत्रित रूप से डाले जाने के कारण नदी आज आखिरी सांसें ले रही है.
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
एक खतरनाक खेल
बूढ़ीगंगा में बेरोक गिरने वाले गंदे पानी में खेलते बच्चे. मानसून के पहले और बाद में नदी इतनी प्रदूषित रहती है कि उसका पानी गहरा कला नजर आता है और उसमें से बदबू भी निकल रही होती है. बांग्लादेश में रहने वाले 17 करोड़ लोगों में से कई जिंदा रहने के लिए और यातायात के लिए नदियों पर निर्भर हैं. लेकिन बूढ़ीगंगा की तरह इनमें से कई नदियां गंभीर प्रदूषण की वजह से बुरे हाल में हैं.
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
रसायनों में नहाना
दिहाड़ी श्रमिक मोतहर हुसैन के पास इस गंदी नदी में नहाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. देश में हर चार में से सिर्फ एक घर में नल का पानी आता है. 1995 में सरकार ने उद्योगों द्वारा छोड़े गए गंदे पानी को साफ करना उद्योगों के लिए ही अनिवार्य कर दिया था. लेकिन कानून का पालन नहीं हो पाया है.
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
कपड़ा व्यापार का बुरा असर
हर रोज नदी के पास बनी मिलों और फैक्ट्रियों से बिना ट्रीट किया गया मैला पानी, कपड़े को रंगने के उपोत्पाद और दूसरा रासायनिक अपशिष्ट नदी में गिरता है. बांग्लादेश चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपड़ा निर्यातक है, लेकिन यह बढ़ता उद्योग नदी की मौत का भी कारण बन रहा है.
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
अंतरराष्ट्रीय मानक नाकाम
कपड़ा उत्पादक और निर्यातक संगठन के शहीदुल्लाह अजीम ने रॉयटर्स को बताया कि सभी कपड़ा फैक्ट्रियों के पास गंदे पानी को साफ करने के अपने अपने संयंत्र हैं क्योंकि यह अंतरराष्ट्रीय मानकों का निर्देश है. लेकिन असलियत बहुत अलग है. यहां लाल रंग का गंदा पानी बेरोक एक नाले से बूढ़ीगंगा की एक सहायक नदी में बह रहा है.
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
आंखों में होती है जलन
45 साल के नाविक सिद्दीक हवलदार अपनी पत्नी और बेटी के साथ बूढ़ीगंगा के तट पर ही रहते हैं. उनका कहना है कि नदी लोगों को बीमार बना रही है. "जो इस नदी में नहाते हैं उन्हें अक्सर चर्म रोग हो जाते हैं. कभी कभी हमारी आंखों में खुजली और जलन होती है."
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
बंद नाले
कभी इस नहर का पानी बूढ़ीगंगा में गिरता था. अब यहां इतना प्लास्टिक और कचरा है कि पानी यहां से आगे बह ही नहीं पाता. नहर के सूख चुके तल में कचरे की परतें नजर आती हैं. कचरा निष्पादन का कोई इंतजाम ना होने की वजह से लोग अपना कचरा नहर में ही फेंक देते हैं.
तस्वीर: MOHAMMAD PONIR HOSSAIN/REUTERS
उम्मीद की किरण
यह धलेश्वरी नदी है जिसके पास ही यह कचरा भराव क्षेत्र है. बांग्लादेश को कचरा प्रबंधन में निवेश करने की बेहद जरूरत है. ढाका का पहला कचरे से बिजली बनाने वाला संयंत्र 2024 में शुरू होना है. क्या उससे बदलाव की शुरुआत हो पाएगी? (क्लॉडिया डेन)