चमगादड़ के पंखों में एक खास तौर की लचीली झिल्लीदार त्वचा होती है जो उन्हें बेजोड़ एरोडायनैमिक काबिलियत देती है. यूनिवर्सिटी ऑफ साउथएम्प्टन के शोधकर्ता चमगादड़ों की इसी काबिलियत से प्रेरित होकर एक नया ड्रोन बना रहे हैं. चमगादड़ की शारीरिक बनावट की नकल करते हुए ये शोधकर्ता चाहते हैं कि ड्रोन के निर्माण में नए आयाम जोड़े जाएं.
शोधकर्ताओं ने ऐसे पंख बना लिए हैं जो कि उड़ान के समय लगने वाले बल के अनुसार अपना आकार बदल लेते हैं. विंड टनल परीक्षण के दौरान झिल्लीदार आकार के ये पंख हवा की बदलती स्थिति के अनुरूप अपना आकार बदलने में कामयाब रहे हैं.
मिलिए हवा में उड़ने वाले चार सिरों वाले ड्रोन यानि क्वाड्रोकॉप्टर से. इनके कई फायदे सामने आ रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaक्वाड्रोकॉप्टर को बनाने वाली एक पेरिस की कंपनी है. स्मार्टफोन की मदद से नियंत्रित किया जाने वाला यह उपकरण बैटरी पर चलता है. इसमें दो कैमरे लगे हैं. कैमरे में कैद होने वाली तस्वीरें आपके स्मार्टफोन में देखी जा सकती हैं. इसका इस्तेमाल कई तरह से किया जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मन शहर ड्रेसडेन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर पेड़ों के ऊपरी हिस्से के अध्ययन के लिए ड्रोन का इस्तेमाल करते हैं. हवा में उड़ने वाले ड्रोन की मदद से उन्हें पेड़ों की 3डी तस्वीर मिलती है. इस तकनीक में अब स्थानीय पर्यावरण मंत्रालय भी दिलचस्पी ले रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaसेंसोकॉप्टर नाम के इस उपकरण का वजन सिर्फ 700 ग्राम का है. और इसमें निगरानी के लिए कैमरे लगे हुए हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयह एक आठ डैनो वाली हैलीकॉप्टर जैसी मशीन है जिसमें एक कैमरा लगा हुआ है. यह साइकल रेस या कार रेस के दौरान हवा में उड़ते उड़ते तस्वीरें खींचता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaइस मशीन की बैटरी सिर्फ छह मिनट चलती है. फिर इसे बदलना पड़ता है. सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तीन मिनट में ही बैटरी बदल दी जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaइसी सिद्धांत पर खतरनाक मानवरहित विमान ड्रोन भी बनते हैं. हवा में उड़ने वाले यह कैमरे धरती की तस्वीरें लेते हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesयूएवी विमान अमेरिकी सेना को बहुत पसंद हैं. माना जाता है कि अमेरिकी सेना के पास इस तरह के सात हजार विमान हैं. दस साल पहले उनके पास सिर्फ 50 थे.
तस्वीर: APअनमैन्ड एरियल वेहिकल (यूएवी) यानी ड्रोन विमानों का निर्माण तेजी से बढ़ रहा है. फिलहाल 50 देश ड्रोन विमानों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpaग्लोबल हॉक नाम के इस ड्रोन विमान में थर्मल इमेजिंग के कैमरे लगे हुए हैं. जिन्हें जापान के फुकुशिमा दाइची के क्षतिग्रस्त परमाणु संयंत्र की तस्वीरें लेने के लिए इस्तेमाल किया गया.
तस्वीर: picture alliance / dpaइस स्काउट ड्रोन विमान को वियतनाम युद्ध में भी इस्तेमाल किया गया. इसे AN-USD-5 के नाम से भी जाना जाता है.
तस्वीर: APA MQ-9 रीपर में लेसर से चलने वाले हथियार लगे हुए हैं और AGM-114 मिसाइलें लगी हुई हैं. दक्षिणी अफगानिस्तान में युद्धक मिशन के लिए इसे कर्नल लेक्स टर्नर ने चलाया.
तस्वीर: AP2004 से अक्टूबर 2011 के मध्य तक अमेरिका ने पाकिस्तान में करीब 300 ड्रोन हमले किए हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpaइल्मेनाउ में रिसर्चर एक ऑटोमेटिक क्वाड्रोकॉप्टर विकसित कर रहे हैं. वह मोबाइल नेटवर्क डाउन होने पर उसे ठीक कर सकेगा. इस प्रोजेक्ट पर करीब पैंसठ लाख यूरो खर्च किए जा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
शोध पर काम कर रहे यूनिवर्सिटी ऑफ साउथएम्प्टन के प्रोफेसर भारत गणपतिसुब्रमणि कहते हैं, ''यह झिल्ली असल में बहुत हद तक एक जहाज के पाल की तरह काम करती है. जब हवा का दबाव इस पर पड़ता है यह एक तरह से अपना आकार बदल लेती है और इससे एरोडायनैमिक परिणाम निकलते हैं. यह सिर्फ इतना ही नहीं करती जबकि यह वाइब्रेट भी करती है और झटके भी देती है. और ये झटके एरोडायनैमिक प्रदर्शन को और बढ़िया बनाते हैं.''
पंखों की लोच हवा को घुमाते हुए एक भंवर भी बनाती है जिससे ड्रोन को और उपर उठने में भी मदद मिलती है. शोध में साथ काम कर रहे शोध छात्र और ड्रोन डिजाइनर रॉबर्ट ब्लेशवित्स कहते हैं, ''झिल्लीदार पंख इसे हवा में रोके रखते हैं क्योंकि सतह की गति भंवर को बढ़ाती है जिससे पंख नीचे की तरफ झुकते हैं और ये भंवर ड्रोन को उठाने का काम करते हैं. और ऐसे में इन भवरों को बढ़ाने के लिए जरूरत होती है झिल्लियों से पैदा हुए झटकों की.''
हालांकि यह ड्रोन जमीन की सतह पर ही उड़ सकते हैं लेकिन इसके निर्माताओं का कहना है कि यह पानी के ऊपर स्थिर रहने में अधिक कामयाब हैं. दो इलैक्ट्रिक राउटरर्स पंखों के नीचे हवा की एक गद्दी बना देते हैं जिसमें यह यान तैरने लगता है. एक बार यह हवा में तैरने लगता है तो राउटर्स इसे लगातार ऐसा करने में मदद करते हैं. शोधकर्ता अब इन झिल्लीदार पंखों को एक मजबूत मानवरहित हवाई यान में बदलने की दिशा में काम कर रहे हैं. वे प्रकृति से प्रेरित ड्रोन्स की एक नई प्रजाति तैयार कर रहे हैं.
आरजे/एमजे (रायटर्स)
दुनिया में कुछ समुद्री इलाकों में अगर आप दूरबीन लगाए कुछ घंटे इंतजार करें जो शायद व्हेल को देख पाएं. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने व्हेल देखने के लिए एक तेज और पक्का तरीका इजाद किया है - जो है ड्रोन की मदद से व्हेल स्पॉटिंग.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquariumव्हेलों के व्यवहार के बारे में ज्यादा जानकारी इकट्ठा करने के लिए नेशनल ओशेनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के रिसर्चर ड्रोनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस हाईटेक उपकरण से व्हेलों की शिकार करने की तकनीक और सामाजिक बर्ताव के बारे में कई अहम जानकारियां मिली हैं.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium.व्हेलों की बढ़िया तस्वीर लेने के लिए छह रोटरों और एक शक्तिशाली कैमरे से लैस ड्रोन समुद्र से करीब 130 फीट (40 मीटर) की ऊंचाई पर मंडराता है. इतनी ऊंचाई पर रहने से व्हेलें परेशान नहीं होतीं और उनके बीच होने वाले ऐसे अंतरंग पल भी कैमरे में कैद हो जाते हैं.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquariumकिसी भी इलाके में व्हेलों की पूरी आबादी पर नजर रखने में ड्रोनों से बड़ी मदद मिली है. रिसर्चरों को जानवरों की संख्या और उनकी शारीरिक हालत के बारे में लंबे समय तक जानकारी रखने और दूसरी जगहों से इकट्ठा किए डाटा के साथ उसकी तुलना करने में आसानी हो रही है.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium.आर्कटिक में लंबी लंबी यात्राओं के दौरान व्हेलें कुछ भी नही खातीं, इसलिए वे पहले से ही अपने शरीर में ब्लबर का पर्याप्त स्टॉक रखती हैं. ब्लबर एक खास तरह का बॉडी फैट होता है. यह नवजात बच्चों की मांओं के लिए खास तौर पर जरूरी है, जो बच्चों को दूध पिलाती हैं. तस्वीर में दिख रही कई मादा व्हेल कई टन भारी होने के बावजूद शायद थोड़ी कुपोषित हो.
तस्वीर: NOAAएनओएए के वैज्ञानिकों के पास काली-सफेद धारियों वाली ओरका व्हेल और ग्रे व्हेलों के पास जाने का खास परमिट है. इन विशाल और शानदार जीवों को बचाने के लिए व्हेल वॉचरों को आमतौर पर 300 मीटर की दूरी बनाए रखने का निर्देश होता है. इसका मतलब हुआ कि ऐसी नजदीकी तस्वीरें बेहद खास रहेंगी.
तस्वीर: NOAA, Vancouver Aquarium.