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"कोई बच्चा जन्म से ही नस्लभेदी नहीं होता”

५ जून २०२०

नस्लभेद की शुरुआत घर में होती है. लिहाजा इसका हल भी सबसे पहले घर में ही खोजना होगा. जर्मनी के अश्वेत फुटबॉल स्टार जेरोम बोआटेंग ने डीडब्ल्यू के साथ अपने अनुभव साझा किए.

फुटबॉल स्टार जेरोम बोआटेंग
फुटबॉल स्टार जेरोम बोआटेंग विश्व विजेता जर्मन टीम का हिस्सा भी रहे हैंतस्वीर: picture-alliance/Eibner

जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 1988 में पैदा हुए जेरोम बोआटेंग की मां जर्मन हैं और पिता घाना मूल के आप्रवासी. बर्लिन की सड़कों में फुटबॉल का हुनर तराशकर बोआटेंग बर्लिन के क्लब हेर्था बर्लिन में पहुंचे. पहली बार पेशेवर फुटबॉलर के तौर पर उन्होंने 2007 में पहला मैच खेला. इसके बाद वे हैम्बर्ग और मैनचेस्टर सिटी जैसे क्लबों में गए.

सेंट्रल डिफेंडर पोजिशन में खेलने वाले बोआटेंग ने 2011 में दिग्गज जर्मन फुटबॉल क्लब बार्यन म्यूनिख ज्वाइन किया. तब से वह चैपियंस लीग और कई बुंडेलीगा टाइटल जीत चुके हैं. बोआटेंग ब्राजील में 2014 का वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का प्रमुख स्तंभ रहे. पेश हैं, उनसे बातचीत के प्रमुख अंश.

डीडब्ल्यू: जर्मनी में रहने वाले एक जर्मन के तौर पर अमेरिका में अभी जो कुछ हो रहा है, उस पर क्या सोचते हैं?

बोआटेंग: तस्वीरों ने मुझे चौंकाया है. इस वक्त सोशल मीडिया पर कुछ ऐसी चीजें दिख रही हैं जो बर्बर हैं. और दुर्भाग्य से, प्रदर्शनकारी भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. इसके बावजूद, जॉर्ज फ्लॉयड का केस दिखाता है कि अमेरिका में काले लोगों के खिलाफ नस्लभेद कितना व्यापक है. नस्लीय पहचान भी अहम भूमिका निभाती है. मैं इसे काफी व्यथित हूं क्योंकि मैं भी अक्सर अमेरिका जाता हूं. मुझे वह देश और उसकी संस्कृति काफी पसंद है. लेकिन ये सब कुछ नया नहीं है, यह ऐसा है जो हमेशा मौजूद रहता है. नस्लभेद हर जगह है, लेकिन अमेरिका में यह बहुत ज्यादा है.

हाल में ही मैंने एक अच्छा उद्धरण पढ़ा: नस्लभेद एक अंधेरा कमरा है और बीच बीच में कोई लाइट जला दे तो सब कुछ दिखने लगता है. अगर आप सोचते हैं कि अफ्रीकी-अमेरिकियों ने अमेरिकी छवि और संस्कृति के लिए कितना कुछ किया है, तो मैं इसकी व्याख्या नहीं कर सकता हूं. और मैं तो सिर्फ खेलों, फैशन और म्यूजिक की बात कर रहा हूं. राष्ट्रपति के तौर पर बराक ओबामा भी एक ऐतिहासिक हस्ती हैं.

क्या जर्मनी में भी आपको इसके समानान्तर कुछ दिखता है?

निश्चित रूप से, नस्लभेद तो यहां भी एक मुद्दा है. यह यहां भी मौजूद है. हाल के बरसों में मैंने जर्मनी में विदेशियों पर और दूसरे धार्मिक समूहों पर हमले देखे हैं.  हालात ऐसी दिशा में बढ़ रहे हैं जिन्हें देखकर मुझे लगता है कि पहले हम इससे आगे थे.

बर्लिन में बचपन के दौरान, मैंने भी नस्लभेद का सामना किया. लेकिन मैं फुटबॉल पिच पर अपने समय को भी याद करता हूं, जहां आप कहां से आते हैं और आपके धर्म क्या है, ये चीजें कोई मायने नहीं रखती थीं. हम ईरानी, अफ्रीकी, तुर्क और जर्मन थे. लेकिन हमने इस बारे में न तो सोचा, ना ही बात की. हम सब एक दूसरे के साथ थे.

क्या आपको लगता है कि जर्मनी में एफ्रो-जर्मनों को पहचान मिलती हैं और यहां आराम से दिखाई पड़ते हैं?

आम तौर पर कहूं तो कुछ इलाकों में अफ्रीकी विरासत को कम प्रतिनिधित्व मिला है. हालांकि मुझे लगता है कि खेलों से जुड़े लोगों ही हैं जिन्हें पहचाना जाता है.

लेकिन मैं हर चीज को बुरा नहीं कहूंगा. आधारभूत तरीके से देखें तो मुझे लगता हैं कि जर्मनी एक खुला देश है. व्यक्तिगत रूप से मेरे पास बहुत सारे अच्छे अनुभव भी हैं. यूरोप में ऐसे देश भी है जहां यह बहुत ही बुरा है.

कई काले खिलाड़ी हाल की नस्लीय घटनाओं पर बोले हैं. लेकिन क्या आपके गोरे साथी उनका समर्थन करते हैं?

कोई भी गोरा खिलाड़ी जो अभी बोल नहीं रहा है, वह नस्लभेदी नहीं है. बिल्कुल नहीं. जब मैं प्रदर्शनों के वीडियो देखता हूं तो मैं हर रंग के लोग देखता हूं. हां, अगर गोरे खिलाड़ी अपनी ख्याति का इस्तेमाल कर इस मामले में सहयोग दें तो ये तो बहुत ही अच्छा होगा. कई ऐसा करते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इस मामले में अभी बहुत सुधार की गुंजाइश है.

क्या कोई ऐसी बात है जो मैंने न पूछी हो, लेकिन वह आपके लिए अहम हो और आप उसे कहना चाहें?

हर चीज बच्चों की शिक्षा से शुरू होती है. यह सबसे महत्वपूर्ण चीज है. इस दुनिया में कोई भी बच्चा जन्म से नस्लभेदी नहीं होता है. यह माता पिता के ऊपर है कि वे अपने बच्चे से क्या कहते हैं.

सबसे बुरा तो ये होगा कि मेरे बच्चे इन चीजों का सामना करें. यह बहुत ही अहम है कि हम अपने बच्चों को सिखाएं कि नस्लभेद किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं है. उन्हें सिखाएं कि अगर किसी का शोषण किया जा रहा हो, तो उन्हें उसकी रक्षा करनी चाहिए, उसके लिए बोलना चाहिए. यह चीजें स्कूल में शुरू होनी चाहिए. यह पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए. केवल इसी तरह हम आगे बढ़ सकेंगे.

इंटरव्यू: योनाथन हार्डिंग

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