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समाज

बांग्लादेश में ट्रांसजेडरों के लिए खुला मदरसा

९ नवम्बर २०२०

एक धार्मिक चैरिटी ने बांग्लादेश में किन्नरों समुदाय के लोगों के लिए पहला स्कूल (मदरसा) खोला है. बांग्लादेश में इस समुदाय के लोगों के साथ व्यापक तौर पर भेदभाव होता है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/Monirul Alam

किन्नरों को कम उम्र में ही उनके परिवार से अलग कर दिया जाता है. उन्हें ना तो कोई औपचारिक शिक्षा मिलती है और ना समाज में इज्जत. मजबूरी में उन्हें भीखना मांगना पड़ता है और वे सेक्स के पेशे में धकेल दिए जाते हैं.

ढाका में एक तीन मंजिला इमारत की तीसरी मंजिल को किन्नर समुदाय के लोगों की इस्लामी शिक्षा के लिए खोला गया है. इसके मौलवी अब्दुर्रहमान आजाद कहते हैं, "जो लोग ट्रांसजेंडर होते हैं वे भी इंसान होते हैं, उन्हें भी शिक्षा का अधिकार है. उन्हें भी सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार है."

यहां छात्रों को कुरान की तालीम दी जाएगी और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत बताए जाएंगे, लेकिन उन्हें बंगाली, अंग्रेजी, गणित के अलावा वोकेशनल ट्रेनिंग भी दी जाएगी. आजाद कहते हैं, "हमारी योजना है कि हम उनके लिए देशभर में स्कूल खोले ताकि वे शिक्षा से वंचित न रह पाएं. फिलहाल हम 100 छात्रों के साथ इसकी शुरुआत कर रहे हैं. वे इस्लामी शिक्षा के साथ साथ वोकेशनल विषयों पर शिक्षा पाएंगे. हम उन्हें मानव संसाधन में बदलना चाहते हैं."

बांग्लादेश सरकार का अनुमान है कि देश में 10,000 किन्नर हैं जबकि अधिकार समूहों का कहना है कि उनकी आबादी 15 लाख से भी अधिक हो सकती है. 2013 में सरकार ने ऐतिहासिक फैसले में किन्नरों को तीसरे लिंग की मान्यता दी थी, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं आया है और समलैंगिक सेक्स अब भी गैर कानूनी है.

30 वर्षीय सोना सोलानी कहती हैं, "मैं बहुत उत्साहित हूं. यह स्कूल आशा की किरण है. हमें हमेशा से नीचा देखा गया है. हमें कोई स्वीकार नहीं करता है, हमारे घर पर भी हमें स्वीकार नहीं किया जाता है." बात करते हुए सोलानी भावुक हो जाती हैं और उनका गला रुंध जाता है.

वे कहती हैं, "मैं समाज को यह दिखाना चाहती हूं कि हम बराबरी के साथ खड़े हो सकते हैं और यह साबित कर सकते हैं कि हम सिर्फ भीख मांगने तक सीमित नहीं हैं. हमारी जिंदगी इससे भी कहीं अधिक बड़ी है."

एए/सीके (रॉयटर्स)

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